कोरोनाकाल के इस महामारी में सीएसआर शब्दों का इस्तेमाल बहुत हुआ, कई बार हमने टीवी और अख़बारों की हेडलाइंस में सीएसआर के बारें में सुना और पढ़ा, सीएसआर के तहत टाटा ने पीएम केयर्स फंड में इतने करोड़ का दान दिया, अंबानी ने फला करोड़ का दान दिया, अदाणी और बिरला ने इतना दान दिया, सीएसआर ये शब्द कइयों ने कइयों बार सुना होगा लेकिन इसका मतलब आज इस रिपोर्ट में देखिये। सीएसआर कोरोना से लड़ाई के लिए सरकार और समाज के लिए एक बड़ा हथियार साबित हुआ, कोरोना की लड़ाई में अगर सरकार की कोई आर्थिक मदद की तो वो है सीएसआर। सीएसआर के तहत ही सरकारी तिजोरी में करोड़ों आये जिन पैसों से सरकार कोरोना से लड़ रही है। ऐसे में आईये जान लेते है सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की हर एक जानकारी।
पहली बार कब हुआ कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी यानी सीएसआर शब्द का प्रयोग
CSR क्या है, अगर इसका जवाब चाहिए तो आज ये पूरा आर्टिकल पढ़ना पड़ेगा, आज के इस व्यवसायिक दुनिया में बिज़नेस सिर्फ उत्पादों और सेवाओं को खरीदने और बेचने तक ही सीमित नहीं रहा है। अब बिज़नेस में एक और शब्द जुड़ गया है “सीएसआर” यानी “कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी”। ये शब्द 1960 के दशक के अंत में और 1970 के दशक की शुरुआत में कई बहुराष्ट्रीय निगमों के हितधारकों के गठन के बाद आम उपयोग में आया। साल 1984 में स्ट्रेटेजिक मैनेजमेंट के जानकार आर एडवर्ड फ्रीमैन की एक किताब साफ़ तौर पर सीएसआर का जिक्र है जिसमें कहा गया है कि कंपनियों को स्वेच्छा से एक आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार तरीके से व्यापार करना चाहिए और कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) उन व्यवसाय प्रथाओं को संदर्भित करती है जिसमें समाज को लाभ पहुंचाने वाली पहल शामिल है।
सीएसआर पर पीडब्लूसी के ग्लोबल सस्टेनेबिलिटी प्रैक्टिस के प्रमुख सुनील मिस्सर कहते है कि “कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी केवल जोखिम को कम करने के लिए नहीं है, यह अवसरों को बनाने, बेहतर प्रदर्शन करने, पैसा बनाने और जोखिमों को बहुत पीछे छोड़ने के बारे में भी है।”
भारत में सीएसआर (CSR in Hindi) की शुरुआत कैसे हुई?
प्राचीन काल से सीएसआर भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। सीएसआर की अवधारणा मौर्यकालीन इतिहास में भी देखी गयी। इसके के साथ-साथ कौटिल्य जैसे दार्शनिकों ने व्यापार करते समय नैतिक प्रथाओं और सिद्धांतों पर जोर दिया। प्राचीन काल में भी सीएसआर को गरीबों और वंचितों के लिए दान के रूप में अनौपचारिक रूप से प्रैक्टिस में लाया गया था। भारतीय शास्त्रों में भी इस बात का जिक्र है कि समाज के वंचित वर्ग के साथ, कमाई करने वाला वर्ग अपने कमाई को साझा करता था। भारत में, समाज के प्रति, जानवरों और वंचित वर्गों के लिए व्यवसायों और नागरिकों की ज़िम्मेदारी की अवधारणा को बढ़ावा देने में धर्म ने भी एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
