कोलार गोल्ड फील्ड्स (Kolar Gold Fields) या KGF, भारत के कर्नाटक राज्य के कोलार जिले में स्थित एक प्रसिद्ध सोने की खदान है। यह बेंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एक समय यह देश का सबसे बड़ा सोना उत्पादक क्षेत्र था, लेकिन 2001 में यहां सोना खदान बंद कर दी गई थी।
KGF का 2000 साल पुराना इतिहास
KGF में सोने की खदानें 2000 साल से भी अधिक समय से हैं। 1880 में, John Taylor And Sons नामक एक ब्रिटिश कंपनी ने KGF की खदानों का नियंत्रण हासिल कर लिया और यहां सोना खनन शुरू किया। KGF में 1880 में माइनिंग शुरू होने के कुछ समय के बाद ही अंग्रेज़ों को KGF से बहुत फायदा होने लगा था। हालांकि बड़े पैमाने पर खुदाई के लिए उन्हें हजारों श्रमिकों की भी जरूरत थी। जॉन टेलर एंड संस ने Madras Presidency के पड़ोसी तमिल और तेलुगु भाषी क्षेत्रों से मजदूरों की भर्ती की। ब्रिटिशर्स ने उच्च पदों पर कब्जा कर लिया और एंग्लो-इंडियन लोग सुपरवाइजर्स का काम करते थे। पंजाबियों को सिक्योरिटी गार्ड्स के तौर पर रखा गया। धीरे-धीरे KGF कई जाति के लोगों वाले शहर के तौर पर डेवलप होने लगा।
स्वतंत्रता के बाद, KGF को भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (BGML) द्वारा संचालित किया गया। 28 फरवरी, 2001 को, KGF में सोने की खदान बंद कर दी गई, जिससे यहां के लोगों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। हाल ही में, फिल्म KGF: Chapter 1 और KGF: Chapter 2 ने इस खदान को फिर से चर्चा में ला दिया है। हालांकि, फिल्म में दिखाई गई कहानी खदान के वास्तविक इतिहास से काफी अलग है।
KGF में सोने की खदान बंद होने के बाद से, यहां के लोग विभिन्न आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हालांकि, KGF अभी भी अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहां भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (BGML) के कर्मचारी और उनके परिवार रहते हैं।
3.2 किलोमीटर गहरी KGF खदान
कर्नाटक के दक्षिण कोलार जिले में रोबटर्सनपेट तहसील के पास सोने की खदान KGF दुनिया में काफी मशहूर रही है। कोलार गोल्ड फील्ड्स (Kolar Gold Fields) नाम की यह सोने की खदान दुनिया की सबसे गहरी सोने की खदानों में से एक है। यह खदान 3.2 किलोमीटर गहरी है। इस खदान से 121 सालों में 900 टन सोना निकाला गया है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 1799 के श्रीरंगपट्टनम के युद्ध में मुगल शासक टीपू सुल्तान को अंग्रेजों ने मार गिराया था और उसकी कोलार की खदानों को अपने कब्जे में ले लिया था। ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने साल 1871 में वॉरेन का एक लेख पढ़ा था। इसके बाद उसके मन में सोने को पाने का जुनून जागा। लेवेली ने वहां पर कई तरह की जांच की और सोने की खदान खोजने में सफल रहे। भारत सरकार ने साल 1970 में भारत गोल्ड माइन्स को KGF सौंप दिया था। रिपोर्ट के अनुसार, 121 सालों तक इस खान से 900 टन से ज्यादा सोना निकाला जा चुका है
जमीन में हाथ डालकर निकाल लेते थे सोना
ब्रिटिश शासकों ने सोने की खदान वाला कोलार का KGF क्षेत्र अपने पास रखा था और बाकी की जमीन मैसूर राज्य को दे दी थी। इतिहासकारों के अनुसार, चोल साम्राज्य के लोग उस समय कोलार की जमीन में हाथ डालकर सोना निकाल लेते थे। ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन को इसकी जानकारी लगी, तो उन्होंने गांव वालों से सोना निकलवाया। गांव वाले जब इस मिट्टी को पानी से धोते, तो सोने के कण दिखाई देते थे। भारी मात्रा में सोना निकलने के चलते अंग्रेजों को KGF इतना पसंद आ गया था कि उन्होंने वहीं घर बनाने शुरू कर दिए थे। एक तरह से KGF अंग्रेजों का छोटा इंग्लैंड बन गया था। अंग्रेज इसे छोटा इंग्लैंड कहते थे।
भारत का पहला माइनिंग एरिया, जहां पहुंची बिजली
अंग्रेजों ने KGF से ज्यादा से ज्यादा सोना निकालने के लिए गहराई तक खुदाई शुरू कर दी। मजदूर जितनी गहराई में जाने लगे, उनके लिए चुनौतियां उतनी बढ़ने लगीं। अंदर का तापमान 55 डिग्री सेल्सियस तक होता था, ऊपर से घना अंधेरा! शुरुआत में मजदूर मोमबत्ती की रोशनी के सहारे खुदाई करते थे। बाद में कार्बाइड लैंप आ गया। हालांकि 2 से 3 KM की गहराई में वह भी बेअसर होने लगा। फिर माइनिंग कंपनी ने मैसूरु (अब कर्नाटक) सरकार को बिजली की व्यवस्था करने के लिए मनाया। 1902 में KGF के लिए खास तौर पर वहां से 220 किलोमीटर दूर शिवसमुद्रम में एक हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट स्थापित किया गया। इसी के साथ KGF बिजली का इस्तेमाल करने वाला दुनिया का पहला माइनिंग क्षेत्र बन गया। एशिया में पहली बार इतनी लंबी ट्रांसमिशन लाइन के जरिए बिजली प्रोडक्शन और सप्लाई की गई थी।
