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नर्स दिवस – डाक्टर से कम नहीं है नर्स का किरदार

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वो कभी मां बन जाती है, तो कभी बहन, कभी गुस्सा करती है तो कभी प्यार जताती है, वो हमारी सेवा करती है, वो निस्वार्थ भाव से मदद करती है, वो नई जिंदगी देती है, उसे हम नर्स कहते है, सिस्टर कहते है, उपचारिका कहते है, बहनजी भी कहते है। वैसे तो अस्पतालों में कार्यरत नर्स स्टाफ की मरीज के जीवन में बहुत ही अहम भूमिका होती है लेकिन कोरोना संक्रमण काल में उनका महत्व और भी बढ़ गया है। ऐसे में जब हर किसी को जान का खतरा है उस समय उनका तत्पर सेवा में जुटे रहना सेवाभाव और मानवता की मिसाल है। आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस है ऐसे में आईये हम देश के समस्त नर्सों के समर्पण और सेवाभाव को याद करें।

नर्सों को सम्मान देने को मनाते हैं नर्स दिवस

दुनिया भर की नर्सिंग कर्मचारियों को सम्मान देने के लिए हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। यह दिन इटली की समाज सुधारक और नर्सिंग पेशे की संस्थापक फ्लोरेंस नाइट एंगल की जन्मतिथि है। नर्स और अन्य स्वास्थ्य कर्मी अपनी जान की परवाह किए बगैर कोविड प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं। ऐसे में आज ये दिन और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन  (WHO) ने 2020 को द इयर ऑफ द नर्स एंड मिड-वाइफ के रूप में नामित किया है। इस वर्ष इसकी थीम ‘नर्स: ए वॉयस टू लीड-नर्सिंग द वर्ल्‍ड टू हेल्थ रखी गई है। यह दिवस मरीज सेवा के प्रति नर्सों के योगदान का प्रतीक है। जैसे एक मां अपने बच्चे को दवा खिलाकर उसकी रात दिन देखभाल करती है, ठीक उसी प्रकार एक नर्स करती है।

कोरोना काल में फ्रंटलाइन वॉरियर है हमारी नर्सें

कोरोना के इस संक्रमण काल में जहां डॉक्टर्स दिन रात काम कर रहें है, मरीजों को ठीक कर रहें है वहीं नर्स भी डॉक्टरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर फ्रंट लाइनवॉरियर बनी हुई है। मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित और कुछ तो बहुत ही नाजुक स्थिति में होते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज की देखभाल बहुत ही चुनौती पूर्ण होती है। क्योंकि जरा सी लापरवाही होने पर जनहानि हो सकती है। मरीज को देखने के बाद उसकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ नर्स पर होती है। मरीज की जांच के लिए वक्त पर खून निकालना, वक्त पर दवा देना, मरीज के शरीर में कितनी मात्रा में दवा देना है। कोरोना महामारी में नर्सें फौजियों की तरह दिन-रात काम कर रही हैं।
बड़े-बड़े हॉल में वेंटिलेटर ही वेंटिलेटर, चारों ओर ब्रीदिंग ट्यूब, बीप-बीप की आवाजें, मरीजों की उखड़ती सांसें, इंफेक्शन का खतरा। मरीज कभी गुस्सा हो रहे हैं तो कभी रो रहे हैं। किसी के बदन पर सूजन है तो किसी की किडनी फेल हो गई है। नर्स उनकी बेडशीट बदल रही हैं, सफाई कर रही हैं, उन्हें खाना खिला रही हैं। उनकी बात परिजन से करा रही हैं। मरीजों के लिए इधर से उधर भाग रही हैं। कभी किसी मरीज को ड्रिप लगानी है, दवा देनी है, इंजेक्शन देना है, मरीजों को देखने भाग रही हैं। मास्क से उनका मुंह छिल जाता है। खाना नहीं खा पाती हैं। ऐसे वाॅर रूम में हर वक्त मुस्तैद रहती हैं।

देश में इस समय 20 लाख नर्सों की कमी है

देश में करीब 30 लाख नर्स हैं। 1000 लोगों पर 1.7 नर्स। यह संख्या अंतरराष्ट्रीय मानक से 43 फीसदी कम है। WHO के मुताबिक 1000 आबादी पर 3 नर्स होनी चाहिए। देश में हर नर्स रोज 50 से 100 मरीज देख रही है। भारत में करीब 30 लाख नर्स हैं, इसमें से 18 लाख केरल से हैं। केरल की 57 फीसदी नर्सें विदेश चली जाती हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा नर्स तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक में हैं। देश में इस समय 20 लाख नर्सों की कमी है। 2030 तक देश को कुल 60 लाख नर्सों की जरूरत होगी। ऐसे में इस आकड़ों के बाद आप समझ ही गए होंगे कि हमारी नर्सों पर काम का कितना प्रेशर होता होगा। कोरोना महामारी के दौरान इन्होंने जो निस्वार्थ भाव से सेवा की है वह सम्मानजनक है, जिसका कर्ज शायद दुनिया कभी न चुका पाए। ऐसे में The CSR Journal भी हमारी नर्सों को सलाम करता है।