जम्मू-कश्मीर की वक्फ बोर्ड की दशा पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। Jamui Waqf Board बदहाल है क्योंकि पिछले 20 वर्षों में न तो केंद्र सरकार द्वारा, न राज्य सरकार द्वारा और न ही सेंट्रल वक्फ काउंसिल द्वारा एक भी रुपया फंड नहीं आया है। पुणे के बिजनेसमैन और सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सारडा द्वारा दाखिल किए गए सूचना के अधिकार (RTI) आवेदन में जम्मू वक्फ बोर्ड ने ये जवाब दिया है जो चौंकाने वाला है।
वक्फ की संपत्तियां करोड़ों की, लेकिन हालात बदतर
जिन वक्फ संस्थाओं की संपत्तियों की कीमत हजारों करोड़ों में आंकी जाती है, उनके पास अपने संचालन के लिए भी पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। ये संस्थाएं अल्पसंख्यकों को शिक्षा, स्वास्थ्य और धार्मिक सुविधाएं देने के लिए बनाई गई थीं, लेकिन वित्तीय उपेक्षा ने इन्हें लगभग निष्क्रिय बना दिया है। प्रफुल्ल सारडा ने इस खुलासे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि “यह केवल वित्तीय लापरवाही नहीं, बल्कि योजनाबद्ध धोखा है। जो राजनीतिक दल खुद को अल्पसंख्यकों का हमदर्द बताते हैं, वही लोग उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर वर्तमान सरकार तक हर कोई इस स्थिति का जिम्मेदार है।”
राजनीतिक दलों की भूमिका पर उठे सवाल
RTI से सामने आया है कि जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) जैसी पार्टियों ने वर्षों तक सत्ता में रहते हुए वक्फ संस्थाओं को एक भी रुपया नहीं दिया। यह तब है जब वक्फ संपत्तियों को लेकर राजनीतिक बयानबाजी और प्रचार खूब होते रहे हैं। जवाब में बताया गया है कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल ने पिछले दो दशकों में जम्मू-कश्मीर की वक्फ संस्थाओं को कोई फंडिंग नहीं की। इससे यह सवाल उठता है कि क्या जानबूझकर जम्मू की संस्थाओं को नजरअंदाज किया गया? इस पर प्रफुल्ल सारडा का कहना है कि “यह मुद्दा अब सिर्फ जम्मू तक सीमित नहीं है। हमने देशभर की वक्फ संस्थाओं की जानकारी RTI से मांगी है। जब अन्य राज्यों से जवाब मिलेंगे, तब यह साफ हो जाएगा कि यह एक राष्ट्रीय स्तर का घोटाला है।”
क्या है वक्फ संपत्ति का मकसद?
वक्फ संपत्तियां अल्पसंख्यक समुदायों की भलाई के लिए बनाई जाती हैं। इनसे होने वाली आमदनी का उपयोग स्कूल, हॉस्पिटल, धार्मिक स्थल और सामाजिक विकास के लिए होना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन संस्थाओं के पास स्टाफ की सैलरी तक देने के लिए पैसे नहीं हैं। वक्फ बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक, कई संपत्तियां अवैध कब्जों और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। फंडिंग नहीं होने से संस्थाएं केवल कागजों पर ही चल रही हैं।