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March 21, 2025

80 साल की प्रभा देवी सेमवाल, जिन्होंने अपने दम पर बंजर पहाड़ को बनाया घना जंगल

‘Jungle Wali Dadi’ Prabha Devi, Global Warming के Eco System के बारे में बहुत कम जानती हैं, पर वो ये समझती हैं कि पेड़ लगाना, उनका संरक्षण करना कितना जरूरी है!
Environment, Global Warming, Eco System, ये कुछ ऐसे विषय हैं, जिन पर बातें तो खूब हो रही हैं, चिंता भी जताई जा रही है, पर धरातल पर काम बहुत कम हो रहा है। कभी किसी पेड़ को करीब से देखिए, ये जो हवा छोड़ते हैं, उसे इंसान ग्रहण करता है और इंसान जो Carbon Dioxide छोड़ता है, उसे ये पौधे खुद में समा लेते हैं। जिस दिन हम पेड़ों से अपने इस रिश्ते को समझ जाएंगे, उस दिन किसी से ‘पेड़ बचाओ, पेड़ बचाओ’ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी। Uttarakhand के Rudraprayag जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाली 80 साल की Prabha Devi सेमवाल पेड़ों से इंसानों के इस रिश्ते को बखूबी समझती हैं। इस जीवट बुजुर्ग महिला ने अपने दम पर एक बंजर भूमि को हरे-भरे जंगल में तब्दील कर दिया है। Prabha Devi को अपना जन्मदिन या जन्म का साल याद नहीं है, लेकिन वो अपने जंगल के हर पेड़ को अच्छी तरह पहचानती हैं। Rudraprayag के पसालत गांव में रहने वाली Prabha Devi सेमवाल पिछले पचास वर्षों से जंगलों को सहेजने में जुटी है। दशकों की मेहनत के बाद आज इस महिला के पास अपना खुद का जंगल है, जिसे इन्होंने खुद उगाया, पाला-पोसा और सहेजा है। इनके जंगल में पांच सौ से ज्यादा पेड़ हैं और ये कहलाती हैं ‘जंगल वाली दादी’ !

जंगल है Prabha Devi की ज़िंदगी

बुजुर्ग Prabha Devi की जिंदगी अपने खेत, जानवरों और पेड़ों के इर्द-गिर्द घूमती है। प्रभा बताती हैं कि सालों पहले अवैध कटाई के चलते जंगल का अस्तित्व खतरे में था। लोग घरों-दफ्तरों के फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी काट कर ले जाते थे, पर पौधे लगाने के बारे में कोई नहीं सोचता था। घटते जंगल की वजह से मुश्किलें बढ़ने लगीं, तब उन्होंने पेड़ लगाने की ठानी। खेतों में फसल बोने की बजाय उन्होंने अपने गांव और उसके आस-पास पेड़ लगाने शुरू कर दिए। मेहनत रंग लाई और देखते ही देखते बंजर जमीन में हरियाली छा गई। Prabha Devi के जंगल में इमारती लकड़ी से लेकर रीठा, बांझ, बुरांस और दालचीनी के पेड़ हैं। प्रभा देवी सेमवाल के बेटे और बेटियां विदेश में सेटल हैं। वो अपनी मां को साथ रखना चाहते हैं, पर जंगल से, अपने गांव से जुड़ी Prabha Devi अपना देश छोड़कर कहीं और नहीं जाना चाहती। पेड़ों के संरक्षण के लिए 80 साल की Prabha Devi ने संतानों के साथ रहने के सुख को भी छोड़ दिया। Uttarakhand के पहाड़ों की ये बुजुर्ग महिला Global Warming या Climate Change के बारे में बहुत कम जानती है, पर वो ये समझती हैं कि हमें पेड़ों को बचाने की जरूरत है, और ऐसा करना हम सबकी जिम्मेदारी है।

कभी जड़ से नहीं उखाड़ा पेड़

Prabha Devi के 25 वर्षीय पोते अतुल सेमवाल बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों से वो नौकरी के चलते देहरादून में रह रहे हैं। लेकिन उनका बचपन दादी के साथ गांव में ही बीता है। वो कहते हैं कि हमने कभी दादी को खाली बैठे नहीं देखा। वो कुछ ना कुछ करती रहती हैं। आज भी दादी सुबह 5 बजे उठ जाती हैं। दादी ने कभी किसी पेड़ को जड़ से नहीं उखाड़ा। यहां तक जब उन्हें पशुओं के लिए चारा या घास लानी होती है, तो वो उसे जड़ से उखाड़ने के बजाय ऊपर से काट लेती हैं। दादी के हाथ में जादू है, क्योंकि आज तक उन्होंने जो भी बीज रोपा है, वो पनपा है। उनके द्वारा उगाए गए जंगल में कई तरह के पेड़-पोधै हैं। Prabha devi के घर के बगीचे और जंगल दोनों में खूब फल लगते हैं। लेकिन वो उन्हें बाजार में बेचने के बजाए आस-पड़ोसवालों में बांट देती हैं। यहां तक उनके घर के बाहर लगे कुछ फलों के पेड़ खासतौर पर उन स्कूली बच्चों के लिए हैं, जो उस रास्ते से आते-जाते हैं।
Prabha Devi का जंगल आज गांव के लोगों की रोजमर्रा की लकड़ी और पशुओं के लिए चारे की जरूरत को पूरा कर रहा है। शहर जाकर बस चुके लोगों से Prabha Devi यही अपील करती हैं कि वे जब भी साल में एक या दो बार अपने घर जाएं, तो एक-दो पौधे जरूर लगाएं। इस तरह से हम पर्यावरण के लिए कुछ कर सकेंगे।

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