भारत एक कृषि-प्रधान देश है और आजादी के बाद भारत ने इस तरह के आर्थिक मॉडल का पालन किया कि देश में प्रत्येक गांव हर दृष्टि से आत्मनिर्भर बनें। व्यापारियों, किसानों और कारीगरों ने सुनिश्चित किया कि गाँव के प्रत्येक व्यक्ति के लिए पर्याप्त रोज़गार, भोजन और आश्रय हो। कोई भी व्यक्ति भूखा या आश्रयहीन नहीं रहे। यह विशेषता बड़े बड़े बिजनेसेस में भी दिखने लगी। व्यवसायों में अनिवार्य रूप से आसपास के समुदाय के कल्याण के साथ-साथ उनकी खुशी भी निवेश किया जाने लगा। यह व्यवसायियों का समुदाय को वापस देने का एक तरीका था, और यह व्यवसाय के लिए लाभदायक था क्योंकि खुशहाल और स्वस्थ कर्मचारी अच्छी व्यावसायिक उत्पाद के बराबर होता था।
औद्योगिक क्रांति के आगमन के साथ, टाटा, बिरला, मोडिस, गोदरेज, बजाज और सिंघानिया जैसे उद्योगपति परिवारों ने शैक्षणिक संस्थानों और स्वास्थ्य सेवा संगठनों की स्थापना करके अपने सीएसआर खर्च के तहत सार्वजनिक कल्याण के लिए बड़ी मात्रा में खर्च किया। महात्मा गांधी द्वारा प्रदान की गई ट्रस्टीशिप की अवधारणा ने उस समय के भारतीय व्यापार जगत के नेताओं के डीएनए में सीएसआर अंकित कर दिया। इस अवधारणा के अनुसार, पूँजीपतियों को अपनी संपत्ति के ट्रस्टी (मालिक नहीं) के रूप में कार्य करना चाहिए और सामाजिक रूप से जिम्मेदार तरीके से खुद को संचालित करना चाहिए।
महात्मा गांधी कहते थे कि “मान लीजिए कि मैं बहुत अधिक धनवान हूं, यह धन-दौलत या तो विरासत या व्यापार और उद्योग के माध्यम से मिला हो। लेकिन मुझे पता है कि ये धन दौलत सिर्फ मेरा नहीं है, जो मेरा है वह सम्मानजनक आजीविका है, इससे बेहतर कोई और नहीं हो सकता। मेरी संपत्ति का बाकी हिस्सा समुदाय का है और इसका इस्तेमाल समुदाय के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए।” सीएसआर का विकास भारतीय समाज के सांस्कृतिक विकास और विकास के लिए बहुत आंतरिक है। यही कारण है कि सीएसआर कानून की अनिवार्यता को स्वीकार करना भारत के लिए बहुत मुश्किल नहीं था।
क्या भारत में कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) (CSR Kya Hai) अनिवार्य है?
सीएसआर को अनिवार्य करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। भारत में सीएसआर का कानून 1 अप्रैल 2014 से पूरी तरह से लागू हो गया है। यह कानून सिर्फ भारतीय कंपनियों पर ही लागू नहीं होता है बल्कि वह सभी विदेशी कंपनियों के पर लागू होता है जो भारत में कार्य करते हैं। कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत प्रावधानों के माध्यम से अनिवार्य कर दिया गया है। कानून के अनुसार, एक कंपनी को जिसका सालाना नेटवर्थ 500 करोड़ों रुपए या उसका सालाना इनकम 1000 करोड़ रुपए या उनका वार्षिक प्रॉफिट 5 करोड़ का हो तो उनको सीएसआर पर खर्च करना जरूरी होता है। यह जो खर्च होता है उनके 3 साल के एवरेज प्रॉफिट का कम से कम दो प्रतिशत तो होना ही चाहिए।
भारत में सीएसआर कैसे काम करता है? और क्या है सीएसआर के मानक?
