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December 3, 2025

अंटार्कटिका जाने के लिए चाहिए सबसे कठोर मेडिकल क्लियरेंस, निकलवाने पड़ते हैं अपेंडिक्स और अक्ल दांत !

The CSR Journal Magazine
अंटार्कटिका दुनिया का सबसे कठोर और अलग-थलग महाद्वीप है, जहां तापमान –80°C तक पहुंच जाता है और सर्दियों में महीनों तक विमान उतर नहीं सकते। इसी कारण यहां काम करने वाले वैज्ञानिकों और कर्मचारियों के लिए बेहद सख्त मेडिकल क्लियरेंस अनिवार्य है। अपेंडिक्स और समस्या देने वाले दांत पहले से निकलवा लिए जाते हैं, ताकि कोई अचानक मेडिकल इमरजेंसी न पैदा हो, क्योंकि तत्काल सहायता मिलना लगभग असंभव है। शारीरिक जांच के साथ मानसिक मूल्यांकन भी जरूरी है, क्योंकि लंबे अंधेरे, अकेलेपन और अत्यधिक ठंड से मानसिक दबाव बढ़ता है।

मिशन अंटार्कटिका- बर्फ का महाद्वीप 

दुनिया के मानचित्र पर अंटार्कटिका एक विशाल सफ़ेद क्षेत्र की तरह दिखाई देता है, बर्फ़ से ढका, रातों में महीनों तक अंधेरा रहने वाला और तापमान इतना कम कि कुछ ही मिनटों में इंसानी त्वचा गलने लगे। यह महाद्वीप पृथ्वी के सबसे ठंडे, सबसे शुष्क और सबसे तेज़ हवा वाले प्रदेशों में गिना जाता है। यहां जीवन केवल चुनौती नहीं, बल्कि एक निरंतर संघर्ष है। इसलिए, यहां काम करने वाले वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और सहयोगी कर्मचारियों को दुनिया का सबसे कठोर मेडिकल परीक्षण पास करना पड़ता है। इतना ही नहीं, कई बार अपेंडिक्स और समस्या देने वाले दांत भी पहले से ही निकलवा देने की सलाह दी जाती है।

अंटार्कटिका- जहां सबसे कठिन रूप में सामने आती है प्रकृति

अंटार्कटिका महाद्वीप पूरी तरह बर्फ़ से ढका हुआ है। यहां का तापमान सर्दियों में –60°C से –80°C तक पहुंच जाता है, जबकि रिकॉर्ड –89.2°C तक दर्ज हो चुका है, जो पृथ्वी का सबसे कम तापमान है। हवा की रफ्तार कई जगहों पर 200 किमी/घंटा तक पहुंच जाती है, जिससे बाहर निकलना अपने आप में खतरा बन जाता है। यहां का मौसम इतना अनिश्चित है कि एक घंटे पहले साफ़ दिखने वाला आसमान अचानक बर्फ़ीले तूफ़ान में बदल जाता है। ऐसे में दृश्यता कुछ ही मीटर रह जाती है, और कुछ कदम चलना भी जान जोखिम में डाल देता है। कई रिसर्च स्टेशनों में सर्दियों के महीनों में कई-कई सप्ताह तक सूरज नहीं निकलता। लगातार अंधेरा, अत्यधिक ठंड और तेज़ हवाएं मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाती हैं जहां हर पल सतर्कता अनिवार्य है।

दुनिया के अधिकांश हिस्सों में आपातकालीन स्थिति में अस्पताल या मेडिकल टीम तक पहुंचने में मिनटों का समय लगता है, पर अंटार्कटिका में स्थिति बिल्कुल उलट है। यहां किसी भी वक्त सहायता प्राप्त करना लगभग असंभव हो सकता है और यही वजह है कि यहां काम करने वालों को पहले से ही मेडिकल दृष्टि से 100 प्रतिशत फिट होना पड़ता है।

मदद हजारों किलोमीटर दूर- इमरजेंसी में जीवन बचाना लगभग नामुमकिन

अंटार्कटिका का सबसे बड़ा जोखिम इसका पूर्ण एकांत है। महाद्वीप की दूर-दराज़ स्थिति, कठिन भूगोल और मौसम ने मिलकर इसे पृथ्वी का सबसे अलग-थलग क्षेत्र बना दिया है। यहां से किसी भी व्यक्ति को तत्काल मेडिकल सहायता दिलाना आसान नहीं। सर्दियों में लगभग 6 महीने तक तापमान और हवा के कारण विमानों का उतरना या उड़ान भरना बंद हो जाता है। रनवे जम जाते हैं, उपकरण ठंड में काम नहीं करते और मौसम का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में अगर कोई कर्मचारी अचानक गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाए, तो उसके पास बचाव का कोई भी तेज़ विकल्प नहीं होता।

