नाइमेसुलाइड हाई डोज पर रोक: जनस्वास्थ्य के लिए केंद्र सरकार का बड़ा कदम, बड़ा फैसला, कई सवाल अब भी बाकी!
नाइमेसुलाइड (Nimesulide) के 100 मिलीग्राम से अधिक की खुराकों पर तत्काल बैन
केंद्र सरकार ने आम लोगों की सेहत को ध्यान में रखते हुए दर्द और बुखार में इस्तेमाल होने वाली दवा नाइमेसुलाइड (Nimesulide) के 100 mg से अधिक की सभी ओरल खुराकों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इस फैसले के बाद अब कोई भी दवा कंपनी इस हाई डोज दवा का निर्माण और बिक्री नहीं कर सकेगी। सरकार का कहना है कि यह निर्णय दवा की अधिक मात्रा से होने वाले संभावित खतरों, खासकर लिवर डैमेज की आशंका को देखते हुए लिया गया है। केंद्र सरकार ने आम जनता की सेहत की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए दर्द और बुखार में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली दवा नाइमेसुलाइड (Nimesulide) के 100 मिलीग्राम से अधिक की सभी खाने वाली (ओरल) खुराकों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
संभावित नुकसान के चलते तत्काल कार्रवाई
इस फैसले के बाद अब कोई भी दवा कंपनी न तो नाइमेसुलाइड की हाई डोज टैबलेट/सिरप का निर्माण कर सकेगी और न ही उसे बाजार में बेच पाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार, यह कदम नाइमेसुलाइड की अधिक मात्रा से लिवर (यकृत) को होने वाले संभावित नुकसान, खासकर बच्चों और बुजुर्गों में गंभीर साइड इफेक्ट्स की आशंका को देखते हुए उठाया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय से इस दवा की हाई डोज को लेकर मेडिकल जगत में चिंता जताई जा रही थी।
क्यों खतरनाक मानी जा रही है हाई डोज नाइमेसुलाइड?
नाइमेसुलाइड एक नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (NSAID) है, जो दर्द, सूजन और बुखार में दी जाती है। लेकिन शोधों और निगरानी रिपोर्टों में यह सामने आया है कि 100 mg से अधिक की खुराक लेने पर कुछ मरीजों में लिवर एंजाइम बढ़ने, हेपेटाइटिस जैसी स्थिति और गंभीर मामलों में लिवर फेल्योर का खतरा बढ़ सकता है। इसी वजह से कई देशों में पहले ही इस दवा के उपयोग पर सख्त नियम लागू किए जा चुके हैं।
मरीजों के लिए क्या जरूरी सलाह?
सरकार ने साफ किया है कि जिन लोगों के घर में पहले से नाइमेसुलाइड की हाई डोज दवा मौजूद है, वे बिना डॉक्टर की सलाह इसे बिल्कुल न लें। डॉक्टरों को भी निर्देश दिए गए हैं कि वे दर्द और बुखार के लिए सुरक्षित विकल्प लिखें और मरीजों को दवा की सही मात्रा के बारे में जागरूक करें। स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि दवाओं का बाजार बड़ा होने के साथ-साथ निगरानी और जिम्मेदारी भी उतनी ही जरूरी है। बिना डॉक्टर की सलाह दवा लेना और जरूरत से ज्यादा खुराक लेना सेहत के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
पहले भी लग चुकी है कई दवाओं पर रोक
यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने आम लोगों की सुरक्षा के लिए दवाओं पर प्रतिबंध लगाया हो। इससे पहले भी कई दवाएं या उनके संयोजन (Fixed Dose Combinations- FDCs) को अप्रभावी या खतरनाक पाए जाने पर बाजार से हटाया जा चुका है।
1. कोडीन युक्त कफ सिरप– नशे की प्रवृत्ति और दुरुपयोग के कारण कई कोडीन आधारित कफ सिरप पर सख्ती और कुछ पर प्रतिबंध लगाया गया।
2. एनालजिन (Analgin/Metamizole)- गंभीर साइड इफेक्ट्स, खासकर ब्लड डिसऑर्डर के खतरे के कारण इसके उपयोग को सीमित किया गया।
3. फेनाइलप्रोपेनोलामीन (PPA)– स्ट्रोक और हार्ट से जुड़ी समस्याओं के खतरे के चलते इस घटक वाली दवाओं पर रोक लगाई गई।