कंपनियों के लिए सीएसआर के भी मानक तय हैं। उनके मुताबिक ही कंपनियों को अपने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी संबंधी गतिविधियों का संचालन करना होता है। इस मामले में कंपनियों को स्पष्ट दिशा निर्देश भी नियम में दिया गया है। नियम के मुताबिक हर कंपनी में सीएसआर समिति होती है। इस समिति और कंपनी के बोर्ड में यह तय होता है कि कंपनी को कौन-सी गतिविधि, कब और कहां चलानी है। इस तरह तय गतिविधि ही सीएसआर के दायरे में आती है। इसे लेकर सीएसआर नीति का उसे पालन करना होता है। नए नियम में सीएसआर समिति के गठन और सीएसआर नीतियों की निगरानी, बोर्ड के निदेशकों की भूमिका आदि भी परिभाषित कर दी गई है।
ये हैं सीएसआर की मान्य गतिविधियां (CSR Activities of Companies)
नियम में वैसी सीएसआर गतिविधियों की सूची दी गई है, जो सीएसआर के दायरे में आती हैं। यह सूची नियम की 7वीं अनुसूची में शामिल हैं। कंपनियों को इन्हीं में से अपने सीएसआर के लिए गतिविधियों का चयन करना है।
1. राष्ट्रीय धरोहर, कला और संस्कृति की सुरक्षा, जिसमें ऐतिहासिक महत्व वाली इमारतें और स्थल एवं कला शामिल हैं।
2. पारंपरिक कला एवं हस्तशिल्प को बढ़ावा देना और उनका विकास।
3. सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना।
4. अनाथालय और छात्रावास की स्थापना, उनके लिए भवन का निर्माण, उनका रख रखाव व संचालन।
5. वृद्धाश्रम की स्थापना, उनके लिए भवन का निर्माण, उनका रख -रखाव व संचालन।
6. डे केयर केंद्रों की स्थापना, उनके लिए भवन का निर्माण, उनका रख-रखाव व संचालन।
7. महिलाओं के लिए घर और छात्रावासों की स्थापना।
8. ग्रामीण खेलों, राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त खेलों, ओलंपिक खेलों और पैरालंपिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण मुहैया कराना।
9. केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणकि संस्थानों में स्थित प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटरों के लिए फंड मुहैया कराना।
10. शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए काम करना।
11. मिट्टी, हवा और जल की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए काम करना।
12. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
13. पारिस्थितिक संतुलन को सुनिश्चित करना।
14. वनस्पतियों, जीव संरक्षण, पशु कल्याण, कृषि वानिकी का संरक्षण।
15. ग्रामीण विकास परियोजनाएं।
16. जीविका वृद्धि संबंधी परियोजनाएं।
17. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को बढ़ावा देना।
18. असामानता का दंश झेल रहे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों के लिए काम करना।
19. युद्ध में मारे गए शहीदों की विधवाओं, सशस्त्र बलों के वीरों और उनके आश्रितों के लाभ से जुड़े काम।
कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) क्या नहीं है
सीएसआर गतिविधि के तहत किसी पंजीकृत संस्था या ट्रस्ट को कोई कंपनी धन दे सकती है। उस संस्था द्वारा कंपनी की सीएसआर नीति और उसके कार्यक्रम के अनुसार वह राशि खर्च की जा सकती है। उसे कंपनी अपनी सीएसआर रिपोर्ट में शामिल करेगी, लेकिन किसी राजनीतिक दल को किसी भी प्रकार से और किसी भी गतिविधि के लिए दी गई राशि सीएसआर को अलग-अलग रखने के लिए किया गया है, ताकि कोई सत्तारूढ़ या प्रभावशाली राजनीतिक दल किसी कंपनी से सीएसआर के नाम पर मोटी रकम लेकर उसे अपने राजनीतिक हित में इस्तेमाल न करें।
कंपनियों के इस तरह के भी काम और इस तरह की गतिविधियां भी होती हैं, जिनका संबंध समुदाय और समाज से होता है, लेकिन वे वास्तव में कंपनी की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए होती हैं। समाज और समुदाय को उन गतिविधियों का लाभ भी मिलता है, लेकिन उन्हें सीएसआर का हिस्सा नहीं कहा जा सकता।
