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डाबर इंडिया के सीएसआर हेड ए सुधाकर से ख़ास बातचीत

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डाबर इंडिया लिमिटेड भारत में FMCG क्षेत्र में चौथी सबसे बड़ी कंपनी है। 1884 में कोलकाता में बर्मन परिवार ने जब एक छोटी आयुर्वेदिक दवा कंपनी के रूप में शुरुआत की थी तो 136 साल बाद यह नंबर वन कंपनी बन जाएगी किसी ने सोचा नहीं होगा। आयुर्वेदिक व नैचरल हेल्थ केयर क्षेत्र में डाबर इंडिया के 250 से अधिक प्रोडक्ट्स बाजार में तूती बोल रही है। दवाई से लेकर फूड तक में हर जगह डाबर की मौजूदगी दिखती है। डाबर के उत्पाद पूरी दुनिया के 60 से अधिक देशों में उपलब्ध हैं। सिर्फ विदेश में ही इसका कारोबार 500 करोड़ रुपए का है। डाबर इंडिया लिमिटेड कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Corporate Social Responsibility – CSR) के तहत बड़े पैमाने पर सामाजिक बदलाव ला रही है। स्वच्छ भारत अभियान हो या स्किल डेवलपमेंट हर क्षेत्र में सीएसआर के तहत डाबर इंडिया काम कर रही है। ए सुधाकर डाबर इंडिया के सीएसआर हेड है। सुधाकर जी से The CSR Journal ने ख़ास बातचीत की।

बहुत बहुत स्वागत है आपका The CSR Journal में, जिस तरह से हम देख रहे हैं कि देशभर में सीएसआर क्रांति लेकर आ रही है। बड़े पैमाने पर सीएसआर के काम हो रहे हैं। डाबर भी बहुत अहम भूमिका निभा रही है। लगातार डाबर इंडिया सीएसआर के तहत काम कर रही है। चाहे वह सेवा को सलाम हो या फिर ओडीएफ हो या फिर मालनूट्रिशन, स्वच्छ भारत अभियान या स्किल डेवलपमेंट हो। लगातार डाबर इंडिया काम कर रहा है। मैं चाहूंगा कि डाबर इंडिया के सीएसआर एक्टिविटीज को हमारे दर्शकों के साथ आप साझा करें।

