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बिना जरूरत क्या पैसों के लिए हो रहा है सिजेरियन डिलीवरी?

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मातृत्व, जीवन का वो सुख जिसके बिना एक स्त्री अधूरी है। मातृत्व का एहसास भर से दुनिया ममतामयी हो जाती है। मातृत्व से ही एक महिला के जीवन का उद्देश्य पूरा होता है। आज राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस है यानी नेशनल सेफ मदरहुड डे (National Safe Motherhood Day)। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य गर्भावस्था, प्रसव और पोस्ट-डिलीवरी और गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के प्रति जागरूक करना है। मातृत्व की बात हो रही है और डिलीवरी की बात ना हो ये संभव नहीं। मातृत्व का सुख ही प्रेगनेंसी से शुरू होता है।

सिजेरियन डिलीवरी को लेकर ये रिसर्च चौकाने वाले है

प्रेगनेंसी 9 महीने की एक खूबसूरत प्रक्रिया है। जिसके दौरान मां एक नए जीवन को इस दुनिया में लाती हैं। इस 9 महीने के दौरान आप खुद में मानसिक और शारीरिक तौर पर ढेरों बदलाव का अनुभव करती हैं। प्रेगनेंसी के आखिरी समय और गर्भ में पल रहे शिशु को जन्म देते समय एक नारी खुशियों भर  जाती हैं। हर एक मां अपने शिशु के आने की खुशी में ढेरों तैयारियों से जुड़ जाती हैं। प्रेगनेंसी में डिलीवरी के लिए बेहतर से बेहतर हॉस्पिटल और डॉक्टर का चुनाव करती हैं। इसी दौरान एक मां के जेहन में ये सवाल चौबीसों घंटे गूंजता है कि डिलीवरी नॉर्मल होगी या फिर सिजेरियन।

सरकारी की तुलना से निजी अस्पतालों में होते है ज्यादा सिजेरियन डिलीवरी

सिजेरियन डिलीवरी जिसे आम बोलचाल की भाषा में सी-सेक्शन (C-Section Delivery) या ऑपरेशन से बच्चा पैदा करना भी कहा जाता है। इन दिनों बहुत पॉपुलर हो गया है। पहले जहां सिर्फ किसी तरह का कॉम्प्लिकेशन या हेल्थ से जुड़ी समस्या होने पर ही डॉक्टर सी-सेक्शन किया करते थे। लेकिन आजकल ऑपरेशन से बच्चा पैदा होना बहुत आम सी बात हो गयी है। C Section Delivery को लेकर एक आकड़े बहुत चौकाने वाले हैं। देश में साल 2018 में निजी अस्पतालों में हुए कुल 70 लाख प्रसव में से 9 लाख प्रसव बिना पूर्व योजना के सीजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) के जरिए हुए। ये बातें भारतीय प्रबंधन संस्थान-अहमदाबाद (आईआईएम-अहमदाबाद) के फैकल्टी सदस्य अंबरीश डोंगरे और छात्र मितुल सुराना के अध्ययन में कही गई है।

निजी अस्पतालों में 40.9 फीसदी, सरकारी में 11.9 फीसदी प्रसव सी-सेक्शन के जरिए

IIM Ahmedabad की रिसर्च National Family Health Survey पर आधारित है जिसमें साफ़ तौर पर कहा गया है कि सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन से बच्चों की डिलीवरी कम होती है और निजी अस्पतालों में सिजेरियन से बच्चों की डिलीवरी ज्यादा होती है। NFHS के 2018 के आकड़ें बताते हैं कि निजी अस्पतालों में 40.9%, सरकारी में 11.9% प्रसव सी-सेक्शन के जरिए हुए है।
इस रिसर्च में कहा गया है कि सीजेरियन डिलीवरी (C-section or Cesarean Birth) से संबंधित परिवार पर आर्थिक दबाव पड़ता है। इससे नवजात को स्तनपान कराने में देरी होती है। उसका वजन कम हुआ, सांस लेने में तकलीफ भी हुई। नवजातों को अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस अध्ययन में ये भी पाया गया कि निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन से बच्चे को जन्म देने की संभावना सरकारी अस्पतालों की तुलना में 13.5 से 14 फीसदी अधिक होती है।

सिजेरियन (Cesarean) में औसत खर्च दोगुना से ज्यादा

आईआईएम-ए के अध्ययन में कहा गया है कि सी-सेक्शन के जरिए प्रसव कराने के पीछे मुख्य वजह ‘वित्तीय लाभ व कमाना’ रहा। एनएफएचएस का हवाला देते हुए अध्ययन में कहा गया है कि किसी निजी अस्पताल में सामान्य प्रसव पर औसत खर्च 10,814 रुपए होता है, जबकि सी-सेक्शन से 23,978 रुपए होता है। खर्च के ये आकड़े आज के डेट में 50000 तक पहुंच जा रहे हैं। यानी सिजेरियन में औसत खर्च दोगुना से ज्यादा हो जा रहा है।

सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करने से होगा बदलाव

सी-सेक्शन से प्रसव की संख्या कम करने के लिए सरकार को सरकारी अस्पतालों में Private Hospital जैसी आधुनिक सुविधाएं जैसे- उपकरण, कर्मचारी आदि देना होगा। अस्पताल के समय, सेवा प्रदाताओं की गैरमौजूदगी और बर्ताव के लिहाज से भी सरकारी की सुविधाओं को मजबूत करना होगा। ऐसा भी नहीं है कि सभी निजी अस्पताल सिजेरियन खुद से करते है। कई बार डॉक्टरों की मज़बूरी हो जाती है। आमतौर पर कॉम्प्लिीकेशंस होने पर सी-सेक्शन डिलीवरी का सहारा ज्यादा लिया जा रहा है।

इन परिस्थितियों में मजबूरन करना पड़ता है सिजेरियन डिलीवरी

कई बार डॉक्टर को अचानक से भी सिजेरियन डिलीवरी (Child Birth) कराने का फैसला लेना पड़ता है। ऐसे में इन स्थितियों में ऑपरेशन की जरूरत पड़ सकती है। पहली डिलीवरी सी-सेक्शन से होने पर ज्यादातर मामलों में दूसरा बच्चा भी ऑपरेशन से होता है। बच्चे की पोजीशन ठीक न हो, गर्भ में सिर ऊपर और पैर नीचे होने पर डॉक्टर सर्जरी का फैसला ले सकते हैं। बच्चे की पोजीशन टेढ़ी हो या फिर बच्चा बार बार अपनी स्थिति बदल रहा हो, प्लेसेंटा नीचे हो या प्लेसेंटा प्रीविया हो, इसके अलावा हार्ट की समस्या या डायबिटीज होने पर भी बच्चा सिजेरियन हो सकता है। अगर पहले गर्भपात हो चुका हो या जुड़वां बच्चे हों तो भी सी-सेक्शन डिलीवरी के चांसेस बढ़ जाते हैं। गंभीर रूप से प्री-एक्लेमप्सिया होने पर भी प्रसव शीघ्र करना होता है, ऐसे में विशेषज्ञ कई बार सर्जरी का फैसला ले सकते हैं।