हमारे देश की महिलाएं बोल रही है, मेरी बहने, मेरी माताएं, मेरी बेटी, मेरी दोस्त बोल रही है, आवाज़ उठा रही है, लड़ रही है, सामना कर रही है। लड़ाई उस मानसिकता से है, आवाज़ समाज की बुराईयों से, सामना उस परिस्थितियों से है जो ये समझ बैठा है कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है, जो समझ बैठा है कि हमारी औरतें मर्दों की महज जागीर है, जो समझ बैठा है कि हमारे देश की औरते महज सेक्स के लिए है, इस मानसिकता और ऐसे इंसानों से हमारे देश की महिलाएं लड़ रही है और जीत रही है। हथियार मिला है हैशटैग मीटू, सोशल मीडिया इंटरनेट के ज़माने में आज महिलाएं अपने ऊपर हुए अत्याचार की ना सिर्फ शिकायत कर रही है बल्कि बड़ा जिगर लेकर सामने आकर सोशल प्लैटफॉर्म पर जिक्र भी कर रही है। एक जमाना था, महिलाएं घूँघट के दायरे में थी, पराये मर्द तो दूर अपने पति का नाम लेने को पाप मानती थी लेकिन जो पाप मर्द सदियों से किया करते थे उसे अब जगजाहिर कर रही है।
तनुश्री दत्ता सिर्फ एक प्रतीक या नाम हैं । असल में भारत की महिलाओं का एक वड़ा वर्ग गुस्से में है, यह वो वर्ग है, जिसने घर के बाहर कदम रखा, पुरुषों के क्षेत्र में अपने पांव जमाने की कोशिश की, उनके साथ प्रतिस्पर्धा किया, उन्हें हराया, उन्हें चित किया, कई बार उनके इरादों पर पानी फेरा, पुरुषों से लोहा-लेती यह महिलाएं भी परेशान हुईं, प्रताड़ित हुईं, रोई-धोईं, अपने आप पर शक किया, अपनी क्षमता को संदेह की नजर से देखा, नौकरी छोड़ी, घर में बंद हो गईं, काम से हाथ धो बैठीं, सालों-साल अवसाद में रहीं, यह महिलाएं अब बोल रहीं हैं, कई बड़े किले एक साथ ध्वस्त हो रहे हैं, एक तरफ जहां फिल्मी दुनिया से तनुश्री दत्ता है, कंगना रानौत है तो वही कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ महिलाएं अपनी आवाज़ को बुलंद कर रही है। मी टू कैंपेन से जहां एक साथ कई किले ढह रहे हैं, जहां एक तूफान आ खड़ा हुआ है, वही मी टू कहने को तो यह सिर्फ दो लफ्ज हैं लेकिन लाखों लोगों ने इन्हीं दो लफ्जों के जरिए अपने साथ हुए यौन शोषण की आपबीती बेबाकी के साथ सुना दी। चाहे वो तनुश्री हो या कंगना, या फिर पत्रकार।
मी टू कैंपेंन आज से ठीक एक साल पहले अमेरिका में शुरू हुआ था, जब हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे व्हाईंस्टीन के खिलाफ अभिनेत्री रोज मैक्गोवन ने सेक्सुअल असॉल्ट का आरोप लगाया था, जिसके बाद मैक्गोवन के आह्वान पर दुनियाभर की औरतें एकजुट हुईं और #metoo कैंपेन की शुरुआत हुई। इसके ठीक एक साल बाद भारत में इस समय एक बार फिर से इस आंदोलन की गूंज तेज हो गई है, शुरुआत, पूर्व मिस इंडिया और अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के 10 सालों बाद भारत लौटने के बाद फिर से एक्टर नाना पाटेकर खिलाफ आवाज उठाने से हुई। तनुश्री ने नाना पाटेकर पर उनके साथ 10 साल पहले एक फिल्म की शूटिंग के दौरान गलत तरीके से छूने का आरोप लगाया था, लेकिन उनकी आवाज को दबा दिया गया था, इस बार तनुश्री के समर्थन में फिल्म जगत से कई लोग सामने आए हैं। तो वही के फिल्मी सितारें तनुश्री का विरोध भी किया।
अब विरोध हो या समर्थन लेकिन इस अभियान के ज़रिए ये बात साफ़ हो गयी है कि हमारे समाज में महिलाओं के साथ होने वाली यौन-हिंसा एक गंभीर समस्या है, जिससे हर दूसरी महिला जूझ रही है। बहरहाल इस आंदोलन के ज़रिए ही सही महिलाओं का इस तरह अपनी आपबीती बेबाकी के साथ सोशल मीडिया पर साझा करना समाज के लिए अच्छा संदेश है, लेकिन इसकी अच्छाई कायम तभी रह सकती है जब महिलाओं की इन आपबीती को गंभीरता के साथ लिया जाये, वरना ये सच्ची कहानियाँ भी सिर्फ अफ़साने तक सिमटकर रह जाएगी।