वन हमारे ग्रह के लगभग 31 प्रतिशत भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं। UN का कहना है कि लुप्त जंगलों का मतलब ग्रामीण समुदायों में आजीविका का गायब होना, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि, जैव विविधता में कमी और भूमि का क्षरण! वनों, विशेष रूप से पेड़ों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, भारत हर साल जुलाई के पहले सप्ताह में वन महोत्सव या वन महोत्सव मनाता है। वार्षिक वृक्षारोपण उत्सव के रूप में, पूरे देश में सरकारी संगठनों, नागरिक निकायों से लेकर व्यक्तियों तक विभिन्न हितधारकों द्वारा हजारों पेड़ लगाए जाते हैं। वन महोत्सव मनाने के पीछे का उद्देश्य स्थानीय लोगों को वृक्षारोपण अभियान में शामिल करना और पर्यावरण जागरूकता फैलाना है।
वन महोत्सव-कन्हैयालाल मुंशी के दिमाग़ की उपज
वन महोत्सव, पर्यावरणविद् और केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री (1952-53) कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के दिमाग की उपज है। 1950 में उन्होंने वन क्षेत्र को बढ़ाने, वन संरक्षण करने और पेड़ लगाने के लिए जनता के बीच उत्साह पैदा करने के लिए वन महोत्सव की शुरुआत की। यह महोत्सव भारत के विभिन्न राज्यों में एक साथ मनाया जाता था।
भारतीय वन सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सघन वनों का क्षेत्रफल घट रहा है। 1999 में सघन वन 11.48 फीसद थे, जो 2015 में घटकर मात्र 2.61 फीसद रह गए। सघन वनों का दायरा सिमटते जाने के चलते ही वन्यजीव शहरों-कस्बों का रुख करने पर विवश होने लगे हैं और जंगली जानवरों की इंसानों के साथ मुठभेड़ की घटनाएं बढ़ रही हैं। भारत में स्थिति बदतर इसलिए है, क्योंकि एक तरफ जहां वृक्षों की अवैध कटाई का सिलसिला बड़े पैमाने पर चलता रहा है, वहीं वृक्षारोपण के मामले में उदासीनता और लापरवाही बरती जाती रही है।
जहां तक भारत की बात है, वन क्षेत्र के मामले में भारत दुनिया में दसवें स्थान पर है। दो-तीन वर्ष पूर्व ‘Forest Survey Of India’ की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में वन क्षेत्र 8,02,088 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जो भारत के कुल क्षेत्रफल का करीब 24.39 फीसद है। लेकिन हाल ही में भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2021 में बताया गया है कि भारत में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का अब केवल 21.72 फीसदी ही वन क्षेत्र है।
वाणिज्यिक उपयोग वाले बागान बढ़े, वन घटे
Indian State Of Forest Report 2017’ में बताया गया था कि भारत में 2015 से 2017 के बीच वन क्षेत्र में 0.2 फीसद की वृद्धि हुई, मगर पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक यह वृद्धि केवल ‘ओपन फारेस्ट श्रेणी’ का ही हिस्सा है, जो प्राकृतिक वन क्षेत्र में वृद्धि न होकर वाणिज्यिक बागानों के बढ़ने के कारण हुई है। वर्तमान नीति के अनुसार मृदा क्षरण तथा भू-विकृतिकरण रोकने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का न्यूनतम 66 फीसद हिस्सा वनाच्छादित होना चाहिए, लेकिन अगर आंकड़े देखें तो देश के सोलह पर्वतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में फैले 127 पहाड़ी जिलों में कुल क्षेत्रफल के चालीस फीसद हिस्से ही वनाच्छादित हैं, जिनमें जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र तथा हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी जिलों का सबसे कम, क्रमश: 15.79, 22.34 तथा 27.12 फीसद हिस्सा ही वनाच्छादित है।
हालांकि देशभर में सर्वाधिक जंगल महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में हैं, लेकिन विकास कार्यों में तेजी, कृषि भूमि, जलच्छादित क्षेत्र में वृद्धि, खनन प्रक्रिया में बढ़ोतरी आदि कारणों से पिछले कुछ वर्षों में इन राज्यों में भी जंगल घटे हैं।
