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चुनाव प्रचार में नदारद रहा वो मुद्दा जो मुंबई के लिए जरूरी है

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responsible voting
 
आज पूरा महाराष्ट्र अपने सरकार के लिए वोट कर रहा है। अच्छी सरकार आये इसलिए जनता सुबह से ही अपने कर्तव्य निर्वहन के पथ पर डटा हुआ है। हर एक मुंबईकर इसी उम्मीद के साथ वोट कर रहा है कि आने वाली सरकार जनता की भलाई के लिए काम करेगी। अपनी सिटीजन सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Citizen Social Responsibility) निभाते हुए जनता अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। लेकिन नेताओं और पार्टियों ने क्या अपनी Citizen Social Responsibility निभाई क्या? ये सबसे बड़ा सवाल है। महाराष्ट्र में देश के हर कोने से राजनीतिक दल और नेता मुंबई में प्रचार करने आये।

मुंबई के चुनाव में इन मुद्दों पर नेताओं ने कुछ नहीं बोला

पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर सरपंच तक सब ने कई मुद्दों पर बात किया लेकिन चुनाव प्रचार में वो मुद्दे नदारद रहे जो वाकई में मुंबई के लिए बेहद जरुरी है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान बटेंगे तो कटेंगे, संविधान खतरे में है और एक है तो सेफ है जैसे नारे तो खूब लगे लेकिन जनता से जुड़े अहम मुद्दों पर सभी उम्मीदवारों ने चुप्पी साध ली। किसी रैली या चुनावी सभा में आम जनता से सरोकार मुद्दों को जगह ही नहीं मिल पाई। ऐसे में आइये जानते हैं इन मुद्दों को जिनपर नेताओं ने कुछ नहीं बोला।

मुंबई में है बेस्ट बसों की कमी

मुंबई की बेस्ट की बसें दूसरी लाइफ लाइन कही जाती है। हर दिन मुंबई में अकेले मुंबई की बेस्ट बसों में 30 लाख से ज्यादा यात्री यात्रा करते है लेकिन उनकी यात्रा को सुगम नहीं बनाया जा रहा है। बेस्ट बसों की घटती संख्या पर कोई नेता बात नहीं किया। बेस्ट बसों की हालत इन दिनों काफी खराब है। पुरानी बसों की घटती संख्या और नई बसों की खरीददारी में देरी से यात्रियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यात्रियों को बहुत देर तक बसों का इंतज़ार करना पड़ता है। Mumbai Election

मुंबई के ज्यादातर सरकारी अस्पताल खुद है बीमार, ये नहीं है चुनाव का मुद्दा

मुंबई में कई सरकारी अस्पताल है लेकिन ये सरकारी अस्पताल मरीजों का इलाज करने के बजाय खुद ही बीमार है। दवाईयों की कमी, संसाधनों की कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से इन अस्पतालों ने भीड़ बहुत ज्यादा होती है। अगर एक मरीज इन सरकारी अस्पतालों में चला जाए तो सुबह का शाम हो जाता है वो घर नहीं पहुंचता। कई अस्पताल सालों से बना रहे है लेकिन अभी पूरे नहीं हुए। सरकारी अस्पतालों की बदहाली पर इन चुनाव में कोई खास चर्चा नहीं हुई।

फुटपाथ पर अतिक्रमण, लोगों को होती है परेशानी

मुंबई की जनसंख्या लगभग 2 करोड़ है, भारी भीड़भाड़ और दौड़ती भागती जिंदगी में यहां चलना मुश्किल होता है क्योंकि यहां फुटपाथ पर अतिक्रमण होता है। अवैध फेरी वालों और अवैध निर्माण के चलते फुटपाथ पर अतिक्रमण हो चुका है। इन समस्याओं के उपाय के लिए कोई बड़ा रोड मैप किसी पार्टी ने पेश नहीं किया। फुटपाथ पर अतिक्रमण और फेरीवालों को लेकर मुंबई में कई बार राजनीति हुई है लेकिन जब बात इलेक्शन की आयी तो धर्म और जाति के मुद्दे यहां हावी रहे।

ओपन स्पेस की मुंबई में है बड़ी समस्या, खेलने के लिए मैदान नहीं

मुंबई में ओपन स्पेस की एक बड़ी समस्या है। यहां बच्चों के खेलने के लिए मैदान नहीं बचे है। तमाम प्लांट पर अतिक्रमण के चलते ओपन स्पेस को डेवलप नहीं किया जा सकता है। डेवलपमेंट प्लान में आरक्षण होने के बावजूद कई प्लांट विकसित नहीं हो पा सके। जो ओपन स्पेस विकसित भी किए गए उन पर भी सुविधाओं का अभाव है।

स्लम फ्री मुंबई का सपना अधूरा, ये भी चुनाव से नदारद

मुंबई को स्लम फ्री बनाने का सपना यहां की सरकार पिछले 27 सालों से देख रही है। जिसके लिए एसआरए अथॉरिटी बना। स्लम फ्री मुंबई को लेकर वादे बहुत किया जाता है। लेकिन यह केवल नारा ही बना हुआ है। आलम ये है कि मुंबई में स्लम घटने की बजाय बढ़ गए हैं। झोपडपट्टी मुक्त मुंबई के लिए भी कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई है।

ट्रैफिक की समस्या है भारी, मनमाना किराया वसूलते है चालक

ऑटो टैक्सी स्टैंड की कमी से मनमाना किराया वसूलते है चालक। तमाम रेलवे स्टेशनों के बाहर से ऑटो टैक्सी पाना हर यात्री के लिए मुश्किल होता जा रहा है। कई जगह पर तो ऑटो वाले मनमाना किराया लेते हैं। इन स्टैंड्स की कभी भी चुनाव में कोई जगह नहीं बना सकी। ट्रैफिक का भी हाल बेहाल होता जा रहा है। बढ़ती गाड़ियों की संख्या के चलते मुंबई में ट्रैफिक का हाल बुरा होता जा रहा है। गाड़ियों की संख्या पर नियंत्रण पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने का भी मुद्दा भी चुनाव में जगह नहीं पाया।