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चमकी बुखार, मौत का अस्पताल

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टेलीविज़न स्क्रीन जैसे ही शुरू होता है, चीखें सुनाई देती है, उन माताओं की, उन पिता का, जो अपने दिल के टुकड़े को मौत के मुँह में जाते हुए देख रहे है, शोर होता है उन तीमारदारों का जो चाहकर भी अपने जिगर को बचा नहीं पा रहे है, गुस्सा है प्रशासन के प्रति, गुस्सा है सरकार को लेकर, कैसा है ये सुसाशन बाबू का प्रशासन जो बच्चों का मरने दे रहा है और सरकार है कि हाथ पर हाथ धरे हुए है। पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नितीश कुमार क्यों आप लोग कुछ नहीं कर पा रहे है, क्या आप लोग इतने लचर हो गए हो कि फ़ौरन और आनन फानन में पर्याप्त डॉक्टर और मेडिकल सेवाएं नहीं मुहैया करवा पा रहे है, क्यों इन मासूम को मौत के काल में समाने दे रहे है, क्या इन बच्चों और उनके परिजनों का महज इतना कसूर है कि ये लोग गरीब है। मत भूलिए आप लोग इनके एक एक कीमती वोट से ही आप सभी लोग सत्ता के शिर्ष सिंघासन पर बैठे है।
आप सबके कानों तक बात पहुंचे, बार- बार पहुंचे इसलिए ही देश का चौथा स्तंभ आप लोगों को जगा रहा है लेकिन आप तो कुंभकरणीय नींद में है, अब तक करीब 130 बच्चों की मौत हो चुकी है, लगातार मौतों का सिलसिला जारी है, मौतों के ये आंकड़े गांवों के है और भी बच्चे मरे होंगे, जिनकी जानकारी सरकारी खाते में दर्ज नहीं है। अस्पताल में बदइंतज़ामी देखकर आप हैरान रह जायेंगे, आईसीयू में मीडिया रिपोर्टिंग के दरमियान बच्चे मर रहे है, लगातार इसकी रिपोर्टिंग की जा रही है लेकिन अस्पताल प्रशासन कमी का रोना रो रहा है, डॉक्टर की ग़ैरमौजूदगी है, नर्सेस नहीं है, दवाईयां नहीं है, एक एक बिस्तर पर दो दो बच्चे, आलम यहाँ तक भी है कि इलाज इन पीड़ित बच्चों का फर्श पर भी हो रहा है, डॉक्टरों की कमी इतनी है कि बुलाओ तो आते ही नहीं, मां बाप के आँखों के सामने बच्चे मर रहे है। चीख़ पुकार और चीत्कार अस्पताल के हर कोने में और वहां मौजूद हर एक के कानों में गूँज रहा है। गूँगे बहरे सिस्टम के लिए बच्चों की ज़िंदगी कितना मायने रखती है अस्पताल की तस्वीरों से पता चल जाता है।
एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम यानी स्थानीय भाषा में चमकी बुखार जिसका प्रकोप इस कदर बढ़ता जा रहा है, कि इस बुखार से अबतक मरने वालों की संख्या बढ़कर 130 पहुंच गई है, चमकी बुखार मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल यानि एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल तक ही सिमित था अब ये बिहार के कई इलाकों से ख़बरें आ रही है। चमकी बुखार से पीड़ित मासूमों की सबसे ज्यादा मौतें मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में हुई हैं। चमकी बुखार के रोकथाम को लेकर अब तक जो भी प्रयास किए जा रहे हैं वो स्थिति को देखते हुए नाकाम साबित हो रहे हैं, मौतों को देखते हुए नेताओं और मंत्रियों का दौरा शुरु हो चुका है, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन पूरी टीम के साथ रविवार को मुजफ्फरपुर पहुंचे और डॉक्टरों को क्लीन चिट देते हुए कहा कि अस्पताल पूरी कोशिश कर रहा है।
मन विचलित है, गुस्सा है, खौफजदा है कि आखिरकार ‘चमकी बुखार’ है क्या? इसे ‘चमकी’ नाम स्थानीय लोगों ने दिया है, मेडिकल शब्दावली में इसे ‘एईएस’, यानी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम कहा जाता है, इंटरनेट खंगालने पर कई तर्क वितर्क की जानकारियां हाथ लगी, जिनमे से कुछ साझा कर रहा हूँ, यह रोग पिछले दो दशक से ज्यादा समय से है और अब तक इसका कोई ठोस कारण पता नहीं चल पाया है, इसीलिए इसे रहस्यमयी बीमारी भी कहा जाता है, यह हर साल अप्रैल से जुलाई के महीने में फैलता है, ज्यादातर तीन साल से सात साल के छोटे बच्चों को यह अपनी चपेट में लेता है, इससे सैकड़ों बच्चे प्रभावित होते हैं। मुज़फ़्फ़रपुर का एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम बाक़ी जगहों के जैपनीज़ इंसेफेलाइटिस से अलग है। इस बीमारी की खोजबीन का एक सिरा ‘लीची’ फल से जुड़ा हुआ है, मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के इलाके में देश में सबसे ज्यादा लीची पैदा होती है, एईएस लीची के सीजन में ही होता है, कुछ अध्ययनों के मुताबिक फलों को खाने वाले चमगादड़ों के जरिये इस बीमारी के वायरस बच्चों में पहुंचते हैं, कुछ अनुसंधानों में ऊष्माघात या लू लगने और नमी को भी इस बीमारी के लिए जिम्मेदार माना गया है। कुपोषण को भी इस बीमारी के कारणों में शामिल किया जाता है।
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का असर बिना किसी शुरुआती लक्षण के अचानक दिखता है, शाम तक ठीक रहने वाला बच्चा अगली सुबह अचानक इसकी चपेट में आ जाता है, तेज़ बुखार, शरीर में ऐंठन, मानसिक भटकाव, घबराहट, बेहोशी के दौरे और दिमाग़ी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। एईएस की वजह से हाइपोग्लाइसीमिया यानी लो-ब्लड शुगर के लक्षण भी मरीजों में देखने को मिलते हैं। बहरहाल इन सब से आम जनता, हमें और आपको क्या लेना देना, बस हमें चाहिए हमारे बच्चों की जिंदगियां जिसके लिए ये सवाल उठना लाजमी है, सवाल यह है कि सरकार, प्रशासन और दूसरे जिम्मेदार लोगों ने सैकड़ों बच्चों को मौत के मुंह में जाने से बचाने के लिए समय पर क्या किया? बच्चों पर यह प्रकोप हर साल आता है, यह तो सरकार और प्रशासन सबको पता ही था, तो फिर जो किया जा सकता था वह भी इतने सारे बच्चों की जान बचाने के लिए क्यों नहीं किया गया?
पिछले ढाई दशकों से लगभग हर साल 100 से ज्यादा बच्चों को लीलने वाली इस बीमारी से निपटने के लिए अभी भी बिहार सरकार के पास कोई रणनीति नहीं है और ये बच्चे असमय काल का शिकार लगातार हो रहे है। क्या ये मान लें कि नरेंद्र मोदी और सुशासन बाबू नितीश के राज में बच्चे मरते रहेंगे, हम और आप सिर्फ अफसोस जताते रहेंगे।