वन महोत्सव पर करते हैं बुजुर्ग पेड़ों की चर्चा
धरती पर पेड़ों का महत्व इंसानों से कहीं ज्यादा है। हम पेड़ों के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। पेड़ की वजह से ही यहां जीवन है। आमतौर पर माना जाता है कि बरगद के पेड़ सबसे पुराने होते हैं और इनका जीवन काल सैकड़ों वर्षों का होता है, लेकिन दुनिया में ऐसे भी कई पेड़ हैं, जो सैकड़ों हज़ारों वर्षों से धरती वासियों को जीवन समर्पित करते आ रहे हैं।
Old Tjikko: 9000 से ज्यादा सालों से जीवित दुनिया का सबसे पुराना पेड़
ओल्ड टिज्को, स्वीडन में स्थित एक 9,550 साल पुराना Norway Spruce का पेड़ है, जो दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात जीवित पेड़ है। इसे Clonal पेड़ माना जाता है, जिसका मतलब है कि इसने समय के साथ नए तने, शाखाएं और जड़ें पुनर्जीवित की हैं। यह पेड़ स्वीडन के Fulufjället National Park में स्थित है। Old Tjikko को 2004 में लीफ कुलमैन और उनकी टीम द्वारा खोजा गया था, जब वे फुलुफजलेट पर्वत पर पेड़ों की गणना कर रहे थे। यह पेड़, जो कि मुश्किल से 16 फीट ऊंचा है, अपनी असाधारण उम्र के कारण उल्लेखनीय है। कुलमैन ने इसका नाम अपने दिवंगत कुत्ते के नाम पर रखा।
Old Tjikko को स्थायित्व और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है, और यह पर्यावरण पर इसके प्रभाव के बारे में भी अध्ययन का विषय है।
Methuselah: सदियों पुराना वृक्ष, जो पिछले 4,851 सालों से धरती पर तना खड़ा है
Methuselah ने पृथ्वी पर पिछले 4851 साल से झंडा गाड़ा हुआ है। अर्थात सिकंदर के विश्व विजय अभियान से लेकर अंग्रेजों और स्पैनिश के ‘दुनिया हथियाओ’ अभियान तक सब इसके सामने हुए हैं। Methuselah देवदार (चीड़) का पेड़ है, जो Great Basin Bristlecone प्रजाति का है। ये दुनिया का सबसे पुराना Non-Clonal पेड़ है, जिसकी आयु की पुष्टि हो चुकी है। मेथुसेलाह वृक्ष अमेरिका के कैलिफोर्निया में Inyo National Forest में प्राचीन Bristlecone Pine जंगल में स्थित है। इसकी सटीक लोकेशन को United States Forest Service ने गुप्त रखा है। ये समुद्र तल से 2,900 से 3,000 मीटर (9,500 और 9,800 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इसका नाम बाइबिल में वर्णित मेथुसेलाह के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 969 साल की लम्बी उम्र पायी थी।
Angelister Llangernyw Yew लैंगर्न्यू यू UK
लैंगर्न्यू यू (Llangernyw Yew) वेल्स में स्थित एक बहुत पुराना यू का पेड़ है, जो लंगर्न्यू के पैरिश चर्च के चर्चयार्ड में है। इसे ब्रिटेन के सबसे पुराने पेड़ों में से एक माना जाता है, और कुछ अनुमानों के अनुसार, इसकी उम्र 4,000 से 5,000 साल तक हो सकती है। स्थानीय किंवदंतियों में इस पेड़ को “एंजेलिस्टर” नामक एक आत्मा से जोड़ा जाता है, जो एक “रिकॉर्डिंग एंजेल” है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि पेड़ में “एंजेलिस्टर” नामक एक आत्मा निवास करती है। इसे ऐतिहासिक महत्व का माना जाता है। कुल मिलाकर, लैंगर्न्यू यू एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व का पेड़ है।
ज़ोरोस्ट्रियन सर्व वृक्ष (Zoroastrian Sarv Tree)
Abarkuh-Yazd Province of Iran: हिंदी में “अबरकुह का सरू” या “ज़ोरोस्ट्रियन सर्व” कहा जाता है। यह ईरान के अबरकुह शहर में स्थित एक प्राचीन सरू का पेड़ है, जिसे ज़ोरोस्ट्रियन धर्म के संस्थापक ज़ोरोस्टर से जोड़ा जाता है। यह पेड़ 25 मीटर ऊंचा और 11.5 मीटर मोटा है, और अनुमान है कि यह 4000 साल से भी ज्यादा पुराना है। माना जाता है कि ज़ोरोस्टर ने इसे लगाया था। Zoroastrian Sarv को ईरान का एक राष्ट्रीय प्राकृतिक स्मारक भी माना जाता है। यह अनुमान लगाया जाता है कि यह एशिया का सबसे पुराना जीवित पेड़ है। यह पेड़ न केवल अपनी उम्र और आकार के लिए, बल्कि ज़ोरोस्ट्रियन धर्म में अपने महत्व के लिए भी जाना जाता है।