अति सीमित साधन-सुविधा

अंटार्कटिका के अधिकतर शोध केंद्रों में सीमित मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। छोटे अस्पताल होते हैं, लेकिन उन पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहा जा सकता, क्योंकि वहां न तो पर्याप्त विशेषज्ञ होते हैं और न ही जटिल सर्जरी के लिए जरूरी उपकरण। इसलिए वैज्ञानिक समुदाय ने समय के साथ यह सिद्धांत विकसित किया है कि, “जो मेडिकल खतरा पहले से टाला जा सकता है, उसे अंटार्कटिका पहुंचने से पहले ही समाप्त कर देना चाहिए।” इसी वजह से कई देशों की अंटार्कटिक कार्यक्रम टीमों ने अपेंडिक्स और दांतों की गंभीर समस्याओं को पहले से ही दूर करने को अनिवार्य या अत्यधिक अनुशंसित कर दिया है।

अपेंडिक्स निकालना क्यों ज़रूरी माना जाता है?

अपेंडिसाइटिस एक ऐसी स्थिति है जो अचानक होती है और कुछ ही घंटों में गंभीर रूप ले सकती है। समय रहते सर्जरी न हो तो यह जानलेवा भी साबित हो सकती है। दुनिया में जहां कहीं भी आप हों, अस्पताल पहुंचकर इसे आसानी से उपचारित किया जा सकता है, लेकिन अंटार्कटिका में यह स्थिति पूरी तरह अलग है। सवाल है- अगर सर्दी के बीच कोई कर्मचारी अपेंडिक्स के दर्द से कराहने लगे, तो क्या होगा? जवाब है- सहायता पहुंचने में दिन नहीं, महीनों लग सकते हैं।

इमरजेंसी में ख़ुद ही बने डॉक्टर, या फिर गई जान

ऐतिहासिक रूप से कई ऐसे मामले हुए हैं जहां वैज्ञानिकों या कर्मचारियों को बिना एनेस्थीसिया या बिना विशेषज्ञों की टीम के खुद पर सर्जरी करनी पड़ी। कुछ मामलों में साथी वैज्ञानिकों ने रेडियो के ज़रिए निर्देश लेकर ऑपरेशन किया। ऐसे हादसों ने दुनिया भर की अंटार्कटिक एजेंसियों को कठोर मेडिकल नियम बनाने पर मजबूर किया। इसलिए, कई देशों में अंटार्कटिका जाने वाले कर्मचारियों को तैनाती से पहले अपेंडिक्स हटवाना अनिवार्य किया जाता है, ताकि वहां किसी भी आपातकालीन स्थिति से बचा जा सके।

Wisdom Teeth यानी अकल दाढ़- छोटी समस्या भी बन सकती है बड़ा संकट

अकल दाढ़ भी अंटार्कटिका में एक संभावित जोखिम है। अगर ये दांत पूरी तरह बाहर न आए हों, टेढ़े हों, संक्रमण का खतरा हो या भविष्य में समस्या की संभावना दिखे, तो इन्हें पहले ही निकाल दिया जाता है। कारण वही- दर्द या सूजन अगर सर्दियों के दौरान शुरू हो जाए, तो तत्काल इलाज असंभव है। अंटार्कटिका में दांत दर्द जैसी मामूली समस्या भी असहनीय ठंड और सीमित दवाओं के कारण गंभीर हो सकती है। किसी भी प्रकार की सर्जरी करना लगभग असंभव है। इसलिए प्रस्थान से पहले दंत परीक्षण बेहद कठोर होते हैं।

शारीरिक ही नहीं, मानसिक मजबूती भी ज़रूरी- मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य

अंटार्कटिका में रहना सिर्फ शरीर की परीक्षा नहीं लेता, बल्कि मानसिक दृढ़ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। महीनों तक अंधेरा, बाहर न निकल पाने की स्थिति, कम जनसंख्या, एक ही समूह के साथ लगातार रहना, सीमित मनोरंजन और बाहरी दुनिया से दूरी मानसिक तनाव को बढ़ा सकती है। इसलिए मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उम्मीदवार अलगाव, ऊब, दबाव और संकट की परिस्थिति में अपना नियंत्रण बनाए रख सके। यहां अवसाद, चिंता या घुटन का अनुभव करना असामान्य नहीं है। यही वजह है कि मानसिक स्वास्थ्य को उतना ही महत्व दिया जाता है जितना शारीरिक स्वास्थ्य को।

