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तेल का खेल।

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देश में शायद ही कोई शख्स होगा जिसका सीधे सरोकार डीजल पेट्रोल से नहीं होगा, दिन की शुरवात से रात के बिस्तर पर जाने तक हम प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल करते है, जीवन का अभिंग अंग बन चुके डीजल पेट्रोल बीते 15 दिनों से ऐसी आग पकड़ी है जिसकी तपिश और लपट में सरकार तक आ गयी है।  देश में डीजल और पेट्रोल की कीमतें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है। पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी का सिलसिला 15वें दिन सोमवार को भी जारी रहा। दिल्ली में पेट्रोल के दाम 78.27 और डीजल 69.17 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गए हैं। दिल्ली के अलावा बाकी मेट्रो शहरों में भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा हुआ है। पेट्रोल की वर्तमान कीमत मुंबई में 86.08, कोलकाता में 80.76 और चेन्नै में 81.11 प्रति लीटर है। वहीं डीजल की कीमत मुंबई में 73.64 प्रति लीटर है।

मुंबई में डीजल पेट्रोल हर दिन नए नए रिकॉर्ड को तोड़ रहा है, आप देश के किसी भी कोने में चले जाईये लेकिन मुंबई में डीजल पेट्रोल के दाम सबसे ज्यादा है। पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों पर केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि सरकार तुरंत इसका समाधान निकालने पर विचार कर रही है। लेकिन सरकार के पास भी कोई ठोस पर्याय शायद नहीं है क्यूंकि अगर ठोस समाधान होता तो सरकार लागू करने में देर नहीं करती।  हर दिन बढ़ते पेट्रोल डीजल के दाम की वजह से विपक्ष मोदी सरकार पर निशाना साध रहा है। चुनावी वर्ष में यह भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंता का कारण बन सकता है। मोदी सरकार को चार साल हो गए, इन चार सालों में अब तक डीजल के दाम में 18 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है जबकि पेट्रोल की कीमत में आठ प्रतिशत का इजाफा हुआ है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हर रोज हो रही वृद्धि से लोगों में काफी नाराजगी है। बढ़ती कीमतों को लेकर बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार की किरकिरी भी हो रही है। इससे बिलकुल इंकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस के सरकार के दौरान कच्चे तेल के दाम काफी ज्यादा थे, फिर इतनी महंगाई नहीं थी। वहीं कांग्रेस के मुकाबले मोदी सरकार में कच्चे तेल के दाम कम होने के बावजूद तेल की कीमतें आसमान छू रही है।

सरकार पर दामों को लेकर चौतरफा दबाव है, चाहे मीडिया हो या फिर सोशल मीडिया पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्सों और उत्पादन शुल्क को लेकर व्यापक स्तर पर चर्चा हो रही है। सरकार पर विपक्ष जबस्दस्त दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। किरकिरी को देखते हुए सरकार जीएसटी पर भी विचार कर रही है। अगर पेट्रोल की कीमतों का विश्लेषण करें तो पेट्रोल की वास्तविक कीमत उसकी कुल कीमत से आधी है। कुल कीमत का करीब आधे से ज्यादा हिस्सा टैक्स और उत्पादन शुल्क से जुड़ा है। कई राज्यों में यह कुल कीमत का 54 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। एक लीटर पेट्रोल के लिए आपको 85 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। जिसमें से 3.50 रुपए सीधे डीलर के पास जाता हैं और करीब 36 रुपए केंद्रीय उत्पादन शुल्क, राज्य ब्रिकी कर और अन्य टैक्स के रूप में सरकार के पास जाता है। जब से जीएसटी देश में लागू हुआ है तब से पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है, अगर पेट्रोल और डीजल को केंद्र सरकार जीएसटी के अंदर ले आती है तो ज्यादा से ज्यादा इनपर 18 फीसदी से लेकर 28 फीसदी तक कर लग सकता है। जिसके चलते तेल की कीमतों में भारी कमी देखने को मिल सकती है लेकिन कई राज्य सरकार इस बात पर सहमत नहीं हैं। राज्य सरकारों का कहना है कि उनकी कमाई का बड़ा भाग तेल से उत्पनन होने वाले राजस्व से जुड़ा है। इसलिए राज्य सरकारें जीएसटी में पेट्रोल और डीजल को शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं।

देश में तेल के दाम हर दिन तय होते है, बाजार भाव को देखते हुए तेल कंपनियां ये दाम निर्धारित करती है, जहाँ देश के हर कोने में ये दाम अलग अलग है वही पडोसी देशों में भी ये दाम अपने देश के मुकाबले बहुत कम है। सरकार पेट्रोलियम पदार्थों से करोडो कमा रही है, एक रिपोर्ट के मुताबिक पेट्रोल-डीजल से पांच साल में सरकार ने 9 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए है, अब ऐसी दुधारू गाय को भला कैसे रेगुलेट सरकार करेगी। बहरहाल अगर हर दिन इसी तरह कीमतें बढ़ती रही तो वो वक्त दूर नहीं है जब पेट्रोल की कीमत 100 रुपए पार हो जाएगी। सरकार जल्दी ही कीमतों को घटाना चाहिए। नहीं तो इसका असर आने वाले चुनावों में देखने को जरूर मिलेगा।