Alerce Milenario, The Great Grandfather
हाल ही में चिली के 5000 साल पुराने वृक्ष को विश्व के सबसे पुराने वृक्ष के रूप में मान्यता दी गई है। दक्षिणी चिली में एक विशाल वृक्ष, जिसे “ग्रेट ग्रैंडफादर” के नाम से जाना जाता है, यह वृक्ष, एक Patagonian cypress (Fitzroya cupressoides) है जो Alerce Costero National Park Chille में स्थित विश्व का सबसे पुराना वृक्ष है। पेड़ के तने का व्यास चार मीटर (13 फीट) है और यह 28 मीटर लंबाहै। यह 5,000 वर्ष से अधिक पुराना है और वर्तमान में सबसे पुराने पेड़ मेथुसेलह को पार कर गया है, जो कि 4,850 वर्ष पुराना है। Alerce Milenario, The Great Grandfather राजधानी सैंटियागो से 800 किलोमीटर (500 मील) दक्षिण में दक्षिणी लॉस रियोस क्षेत्र में एक जंगल में स्थित है। यह पेड़ Fitzroya cupressoides प्रजाति का है, जिसे Patagonian cypress के नाम से भी जाना जाता है। Fitzroya cupressoides दक्षिण अमेरिका में सबसे बड़ी वृक्ष प्रजाति है।
पेत्रिआर्का दा फ्लोरेस्टा (Patriarca da Floresta) Brazile
Patriarch of the Forest, Patriarch of the Forest, केरिनिआना लेगालिस प्रजाति का यह पेड़ ब्राजील में सबसे बूढ़ा, लगभग 3000 साल पुराना गैर शंकुवृक्ष पेड़ है। इस पेड़ को बहुत पवित्र माना जाता है परन्तु इसकी प्रजाति खतरे में है क्योंकि ब्राजील, कोलंबिया और वेनेजुएला में जंगलों का बहुत तेजी से विनाश हो रहा है।
एक सौ घोड़ों का पेड़ (The Tree of One Hundred Horses) Sisili Italy
2,000 से 4,000 वर्ष के बीच आंकी गई उम्र वाला ‘The Tree of One Hundred Horses’ सिसिली में माउंट एटना पर स्थित है। इसे दुनिया में सबसे बड़े और पुराने शाहबलूत Chestnut Tree के पेड़ के तौर पर जाना जाता है। यह दुनिया के सबसे शक्तिशाली सक्रीय ज्वालामुखी माउंट एटना के क्रेटर से सिर्फ 5 मील की दूरी पर स्थित है। इस कारण इसकी इतनी अधिक उम्र होना एक बहुत ही आश्चर्यजनक बात है। इसके नाम के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार 100 शूरवीरों की एक टुकड़ी एक भयंकर तूफान में फंस गयी थी, तब उन सब ने इस पेड़ के नीचे ही शरण ली थी। इस पेड़ की छाया परिधि 190 फीट की है, जो कि एक गिनीज विश्व रिकार्ड है।
Olive Tree of Vouves, Crete-Greece
Olive Tree of Vouves भूमध्य सागर में जैतून के सात पेड़ों में से एक है। पेड़ की सही उम्र निर्धारित नहीं की जा सकी है। रेडियोआइसोटोप का उपयोग संभव नहीं है, क्योंकि इसकी हार्टवुड सदियों से खो गई है, जबकि पेड़ के तनों में बने रिंग्स के विश्लेषण से पता चला है कि पेड़ कम से कम 2000 साल पुराना है। लेकिन Crete University के वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह 4,000 साल पुराना है। इसकी उम्र का एक संभावित संकेतक, पेड़ के पास खोजे गए ज्यामितीय अवधि के दो क़ब्रिस्तान हैं। कुछ अनुमान और भी अधिक (5,000 वर्ष) हैं। ज़ैतून के पेड़ों की उम्र का पता लगाने के लिए अभी तक वैज्ञानिक पद्धति पर सहमति नहीं है। Olive Tree of Vouves अभी भी जैतून का उत्पादन करता है और वे अत्यधिक बेशकीमती हैं। जैतून का यह पेड़ बहुत मजबूत और रोग तथा आग प्रतिरोधी भी है। इसी कारण यह पेड़ इस क्षेत्र में इतने सालों से सुरक्षित है |
जनरल शर्मन General Sherman Tree उम्र -2,500-2700 वर्ष
