हिमालय की ऊंचाइयों पर मई-जून के महीनों में जब बर्फ पिघलती है, तब पहाड़ों की गोद से एक अनोखी जड़ी निकलती है- यार्सागुंबा ! वैज्ञानिक नाम Ophiocordyceps Sinensis, और लोक नाम हिमालयन वायग्रा या कीड़ा जड़ी ! यह दुनिया की सबसे महंगी प्राकृतिक औषधियों में से एक है, जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति किलो 30 से 80 लाख रुपये तक है।
हिमालयन वायग्रा- क़ीमत 30 से 80 लाख रुपये
हिमालय की ऊंचाइयों में उगने वाली दुर्लभ जड़ी यार्सागुम्बा (Ophiocordyceps Sinensis), जिसे “हिमालयन वायग्रा ” कहा जाता है, इन दिनों वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। यह अनोखी कीड़ा जड़ी वास्तव में एक फंगस और कीड़े का मिश्रण है। ऊंचाई वाले ठंडे इलाकों में यह फंगस कीड़े के लार्वा पर उगता है और फिर धरती से पौधे की तरह बाहर निकलता है। इसमें मौजूद कोर्डिसेपिन और एडेनोसिन जैसे यौगिक इसे शक्तिवर्धक और रोग प्रतिरोधक औषधि बनाते हैं। तिब्बती और चीनी चिकित्सा में इसे “प्राकृतिक वायग्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत प्रति किलो 30 से 80 लाख रुपये तक है, जिससे उत्तराखंड, नेपाल और तिब्बत के ग्रामीण क्षेत्रों में यह एक बड़ी आजीविका बन गई है।
कीड़ा और फंगस का अद्भुत मेल
यह जड़ी किसी पौधे से नहीं, बल्कि एक विचित्र जीव-वैज्ञानिक प्रक्रिया से बनती है। दरअसल, तिब्बती पठार और उत्तराखंड-नेपाल की ऊंचाइयों में एक विशेष फंगस (Cordyceps fungus) मिट्टी के नीचे पाए जाने वाले लार्वा (कीड़े के बच्चे) को संक्रमित कर देता है। धीरे-धीरे कीड़ा मर जाता है और उसके सिर से एक फफूंदी जैसा पौधा-नुमा तना उग आता है। यही संयोजन “यार्सागुम्बा” कहलाता है।
औषधीय गुण और ‘हिमालयन वायग्रा’ की ख्याति
तिब्बती और चीनी परंपरागत चिकित्सा में कीड़ा जड़ी यार्सागुंबा को शक्तिवर्धक, यौन-उत्तेजक (Natural Viagra) और ऊर्जा बढ़ाने वाली औषधि माना गया है। चिकित्सकीय अनुसंधानों के अनुसार, इसमें मौजूद Cordycepin और Adenosine जैसे जैविक यौगिक शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाने, थकान घटाने, फेफड़ों-गुर्दों को मजबूत करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने में मदद करते हैं। हालांकि विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि इसके अत्यधिक सेवन से दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं और सभी लाभों के लिए वैज्ञानिक प्रमाण अभी सीमित हैं।
पहाड़ों में ‘सोना’ ढूंढने की दौड़
उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली, मुनस्यारी और नेपाल के मुगु व डोल्पा जिलों में यार्सागुंबा का सीजन आते ही हजारों ग्रामीण बर्फीली ढलानों पर निकल पड़ते हैं। ग्रामवासी इसे “सोना से कीमती” बताते हैं। एक छोटा टुकड़ा भी 500 से 1000 रुपये में बिकता है, जबकि व्यापारी इसे चीन और थाईलैंड तक भेजते हैं। लेकिन इसी लालच ने अब पर्यावरणीय संकट खड़ा कर दिया है। अत्यधिक संग्रह, आवास-नाश और जलवायु परिवर्तन के कारण इसका उत्पादन घट रहा है।
कानूनी और प्रशासनिक जटिलता
भारत में यह फंगस वन अधिनियम, 1927 और जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत संरक्षित श्रेणी में आता है। उत्तराखंड सरकार ने इसके संग्रह पर कड़े नियम लगाए हैं। केवल पंचायत अनुमति और वन विभाग की निगरानी में सीमित मात्रा में ही संग्रह की अनुमति है। फिर भी, हर साल यार्सागुंबा के अवैध व्यापार के मामले दर्ज होते हैं। 2023 में पिथौरागढ़ में करीब 30 किलो कीड़ा जड़ी बरामद की गई थी, जिसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत 10 करोड़ रुपये आंकी गई थी।
अंतरराष्ट्रीय मांग और काला बाज़ार
चीन, जापान, कोरिया और अमेरिका में कीड़ा जड़ी यार्सागुंबा की भारी मांग है। चीन में इसे “Dong Chong Xia Cao” के नाम से जाना जाता है और इसे पारंपरिक टॉनिक ड्रिंक्स और दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। इसी वजह से नेपाल, भूटान और भारत के सीमाई इलाकों में काला बाज़ार और तस्करी नेटवर्क पनप रहे हैं। कई बार स्थानीय लोग जान जोखिम में डालकर इसे ऊंचाइयों से लाने निकलते हैं। बर्फबारी, ऑक्सीजन की कमी और हादसों के कारण कई मौतें भी दर्ज हो चुकी हैं।
