Home हिन्दी फ़ोरम तो इसलिए एकनाथ शिंदे को कहा जाता है “लोकनाथ”

तो इसलिए एकनाथ शिंदे को कहा जाता है “लोकनाथ”

1283
0
SHARE
 
राष्ट्रीय राजनीति में फिलहाल अगर किसी शख्सियत की बात हो रही है तो वो नाम है एकनाथ शिंदे का। फिलहाल देश में सबसे चर्चित नाम है एकनाथ शिंदे। ना उद्धव ठाकरे, ना आदित्य ठाकरे, ना संजय राऊत और ना ही देवेंद्र फडणवीस, महाराष्ट्र समेत देश का हर व्यक्ति जो राजनीति में रूचि रखता है वो एकनाथ शिंदे के नाम का चर्चा कर रहा है। उद्धव ठाकरे की सरकार में शहरी विकास मंत्री का पद संभालने और उसके बाद राजनीतिक भूचाल के बाद अब एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार बनाने जा रहे है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हो रहे है। लेकिन ऐसा नहीं है कि एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) राजनीतिक विद्रोह के बाद ही सुर्खियों में हैं। एकनाथ शिंदे का महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा से ही एक कद्दावर और जनता के लिए जुझारू नेता की छवि रही है।
एकनाथ शिंदे का नाम ऐसे ही “लोकनाथ” नही है, एकनाथ शिंदे को “लोकनाथ” इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि महाराष्ट्र और महाराष्ट्र की जनता के लिए एकनाथ बढ़चढ़ कर सामाजिक काम करते है। राज्य के हर दुःख में एकनाथ शिंदे पहले वो राजनेता होते है जो जमीन पर उतरकर जनता की सेवा करते है। शिवसेना के संस्थापक अध्यक्ष बालासाहेब ठाकरे और उनके राजनितिक गुरु धर्मवीर आनंद दिघे के पदचिन्हों पर चलते हुए एकनाथ शिंदे राजनीती के साथ-साथ समाजनीति भी करते है। एक सामान्य नागरिक राजनीती में आता है, शिवसेना का उसे साथ मिलता है, सबसे पहले शाखाप्रमुख, फिर पार्षद, फिर स्थानीय निकाय में सभागृह नेता, फिर ठाणे जिला प्रमुख, उसके बाद विधायक और फिर मंत्री और अब मुख्यमंत्री बने। लेकिन हमेशा से ही जनता के साथ जुड़े रहे। जनता के बीच रहकर जनता के लिए सामाजिक कार्य एकनाथ शिंदे हमेशा करते रहे। तो आईये जानते है एकनाथ शिंदे के कुछ सामाजिक कार्य जो एकनाथ शिंदे (CM Eknath Shinde) को बनाती है “लोकनाथ”
CM Eknath Shinde in PPE Kit

मेडिकल मदद के लिए एकनाथ शिंदे ने शुरू किया शिवसेना चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ

कहते है कि स्वास्थ्य इंसान के लिए सब कुछ होता है, पैसे जाने के बाद इंसान उसे कमा लेता है, लेकिन एक बार स्वास्थ्य चला गया तो जिंदगी खत्म सी हो जाती है। सीएम एकनाथ शिंदे (Maharashtra CM Eknath Shinde) ये बखूबी जानते है। पैसों वालों का इलाज तो बड़े निजी अस्पतालों में आसानी से हो जाता है लेकिन सही इलाज के लिए गरीब की हिम्मत और आस दोनों टूट जाती है। इसीलिए एकनाथ शिंदे ने शिवसेना वैद्यकीय मदत कक्ष की शुरुआत की। जिसकी कमान एकनाथ शिंदे ने मीडिया के एक बड़े पत्रकार मंगेश चिवटे को सौंपी। बाळासाहेब ठाकरे शिवसेना वैद्यकिय मदत कक्ष के माध्यम से एकनाथ शिंदे गरीब मरीजों की सेवा करने लग गए। स्वास्थ्य की सरकारी योजनाओं के बारे में लाभ देना, सर्जरी के लिए वित्तीय सहायता करना, कभी-कभी बढ़ते मरीजों के बिल को कम करने में मदद करना एकनाथ शिंदे ने शुरू कर दिया। कोरोना की पहली और दूसरी लहर में इस हेल्प रूम के चिकित्सा सहायकों ने हजारों मरीजों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए कड़ी मेहनत की। आज इसके माध्यम से प्रदेश भर में चिकित्सा शिविर (Health Camp by CM Eknath Shinde) चलाए जा रहे हैं।
शिवसेना चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ प्राकृतिक आपदाओं, राजनीतिक आयोजनों, पंढरपुर के आषाढी कार्तिकी वारी जैसे धार्मिक समारोहों के अवसर पर लोगों की सेवा करता है। कोरोना की दूसरी लहर में सेल ने ठाणे जिले के दूरदराज के इलाकों में मुफ्त ऑक्सीजन कंसंट्रेशन मशीन मुहैया कराकर कई मरीजों की जान बचाई। आनंद दिघे के जन्मदिन पर हर साल ठाणे के जुपिटर अस्पताल की ओर से छिद्रित दिल वाले बच्चों की नि:शुल्क सर्जरी की जाती है। ठाणे के कलवा अस्पताल में आनंद दिघे कार्डियोलॉजी सेंटर में मुफ्त एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी, टुडे इको और बाईपास सर्जरी की जाती है। एकनाथ शिंदे द्वारा अपनी मां गंगूबाई शिंदे की याद में ठाणे में शुरू किए गए अस्पताल में 120 अलग-अलग उपचार और सर्जरी पूरी तरह से कैशलेस की हैं। आज इस शिवसेना चिकित्सा सहायता का काम बरगद के पेड़ की तरह फैल गया है और राज्य के 24 जिलों में चल रहा है।