General Sherman Tree, जिसे हिंदी में जनरल शेरमन वृक्ष कहते हैं, एक विशालकाय सिकुआ पेड़ है जो सिकोइया नेशनल पार्क, कैलिफ़ोर्निया में स्थित है। यह पेड़ आयतन के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा पेड़ है, जिसका अनुमानित आयतन 52,500 घन फीट से अधिक है। यह पेड़ लगभग 2,300 से 2,700 वर्ष पुराना माना जाता है। इस पेड़ का नाम अमेरिकी गृहयुद्ध के जनरल विलियम टेकुमसेह शेरमन के नाम पर रखा गया है। 1879 में, एक पर्यावरणविद् जेम्स वुलवर्टन ने इस पेड़ का नाम उनके सम्मान में रखा था, क्योंकि वह शेरमन के अधीन लेफ्टिनेंट के रूप में काम करते थे।
जनरल शेरमन वृक्ष की ऊंचाई 275 फीट (83.8 मीटर) है, और इसका व्यास 25 फीट (7.7 मीटर) है। यह पेड़ अपने विशाल आकार के कारण एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, और हर साल हजारों लोग इसे देखने आते हैं। हालांकि, यह पेड़ जंगल की आग के खतरे का सामना कर रहा है, जो आजकल बड़ी और तीव्र होती जा रही हैं। आग से बचाने के लिए, पार्क रेंजरों ने पेड़ के आधार के चारों ओर 10-15 फीट की सुरक्षात्मक शीट लपेट दी है।
जनरल शर्मन ताकतवर विशाल वृक्ष है जो अभी भी खड़ा हुआ है। इसे अपनी भारी भरकम शाखाओं के कारण दुनिया के सबसे बड़े पेड़ों में गिना जाता है | हालांकि इसकी सबसे बड़ी शाखा 2006 में टूट गयी थी। जनरल शर्मन पेड़ को आज भी कैलिफोर्निया में सेक्कुइया (Sequoia) राष्ट्रीय उद्यान में पाया जा सकता है, जहां दुनिया के 10 सबसे बड़े पेड़ों में से 5 यहीं पर मौजूद हैं।
भारत के सबसे पुराने ऐतिहासिक पेड़
भारत में कई प्राचीन और प्रसिद्ध पेड़ हैं, जिनमें से कुछ बरगद के पेड़ (banyan trees) हैं, जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराने माने जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं, ‘Great Banyan Tree’ कोलकाता में, जो 250 साल से भी ज्यादा पुराना है और 14,500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश में एक 500 साल पुराना बरगद का पेड़ है जिसे दुनिया का सबसे पुराना पेड़ घोषित किया गया है। एक 1400 साल पुराना साल का पेड़ छत्तीसगढ़ में भी है।
यह पेड़ 250 साल से भी ज्यादा पुराना है और 14,500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इसे ‘Walking Tree’ के नाम से भी जाना जाता है, क्यूंकि इसकी जड़ें असाधारण रूप से एक दिशा से दूसरी ओर लगातार घूमती रहती हैं। कोलकाता के जेसी बोस इंडियन बोटैनिकल गार्डन में स्थित इस पेड़ का मूल तना तो अब नहीं रहा, लेकिन इससे निकली जड़ों का जंगल आज जिंदा है और बढ़ भी रहा है। 3.5 एकड़ में फैला यह भारत का सबसे अधिक घेराव वाला पेड़ है। The Great Banyan Tree अपनी विशाल छत्रछाया के चलते अपने आप में एक जंगल है।
उत्तर प्रदेश का बरगद का पेड़ ‘बूढ़ा बरगद’
भारत की सांस्कृतिक विरासत आज भी बदलावों के साथ-साथ अपनी मूल विशेषताओं को बरकरार रखते हुए फल-फूल रही है। इन सबके बीच खड़ा है दुनिया का सबसे पुराना बरगद का पेड़। उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के नरौरा में स्थित बरगद का पेड़ भारतीय विरासत की निशानी है। इस पेड़ को 500 साल पुराना माना जाता है और इसे दुनिया का सबसे पुराना बरगद का पेड़ घोषित किया गया है। भारतीय संस्कृति में बरगद के पेड़ का आध्यात्मिक महत्त्व है और इसीलिए यहां बरगद पूजे जाते हैं।
छत्तीसगढ़ का 1400 साल पुराना ‘साल का महावृक्ष’
यह पेड़ कोरबा में स्थित है और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। विशालकाय पेड़, जिसे स्थानीय लोग देवतुल्य मानते हैं, न केवल क्षेत्र की पहचान बना हुआ है, बल्कि यह भारत के सबसे पुराने जीवित वृक्षों में से एक भी है। यह अद्भुत महावृक्ष करीब 1400 साल पुराना है, और इसकी उपस्थिति पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। इस प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने और इसके महत्व को समझने के लिए वन विभाग ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, और देशभर में डेटा इकट्ठा करने में लगा है, कि इस महावृक्ष से बड़ा पेड़ देश में है या नहीं!