4. 400 से ज्यादा फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन दवाएं (2016–2018)- बिना पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण के बनाई गई सैकड़ों दवाओं को सरकार ने चरणबद्ध तरीके से बैन किया।
5. रैनिटिडीन (कुछ समय के लिए प्रतिबंध/रिकॉल)- कैंसर पैदा करने वाले तत्व की आशंका के चलते रैनिटिडीन को बाजार से हटाया गया था।
नाइमेसुलाइड बैन-सेहत की सुरक्षा में जरूरी लेकिन देर से उठाया गया कदम
केंद्र सरकार द्वारा दर्द और बुखार में इस्तेमाल होने वाली दवा नाइमेसुलाइड के 100 मिलीग्राम से अधिक की सभी ओरल खुराकों पर तत्काल रोक लगाया जाना जनस्वास्थ्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण फैसला है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब देश में बिना पर्चे के दवाओं का इस्तेमाल आम बात हो चुका है और मामूली बीमारी में भी शक्तिशाली पेनकिलर का सहारा लिया जा रहा है। नाइमेसुलाइड लंबे समय से विवादों में रही है। मेडिकल शोध और फार्माकोविजिलेंस रिपोर्टों में यह बात सामने आती रही है कि इसकी अधिक मात्रा लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। इसके बावजूद बाजार में हाई डोज की उपलब्धता बनी रही और मरीज, खासकर गरीब व ग्रामीण तबके के लोग, इसे सुरक्षित समझकर लेते रहे। ऐसे में सरकार का यह फैसला सही है, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह कदम पहले नहीं उठाया जा सकता था?
लाभ से ज़्यादा नुक़सान
दवाओं पर प्रतिबंध कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी केंद्र सरकार ने कोडीन युक्त कफ सिरप, फेनाइलप्रोपेनोलामीन और सैकड़ों फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन दवाओं पर रोक लगाई थी। इन सभी मामलों में एक समान कारण रहा- लाभ से ज्यादा नुकसान। नाइमेसुलाइड के मामले में भी यही सिद्धांत लागू होता है। जब सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं, तो ऐसी दवा की हाई डोज को बाजार में खुले तौर पर बिकने देना किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता।
ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन ज़रूरी
हालांकि, केवल प्रतिबंध लगाना ही समाधान नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती है जमीनी स्तर पर इसका प्रभावी क्रियान्वयन। भारत में आज भी बड़ी संख्या में मेडिकल स्टोर बिना पर्चे के दवाएं बेचते हैं। अगर निगरानी कमजोर रही, तो प्रतिबंध कागजों तक ही सीमित रह जाएगा। साथ ही डॉक्टरों और फार्मासिस्टों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है कि वे मरीजों को सुरक्षित विकल्पों के बारे में सही जानकारी दें। यह फैसला आम लोगों के लिए भी एक चेतावनी है कि दवा चाहे कितनी ही सामान्य क्यों न हो, उसे डॉक्टर की सलाह के बिना लेना खतरनाक हो सकता है। दर्द और बुखार के तात्कालिक राहत के चक्कर में सेहत से समझौता करना भविष्य में बड़ी बीमारी को न्योता दे सकता है।
सरकार के साथ-साथ आम जागरूकता भी ज़रूरी
अंततः, नाइमेसुलाइड की हाई डोज पर रोक एक जरूरी और स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन यह भी याद रखना होगा कि जनस्वास्थ्य की लड़ाई केवल सरकारी आदेशों से नहीं जीती जा सकती। इसके लिए सख्त निगरानी, जिम्मेदार दवा उद्योग और जागरूक नागरिक, तीनों का साथ जरूरी है। नाइमेसुलाइड की हाई डोज पर लगी यह रोक एक बार फिर यह याद दिलाती है कि दर्द और बुखार जैसी आम समस्या में भी दवा का चुनाव और मात्रा बेहद अहम है। सरकार का यह कदम जनस्वास्थ्य के हित में है, लेकिन इसके साथ आम लोगों को भी जागरूक और सतर्क रहने की जरूरत है।
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