कोरोना काल में मसीहा बनकर लोगों की मदद की एकनाथ शिंदे ने

कोरोना की पहली लहर में शुरुआत में कोरोना से सभी लोग अनजान थे, इसका प्रकोप धीरे-धीरे चीन के रास्ते भारत में फैल गया और लोग बीमार होने लगे। बेड की कमी, डॉक्टरों की कमी, नर्सों की कमी, एंबुलेंस की कमी, मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। लॉकडाउन के कारण पूरा देश बंद होने के बावजूद एकनाथ शिंदे हर दिन घर से बाहर थे। कई कॉरपोरेट और उनके सीएसआर – कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR Fund) की मदद से एकनाथ शिंदे मरीजों की सेवा में जुट गए।ठाणे में एमसीएचआई क्रेडाई की मदद से 21 दिनों में 1100 बेड का ग्लोबल कोविड हॉस्पिटल बनाया गया। 25 टीएमटी बसों को एम्बुलेंस में तब्दील कर दिया गया, जहां एम्बुलेंस की कमी थी वहां इन्हे लगाया गया। उन्होंने मलिन बस्तियों में मास्क, सैनिटाइजर, आर्सेनिक एल्बम की गोलियां बांटी। ठाणे के सिविल अस्पताल में आधा मेडिकल स्टाफ कोरोना के कारण बीमार पड़ गया। बाकी स्टाफ ने कोरोना के डर से काम करना बंद कर दिया। इसलिए एकनाथ शिंदे ने खुद पीपीई किट पहना और बीमार स्टाफ को उन्हें आश्वासन दिया कि मैं तुम्हें सब मुफ्त इलाज दूंगा और तुम्हें यहां से पूरी तरह से ठीक कर दूंगा। स्टाफ ने अपना काम बंद आंदोलन वापस ले लिया और फिर अस्पताल चालू हो गया। उन्होंने लोगों की मदद के लिए दिन-रात काम किया।

कोरोना की दूसरी लहर में “ऑक्सीजन मैन” बन गए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे

कोरोना की पहली लहर के कुछ ही दिनों बाद एक और लहर आई। पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर अलग-अलग चुनौतियां लेकर आई। मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। सिर्फ बेड ही नहीं वेंटिलेटर बेड की डिमांड बढ़ी है। वहीं, हर जगह ऑक्सीजन की कमी हो गई। प्रत्येक डॉक्टर मरीज के रिश्तेदार को पत्र लिखकर 6 रेमडेसिवीर का इंजेक्शन लाने के लिए कहने लगा। एकनाथ शिंदे ने सभी मांगों को पूरा करने की कोशिश कर रहे थे। सुबह साढ़े दो बजे अस्पताल से फोन आने के एक घंटे के भीतर मरीज को दूसरी जगह ले जाना होगा। ऐसे मुश्किल हालात में ग्लोबल कोविड अस्पताल में 450 मरीजों की जान बचाने के लिए उन्होंने नांदेड़ की ओर जा रहे एक ऑक्सीजन टैंकर को रोका और कई लोगों की जान बचाते हुए उसे अस्पताल डायवर्ट कर दिया। कैबिनेट बैठक में भी उनकी आलोचना हुई।
उन्होंने ऑक्सीजन की समस्या को हल करने के लिए त्वरित कदम उठाए। पूरे राज्य में पहला ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट ठाणे के पार्किंग प्लाजा कोविड केयर अस्पताल में शुरू किया गया था। एमएमआर क्षेत्र में 11 संयंत्रों को चालू किया गया। लिंडे कंपनी के साथ नियमित आपूर्ति समझौता, जो ऑक्सीजन की आपूर्ति करती है। पूरे मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन में ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित किया। पूरे भारत में स्टॉकिस्टों से रेमडेसिवीर हासिल कर जहां एक इंजेक्शन काला बाजार में 30,000 रुपये में बिक रहा था, वहीं एकनाथ शिंदे ने मरीजों के परिजनों को इंजेक्शन मुफ्त में उपलब्ध कराया। मरीजों के बिस्तर इतने बढ़ा दिए गए कि घाटकोपर भिवंडी से मरीज इलाज के लिए ठाणे अस्पताल आ गए।
Eknath Shinde at Boat for rescue operation