जोशीमठ का कल्पवृक्ष
जोशीमठ में एक प्रसिद्ध कल्पवृक्ष है, जिसे 2,500 साल पुराना माना जाता है। यह एक शहतूत का पेड़ है जो ज्योतेश्वर महादेव मंदिर के परिसर में स्थित है। किंवदंती है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इसी पेड़ के नीचे ध्यान लगाया था और ज्ञान प्राप्त किया था, जिसके कारण इस स्थान को ज्योतिर्मठ कहा जाता है। कल्पवृक्ष को पवित्र और पूजनीय माना जाता है, और यह माना जाता है कि इसके नीचे बैठकर ध्यान लगाने से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और सच्ची मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह पेड़ 22 मीटर व्यास का है और 170 फीट ऊंचा है। यह पूरे वर्ष हरा-भरा रहता है और कभी भी अपने पत्ते नहीं गिराता, जो इसे रहस्यमय बनाता है।
ऐसा माना जाता है कि कल्पवृक्ष को देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न किया गया था। हर साल, खासकर महाशिवरात्रि और सावन के महीने में, हजारों श्रद्धालु इस पेड़ के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाएं मांगने के लिए यहां आते हैं। जोशीमठ शहर के भूस्खलन के कारण, कल्पवृक्ष और इससे सटा ज्योतेश्वर महादेव मंदिर भी ख़तरे में है।
करीब 2800 साल पुराना यह ऐतिहासिक वृक्ष धार्मिक वजहों से भी बहुत मशहूर है। कहा जाता है कि बिहार के गया में स्थित इसी पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बोधि वृक्ष बिहार के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का पेड़ है। इसी पेड़ के नीचे ईसा पूर्व 531 में भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस पेड़ की भी बड़ी विचित्र कहानी है। इस पेड़ को दो बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, लेकिन हर बार चमत्कारिक रूप से यह पेड़ फिर से उग आया था।
बोधि वृक्ष को नष्ट करने का पहला प्रयास ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में किया गया था। वैसे तो सम्राट अशोक बौद्ध अनुयायी थे, लेकिन कहते हैं कि उनकी एक रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे वृक्ष को कटवा दिया था। हालांकि बोधि वृक्ष पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ था। कुछ ही सालों के बाद बोधि वृक्ष की जड़ से एक नया पेड़ उग आया, उस पेड़ को बोधि वृक्ष की दूसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है, जो करीब 800 साल तक रहा था।
दूसरी बार बोधि वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास सातवीं शताब्दी में बंगाल के राजा शशांक ने किया था। कहा जाता है कि वह बौद्ध धर्म का कट्टर दुश्मन था। उसने बोधि वृक्ष को पूरी तरह नष्ट करने के लिए उसे जड़ से ही उखड़वाने को सोचा था, लेकिन जब वो इसमें असफल रहा तो उसने वृक्ष को कटवा दिया और उसकी जड़ों में आग लगवा दी। लेकिन यह चमत्कार ही था कि इसके बावजूद भी बोधि वृक्ष नष्ट नहीं हुआ और कुछ सालों के बाद उसकी जड़ से एक नया पेड़ निकला, जिसे तीसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है। यह वृक्ष करीब 1250 साल तक रहा था।
तीसरी बार बोधि वृक्ष वर्ष 1876 में प्राकृतिक आपदा की वजह से नष्ट हो गया था, जिसके बाद एक अंग्रेज लॉर्ड कनिंघम ने वर्ष 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरा से बोधिवृक्ष की शाखा मंगवाकर उसे बोधगया में फिर से स्थापित कराया था। यह बोधि वृक्ष की पीढ़ी का चौथा पेड़ है, जो बोधगया में आज तक मौजूद है। देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ने इसे सुरक्षित घोषित किया है।
