Home CATEGORIES Agriculture & Rural Development भयंकर सूखे की चपेट में महाराष्ट्र

भयंकर सूखे की चपेट में महाराष्ट्र

1317
0
SHARE
drought
 
जल है तो कल है ये कहावत हम कई बार सुनते है, लेकिन बावजूद जल को बचाने के लिए हम कुछ नहीं करते, शायद हमारी सरकारें भी कुछ नहीं करती, जल संरक्षण को लेकर अगर “कल” हमने कुछ किया होता तो आज परिस्थितियां कुछ अलग होती, “कल” यानि बिता हुआ कल, महाराष्ट्र में सूखा है, पानी की बूंद बूंद के लिए ना सिर्फ इंसान तड़प रहा है बल्कि जानवर और मछलियां भी बिन पानी के तड़प रही है |
आलम ये है कि पानी की एक बूंद के लिए लोग दर दर भटकने को मजबूर है, मवेशियां को ना पानी मिल रहा है ना चारा, नदियां सुख गयी है, नल नाले कुँए सुख गए है, मछलियां मर रही है वहीं इंसान पलायन कर रहा है।
महाराष्ट्र की ये दशा पहली बार नहीं हुई है, आधा महाराष्ट्र सूखे से पहले भी तंग था और आज भी तंग है। पहले आज के सत्तापक्ष के लिए यह बड़ा चुनावी मुद्दा हुआ करता था, अब यह आज के विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा है। न किसानों की समस्याएं खत्म हो रही हैं, न आत्महत्याएं रुक रही हैं।

समस्या कुदरती है, कुछ हद तक इसके लिए हम आप और सरकारें दोषी है लेकिन इन सब के बहाने सियासी फसलें काटी जा रही हैं। पूरे लोकसभा चुनाव के भीतर राष्ट्रवाद, आतंकवाद, आरक्षण, धर्म, मोदी और राहुल गांधी के आरोप प्रत्यारोप की बातें हुई लेकिन उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें है लेकिन महाराष्ट्र के सूखे की बाद चुनाव से नदारद रही, हो भी क्यों ना कांग्रेस एनसीपी ने सिंचाई और जलवायु संरक्षण के लिए महाराष्ट्र में कुछ नहीं किया और बीजेपी की सरकार ने कांग्रेस एनसीपी की सरकार को कोसते कोसते पांच साल निकाल दिए।

सूखे की स्तिथि इतनी भयावह है अगर इसके पहले काम किया जाता तो हाथ से मामला नहीं छूटता। पानी की किल्लत और सूखे की संकट साथ ही मानसून में देरी की संभावना ने सरकार के माथे पर पसीना ला दिया है। सरकार ने सभी मंत्रियों को उनके क्षेत्र में दौरा व तमाम सरकारी योजनाओं की निगरानी करने का निर्देश दिया है। राज्य के 12116 गांव सूखे की चपेट में सूखा प्रभावित इलाकों में 5774 टैंकरों से पेयजल की आपूर्ति की जा रही है।
सूखा प्रभावित इलाकों में जानवरों के लिए 1264 चारा छावणी बनाई गई है। वही विपक्ष अब सरकार को आड़े हाथों ले रहा है, भीषण सूखे से निपटने में बीजेपी सरकार पर असफल रहने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस के नेता राज्यपाल के दरबार में सूखा पीड़ितों को न्याय देने की गुहार लगाई।

महाराष्ट्र में पिछले कई वर्षों से सूखा एक बड़ी समस्या बना हुआ है। 2014 में अपनी सरकार बनने के तुरंत बाद देवेंद्र फड़नवीस ने इस समस्या को समझते हुए जलयुक्त शिवार योजना पर सबसे पहले काम शुरू किया। इसके तहत बड़ी नहरों और बांधोंपर समय और पैसा गंवाने के बजाय गांव-गांव में वर्षा जलसंचय की योजना बनाई गई।

राज्य के बहुत से गांवों में एक साथ काम शुरू हुआ। फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर के नाम फाउंडेशन और आमिर खान के पानी फाउंडेशन सहित कई और संस्थाओं ने इस कार्य में सहयोग देना शुरू किया। दावे बहुत हुए, इन दावों के मुताबिक तमाम तालाब गहरे किए गए।
हजारों किलोमीटर नहरों-नालों की सफाई कर उनकी क्षमता बढ़ाई गई। 2017 में अच्छी बरसात होने पर इनमें अच्छा जल संचय हुआ और लगा कि दु:ख कट जाएंगे। लेकिन इस साल फिर संकट, और संकट गहराता जा रहा है।

परिणाम स्वरुप आज खेतों में दरारें और बांधों में तल छूता जल साफ देखा जा सकता है। सूखे की मार झेल रही महाराष्ट्र की अधिकतर आबादी की यहीं से शुरू होती है पलायन और बेरोजगारी की समस्या। खाली बैठा मराठवाड़ा और धनगर नौजवान आरक्षण का झंडा उठा लेता है।

पिछले तीन साल से महाराष्ट्र ऐसे ही आंदोलन देखता आ रहा है। पानी की अब चोरियां भी होने लगी है, यहां के लोगों के लिए पानी सोने की तरह कीमती हो गया है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि नासिक में पानी पर लोगों ने डाका डालना शुरू कर दिया है। यहां पर लोगों को महीने में एक बार पीने का पानी सप्लाइ होता है इसलिए पीने के पानी की चोरी हो रही है।
लोगों ने पानी की चोरी बचाने के लिए पानी की टंकियों में ताला डालना शुरू कर दिया है। राजनीति भी जमकर हो रही है, शरद पवार से सूखा प्रभावित इलाकों का दौरा किया, कांग्रेस जा रही है, राज ठाकरे और शिवसेना दौरा कर रही है, लेकिन लाख टके की बात ये है कि सूखा क्षेत्रों में पानी तो नहीं आ रहा बल्कि नेता जरूर आ रहे है इन दुखिआरों के दुःख बाटने के बहाने, अगर ये नेता पहले से तैयार करते तो आज ये दिन महाराष्ट्र को नहीं देखने पड़ते।