मैं The CSR Journal का बहुत शुक्रिया अदा करता हूं कि डाबर इंडिया के सीएसआर एक्टिविटीज को एक प्लेटफार्म दिया ताकि हम जनता तक पहुंच सकें। जैसा आप जानते हैं कि साल 2014 से सीएसआर कानून लागू हुआ उसके बाद कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी कानून के तहत सीएसआर करना मैंडेटरी हो गया है। इसके पहले जिन कंपनियों को सामाजिक काम करना था वह वोलंटरी करते थे, सीएसआर की कोई बाध्यता नहीं थी। लेकिन 2014 के बाद से कॉर्पोरेट्स को मौका मिला और सीएसआर को काफी फ़ॉर्मूलाइज तरीके से, म्युनिटी डेवलपमेंट का एक मौका मिला। हमारा हमेशा से यही उद्देश्य रहा है कि पहले हम कम्युनिटी के साथ बैठे, कम्युनिटी की क्या जरूरत है उसका आकलन करें, समाज को क्या जरूरत है, वह हम उनको देते हैं। यानी कि ऐसा नहीं होता है कि डाबर ने सोच लिया कि हम फला फला काम करेंगे। हम पहले स्थानीय लोगों से बातचीत करते हैं, उनकी जरूरतों को समझते हैं। उसके बाद वहां पर सीएसआर का काम करते हैं।
ऐसा नहीं है कि हर जगह की जरूरत एक हो। हम अलग जगहों पर अलग-अलग तरीकों से समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में हमारा जो सीएसआर एक्टिविटीज है, वह उत्तराखंड से अलग है। उत्तराखंड की एक्टिविटी, हिमाचल से अलग है। असम में हमारे सीएसआर एक्टिविटीज देश के दूसरे कोने से बिल्कुल अलग है। जम्मू में हमारा अलग है। हर एक इलाकों का हमारा सीएसआर बिल्कुल अलग है। हां कुछ एक्टिविटीज जरूर है जो कि हर जगह में एक ही है। उदाहरण के तौर पर अगर हम देखें, तो हम एजुकेशन में पैन इंडिया में काम कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर की काफी कमियां है, बिल्डिंग ठीक नहीं है, बच्चों के बैठने की कोई सुविधाएं नहीं है, उनके लिए टेबल और कुर्सियां तक नहीं होती हैं। वे जमीन में बैठते हैं, सर्दी हो या गर्मी या फिर बारिश। मौसम की मार झेलते रहते हैं। उन्हें बहुत तकलीफ होती है।
इसके अलावा हमने देखा अपने सर्वे में कि बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूलों में टॉयलेट नहीं है। उनके लिए पानी पीने की सुविधाएं नहीं होती है। स्कूलों में टॉयलेट की सुविधा नहीं होने की वजह से लड़कियों में ड्रॉपआउटस की बहुत भारी समस्या है। एक उम्र में लड़कियां अगर पहुंच जाती है तो उन्हें टॉयलेट की कमी खलती है। वह कहती हैं कि अगर स्कूल में टॉयलेट नहीं है तो हम स्कूल नहीं जा सकते। जिन राज्यों का हमने जिक्र किया वहां पर डाबर इंडिया बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर लेवल पर सीएसआर के तहत काम किया है। भारत सरकार के साथ मिलकर हम स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत भी काम किए हैं। हम हमेशा निरंतर यह कोशिश करते हैं कि सरकार के साथ हम मिलकर समाज के उत्थान के लिए काम करें। स्वच्छता अभियान के तहत डाबर इंडिया ने 4000 टॉयलेट्स बनवाएं। यह घर में बने टॉयलेट्स है जिसकी वजह से 50 से ज्यादा गांव खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं।
अगर हम स्वास्थ्य की बात करें तो ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य की एक बड़ी समस्या है। डाबर इंडिया स्वास्थ्य के मुद्दे पर भी लगातार काम कर रहा है। डाबर इंडिया का कम्युनिटी हेल्थ सेंटर भी है। डासना के पास हमने इसी तरह से कम्युनिटी सेंटर खोला है और वहां पर एक मेल डॉक्टर एक फीमेल डॉक्टर की सर्विसेज शुरू कर दी है। इस कम्युनिटी सेंटर में बेसिक डायग्नोस्टिक सेंटर भी है, ताकि ग्रामीण इलाकों से लोग आए और स्वास्थ्य की बेसिक जांच हो पाए। अगर उनको कोई बड़ी बीमारी होती भी है तो उनको बड़े अस्पतालों में रेफर किया जा सके। सीएसआर के तहत इन सुविधाओं की वजह से ग्रामीणों के स्वास्थ्य में बड़ा बदलाव आया है। उनको अब बड़े अस्पताल जाने के लिए या फिर बेसिक हेल्प की सुविधाओं को पाने के लिए दूरदराज इलाकों में नहीं जाना पड़ता है। इन सबके साथ हमने यह भी सोचा कि कई ऐसे गांव है, जो बहुत अंदर बसे हुए हैं। वहां के ग्रामीण कस्बों में नहीं आ सकते या शहरों में नहीं आ सकते। इसलिए हमने एक मोबाइल एंबुलेंस बनाया जिसके अंदर अत्याधुनिक मेडिकल सुविधाएं भी हमने प्रोवाइड करने की कोशिश की।
ग्रामीण इलाकों में न्यूट्रिशन की वजह से उन्हें सही पोषण, आहार नहीं मिलता। इसलिए काफी बीमारियां होती हैं। बहुत सारे घरों में महज दाल, चावल, रोटी, सब्जी खाकर ही गुजारा कर लिया जाता है। लेकिन जो प्रॉपर न्यूट्रिशन फूड है वह नहीं मिल पाता। इसको को देखते हुए हमने फिक्की के साथ मिलकर एक अभियान चलाया। सेफ एंड न्यूट्रिशस फूड के महत्व को हमने स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। उसके बाद घर की बगिया नामक एक अभियान शुरू किया जिसके तहत हम घर के अंदर ही सब्जियों बोने और उनके इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया। कुछ लोग सब्जियों की पैदावार ज्यादा कर उसे मार्केट में बेचते भी हैं।
स्किल डेवलपमेंट को लेकर भी डाबर इंडिया ने बहुत बड़े पैमाने पर काम किया है। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं खाना बनाने के बाद वह क्या करें यह सवाल खड़ा हो जाता है। इन महिलाओं में ये सोच थी कि हम कुछ गुर सीखें तो हम कुछ काम कर सकतें हैं। हमने इन महिलाओं की सुनें। काम के बदले उनको कुछ पैसा मिले, उन्हें स्किल्ड करने के लिए डाबर इंडिया ने सिलाई प्रशिक्षण केंद्र खोला। उनको सिलाई मशीन दी गई। कम्युनिटी ने उनको जगह दे दिया, बिजली दे दी, सिलाई कैसे करना है, कटिंग कैसे करनी है, इसको लेकर प्रशिक्षण हमने दिया। उसके बाद बेसिक प्रशिक्षण के साथ वह पहले अपने घर के काम को करने लगीं और सीख जाने के बाद वह कमर्शियल लेवल पर काम करना शुरू कर दिया। उदाहरण के तौर पर यहां पर मैं कहना चाहूंगा कि अपने देश में जब कोरोना कॉल शुरू हुआ और मास्क की बहुत ज्यादा कमी होने लगी तो इन महिलाओं ने मास्क की आपूर्ति का बीड़ा उठाया।