थिमम्मा मर्रिमनु बरगद का पेड़, आंध्र प्रदेश
थिमम्मा मर्रिमनु बरगद का पेड़ भी बहुत पुराना है और 4.7 एकड़ में फैला हुआ है। आंध्र प्रदेश के अनन्तपुर में स्थित थिम्मम्मा मारिमनु भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा पेड़ है। बरगद के इस पेड़ को गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। माना जाता है कि यह पेड़ थिम्मम्मा नाम की एक महिला की चिता पर है। मान्यताओं के मुताबिक, इस महिला को 1400 की सदी में उसके पति की मृत्यु के बाद सती प्रथा के तहत यहां जलाया गया था। वर्तमान में यह पेड़ 4.7 एकड़ ज़मीन में फैला है।
कबीरवट, गुजरात
कबीरवट पेड़ भी 1400 की सदी से है और कई एकड़ में फैला हुआ है। कबीरवट बरगद का पेड़ गुजरात के भरुच के नजदीक स्थित है। यहां के स्थानीय लोग इस पेड़ को संत कबीर से जोड़ के देखते हैं। उनका मानना है कि संत कबीर यहां पर ठहरे थे। इस पेड़ के नीचे उनका एक मंदिर भी है। यह पेड़ इतना पुराना है कि एलेंक्जेंडर के रिकॉर्ड्स में भी इस बारे में जानकारी मिलती है। यह पेड़ 4.3 एकड़ में फैला है।
बाओबाब वृक्ष, इलाहाबाद (प्रयागराज)
यह वृक्ष संगम के पास स्थित है और भारतीय संस्कृति में पूजनीय है। बाओबाब (एडंसोनिया डिजिटाटा) नामक वृक्ष भारत के प्रयागराज शहर के झूंसी गांव में स्थित है, जो संगम के बहुत करीब है, जहां गंगा और यमुना नदियां मिलती हैं, जिसके कारण यह स्थान भारतीय संस्कृति में अत्यधिक पूजनीय है। पवित्र संगम के ऊपर खड़े बाओबाब वृक्ष ने सदियों से लाखों लोगों को अपनी शरण लेते और कई कुंभ मेले देखे हैं। इस वृक्ष की रेडियोकार्बन डेटिंग लगभग 800 साल पुरानी है, जो प्रयागराज के वृक्ष को भारत के सबसे पुराने वृक्षों में से एक बनाती है। दिलचस्प बात यह है कि बाओबाब वृक्ष के इर्द-गिर्द कोई धूम-धाम नहीं है, क्योंकि यह कीचड़ से भरे क्षेत्र में बेपरवाही से खड़ा है, तथा नदी के करीब होने के कारण इसके चारों ओर कंक्रीट की दीवार बनी हुई है, जो कटाव को रोकती है।
सूफी संत बाबा शेख तकी की कब्र इस पेड़ से कुछ कदम की दूरी पर है। इस पेड़ से जुड़ी एक किंवदंती यह है कि शेख तकी ने अपनी दातून, दांत साफ करने वाली नीम की टहनी को उल्टा करके जमीन पर रख दिया था, जो बाद में इस पेड़ के रूप में विकसित हुई। स्थानीय स्तर पर इस वृक्ष को विलायती इमली और पारिजात वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है।
अक्षय वट, कुरुक्षेत्र
कहा जाता है कि अक्षयवट का यह पेड़ महाभारत के समय से मौजूद है और श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवतगीता का ज्ञान इसी पेड़ के पास दिया था। इलाहाबाद के पातालपुरी मंदिर के पास स्थित बरगद का यह पेड़ भी बहुत प्राचीन माना जाता है। मान्यता है कि प्रभु श्री राम भी इसके दर्शन करने आते थे। इस हिसाब से इसकी उम्र करीब 7000 साल के आस-पास है। बरगद का यह पेड़ संगम किनारे स्थित मंदिर के पास है। ये पेड़ न केवल अपनी उम्र के कारण महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का हिस्सा भी है।
राजस्थान के चूरू जिले के रतनगढ़ कस्बे के पास बुधवार (9 जुलाई) को Fighter Jet क्रैश हो गया है। मौकेपर पुलिस और प्रशासन की टीम पहुंच गई है। जानकारी के मुताबिक ये फाइटर प्लेन आर्मी का है।
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