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November 3, 2025

वडगांव में ‘Digital Detox’ ने बदला गांव का माहौल- एक नए युग की ओर पहला कदम !

The CSR Journal Magazine
महाराष्ट्र के सांगली ज़िले के वडगांव में हर शाम जब घड़ी की सुई 7 पर पहुंचती है, तो एक सायरन बजता है। यह संकेत है कि अब मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया से दूरी बनाने का समय आ गया है। गांव के लोग इसे “डिजिटल डिटॉक्स घंटा” कहते हैं। इस दौरान लगभग डेढ़ घंटे तक पूरा गांव तकनीक से ब्रेक लेकर आत्मसंवाद, परिवार और अध्ययन में समय देता है।

Digital Detox‘ ने बदली तस्वीर, वडगांव में फिर लौटा ‘गांव’

महाराष्ट्र के सांगली जिले के वडगांव नामक छोटे से गांव में रोज शाम सात से लेकर साढ़े आठ बजे तक का एक अनोखा सामाजिक अनुशासन लागू है। शाम 7 बजे सायरन बजते ही गांव के लगभग सभी घरों में टीवी, मोबाइल और अन्य डिजिटल उपकरण बंद कर दिए जाते हैं और लोग पढ़ाई, बातचीत तथा सामुदायिक गतिविधियों में लग जाते हैं। यह पहल, जिसे स्थानीय लोग और मीडिया ‘Digital Detox’ कह रहे हैं, पहली बार सार्वजनिक ध्यान में 2022 में आई थी और तब से यह गांव की रोजमर्रा की दिनचर्या बन गई है।

कैसे हुआ यह कामकाजी नियम लागू

गांव में शाम 7 बजे सायरन बजाने की प्रथा स्थानीय पंचायत द्वारा शुरू की गई थी। पंचायत ने बताया कि कोविड-19 लॉकडाउन के बाद बच्चे और बड़े प्रो़द्योगिकी-उपकरणों पर अत्यधिक निर्भर हो गए थे। पढ़ाई और पारिवारिक बातचीत प्रभावित हो रही थी। इसलिए समुदाय ने सामूहिक रूप से कुछ समय के लिए डिजिटल उपकरणों से दूरी रखने का निर्णय लिया। इसके तहत 7:00 बजे से 8:30 बजे तक सभी को मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया से ब्रेक लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। कुछ वार्ड-स्तरीय टीमें निगरानी के बरताव पर रखी गयी हैं ताकि यह नियम समुदाय-आधारित ढंग से लागू हो सके।

क्या होता है Digital Detox Hour के डेढ़ घंटे में?

Digital Detox के इस समय अवधी में बच्चे और छात्र किताबें खोलकर पढ़ते हुए दिखाई देते हैं। अनेक घरों में बड़े और बुजुर्ग आपस में बातें करते, कहानियां सुनाते या पारिवारिक विषयों पर चर्चा करते हैं। गांव में फिर चौपाल सजती है, जहां ग्रामवासी सामाजिक, राजनीतिक चर्चा करते हैं। कुछ स्थानों पर लोग बाहरी खेल, सामुदायिक सभा या लेखन-अभ्यास करते हैं। पंचायत की ओर से स्कूल-स्तर पर भी प्रेरक कार्यक्रम और पढ़ाई का समर्थन किया गया है ताकि छात्र उपयोग करने के लिए व्यवस्थित गतिविधियां कर पाएं।

स्थानीय नेताओं और निवासियों की राय

गांव के सरपंच और स्थानीय निगरानी टीम के सदस्यों का कहना है कि यह कोई अनिवार्य दंडात्मक नियम नहीं, बल्कि सामूहिक सहमति पर आधारित आदत है। फिर भी उसके अनुपालन के लिए कुछ स्थानीय समितियां सक्रिय हैं। सरपंच ने मीडिया को बताया कि Digital Detox की पहल से बच्चों की पढ़ाई पर सकारात्मक असर दिखा है और पारिवारिक बातचीत बढ़ी है। कुछ माता-पिता ने कहा कि पहले बच्चे देर रात तक वीडियो देख कर सोते थे, अब वे नियमित पढ़ाई व नींद पैटर्न पर लौट आये हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

मानसिक स्वास्थ्य व शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि नियमित डिजिटल-ब्रेक (Digital Fasting) से स्क्रीन-थकान, नींद में सुधार और पारिवारिक संबंधों में मजबूती आने की संभावना बढ़ती है। हालांकि, विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि ऐसी पहल तब सर्वोत्तम रहती है जब वह स्वैच्छिक हो, बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा से जुड़े आपातकालीन संचार के लिए वैकल्पिक व्यवस्था मौजूद हो। जैसे घरों में एक-दो उपकरणों पर आवश्यक कॉल/सूचना की अनुमति या पंचायत द्वारा तय आपात संपर्क ! ऐसे सामाजिक प्रयोगों में निगरानी का रूप अगर बहुत कठोर हो जाए तो निजता और व्यक्तिगत आज़ादी पर सवाल उठ सकते हैं, इसलिए सामुदायिक सहमति बनाए रखना ज़रूरी है।

Digital Detox की पृष्ठभूमि और वड़गांव की पहचान

मोहित्यांचे वडगांव (कडेगाव तहसील, सांगली) स्वच्छता व सामाजिक समरसता के लिए जाना जाता है और यहां पहले भी सामुदायिक पहल रही हैं। Digital Detox को कुछ मीडिया विशेषकर 2022-23 के दौर में प्रमुखता से कवर कर चुके हैं। तब से यह पहल राष्ट्रीय मंच पर भी चर्चा का विषय बन चुकी है।

