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आर्मी डे – हिंद की सेना

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भारतीय सेना, वीरों की सेना। हम हैं, हर चुनौती के लिए हमेशा तैयार। हम रहेंगे, हमेशा विजयी। विजय ही हमारा ध्येय, विजय ही हमारी परंपरा। ‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो। असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्यदाह-सी, सपूत मातृभूमि के– रुको न शूर साहसी।।’ ये कुछ पंक्तियां है जो हमारे देश के शूरवीरों के लिए ही बनी है, पूरा देश बड़े ही गर्व से आर्मी दिवस मना रहा है। हर साल की तरह इस साल भी 15 जनवरी को आर्मी डे मनाया जा रहा है। और इस ख़ास मौके पर हम हमारी आर्मी को सलाम कर रहे है, भारतीय आर्मी हमारी शान है, हमारी रक्षक है, आर्मी है तो हम हमारे देश में महफूज है, चैन की नींद सो पा रहे है, हमारे जबांज जवान सरहदों पर रक्षा में जुटे है इसलिए हम अपने घरों में सुरक्षित है।
जब हमारे जबांज जवान सरहदों पर सीना ताने मां भारती की रक्षा में डटे रहते है तो उनकी फौलादी सीना तो हम सब देखते है लेकिन इस फौलादी सीने के पीछे धड़कता है दिल जो हमेशा देश, देशवासियों पर मर मिटने के लिए तैयार रहता है, देश के साथ साथ हमारी सेना समाज के लिए भी तत्पर खड़ी रहती है, देश की रक्षा के साथ साथ सामाजिक कामों में भी भारतीय सेना का कोई मोल नहीं। जिसके कई उदहारण हमने देखें, चाहे केरल हो या उत्तराखंड, देश के साथ साथ भारतीय सेना के जवान विदेशों में भी जाकर मानवता को ज़िंदा रखा। तो आइये जानते है

कब कब हमारी सेना बनी देवदूत

केदारनाथ में त्रासदी का ऐसा मंजर हुआ जिसके दर्द का दंश आज भी लोग झेल रहे है, वो साल 2013 का था, जब 13 जून से लेकर 17 जून के बीच उत्तराखंड में तबाही की बारिश हो रही थी, ग्लेशियर्स के पिघलने और लगातार बारिश होने से पानी का जलस्तर बढ़ रहा था, देखते देखते मंदाकिनी नदी उफान पर आ गयी, बादल फटने का सिलसिला भी शुरू हो गया, तेज बारिश का पानी अपने पूरे फ़ोर्स के साथ केदारनाथ मंदिर को अपनी चपेट में ले लिए, देखते ही देखते सबकुछ बह गया, लाशों का अम्बार लग गया, लाखों लोग बेघर हो गए, करोड़ों का नुकसान हुआ। उत्तराखंड में जो तबाही आई, उसने पूरे राज्य की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी, ऐसी आफत आई कि पूरा केदारनाथ बर्बाद हो गया, जो भूमि कल तक आस्था के लिए मशहूर थी वो मरघट बनकर बर्बाद हो गई। तबाही, तबाही और बस तबाही, देवभूमि केदारनाथ में कुदरत का ऐसा कहर बरपा कि पूरा का पूरा शहर श्मशान बन गया, इस बीच त्रासदी में 5 हज़ार लोगों की जान चली गयी। राहत बचाव की शुरवात युद्ध स्तर पर हुई और इस राहत बचाव अभियान को  भारतीय सेना का सबसे बड़ा अभियान माना जा रहा है। सेना के 10 हज़ार जवान, एयरफोर्स के 30 और सेना के 12 हेलीकॉप्टर बचाव कार्यों में लगे रहे।
अगस्त 2018 में केरल में बहुत भयानक बाढ़ आया, इस दौरान जब राज्य सरकार राहत बचाव करने में असमर्थ दिखाई दी तो आसमान से भारतीय सेना के जवान देवदूत बनकर जमीन पर उतरे, पानी में घुसे और मानों केरलवासियों के लिए भगवान आ गए हो, केरल का सैलाब जानलेवा हो गया, केरल में बारिश और बाढ़ से मची तबाही में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। बाढ़ के हालात कुछ ऐसे बने कि जिन सड़कों पर गाड़ियां दौड़ती थीं वहां आज नाव चली, शहर की दुकानें, बाजार, मॉल सब सैलाब में लापता हो गया, इस बीच सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला और ना सिर्फ राहत बचाव किया बल्कि स्थानीय लोगों को मौत के काल से बचाकर सुरक्षित स्थान पर भी पहुँचाया।
अगस्त 2019 के की बात करें तो आधे हिंदुस्तान पर बारिश और बाढ का कहर रहा। लाखों लोग बाढ़ में जहां-तहां फंसे रहे। इस वक्त सबसे मुश्किल में महाराष्ट्र रहा, महाराष्ट्र के कोल्हापुर और सांगली में विनाशकारी बाढ़ से लाखों लोगों की जान मुश्किल में पड़ गई। बारिश और बाढ़ से कोल्हापुर तो क़रीब क़रीब एक टापू बन गया और इसका संपर्क दूसरे शहरों से कट गया यहाँ भी मुश्किल की घड़ी में सेना के जवान देवदूत बनकर पहुंचे । सेना के जवानों ने लाखों लोगों का रेस्क्यू किया। महाराष्ट्र के पांच पश्चिमी जिलों में दो लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।

सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी जाकर भारतीय सेना ने दिया मानवता की मिसाल

अप्रैल 2015 की बता है जब नेपाल में जलजला आया, भूकंप से पूरा नेपाल कांप उठा, पड़ोसी देश नेपाल में दो दिनों तक लगातार भूकंप आया, भारत ने यहां भी मदद पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भूकंप आने के मात्र छह घंटे बाद ही नेपाल पहुंचकर भारतीय सेना ने राहत कार्य की मुहिम शुरू कर दी। सेना के सी-130 जे और सी-17 ग्लोबमास्टर-3 जैसे बड़े विमान ना सिर्फ बड़ी मात्रा में राहत सामग्री और बचाव व राहत दल के लोगों को पहुंचाया बल्कि वहां फंसे भारतीयों को वापस लाने में भी जुटे। इसी तरह नेपाल में मुस्तैद भारतीय दल घायलों को निकालने, अस्पताल पहुंचाने और प्रभावित लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने से लेकर इस आपदा से हुए नुकसान का हवाई सर्वे करने तक में नेपाल की लगातार मदद की। भारतीय सेना ने इस अभियान को ‘आपरेशन मैत्री’ नाम दे कर इसमें अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी।

भारतीय सेना और सीएसआर

सीएसआर की अनिवार्यता साल 2013 में हुई और साल 2014 में एक समारोह में वेस्टर्न कमांड के तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल के जे सिंह ने कॉर्पोरेट्स से निवेदन किया था कि देश के कॉर्पोरेट्स सीएसआर फंड का इस्तेमाल सेना पर करें,  लेफ्टिनेंट जनरल के जे सिंह ने अपने एक भाषण में कहा था कि सीएसआर का फंड शहीद के परिवार वालों पर करना चाहिए साथ ही ये भी अपील की थी कि सेना के जवान रिटायर होने के बाद कॉर्पोरेट्स अपने यहाँ जवानों को नौकरी देनी चाहिए। भारतीय सेना के लिए कुछ कॉर्पोरेट्स सामने आये है और सीएसआर का काम कर रहे है। इंफोसेस की बात करें तो  2018-19 में शहीद परिवारों के लिए 10.10 करोड़ रुपये खर्च किया, इतना ही नहीं आईसीआईसीआई बैंक ने 5 करोड़ रुपये आर्म्ड फोर्सेस वेटेरन वेलफेयर में दिए है।

इस वजह से हर साल मनाई जाती है सेना दिवस

भारतीय थल सेना पिछले 70 सालों से 15 जनवरी के दिन आर्मी डे मनाती है, दरअसल इसके पीछे दो बातें हैं, पहली बात ये है कि 15 जनवरी 1949 के दिन से भारतीय सेना पूरी तरह ब्रिटिश थल सेना से पूरी तरह मुक्त हुई थी, दूसरी बात इसी दिन जनरल केएम करियप्पा को भारतीय सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया था, इस तरह लेफ्टिनेंट करियप्पा लोकतांत्रिक भारत के पहले सेना प्रमुख बने थे, इसके पहले भारतीय सेना के प्रमुख ब्रिटिश मूल के फ्रांसिस बूचर थे, तब भारतीय सेना में करीब दो लाख सैनिक ही थे, अब 13 लाख भारतीय सैनिक थल सेना में अलग-अलग पदों पर हैं।

भारतीय सेना की ताकत जो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर देती है।

– भारतीय सेना को दुनिया की चौथी सबसे मजबूत सेना में गिना जाता है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत सबसे बेहतर सेना है। जबकि भारत का पड़ोसी पाकिस्तान इस लिस्टी में 13 वें स्थान पर है।
– भारतीय सेना का गठन 1776 में कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के अधीन हुआ था। फिलहाल देश भर में भारतीय सेना की 53 छावनियां और 9 आर्मी बेस हैं।
– समुद्र तल से 5000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर दुनिया की सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है।
– भारतीय सेना अब तक पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ चार और चीन के साथ एक युद्ध लड़ चुकी है।
– भारतीय सेना ने 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्‍तान को धूल चटा दी।
– भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद ही बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
– भारतीय सेना ने 1999 में कारगिल में घुसपैठ पर भी पाकिस्‍तान को करारा जवाब दिया था।
– भारतीय सेना के पास एक घुड़सवार रेजिमेंट भी है। दुनिया में इस तरह की अब बस तीन रेजिमेंट्स रह गई हैं, जिनमें से एक भारतीय सेना के पास है।