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आरे को बक्श दो सरकार

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अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलवायु परिवर्तन पर गहरी चिंता व्यक्त कर चुके है, राज्य की देवेंद्र फडणवीस सरकार कई बार पर्यावरण संरक्षण को लेकर ढिंढोरा पीटती नज़र आयी है लेकिन जब बात आरे की आयी है तब ना केंद्र सरकार और ना ही देवेंद्र सरकार आरे को बचाने के पक्ष में है, आरे को बचाने के लिए क्या आम लोग, क्या ख़ास लोग, यहाँ तक कि नेता अभिनेता हर कोई आरे को बचाने के लिए “सेव आरे” मुहीम से जुड़ रहा है लेकिन सरकार है कि उसके कानों तले जूं तक नहीं रेंग रहा है। आरे की खूबसूरती और इकोलॉजिकल बैलेंस को बचाने के लिए हर कोशिश की जा रही है, राजनितिक स्तर पर, सामाजिक स्तर पर बड़ी हस्तियां यहाँ तक जिसकी सरकार केंद्र में और राज्य दोनों में है वो भी चाहते है कि आरे बचा रहे और 2700 पेड़ों की जान बच जाए लेकिन सिर्फ बयानों में ही है।
सेव आरे आंदोलन को आवाज देने के लिए छात्रों ने सर्वाइवल एक्सपर्ट बेयर ग्रिल्स को पत्र लिखा, एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी पेड़ों की कटाई का विरोध किया, लता मंगेशकर ने ट्वीट कर कहा, ‘मेट्रो शेड के लिए 2700 से अधिक पेड़ों की हत्या करना आरे के जीव सृष्टि और सौंदर्य को हानि पहुंचाना, यह बहुत दुख की बात होगी। लता दीदी ने इस फैसले का सख्त विरोध किया, अभिनेत्री श्रद्धा कपूर ने भी आरे जंगल से पेड़ काटे जाने का विरोध किया है। इस मामले में पर्यावरणविद गॉडफ्रे पिमेंता ने भी पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सेव आरे फॉरेस्ट का समर्थन करते हुए मेट्रो कारशेड के लिए अन्य विकल्प तलाशने और आरे कॉलोनी को सरंक्षित करने की अपील की है। यहाँ तक कि एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने भी आपत्ति जताई है। शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने ट्वीट किया और बोला कि ‘आरे सिर्फ 2700 या इससे ज्यादा पेड़ों को काटने का मुद्दा नहीं है। इस इलाके के इकोसिस्टम का मामला है जिससे तेंदुए, अजगर, पक्षी प्रभावित होंगे, उद्धव ने भी बयान दिया लेकिन सिर्फ ये बयानबाजी ही है, धरातल पर कुछ भी नहीं है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्यों सरकार आरे को खत्म करने में जुटी है।
आरे इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि आरे मुंबई का आखिरी बचा हुआ हरित क्षेत्र है। यह गोरेगांव में स्थित है और शहर का ग्रीन लंग कहलाता है। आरे जंगल संजय गांधी नैशनल पार्क का हिस्सा है और समृद्ध जैव विविधता के जरिए मुंबई के पूरे इकोसिस्टम को सपॉर्ट करता हैं। एक इकोसिस्टम को तैयार होने में लगभग हजार साल का वक्त लगता है। उत्तर मुंबई का यह क्षेत्र कभी 3 हजार एकड़ जमीन तक फैला हुआ था लेकिन अब यह केवल 1300 एकड़ तक ही सीमित रह गया है। इसकी बाकी जमीन डेयरी डिवलेपमेंट प्रॉजेक्ट के लिए आरे मिल्क कॉलोनी को दे दी गई थी। खेती की जमीन में बदलने के बाद आरे जंगल कई टुकड़ों में भी बंट गया है। इस जंगल में अलग-अलग प्रकार के पक्षी, जीव-जंतु और तेंदुए भी रहते हैं। इस जंगल में 1027 आदिवासी लोग भी रहते हैं। सरकार के फैसले से उन पर भी असर पड़ना लाजिमी है।
2200 एकड़ जमीन में से 90 एकड़ पर कुलाबा-बांद्रा-सीप्ज मेट्रो-3 के लिए कारशेड बनाया जाएगा। दावा है कि यहां 3600 पेड़ हैं। मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए इसमें से 2700 पेड़ काटे जाएंगे। यह ओशिवरा नदी और मीठी नदी का इलाका भी है। मुंबई को अगर बाढ़ जैसे हालात से बचाना है तो जंगल रहे तो बाढ़ रोकी जा सकती है।2700 पेड़ सालभर में 64 टन कार्बन डाईऑक्साइड का अवशोषण करते हैं। ऐसे में आरे जैसे जंगलों को नष्ट करके हम अपने पेअर पर कुल्हाड़ी मारेंगे, बहरहाल अब मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में है और अब कोर्ट से ही कुछ उम्मीद है। अब हम यही कह सकते है कि आरे को बक्श दो सरकार।