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सुलभ क्रांति का नया दौर : साक्षात्कार

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प्रधानमंत्री के मिशन टॉयलेट पर सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक विंदेश्वर पाठक से वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी की बातचीत

हर साल स्वतंत्रता दिवस यानी पंद्रह अगस्त को लालकिले से प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन में दरअसल देश की भावी नीतियों और योजनाओं की ही झलक मिलती रही है। 67 साल से साल-दर-साल प्रधानमंत्री के भाषण में कई बार सिर्फ रस्मी घोषणाएं भी होती रही हैं। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ अलग हटकर भी घोषणाएं कीं। जिन्हें लेकर देश इन दिनों संजीदा भी दिख रहा है। ऐसी ही एक घोषणा मिशन शौचालय की भी रही। इसमें प्रधानमंत्री ने निजी और कारपोरेट सेक्टर से अपील की कि वे स्कूलों में बच्चियों-लड़कियों के शौचालय बनवाने के लिए आगे आएं। हाल के दिनों में दूर-दराज के इलाकों में बच्चियों और महिलाओं से ज्यादातर रेप की घटनाएं खुले  में शौच के  लिए  जाने  के  दौरान  हुई। इन अर्थों में प्रधानमंत्री की अपील को गहराई से महसूस किया जा रहा है। देश में सुलभ शौचालयों के जरिए क्रांति लाने में विंदेश्वर पाठक का बड़ा योगदान है। उन्होंने मैला ढोने वाले समुदाय की मुक्ति की दिशा में भी बड़ा काम किया है। शौचालयों के जरिए क्रांति लाने वाले विंदेश्वर पाठक इस सिलसिले में क्या सोचते हैं, इसे लेकर की गई बातचीत के संपादित अंश पेश हैं-

पाठक जी, सबसे पहला सवाल यह है कि प्रधानमंत्री की इस योजना को आप किस तरह देखते हैं?

देखिए शौचालय की क्रांति की दिशा में इस देश में अब तक महात्मा गांधी और मैंने ही काम किया है। इसके बाद मोदी जी पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने इतनी संजीदगी से इस मसले को उठाया है। ऐसा नहीं कि बाकी लोगों ने इस मसले को नहीं उठाया। लेकिन बड़े पैमाने पर हम ही लोगों ने इस मसले पर उठाया है। गांधीजी तो इस मसले को इतना अधिक महत्व देते थे कि उन्होंने कहा कि हमें आजादीसे पहले देश की सफाई चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश इस मसले की तरफ बाद में किसी ने संजीदगी से ध्यान नहीं दिया। देश में अंग्रेजों के आने के पहले आमतौर पर खुले में ही शौच की परंपरा थी। वह आज भी है। लेकिन अगर शौच इंतजाम था भी तो वह इंसानों के जरिए सफाई वाली व्यवस्था पर था। गांधी जी ने सबसे पहले उनकी मुक्ति की दिशा में काम किया। हां अंग्रेजों ने यह किया कि उन्होंने सीवर व्यवस्था पर आधारित शौचालय व्यवस्था का इंतजाम शुरू किया और कलकत्ता में सबसे पहले 1870 में सीवर शुरू किया।  लेकिन दुर्भाग्यवश तब से लेकर अब तक के 144 साल में सिर्फ 160 शहरों में ही सीवर व्यवस्था शुरू हो पाई है। जबकि इस देश में 7935 शहर हैं। जाहिर है कि अब भी तमाम उपायों के बावजूद इंसानों द्वारा साफ किए जाने वाले शौचालय या खुले में शौच करने का इंतजाम ही ज्यादा है। इस हालत में मोदी जी की लाल किले से अपील का बड़ा असर होना है। हमारी आवाज को लोग उतनी गहराई से नहीं सुनते थे। लेकिन अब लोग इसके प्रति जागरूक  होंगे और इसकी तरफ  का ध्यान गया है। इसलिए मेरा तो मानना है कि देश को स्वच्छ और मैला ढोनेवाले लोगों की जिंदगी सुधारने की दिशा में मोदी जी की यह अपील युगांतकारी साबित होने वाली है।

आपने शौचालयों पर बड़ा काम किया है। इस सिलसिले में देश की परंपराओं-कुपरंपराओं दोनों को देखा है। आपने कहा कि गांधी जी ने इसकी तरफ पहली बार ध्यान दिलाया..आखिर उनका सुझाव क्या था और क्यों नहीं उनकी बताई राह लागू हो पाई।

गांधी जी ने अपने डरबन के आश्रम में सबसे पहले फैंस लैट्रिन यानी चारदीवारी के भीतर शौच का इंतजाम शुरू किया। उनकी व्यवस्था में हर व्यक्ति को अपना शौचालय साफ करना होता था। आज भी पुराने गांधीवादियों में आप यह चलन देख सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उनका सुझाव था कि झाड़ी में जाइए और शौच कीजिए। शौच के बाद उस पर मिट्टी डालिए। शौचालय की सफाई के जरिए वे दरअसल मैला साफ़ करनेवाले लोगों को समाज में बेहतर स्थान दिलाना चाहते थे। हमारे यहां परंपरा रही है कि घर के नजदीक शौच ना करें। गांधी जी ने उसमें बदलाव का इंतजाम किया और चारदीवारी के भीतर शौच व्यवस्था की शुरूआत की। उनकी कोशिश इन लोगों को शौच सफाई के घिनौने काम से मुक्ति दिलानी थी। वे शौचालय को सामाजिक बदलाव के औजार के तौर पर देखते थे। गांधी शताब्दी के दौरान 1969 में मुझे लगा कि इस दिशा में काम किया जाना चाहिए। इसलिए मैंने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की और इसकी तरफ काम शुरू किया।