नैसर्गिक आपदा में भी मदद के लिए भागते है एकनाथ शिंदे

महाड-चिपलून बाढ़ – पिछले साल 22-23 जुलाई के बीच कोंकण में आई भीषण बाढ़ में महाड और चिपलून के नदी किनारे के शहर बाढ़ में डूब गए। घर, बाजार में पानी 12 से 15 फीट तक चला गया। हर तरफ हंगामा हुआ। चूंकि गुरु पूर्णिमा का दिन था,  लोकनाथ एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे को विश करने के लिए वर्षा गए थे। वहां से एकनाथ शिंदे और उनकी की टीम सीधे महाड़ चिपलून के लिए निकल गई। पूरा का पूरा शहर तबाह हो चुका था। अगले दिन ठाणे से टीडीआरएफ की टीम ने एनडीआरएफ की मदद से शवों को निकालना शुरू किया। गांव के लोगों ने जीवन की जरूरतों को महसूस किया। उसके बाद, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कोंकण में महाड, पोलादपुर, चिपलून और खेड़ का दौरा किया। एकनाथ शिंदे तीन दिन में मुंबई लौट आए क्योंकि हर घर और बाजार में घुटनों तक मिट्टी थी। सबसे पहले महाड़, चिपलून, सतारा, कपड़े, खाना और अन्य जरूरी सामान तत्काल रवाना किया। दो दिन के भीतर महाड खुद ठाणे, नवी मुंबई और पनवेल नगर निगमों के कर्मचारियों और मशीनरी के साथ चिपलून पहुंचे। इसके बाद उन्होंने लोगों को जरूरी सामान बांटा और कुछ जरूरतमंद लोगों की आर्थिक मदद भी की। उन्होंने चिकित्सा शिविरों का आयोजन कर शहर में बीमारी को फैलने से रोकने का ध्यान रखा।

आपदा में दूत बन जाते हैं सीएम एकनाथ शिंदे, खुद प्रभावित क्षेत्र में जाकर करते है जरूरतमंदों की मदद

सांगली-कोल्हापुर बाढ़ – अगस्त 2019 के महीने में सांगली और कोल्हापुर बाढ़ की चपेट में आ गए थे। दोनों शहर 12 से 13 फीट पानी में डूब गए। नाव के बिना लोगों की मदद नहीं की जा सकती थी। ऐसे में एकनाथ शिंदे पनडुब्बी, बचाव दल और अपनी सहायता टीम को लेकर ठाणे से कोल्हापुर पहुंचे। ऐसे में उन्होंने नाव से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। उसने लोगों को भोजन, कपड़े और अन्य जरूरतों में मदद की। उन्होंने ग्रामीणों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और उन्हें भोजन से लेकर दवा तक सब कुछ उपलब्ध कराया। उन्होंने लगातार नौ दिन, दिन-रात काम किया। नौवें दिन उनके बेटे डॉ. श्रीकांत शिंदे जब मदद लेकर कोल्हापुर पहुंचे तो उस दिन सबसे पहले सबके लिए खिचड़ी बनाई गई। नौ दिनों के बाद एकनाथ शिंदे और उनकी टीम के सभी लोगों ने खाना खाया। सहायता ट्रक कोल्हापुर सांगली गए, चिकित्सा शिविर भरे गए। शिंदे ने लोगों की जितनी जरूरत थी, उतनी मदद की। यहां तक कि उन्होंने एक बाढ़ में फंसी हुई महिला को अस्पताल ले जाने के लिए अपनी कार भी दे दी। स्थिति सामान्य होने के बाद उन्होंने तीन सप्ताह के बाद कोल्हापुर छोड़ा।