कंपनियों को अपने कर्मचारियों के हितों में कई तरह से बड़ी राशि खर्च करनी होती है। इस खर्च को सीएसआर गतिविधि पर हुआ खर्च नहीं माना गया है। यानी अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य, प्रशिक्षण, सामाजिक गतिविधि, बोनस, विशेष चिकित्सा और आर्थिक सहायता आदि में कोई राशि खर्च करती है, तो वह यह दावा नहीं कर सकती है कि उसका कर्मचारी समुदाय का सदस्य है।
विदेशों में खर्च भी सीएसआर नहीं
कोई देशी या विदेशी कंपनी भारत के बाहर किसी देश पर अगर कोई सामुदायिक लाभ के कार्य करती है, तो उस खर्च को सीएसआर का हिस्सा नहीं माना जाएगा। नियम में स्पष्ट है कि कंपनी को हर हाल में भारत में ही अपनी सीएसआर गतिविधियां चलानी हैं।
दो कंपनियां मिल कर भी चला सकती हैं गतिविधियां
सीएसआर के नए नियम के मुताबिक कोई कंपनी दूसरी कंपनी के साथ मिल कर भी सीएसआर की गतिविधियां चला सकती है। यानी एक से अधिक कंपनियां आपस में मिलकर कोई कार्यक्रम, परियोजना या आयोजन संचालन सम्मिलित रूप से कर सकती हैं, लेकिन उन्हें रिपोर्ट अलग-अलग दिखाना होगा। यानी वे सीएसआर रिपोर्ट अलग-अलग प्रस्तुत करेंगी, जिसमें उनके हिस्से का खर्च भी अंकित होगा।
एनजीओ भी हो सकते हैं भागीदार
कोई कंपनी अपने हिस्से के सीएसआर को पूरा करने के लिए किसी संस्था या ट्रस्ट को भागीदार बना सकती है, लेकिन ऐसी संस्था को सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 तथा ट्रस्ट को ट्रस्ट एक्ट के तहत पंजीकृत होना होगा।
सीएसआर (CSR Kya Hota Hai) के बारें में कौन देगा और कहां से मांगें सूचना
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां तो सीधे तौर पर सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में आती हैं। वहां हर स्तर पर जन सूचना पदाधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी नामित हैं। आप उनके जन सूचना पदाधिकारी को दस रुपए सूचना शुल्क के साथ अर्जी देकर सूचना मांग सकते हैं।
सूचना नहीं मिलने, गलत, भ्रामक, देर से या अधूरी सूचना मिलने पर आप उसके प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष प्रथम अपील भी दायर कर सकते हैं। वहां से भी सही और पूरी सूचना नहीं मिलने पर राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील दाखिल कर सकते हैं। रही बात निजी कंपनियों की। ऐसी कंपनियां सीधे तौर पर सूचनाधिकार अधिनियम के दायरे में नहीं आती हैं। इसलिए उनसे आप सीधी सूचना नहीं मांग सकते, लेकिन वहां से भी सूचना निकाले के उपाय हैं। जैसा कि हम बता चुके हैं कंपनियों का सामाजिक दायित्व का मामला केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अधीन आता है।
हर कंपनी को सीएसआर नियम के मुताबिक उसे अपनी नीति, गतिविधि, कार्यक्रम, खर्च और कार्यान्वयन की रिपोर्ट सौंपनी होती है। आप वहां से सूचना मांग सकते हैं। चूंकि यर रिपोर्ट समुदाय की भलाई के लिए किये गए खर्च से जुड़ी होती है। इसलिए इसे सार्वजनिक करने में बाधा नहीं आएगी।
भारत में सीएसआर की गणना कैसे की जाती है?
किसी भी पहल को तब तक सफल या असफल होने का दावा नहीं किया जा सकता जब तक कि उसके नापने का कोई पैमाना न हो। सीएसआर में बड़ी मात्रा में धनराशि का इस्तेमाल होता है इसलिए सीएसआर का माप बेहद महत्वपूर्ण होता है। कंपनी के सीएसआर को नापने, उनका लेखा जोखा करने के लिए कानून द्वारा कोई मानक ढांचा उपलब्ध नहीं है। सभी कंपनियां अपने अपने तरीके से खुद ही अपने अपने सीएसआर का रिपोर्ट बनाती है और अपने अपने वेबसाइट पर प्रदर्शित करती है। सीएसआर खर्च में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए, कंपनियां अपने सीएसआर की रिपोर्टिंग करती हैं।
क्या भारत में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) सफल है?