अब मोदी जी ने लालकिले से लड़कियों के लिए शौचालय का इंतजाम करने के लिए कारपोरेट से आगे आने की अपील की है। इसका क्या असर दिख रहा है।

अभी अनौपचारिक बातचीत में आप ही बता रहे थे कि मोदी जी की अपील के बाद सबसे पहले टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने 100 करोड़ रूपए से देश के दस हजार स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय बनाने का ऐलान किया है। भारती-एयरटेल कंपनी ने भी 100 करोड़ से पंजाब के स्कूलों में शौचालय बनाने का फैसला किया है। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स भी दो करोड़ की लागत से शौचालय बनाने जा रहा है। कहने का मतलब है कि देश में सफाई की दिशा में मोदी जी की अपील के बाद बड़ी क्रांति की शुरूआत हो चुकी है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब सांसदों और कंपनियों को अपने कारपोरेट सोशल रिस्पॉंसबिलिटी फंड से शौचालय बनाना होगा। इससे देश की सफाई के प्रति लोगों का नजरिया जहां सकारात्मक होगा, वहीं हमारी माताओं,बहनों और बेटियों को खुले में जाने की शर्मिंदगी से मुक्ति मिलेगी। इससे बड़ा सामाजिक बदलाव होगा।

चूंकि आपकी विशेषज्ञता स्वच्छता और शौचालय के संस्थापन और प्रबंधन में है। लिहाजा प्रधानमंत्री की अपील के बाद आप पर क्या असर पड़ा है। 

देखिए, हम तो 45 साल से यह काम कर रहे हैं..लोगों को स्वच्छता के जरिए स्वस्थ जीवन का संदेश दे रहे हैं। लेकिन मोदी जी की अपील के बाद बड़ा परिवर्तन आ रहा है। दुनियाभर से लोग हमें फोन कर रहे हैं कि हम कैसे मदद कर सकते हैं। कई कारपोरेट हमसे पूछ रहे हैं कि हम कैसे इस दिशा में प्रधानमंत्री की अपील के मुताबिक काम करें। अभी हाल ही में सरकारी क्षेत्र की कंपनियां एनटीपीसी, गेल, आरईसी ने हमसे इस दिशा में सलाह और सहयोग मांगा है।

आप अपनी तरफ से कुछ पहल करने की सोच रहे हैं?

हां,  हम ब्रुनई के सुल्तान जैसे दुनिया  के बड़े धनी व्यक्तियों से आम भारतीयों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए प्रयास करने की दिशा में सहयोग मांगने जा रहे हैं। विदेशों में अपने संपर्क वाली संस्थाओं से भी मदद मांगने की हम सोच रहे हैं। ताकि भारतीयों को स्वच्छ और स्वस्थ माहौल मुहैया कराया जा सके। हम मोदी जी को भी चिट्ठी लिखकर अपनी योजना पेश करने जा रहे है। हमें उम्मीद है कि वे हमारी भी मदद करेंगे।

आपकी क्या योजना है?

हम मोदी जी को अपनी योजना को बताने जा रहे हैं। हमारा मानना है कि देश में हर इलाके के पचास हजार युवाओं को सैनिटेशन और शौचालय क्रांति के लिए प्रशिक्षित करें। देशभर में करीब ढाई लाख पंचायतें हैं। हर युवा को पांच-पांच पंचायत में शौचालय बनवाने और लगवाने की ट्रेनिंग देकर हमें उतार देना चाहिए। इससे देश में पांच साल के अंदर पूरी स्वच्छता आ जाएगी और पचास हजार युवाओं को इस दिशा में रोजगार भी मिलेगा।

शौचालय क्रांति तो जरूरी है। लेकिन एक सवाल यह है कि मौजूदा जो शौचालय व्यवस्था है, उसमें पानी की खपत ज्यादा होती है। जबकि भारत में भी खासकर शहरों और कई इलाकों के देहातों में भी पानी की कमी बढ़ती जा रही है। तो ऐसे में क्या शौचालय क्रांति से देश में नए सिरे से जलसंकट नहीं बढ़ेगा?

इसके लिए हम चाहेंगे कि हमारी तकनीक से विकसित शौचालय व्यवस्था का प्रयोग बढ़े। हमने जो शौचालय डिजाइन किया है। उससे सिर्फ एक लीटर पानी में मल और मनुष्य दोनों की सफाई हो जाती है। करीब उतना ही पानी लगता है। जितना लोग खेत में जाते वक्त इस्तेमाल करते रहे हैं। इसलिए मैं तो चाहूंगा कि इसी व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाय, तभी सही मायने में स्वच्छता क्रांति आ पाएगी और पानी की कमी की समस्या से भी नहीं जूझना होगा। 

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उमेश चतुर्वेदी, लेखक टेलीविजन पत्रकार और स्तंभकार हैं। यहां प्रकाशित इंटरव्यू में कही गई बातें और विचार पूरी तरह से लेखक और साक्षात्कार देनेवाले के हैं – सीएसआर जर्नल ऐसे किसी विचार का समर्थन नहीं करता जिससे जनभावना, राष्ट्र भावना या व्यक्ति विशेष को आघात पहुंचे। 

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