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सीएसआर – असफल रहा कचरे से बिजली बनाने वाला प्रोजेक्ट

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तकनीक और इनोवेशंस का इस्तेमाल करते हुए सामाजिक उत्थान के लिए कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे ही एक प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश के वाराणसी में है। करीब 5 साल पहले कचरे से बिजली बनाने के लिए तीन छोटे प्लांट स्थापित किए गए थे। कचरे से बिजली पैदा करने के इस प्रोजेक्ट पर इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड कंपनी ने सीएसआर फंड जारी किया था।

सीएसआर फंड का इस्तेमाल कर बना प्लांट, लेकिन बिजली उत्पादन नहीं

जबकि नगर निगम की जमीन पर प्लांट का निर्माण हुआ। इसमें साढ़े चार करोड़ खर्च हुए। कोरोना संक्रमण काल से पहले तक प्लाट संचालन में करीब ढाई करोड़ रुपये खर्च हो गए। लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। इस पूरी कवायद में बिजली तो मिली नहीं लेकिन अंधेरे में ही करीब सात करोड़ रुपये खर्च हो गए। अब इस प्लांट का रूपांतरण कर बायोगैस उत्पादन की तैयारी हो रही है।

इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के सीएसआर फंड से बना है बिजली उत्पादन प्लांट

इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने वाराणसी के भवनिया पोखरी, पहड़िया फल-सब्जी मंडी और आइडीएच कालोनी आदमपुर में कचरे से बिजली बनाने के लिए तीन प्लांट स्थापित किए। तीनों प्लांट निर्माण में साढ़े चार करोड़ खर्च हुए। पूर्व शर्तों के मुताबिक वाराणसी नगर निगम को सिर्फ जमीन उपलब्ध करानी थी, जबकि आगामी तीन सालों तक इंडियन ऑइल कंपनी को प्लांट संचालित करना था, जिसने खुद की निगरानी में संचालन की जिम्मेदारी महाराष्ट्र की संस्था ओआरएसपीएल (आर्गेनिक री-साइकिलिंग सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड) को दी। इसके एवज में दो लाख रुपये प्रति माह भुगतान किया गया।

अब कचरे से बिजली नहीं बल्कि बनेगा बायोगैस

प्रत्येक प्लांट की बिजली उत्पादन क्षमता पाच टन आर्गेनिक कचरे से 750 यूनिट की थी। इसके लिए नगर निगम ने 10 टन कचरा देने का भरोसा दिया, जिसे सेग्रिगेट कर पाच टन आर्गेनिक कचरा निकाल लेना था। वहीं, Indian Oil Corporation ने CSR – Corporate Social Responsibility खर्च करने के बाद निगरानी नहीं की। परिणाम स्वरूप कचरे से बिजली बनाने की योजना असफल हो गई।
उत्पादित बिजली के प्रबंधन के तहत 380 केवी बिजली प्लाट संचालन में उपयोग करना था, जबकि बची बिजली स्ट्रीट लाइट के लिए आपूर्ति करनी थी। सूत्रों की मानें तो निर्माण से लेकर संचालन की जिम्मेदारी Indian Oil की थी। सफल संचालन के बाद नगर निगम को हैंडओवर करना था जिसमें कंपनी असफल रही। इसके असफलता के बाद अब बायोगैस उत्पादन के लिए प्लांट के रूपांतरण का काम इंडियन ऑइल ही कर रही है, जिसका संचालन नगर निगम करेगा।