मेडिकल टेस्टिंग- पूरी तरह वैज्ञानिक और कठोर प्रक्रिया

अंटार्कटिका कार्यक्रमों में शामिल होने से पहले उम्मीदवारों को अनेक प्रकार की जांच प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है- सम्पूर्ण शारीरिक परीक्षण, दिल, फेफड़ों, किडनी और लीवर की जांच, ब्लड टेस्ट की विस्तृत श्रृंखला, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, MRI (आवश्यकता अनुसार), दंत परीक्षण, टीकाकरण, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन, लंबे समय तक ठंड में टिकने की क्षमता का आकलन- इन सभी जांचों का उद्देश्य केवल एक है- उस संभावित खतरे को समाप्त करना, जिसे अंटार्कटिका में संभालना नामुमकिन हो।

अंटार्कटिका में दैनिक जीवन: कठिनाइयों से भरी दिनचर्या

यहां काम करने वाले वैज्ञानिक और कर्मचारी एक ऐसी जगह रहते हैं जहां हर सुविधा सीमित होती है। भोजन की आपूर्ति कुछ ही महीनों में की जाती है, पानी बर्फ़ पिघलाकर बनाया जाता है, और ऊर्जा बचाना अनिवार्य है। मौसम का सबसे बड़ा संघर्ष है। कई दिन ऐसे होते हैं जब कर्मचारी बिल्डिंग से बाहर नहीं निकल सकते। भारी बर्फ़बारी के दौरान स्टेशन के अंदर ही छोटे कामों से ही दिन बिताना पड़ता है।हर कदम की योजना बनानी पड़ती है, कपड़े पहनने से लेकर बाहर के काम तक! ठंड से बचाने वाले कपड़े इतने भारी होते हैं कि चलना भी मुश्किल महसूस होता है। रातें बेहद लंबी होती हैं। महीनों तक सूरज न दिखना मानसिक तनाव को और बढ़ा देता है। काम के दौरान एक-एक गलती भी जानलेवा हो सकती है। इसलिए टीमवर्क, अनुशासन और सतर्कता यहां की जरूरत है, न कि विकल्प।

अंटार्कटिका-वैज्ञानिक शोध और मानव धैर्य की परीक्षा का सबसे कठिन मैदान

यह महाद्वीप दुनिया के कई बड़े वैज्ञानिक रहस्यों को समेटे हुए है। ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, पृथ्वी का इतिहास, वातावरण और समुद्री विज्ञान, सब कुछ समझने के लिए यहां की शोध जरूरी है। लेकिन इस शोध के पीछे एक ऐसा संघर्ष छिपा है जो बाहर की दुनिया के लिए अकल्पनीय है। हर एक कर्मचारी को पता है कि यहां उसका शरीर और मन लगातार परीक्षाओं से गुजरेंगे। यही वजह है कि अंटार्कटिका में काम करने की अनुमति सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलती है जो शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह फिट हों।

अंटार्कटिका के लिए तैयारी केवल प्रोफेशन नहीं, बल्कि जीवन रक्षा मिशन है

अंटार्कटिका में रहना और काम करना केवल एक रोमांच नहीं है। यह मानव सहनशक्ति, साहस और वैज्ञानिक प्रतिबद्धता का एक अद्भुत उदाहरण है। यहां जाने वाला हर व्यक्ति जानता है कि मदद हजारों किलोमीटर दूर है। इसलिए, मेडिकल क्लियरेंस सिर्फ कागज़ी औपचारिकता नहीं, बल्कि जीवन बचाने की अनिवार्य तैयारी है। अपेंडिक्स निकालना, अकल दाढ़ हटाना, मानसिक परीक्षण- सब कुछ इसलिए ताकि वहां रहते हुए कोई भी जोखिम अचानक आपदा में न बदल जाए। अंटार्कटिका हमें सिखाता है कि प्रकृति चाहे कितनी ही कठोर क्यों न हो, मनुष्य अपनी तैयारी, विवेक और विज्ञान की सहायता से सबसे कठिन परिस्थितियों में भी सफल हो सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब हर कदम योजना और सतर्कता से उठाया जाए। अंटार्कटिका की यही सच्चाई इसे आकर्षक भी बनाती है और चुनौतीपूर्ण भी, जहां हर दिन जीवित रहना ही एक उपलब्धि है।
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