बिल्कुल सर, कोरोना काल के दौरान ना सिर्फ मेडिकल इक्विपमेंट्स की कमी रही, अस्पतालों की कमी हुई बल्कि बड़े पैमाने पर मास्क की भी कमी हो गयी थी। लेकिन अब आज के डेट में मास्क की कोई कमी नहीं है। सीएसआर के तहत देश की तमाम कॉर्पोरेट कंपनियों ने मेडिकल इक्विपमेंट्स के साथ साथ मास्क भी वितरित किया, यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है।

आपने बिल्कुल सही कहा और पूरे कोविड-19 दरमियान सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन करते हुए डाबर इंडिया ने बड़े पैमाने पर मास्क बनवाया। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमने 20,000 से ज्यादा महिलाओं के साथ मिलकर मास्क बनाएं। इन महिलाओं ने कुछ अपने लिए तो कुछ बेचने के लिए बनाया।

आप डाबर के द्वारा किए गए सीएसआर के कामों को गिनवा रहे हैं वाकई में जिस तरह से डाबर इंडिया सीएसआर फील्ड में बहुत बड़े स्तर पर काम कर रही है। लेकिन अगर हम आपके व्यक्तिगत मत की बात करें तो आप किस एक्टिविटीज को सबसे ज्यादा तवज्जो देते हैं?