साल दर साल, कंपनियों ने अपने शुद्ध मुनाफ़े का 2% से अधिक सीएसआर पर खर्च किया है। सीएसआर कानून लागू होने के बाद से मार्च 2019 तक सीएसआर पर 50,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं। हालांकि, यह देखा गया है कि भारत में अधिक विकास की जरूरत वाले राज्यों को छोड़कर खर्च की गई राशि कुछ राज्यों में ही केंद्रित है। इससे राष्ट्रीय विकास में विसंगतियां पैदा हुई हैं। इसके अतिरिक्त, सरकारी हस्तक्षेप कभी-कभी सीएसआर परियोजनाओं में मंदी का कारण बनता है। यह कानून के पीछे की मंशा का एक बड़ा विरोधाभास है। सीएसआर कानून को सफल बनाने और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए सीएसआर निधियों का बेहतर उपयोग करने के लिए इन ख़ामियों को दूर करने की आवश्यकता है।
भारत में सीएसआर गतिविधियों की सराहना के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार
देश की कॉर्पोरेट कंपनियों के सीएसआर और सस्टेनेबल डेवलोपमेंट के काम को सराहने के लिए भारत सरकार की तरफ से राष्ट्रीय सीएसआर अवॉर्ड दिया जाता है। राष्ट्रीय सीएसआर अवॉर्ड भारत सरकार की सीएसआर जगत में बहुत ही प्रतिष्ठित अवॉर्ड है, कॉर्पोरेट कंपनियों के सीएसआर और सस्टेनेबल डेवलोपमेंट के काम को भारत सरकार हर साल पुरस्कृत करती है। राष्ट्रीय सीएसआर अवार्ड मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स के अंतर्गत आता है और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स की मदद से ये अवार्ड समारोह का आयोजन किया जाता है। साथ ही मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स चाहती है कि देश की कॉर्पोरेट कंपनियों के बीच एक सकारात्मक कंपटीशन हो ताकि सीएसआर के कामों को बढ़ावा मिल सके।
दी सीएसआर जर्नल भी सीएसआर में सराहनीय काम करने वाली कंपनियों को करता पुरस्कृत
राष्ट्रीय सीएसआर अवॉर्ड के साथ साथ दी सीएसआर जर्नल भी हर साल दी “सीएसआर जर्नल एक्सीलेंस अवार्ड्स” का आयोजन करता है। जिसमें बड़े पैमाने पर देश की कॉर्पोरेट कंपनियां हिस्सा लेती है। कॉर्पोरटे कंपनियों की सामाजिक जिम्मेदारियों को सराहने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए हर साल दी सीएसआर जर्नल, एक्सीलेंस अवार्ड करता है, जिसमें देश के सभी बड़े कॉर्पोरेट घराने एक साथ, एक ही छत और एक ही मंच पर मौजूद रहते है। सिर्फ इतना ही नहीं समाज की वो तमाम हस्तियां भी मौजूद रहेंगी जिनके प्रयासों से भारत एक न्यू इंडिया बन रहा है। दी सीएसआर जर्नल एक्सीलेंस अवार्ड में 500 से ज्यादा कॉर्पोरेट्स शामिल होते है, इनके सीएसआर के कामों को आंकने के लिए देश में पहली बार जूरी मेंबर लाइव जजिंग करते है।
भारत में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) (What is CSR in Hindi) की भूमिका
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है। इसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की सबसे बड़ी आबादी है। यही कारण है कि हमेशा संसाधनों की कमी होती है और इसके लिए लड़ना पड़ता है। दुनिया में प्रदूषित शहरों की सबसे अधिक संख्या भारत में है। इससे देश में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बड़ा असर पड़ता है। सरकार देश के गरीबों की मदद के लिए पहल करती रहती है। भारत के संविधान के अनुसार शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ वातावरण, कार्य का सुरक्षित स्थान इन सभी को नागरिकों के मौलिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी गई है। हालांकि, सरकारी मदद और सेवा में हमेशा अंतर होते हैं, यही कारण है कि अक्सर सही समय पर और ज़मीनी स्तर पर सभी गरीब लोगों को लाभ नहीं मिल पाता है।
सीएसआर कानून इन गैप्स, इस अंतर को भरने की दिशा में काम करता है। कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी देश की सांप्रदायिक भावना को बनाए रखने में भी एक बड़ी भूमिका निभाती है। यह समाज के सभी वर्गों से भागीदारी को प्रोत्साहित करता है। यह विकास के एक सामान्य लक्ष्य के साथ एक सहयोगी ढांचे में विभिन्न प्रकार के संगठनों को शामिल करता है। यह पूंजीपतियों के साथ-साथ समुदाय के बीच राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
सीएसआर फंड (Corporate Social Responsibility in Hindi) की मदद से देश में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहा है, सामाजिक और आर्थिक नीतियों में बदलाव की वजह से इसका सीधा फायदा देश के युवा आबादी के साथ साथ सामरिक पहल की भी शुरवात होती है। यह भारत के लोगों के बीच आर्थिक, सामाजिक समावेश, स्वास्थ्य, शिक्षा और व्यवहार में बदलाव लाने में भी प्रमुख भूमिका निभाता है।