दूसरे गांव /शहरों के लिए प्रेरणा

 वडगांव के Digital Detox ने देश भर के कुछ मीडिया-आउटलेट्स और विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है। कई शिक्षाविद और ग्राम विकास विशेषज्ञ इसे एक प्रयोग के रूप में देख रहे हैं, जहां सामुदायिक सहयोग के जरिये स्क्रीन-लत घटाई जा सकती है। पर अर्थव्यवस्था से जुड़े क्षेत्रों और शहरों में उपयोगिता की पड़ताल अलग होगी क्योंकि शहरी जीवन में डिजिटल-संबंधित कामकाज व कार्यनीति अधिक गहन और अपरिहार्य होते हैं।

शिक्षा पर प्रभाव- बच्चों की पढ़ाई में लौटी एकाग्रता

गांव के शिक्षक बताते हैं कि जब से यह नियम लागू हुआ है, बच्चों के परिणामों में उल्लेखनीय सुधार दिखा है। पहले बच्चे देर रात तक मोबाइल पर वीडियो देखते थे, जिससे उनकी नींद कम और ध्यान भंग रहता था। अब शाम 7 बजे सायरन बजते ही बच्चे किताबों की ओर लौटते हैं। शिक्षक माधव पाटील कहते हैं, “बच्चों में अब पढ़ाई के प्रति स्थिरता आई है। उनकी एकाग्रता और समझने की क्षमता बढ़ी है। टीवी और गेम्स के शोर की जगह अब पढ़ने की आदत बनी है।”
कई अभिभावकों ने बताया कि अब बच्चे बिना दबाव के समय पर पढ़ाई करते हैं और स्कूल के काम को प्राथमिकता देने लगे हैं। स्थानीय विद्यालय ने तो शाम के समय “पठन घंटा” नामक अभियान शुरू किया है, जहां बच्चे घरों में सामूहिक रूप से पढ़ते हैं।

पारिवारिक जीवन पर असर- बातचीत और अपनापन बढ़ा

पहले शाम का समय टीवी सीरियल्स, मोबाइल गेम्स और सोशल मीडिया में बीत जाता था। परिवार एक ही छत के नीचे होते हुए भी अलग-अलग स्क्रीन में गुम था। अब सायरन के बाद का समय “परिवार का समय”कहलाने लगा है। लोग अपने बच्चों से बातें करते हैं, बुज़ुर्ग कहानियां सुनाते हैं, महिलाएं सामूहिक रूप से घरों के आंगन में बैठकर संवाद करती हैं। गांव की निवासी स्मिता कदम बताती हैं, “पहले बच्चे फोन में खोए रहते थे, अब वे हमसे बात करते हैं, साथ बैठते हैं। घर का माहौल बदल गया है।” पंचायत के अनुसार, इस पहल से पारिवारिक तनाव और झगड़े घटे हैं। अब परिवार के सदस्य भावनात्मक रूप से अधिक जुड़े महसूस करते हैं, जो आधुनिक डिजिटल युग में दुर्लभ होता जा रहा है।

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव– बेहतर नींद, तनाव कम

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि निरंतर स्क्रीन टाइम मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन और नींद की गड़बड़ी का कारण बनता है। वडगांव में Digital Detox के चलते अब लोग सोने से पहले लंबे समय तक फोन देखने की आदत छोड़ रहे हैं। कई युवाओं ने बताया कि वे अब जल्दी सोते हैं, सुबह तरोताज़ा महसूस करते हैं और दिनभर ज्यादा ऊर्जावान रहते हैं। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. नलिनी जाधव बताती हैं, “यह सिर्फ डिजिटल ब्रेक नहीं है, यह मानसिक संतुलन का अभ्यास है। लोगों की नींद बेहतर हुई है, चिंता के मामलों में कमी आई है।”युवाओं में भी स्क्रीन-थकान और सोशल मीडिया पर निर्भरता घटने लगी है। कुछ परिवारों ने तो साप्ताहिक “डिजिटल फ्री डे” भी अपनाया है। यानी हफ्ते में एक पूरा दिन बिना सोशल मीडिया के बिताना।

Digital Detox- छोटा कदम, बड़ा परिवर्तन

वडगांव की शाम 7 बजे की सायरन-पद्धति और डेढ़ घंटे का Digital Detox एक समुदाय-आधारित सामाजिक प्रयोग है, जिसका उद्देश्य बढ़ते स्क्रीन-टाइम से परिवार, पढ़ाई और सामुदायिक ज़िंदगी को बचाना है। इस प्रयोग ने प्रारम्भिक तौर पर सकारात्मक प्रभाव दिखाये हैं। खासकर बच्चों की पढ़ाई व पारिवारिक संवाद में ! वडगांव की शाम का सायरन आज पूरे महाराष्ट्र में स्वअनुशासन और सामुदायिक जागरूकता की मिसाल बन गया है।
जहां तकनीक ने इंसान को मशीनों के करीब और रिश्तों से दूर किया था, वहां इस गांव ने दिखाया कि अगर समाज मिलकर ठान ले तो डिजिटल आदतें भी अनुशासित की जा सकती हैं। स्कूलों की पढ़ाई, परिवारों का संवाद और मानसिक सुकून, तीनों ने इस पहल से एक नई सांस ली है। शायद यही वह “ग्रामीण क्रांति” है जो भारत में डिजिटल युग को मानवीय दिशा देने की ओर बढ़ रही है।
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