स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम सबसे महत्वपूर्ण है और यही मेरे दिल के बहुत करीब भी है। मैं इस पर बहुत बारीकी से नजर रखता हूं। खाना बनाने के बाद औरतों के पास बहुत ज्यादा वक्त होता है। इस वक्त को कैसे यूटिलाइज किया जाए यह मैं देखता हूं। अक्सर ग्रामीण इलाकों में या फिर देश के किसी भी कोने में देखा जाता है कि एक औरत आई तो घर का बोझ बढ़ गया है, ऐसा समझा जाता है। शादी हो गई, बच्चे पैदा हो गए, बेटी पैदा हो गई तो लोग उसको बोझ मानते हैं। एक एक्स्ट्रा मानते हैं कि एक एक्स्ट्रा मेंबर को खाना खिलाना पड़ेगा। यह सोच बहुत खराब है। ऐसे में हमारे देश में एक औरत को किस तरह से सेल्फ सफिशिएंट, सेल्फ डिपेंडेंट बनाया जाए इसपर हम काम करते हैं। इससे फैमिली में उस औरत की रिस्पेक्ट बढ़ जाती है। आप हैरान हो जाएंगे कि पिछली बार दिसंबर में जब मैं एक विजिट पर गया था। उत्तर प्रदेश के एक गांव में मैं गया था। एक ट्रेनिंग सेंटर में जब गया तब जो लड़की उस ट्रेनिंग सेंटर की मास्टर ट्रेनर थी वह मुझे बता रही थी कि सर मैंने भी इसी ट्रेंनिंग सेंटर से टेलरिंग सीखा है। फिर मैं खुद ही ट्रेनर बन गई और फिर मैं ट्रेनर बनने के बाद मैं सिखाती हूं। आप मुझे तनख्वाह देते हैं। इसके साथ ही मैं घर में बैठ कर दूसरों के लिए कपड़ा सिलती हूं। आज मेरे बैंक में ₹3.5 लाख जमा है। मैं मेरे शादी के लिए मेरे पिताजी से एक पैसा भी नहीं मांगूंगी। घर की औरत अगर जो थोड़ा साइड इनकम करती है तो उसका एक तो रिस्पेक्ट बढ़ जाता है साथ ही वो आत्मनिर्भर भी हो जाती है।

जब भी हम एफएमसीजी कंपनियों की बात करते हैं तो प्रॉफिट को लेकर वह एक दूसरे को कंपीट करती हैं। हमेशा से ही कंपनियों के बीच होड़ मची रहती है, लेकिन जब बात सीएसआर के कामों की बात आती है तो वह हेल्दी कंपटीशन क्यों नहीं करती कि भैया आज हमने 100 करोड रुपए स्किल डेवलपमेंट में खर्च किया आप भी सामने आइए, आप उससे ज्यादा खर्च करिए, इस तरह का कंपटीशन नहीं देखने को मिलता, क्यों ?

सीएसआर के बारे में एक कॉन्टेस्ट होता है। हम भी देखते हैं कि कौन सी कंपनी ने कौन सा सीएसआर किया। हम भी बैलेंस शीट में अपने सीएसआर की एक्टिविटीज छापते हैं। एनुअल रिपोर्ट में ज्यादातर एफएमसीजी कंपनियां सीएसआर रिपोर्ट छापती है। इसमें कंपटीशन भी होता है। इसके अलावा ट्रेड चैंबर्स उदाहरण के तौर पर फिक्की, सीआईआई, एसोचैम यह सभी लोग कंपनी को इनवाइट करती हैं। सीएसआर को लेकर एक प्रेजेंटेशन करती हैं। उसको देखते कंपनीज अपने सीएसआर के बारे में बताती है। फिर इससे पता चल जाता है कि इस कंपनी ने इस एरिया में यह काम किया है। हमें भी मौका मिलता है सीखने का। समझने का और क्या अच्छा कर रहे हैं वह भी करने का। आजकल सीएसआर के जरिए सोशल इंपैक्ट कंपनीज किस तरह से कर रही है, यह इन्वेस्टर्स देखता है। यह डोमेस्टिक इन्वेस्टर्स भी देखते हैं और इंटरनेशनल इन्वेस्टर्स भी देखते हैं। आज के डेट में सीएसआर आपके लिए ऑप्शन नहीं बल्कि यह मैंडेट है, एक रिक्वायरमेंट है।

डाबर इंडिया तो तमाम सीएसआर एक्टिविटीज कर रही है लेकिन अगर जो आपको मौका मिला तो किस एक्टिविटीज को आप आगे लेकर जाएंगे, कौन सा ऐसा काम करेंगे जो कि आपका ड्रीम प्रोजेक्ट है?

