किसानों का कर्ज माफ़ करो और सत्ता की कुर्सी पर बैठो, इसी तरह की राजनीती देश में बरसों से हो रही है, इस कदम से ना देश का भला हुआ और ना ही लाभार्थी किसान का, चुनाव अभियान की शुरूआत करने के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा था कि जिस प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी, 10 दिन के अंदर किसानों का कर्जमाफ कर दिया जाएगा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। मुख्यमंत्री का कार्यभार ग्रहण करने के बाद सबसे पहले कमलनाथ ने किसानों की कर्जमाफी वाली फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। लेकिन इससे क्या हासिल होगा, ये कोई पहली बार नहीं है जब सरकार ने किसानों के कर्ज माफ़ किये हो, कर्ज माफ़ी के बाद किसान कर्जमुक्त हो जाता है, सरकार कर्ज में डूबती जाती है लेकिन नेता वाहवाही जरूर लूट लेता है, वही हर बार होता है और होता रहेगा, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किसानों की कर्जमाफी ही एकमात्र विकल्प है।
किसानों के उत्थान के लिए सरकारें दूसरा विकल्प क्यों नहीं सोचती। मध्य प्रदेश में कर्ज माफ़ी का ऐलान सरकार बनने के 10 दिन के अंदर होने का वादा राहुल गांधी ने किया था लेकिन कमलनाथ ने इसे कुछ ही घंटों में कर दिखाया लेकिन पेंच भी कई है, ऐलान तो हो गया लेकिन कर्जमाफी कब होगी, कैसे होगी, कितनी होगी इसका जवाब शायद मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास भी नहीं होगा। मध्य प्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में किसानों को कर्जमाफी की सौगात मिली है लेकिन राजस्थान की जनता को अभी भी खुशखबरी का इंतजार है। राजस्थान में कांग्रेस ने जिस किसान कर्जमाफी के वादे के साथ सत्ता हासिल की है उसे पूरा करने के लिए अब महज 8 दिन शेष बचे हैं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के शपथ ग्रहण करने के साथ ही कांग्रेस सरकार का कार्यकाल शुरू हो चुका है और अब किसानों को मध्य प्रदेश की तरह कर्जमाफी की घोषणा का इंतजार है।
सत्ता हासिल करने लिए कर्ज माफी राजनीतिक दलों के लिए एक औजार बन गई है। ये जानते हुए कि पहले ऐसा कदम उठाने वाली सरकारों को इसे लागू करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। पिछले दिनों आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी साफ किया कि राजनीतिक पार्टियों को इस तरह के वादे करने से बाज आना होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव देखा जा सकता है। कर्ज माफी जैसे लोक-लुभावन औजार के जरिये राजनीतिक दल आसानी से सत्ता पाने में कामयाब तो हो जाते हैं, लेकिन इसका खामियाजा पूरे सिस्टम को भुगतना पड़ता है। कर्ज माफ़ी से किसानों का संकट दूर नहीं बल्कि इससे मुश्किलें और बढ़ी ही हैं। कर्ज माफी से राज्य को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। हर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की यह जैसे आदत सी बनती जा रही है और अर्थव्यवस्था का बोझ पड़ता है आम जनता पर। किसानों और खेती के मूल कारणों का समाधान नहीं हो पाता साथ ही किसान खेती से पर्याप्त कमाई नहीं कर पा रहे हैं।
हरबार किसानों को खुश करने के लिए, किसानों का वोट बैंक पाने के लिए कर्ज माफ़ी तो कर देते है लेकिन इससे किसान स्वावलंबी नहीं बन पाता, जबतक देश की सरकारें किसान को अपने पैरों पर नहीं खड़ा करती तब तक किसान यूँ ही झेलता रहेगा, कर्जमाफी के बदले सरकारें क्यों नहीं एग्रीकल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे रही है, क्यों किसानों की आमदनी में इजाफा हो ऐसी नीतियां बना रही है, क्यों नहीं किसानों को बिजली, पानी, बीज और खाद मिलता, आखिरकार किसानों को क्यों नहीं मिलता उनके उत्पादों का सही मूल्य, क्यों नहीं सरकारें अत्याधुनिक तकनीक किसानों को सिखाती, जब तक सरकारें किसानों की ये बेसिक जरूरतें पूरा नहीं करती किसान कर्ज माफ़ी की मांग करता रहेगा, अगर कुछ नहीं चलेगा तो मौत की राह पर किसान चल देगा।