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कैसे कह दें कि हम विकासशील देश है, जहां आज भी हमारा “भविष्य” कुपोषित है !!

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यहां हम ये सवाल बिलकुल नहीं करेंगे कि ट्रिलियन में कितने जीरो होते है लेकिन ये जरूर पूछेंगे कि देश के प्रधानमंत्री ट्रिलियन इकोनॉमी का सपना तो देख रहे लेकिन ये क्यों भूल जाते है कि अगर हमारा भविष्य ही कुपोषित रहेगा तो हमारा अस्तित्व ही क्या होगा, देश में करोड़ों रुपये व्यारे न्यारे हो जाते है, काली कमाई कर करप्शन हो जाता है, गोदान में अनाजे भरे है लेकिन हमारे बच्चों का पेट खाली है, हालही में देश में नेशनल न्‍यूट्रिशन वीक मनाया गया लेकिन क्या ये वीक मनाने से हम कुपोषण को मात दे पा रहे है ये सवाल तो जरूर बनता है।
आंकड़े बेदह ही चौकाने वाले होते है, एससी कमरों और दफ्तरों में बैठकर कुपोषण को लेकर खूब प्लानिंग होती है लेकिन धरातल पर बच्चे आज भी कुपोषित है, आकड़ों की माने तो हमारे देश में सबसे ज्यादा खाने और अनाज की बर्बादी होती है तो वही इसी देश के हमारे भविष्य, हमारे बच्चे भूखे रहते है, कुपोषित रहते है। कुपोषण के आंकड़े चिढ़ाते है, दुखी करते है, सवाल करने पर सरकार से मजबूर करते है, सवाल ये कि कुपोषित बच्चों को आखिरकार कब तक हम मरने देंगे, क्यों हम हमारे बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं दे पाते है। क्या कभी ये तस्वीर बदलेगी।
हर साल देश में 1 से लेकर 7 सितंबर तक नेशनल न्‍यूट्रिशन वीक मनाया जाता है, ये सप्ताह इसलिए मनाया जाता है ताकि कुपोषण को लेकर लोगों को जागरूक हो सके, कुपोषण तो कई सालों से मिटा नहीं है हां जरूर देश की एक बड़ी समस्या बन गयी है। केंद्र सरकार भारत को कुपोषण मुक्त करने के लिए तमाम कोशिशें कर रही हैं, सरकार ने राष्ट्रीय पोषण मिशन का नाम बदलकर ‘पोषण अभियान’ कर दिया है, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य 2022 तक हासिल करने का नारा दिया है, लेकिन भारत में कुपोषण की इतनी बड़ी समस्या है कि इससे निपटना आसान नहीं है।
आज लगभग देश का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है, ये कुपोषण बच्चे में तो होती है जिसकी शुरवात गर्भवती मां से होती है। देश में 5 साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चे 35 प्रतिशत हैं, इनमें भी बिहार और उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं, उसके बाद झारखंड, मेघालय और मध्य प्रदेश का नंबर है, मध्य प्रदेश में 5 साल से छोटी उम्र के 42 फीसद बच्चे कुपोषित हैं तो बिहार में यह फीसद 48.3 है।
कुपोषण यानी खाने की कमी की वजह से उतनी कैलोरी नहीं मिलती जितनी उन्हें रोजाना चाहिए, नतीजा ये कि बच्चे और गर्भवती महिलाएं कुपोषित रहती हैं, भारत में करीब 19 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं। गौरतलब है कि दिसंबर, 2017 में देश को कुपोषण से मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई थी,  कैबिनेट की बैठक में राष्ट्रीय पोषण मिशन की स्थापना को मंजूरी दी गई थी, इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 फीसदी से घटाकर 2022 में 25 फीसदी पर लाना है। यूनिसेफ जैसी तमाम सामाजिक संगठन कुपोषण पर काम कर रही है, बहरहाल कुपोषण देश के लिए बेहद ही शर्मनाक है, सरकारों के लिए ये वक़्त है कि धरातल पर उतरकर काम करें ना कि कागजों पर कुपोषण मिटायें।