कीड़ा जड़ी यार्सागुंबा के वैज्ञानिक शोध और संरक्षण के प्रयास
देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (FRI) और GB पंत पर्वतीय संस्थान के वैज्ञानिक इस फंगस की कृत्रिम खेती (Artificial Cultivation) पर प्रयोग कर रहे हैं ताकि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम हो सके। शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि Cordyceps Culture को लैब में सफलतापूर्वक उगाया जा सके तो भारत वैश्विक औषधीय बाजार में एक नया अध्याय लिख सकता है।
हिमालय का खज़ाना या खतरा? ‘हिमालयन वायग्रा’ पर बढ़ती दौड़ का दूसरा पहलू
हिमालय सदियों से रहस्य और औषधियों की धरती रहा है। इन्हीं रहस्यों में से एक है यार्सागुंबा, जिसे वैज्ञानिक Ophiocordyceps Sinensis और आम लोग “हिमालयन वायग्रा’ या “कीड़ा जड़ी” के नाम से जानते हैं। यह फंगस और कीड़े का अनोखा मेल है, जो धरती के नीचे जीवन लेकर ऊपर जड़ी के रूप में जन्म लेता है। आज यह जड़ी सोने से भी महंगी बिक रही है। किंतु जिस तेजी से इसका व्यापार बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से यह हिमालयी संतुलन को तोड़ रहा है।
गांवों में कमाई का ज़रिया बनती कीड़ा जड़ी यार्सागुंबा
उत्तराखंड और नेपाल के सीमाई गांवों में कीड़ा जड़ी यार्सागुंबा अब सिर्फ एक जड़ी नहीं, बल्कि गावों कीअर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गई है। लोग गर्मियों की शुरुआत में ऊंचे बर्फीले ढलानों पर निकल पड़ते हैं , घंटों की चढ़ाई, ठंड, ऑक्सीजन की कमी, और कभी-कभी मौत के जोखिम के बावजूद ! क्योंकि एक छोटा-सा टुकड़ा भी 500 से 1000 रुपये में बिक जाता है। यही लालच अब प्रकृति की नींव को हिला रहा है। फंगस की यह प्रजाति अत्यधिक नाजुक पारिस्थितिक चक्र पर निर्भर करती है- मिट्टी, तापमान और कीट लार्वा के सही संतुलन पर। निरंतर दोहन, चराई और जलवायु परिवर्तन ने इस चक्र को तोड़ दिया है। वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि यदि यही रफ़्तार जारी रही तो आने वाले वर्षों में यार्सागुंबा विलुप्त प्रजातियों की सूची में जा सकता है।
बड़े पैमाने पर हो रही हिमालयन वायग्रा की तस्करी
भारत में इसके संग्रह पर वन अधिनियम के तहत नियंत्रण है, परंतु सीमाई क्षेत्रों में तस्करी और अवैध व्यापार रुक नहीं रहे। करोड़ों के लालच में कई बार स्थानीय समुदायों के बीच हिंसक झड़पें भी हो चुकी हैं। यह विडंबना है कि जिस औषधि को जीवनदायी कहा जाता है, उसके पीछे जीव और पर्यावरण का नाश हो रहा है। जरूरत इस बात की है कि सरकारें और वैज्ञानिक संस्थान स्थानीय लोगों को साझेदार बनाकर इस जड़ी की कृत्रिम खेती और सतत संग्रह की दिशा में काम करें। हिमालय का यह खज़ाना तभी बच सकेगा, जब इसका उपयोग जिम्मेदारी और संतुलन के साथ किया जाए।
विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकता है यार्सागुंबा
प्रकृति की हर नेमत का मूल्य केवल रुपये में नहीं, बल्कि उसकी दीर्घकालिक स्थिरता में है। हिमालयन वायग्रा कीड़ा जड़ी यार्सागुंबा हमें यही याद दिलाता है कि लालच से बड़ी कोई बीमारी नहीं, और संरक्षण से बड़ी कोई औषधि नहीं। यार्सागुंबा आज हिमालयी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।लेकिन अगर इसके अंधाधुंध दोहन को नहीं रोका गया तो आने वाले वर्षों में यह फंगस विलुप्त प्रजातियों की सूची में शामिल हो सकता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि “हिमालयन वायग्रा” को केवल औषधि नहीं, बल्कि एक जैविक धरोहर के रूप में देखा जाना चाहिए।
हिमालयन वायग्रा ‘कीड़ा जड़ी’ यार्सागुंबा, हिमालय की गोद में छिपा वह अद्भुत रहस्य, जिसने एक साथ वैज्ञानिकों को चकित, व्यापारियों को समृद्ध और पर्यावरणविदों को चिंतित कर दिया है। यह जड़ी एक तरफ जहां ऊर्जा और औषधि का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह इस बात की चेतावनी भी देती है कि प्रकृति की हर संपदा सीमित और नाज़ुक है।
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