KGF का तापमान काफी ठंडा था, इसलिए ब्रिटिश मॉडल के घर बनाए जाते थे, जिसके कारण इसे ‘मिनी इंग्लैंड’ कहा जाना जाने लगा। 1910 तक यह इलाका पूरी तरह से एक यूरोपीय टाउनशिप की तर्ज पर स्थापित हो चुका था। साल 1930 तक KGF में करीब 30 हजार मजदूर काम करने लग गए थे। कर्नाटक के पड़ोसी राज्यों आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से भी बड़ी संख्या में लोग खदानों में काम करने के लिए KGF आने लगे थे। शहर की बढ़ती आबादी को बसाने के लिए 1903 में रॉबर्टसनपेट नाम का एक रेजिडेंशियल टाउनशिप बनाया गया। यह आधुनिक भारत के पहले Planned Residential इलाकों में से एक है।
KGF- दुनिया की पहली एयर कंडीशंड माइन
जॉन टेलर एंड संस कंपनी ने KGF खदानों में काम करने वाले लोगों और उनके परिवारों के लिए एक हॉस्पिटल भी बनाया था। इसमें कई यूरोपीय डॉक्टर और नर्सें काम करती थीं। हॉस्पिटल में दो सौ से ज्यादा बेड थे। 1972 में KGF के राष्ट्रीयकरण के बाद हॉस्पिटल का नाम BGML हॉस्पिटल रखा गया। BGML हॉस्पिटल में काम कर चुके डॉ. राजेंद्र कुमार कहते हैं, “मैं 1978 में KGF आया था। उस दौर में BGML हॉस्पिटल एशिया के टॉप अस्पतालों में से एक था। मेडिकल फील्ड में जो भी लेटेस्ट तकनीकें थीं, वहां सब सुविधाएं मिलती थीं। एशिया का पहला X रे यूनिट, पहला ECG यूनिट, बेहोश करने वाली मशीन, Rh टाइपिंग की सुविधा, ये सब सिर्फ BGML हॉस्पिटल में था।” डॉ. राजेंद्र के मुताबिक, ‘KGF के मजदूरों के काम करने का तरीका काफी अलग था। वे पहले 8000 फीट, करीब 2.5 KM सीधे शाफ्ट में जाते थे, फिर उसके नीचे 1 KM इनक्लाइन्ड शाफ्ट में जाकर काम करते थे। वे अपनी जान जोखिम में डालकर काम करते थे। हर दिन उनके लिए नया जन्म लेने जैसा होता था। मजदूर हर बार अपने साथ एक चिड़िया लेकर खदानों में उतरते थे। जहां चिड़िया मर जाती थी, वहीं पर रुक जाते थे, क्योंकि उससे नीचे ऑक्सीजन नहीं होता। तापमान भी लगभग 55 डिग्री रहता था। मजदूरों की सहूलियत के लिए सरकार ने खदानों में AC लगवा दिया। यह दुनिया की पहला एयर कंडीशंड माइंस है।”
KGF का बुरा दौर, बन गया ‘Ghost Town’
1987 से BGML का पतन शुरू हो गया था। उसे 10 ग्राम सोना निकालने में 2000 रुपए खर्च करने पड़ रहे थे, लेकिन उसके बदले सिर्फ 1200 रुपए मिलते थे। BGML को लगातार घाटा हो रहा था। इसलिए कंपनी आखिरकार बंद हो गई। अंग्रेजों के बनाए बंगले अब खंडहर हो चुके हैं। माइनिंग बंद होने के बाद KGF वीरान होने लगा। नौकरी और शिक्षा के लिए लोग घर छोड़कर दूसरे शहरों में पलायन करने लगे। आलीशान बंगले, क्लब, हॉस्पिटल, पोस्ट ऑफिस और दूसरी बड़ी इमारतें, जो एक समय में शहर का गौरव बढ़ाती थीं, वो अब जर्जर हो चुकी हैं। खंडहर इमारतों के चलते KGF को अब Ghost Town यानी भूतिया शहर कहा जाता है।
जो लोग KGF छोड़कर नहीं गए, उन्होंने आसपास के शहरों में काम ढूंढा। मौजूदा समय में KGF के करीब 10 हजार लोग बेंगलुरु में काम करने के लिए जाते हैं। दोनों शहरों को जोड़ने वाली भारतीय रेलवे की 7 ट्रेनें ही इनकी लाइफलाइन है। लोगों ने बताया कि उनका हर रोज करीब 6 से 7 घंटा ट्रेन के सफर में बीत जाता है। रात को घर लौटने के बाद मुश्किल से 3-4 घंटे का समय परिवारों वालों के साथ मिलता है। रविवार को पूरा दिन परिवार के साथ रहने की कोशिश करते हैं।
100 टन सोना हर साल उगल सकता है KGF, माइन खोलने की उठी मांग
हाल ही में KGF के मजदूरों और कर्मचारियों के एक संगठन ने PM मोदी को लेटर लिखकर दोबारा माइनिंग शुरू करवाने की मांग की। दावा है कि अगर KGF में माइनिंग शुरू हुई तो भारत के लिए अगले 100 सालों तक यह फायदे का सौदा हो सकता है। प्रधानमंत्री को लेटर लिखने वाले BGM एम्प्लॉइज, सुपरवाइजर्स एंड ऑफिसर्स यूनाइटेड फोरम के प्रेसिडेंट और BGML के पूर्व चीफ इंजीनियर के एम दिवाकरण के मुताबिक़ भारत में सोने की डिमांड सबसे ज्यादा होने के बावजूद पिछले 24 सालों से KGF में माइनिंग बंद है। हम सालों से इसे शुरू करवाने की मांग कर रहे हैं।
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