बाढ़ में फंसी महालक्ष्मी एक्सप्रेस में मदद के लिए सबसे पहले पहुंचे Eknath Shinde

बाढ़ में फंसी महालक्ष्मी एक्सप्रेस – 27 जुलाई 2019 की सुबह मुंबई और उपनगरों में मूसलाधार बारिश शुरू हुई। उल्हास नदी में बाढ़ आ गई। मुंबई से कोल्हापुर जा रही महालक्ष्मी एक्सप्रेस बदलापुर और वांगनी रेलवे स्टेशनों के बीच बाढ़ में फंस गई। खबर पता चलने में थोड़ी देर हो गई क्योंकि ट्रेन में यात्रियों के मोबाइल में रेंज ही नहीं थी। हालांकि, जब एकनाथ शिंदे को खबर मिली तो वह अपने लोगों, एनडीआरएफ टीम के साथ बदलापुर पहुंचे। जब चारों ओर पानी था, तो नाव उठाकर उस स्थान पर ले जाया गया फिर सभी 1,500 यात्रियों को नाव से धीरे-धीरे बाहर निकाला गया। घर जाने के लिए साधन और उनके भोजन की व्यवस्था की गयी। एकनाथ शिंदे ने खुद अन्य नेताओं की मदद करते हुए एनडीआरएफ के जवानों के साथ भीषण बारिश में लोगों को कंधे से कंधा मिलाकर रेस्क्यू अभियान चलाया।

“लोकनाथ” एकनाथ शिंदे ने दी साक्षी दाभेकर के सपनों को नयी उड़ान

साक्षी दाभेकर की मदद – पोलादपुर के केवनाले गांव की 13 साल की बच्ची साक्षी दाभेकर ने पिछले साल हुए हादसे में बेजोड़ हिम्मत दिखाते हुए एक छोटे बच्चे की जान बचाई थी। हालांकि इस हादसे में घर की दीवार उनके बाएं पैर में गिर गई और उनका पैर काटना पड़ा। कबड्डी खो-खो को बहुत अच्छे से खेलने वाली साक्षी को हमेशा के लिए धावक बनने का अपना सपना भूल जाना पड़ा। एकनाथ शिंदे ने परेल के केईएम अस्पताल में साक्षी से मुलाकात की और उनके इलाज का सारा खर्च वहन करने की इच्छा व्यक्त की। उसके बाद साक्षी को 1.5 लाख रुपये की लागत से कृत्रिम जयपुर पैर लगाया गया और साक्षी और उनकी बहन प्रतीक्षा की पढ़ाई का खर्च भी एकनाथ शिंदे ने स्वीकारा। साक्षी फिर से अपने पैरों पर दौड़ना चाहती है और उसका सपना ओलंपिक में भाग लेना है। एकनाथ शिंदे ने साक्षी दाभेकर के सपनों को नयी उड़ान दी। एकनाथ शिंदे हर जरूरत पर जनता की सेवा और मदद के लिए तत्परता दिखाई है।
Eknath Shinde with Food Packets

महाराष्ट्र के बाहर भी केरल जाकर की थी बाढ़ पीड़ितों की मदद

केरल में बाढ़ – सितंबर-अक्टूबर 2018 के महीने में केरल में भारी बाढ़ आई। राज्य की सभी नदियां उफान पर आने लगी और बाँधों में उफान आने लगा। गांव दर गांव पानी में डूब गया। ऐसे में दरअसल कोई भी राजनीतिक नेता आर्थिक मदद भेजकर खामोश रहता लेकिन एकनाथ शिंदे ने खुद केरल जाकर लोगों को भोजन, अनाज, कपड़े और अन्य जरूरत का सामान बांटा। लोगों को बीमार होने से बचाने के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाए गए। बाढ़ प्रभावित गांवों के पुनर्वास में मदद की। केरल के लोगों ने अपने खर्च पर इतने सारे सामान, लोगों, डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की भी मदद की।

राजनीतिक गुरु धर्मवीर आनंद दिघे ने ‘लोकनाथ’ बनो का दिया था मंत्र

एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरु धर्मवीर आनंद दिघे पर आधारित मराठी फिल्म धर्मवीर में एक डायलॉग है, धर्मवीर आनंद दिघे एकनाथ शिंदे को कहते है कि एकनाथ, तुम अब लोगों के लिए जियो। अनाथों के पिता बनो, गरीबों के हाथ बनो, लोगों के ‘लोकनाथ’ बनो… एकनाथ शिंदे से जब The CSR Journal ने बात की तब उन्होंने बताया कि वो आज तक अपने गुरु के इसी सिद्धांत का पालन करते रहे हैं। इसलिए एकनाथ हमेशा महाराष्ट्र और महाराष्ट्र की जनता के हित के बारे वो हमेशा खुद से पहले सोचते है। इसलिए एकनाथ को लोग “लोकनाथ” कहते है।