मेरी निजी राय है, आने वाले दिनों में पानी की समस्या बहुत ज्यादा होगी। पानी को लेकर शहरों में अलग प्रॉब्लम है, ग्रामीण इलाकों में अलग प्रॉब्लम है। हमारे देश में बारिश तो अच्छी होती है, लेकिन उसका संरक्षण करने का बहुत ज्यादा अवेयरनेस नहीं है, जागरूकता नहीं है। पानी की समस्या को देखते हुए हमने सोचा कि क्यों ना इस पर कुछ किया जाए। हमने राजस्थान में एक वाटर प्रोजेक्ट हाथ में लिया। पर्सनली अगर जो मुझे कोई ऐसा मौका मिलेगा तो मैं पानी और जल संरक्षण पर काम करना चाहूंगा। वॉटर कंजर्वेशन पर काम करना चाहूंगा ताकि पीने के लिए पानी, सिंचाई के लिए पानी और जानवरों के लिए पानी यह तीनो चीज़ हमेशा 12 महीने किसी को कोई परेशानी ना हो।

कोरोना काल में हमने देखा कि मार्केट में इम्यूनिटी बूस्टर बहुत आए, डाबर के प्रोडक्ट मार्केट में बहुत पहले ही मौजूद है, डाबर एबिलिटी बूस्टर में पायोनियर रहा है, यह कैसे संभव हुआ है?

आज से नहीं बल्कि सदियों से डाबर इंडिया हर्बल प्रोडक्ट्स, आयुर्वेदिक प्रोडक्ट बनाता रहा है। आयुर्वेदिक पर डाबर इंडिया बहुत ज्यादा रिसर्च करता है। इसको लेकर हमारा पूरा एक डिपार्टमेंट है। एक तो आयुर्वेद की जानकारी हमारे ट्रेडिशनल नॉलेज से आता है दूसरा हमारा रिसर्च है। इन सब से हमें जानकारी मिली कि हमारा जो प्रोडक्ट है वह इम्यूनिटी बूस्टर है। पहले लोग कहते थे कि सर्दियों में ही इम्युनिटी बूस्टर्स का इस्तेमाल करना चाहिए बल्कि हम तो यह कहते हैं कि इम्यूनिटी बूस्टर का इस्तेमाल हमेशा होना चाहिए। लेकिन कोविड-19 में इम्यूनिटी बूस्टर का प्रचार ज्यादा हुआ। रिक्वायरमेंट जैसा होता है वैसा आज का मार्केट काम करता है। लेकिन हम हमेशा से ही यह कहते आए हैं कि इंसान को अपने इम्यूनिटी पर सबसे पहले जोर देना चाहिए। पहले हम जो कह रहे थे वह हमारा मार्केटिंग था। अब यह कंस्यूमर की नीड हो गई है।

कोरोना काल में आयुर्वेदिक की पुरानी पद्धति फिर से वापस आ गई। आयुर्वेद का प्रचार प्रसार बढ़ा है। ना सिर्फ भारत में बल्कि बड़े पैमाने पर विदेशों में भी आयुर्वेदिक को सराहा जाने लगा है। तो आपको लगता है कि आयुर्वेद के पुराने दिन वापस आ गए हैं ?

कभी-कभी यह होता है ना कि क्राइसिस बिकम ऐन अपॉर्चुनिटी। कोविड-19 का यह क्राइसिस कंपनी के लिए एक अपॉर्चुनिटी बन गया। जो हम प्रोडक्ट सदियों से बना रहें हैं आज उसको लोग अपना रहे हैं। आज जिस तरह से लोग कह रहे हैं कि कोविड-19 का ट्रीटमेंट नहीं है। कोरोना होने के बाद लोग कहते हैं कि पेरासिटामोल ले लो, यह दवाई ले लो, लेकिन हम ही ऐसे हैं जो सबसे पहले कहते रहे हैं कि आप बीमारी से ही बचे और आयुर्वेदिक में प्रिवेंशन इस बेटर देन क्योर को बहुत ज्यादा महत्वता दी गयी है। आयुर्वेदिक औषधियों में प्रिवेंशन पर बहुत महत्त्व है। एलोपैथी के डॉक्टर्स भी कहते हैं कि आप कोई मेडिसिन मत खाओ, आयुर्वेदिक खाओ।

The CSR Journal से बात करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।