आज किसान दिवस है, तो बात किसानों की करते है, किसान आंदोलन की करते हैं। जब भी किसान आंदोलन करता है तो उसकी सबसे पहली मांग होती है स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना। आप कई बार जरूर सोच में पड़ गए होंगे कि हर बार किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग क्यों करता है। तो आज हम आपको आसान भाषा में बताते है कि स्वामीनाथन आयोग और उनकी सिफारिशें क्या हैं। दरअसल 2004 में सरकार ने किसानों की आर्थिक दशा सुधारने और खेती में पैदावार बढ़ाने को लेकर स्वामीनाथन आयोग का गठन किया गया था।
हरित क्रांति के जनक रहे एमएस स्वामीनाथन जिनके नाम पर बना आयोग
हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन के नाम पर इस आयोग का नाम पड़ा। जिसमें खेती-किसानी में सुधार के लिए तमाम बातें कही गई थीं। लेकिन अब तक कोई सरकार सिफारिशों को पूरी तरह लागू नहीं कर पाई है। स्वामीनाथन की अध्यक्षता में जो कमेटी का गठन किया गया था उसका नाम राष्ट्रीय किसान आयोग पड़ा जिसने दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के दौरान पांच रिपोर्ट्स पेश कीं। इन सिफारिशों की बात करें तो अगर ये पूरी तरह से लागू किया गया होता तो आज किसानों की किस्मत ही बदल जाती। तो आईये जानते है इन सिफारिशों के बारें में।
किसानों की आर्थिक दशा सुधारने और पैदावार बढ़ाने के लिए आयोग का गठन किया गया
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं, यही इसका मकसद है। किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछेक नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र और बाजार का दखल स्कीम भी लांच करने की सिफारिश की गई है। सभी किसानों को सही मात्रा में पानी मुहैया कराया जाए। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से जलापूर्ति बढ़ाना और Aquifer Recharge अनिवार्य होना चाहिए। रिपोर्ट में वाटर शेड परियोजनाओं को बढ़ावा देने की बात कही गई।
भूमि सुधार के लिए कमेटी की सिफारिश
भूमि सुधारों की गति को बढ़ाने के लिए रिपोर्ट में काफी जोर दिया गया। सिफारिश की गई की सरप्लस व बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटा जाए। भूमि की मात्रा, प्रस्तावित उपयोग की प्रकृति और खरीदार की श्रेणी के आधार पर कृषि भूमि की बिक्री को विनियमित करने के लिए एक सिस्टम स्थापित करने की सिफारिश की गई। ये भी कहा गया कि आदिवासियों और चरवाहों के लिए जंगलों में चराई के अधिकार और मौसमी पहुंच और सामान्य संपत्ति संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करना होगा।
किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए सिफारिश
देश में सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है किसानों की आत्महत्या। पिछले कुछ सालों में भारी संख्या में किसानों ने खुदकुशी की है। महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, केरल, राजस्थान, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से लगातार आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं। आत्महत्या पर रोकथाम के लिए स्वामीनाथन कमेटी ने राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर जोर दिया था। सबसे बड़ी सिफारिश ये थी कि औसत लागत से एमएसपी 50 फीसदी ज्यादा रखी जाए। इसमें और भी कई अहम बिंदु शामिल किए गए थे।
फसल बीमा के लिए कमेटी की सिफारिश
किसानों के लिए ये सिफारिश उस वक्त संजीवनी साबित हो सकती थी, जिसके जरिए उन तक कई वित्तीय सुविधाएं पहुंचाने की योजना बनाई गई थी। इस सिफारिश में किसानों तक बैंकिंग पहुंचाने पर जोर दिया गया था। उनसे तब तक कर्ज नहीं वसूलने की सिफारिश की गई थी जब तक वो चुकाने की स्थिति में न आ जाए। कहा गया कि गैर-संस्थागत स्रोतों से ऋण सहित ऋण वसूली पर रोक, और क्षमता बहाल होने तक संकटग्रस्त क्षेत्रों और आपदाओं के दौरान ऋण पर ब्याज की छूट दी जाए। इसमें सुझाव दिया गया कि सरकारी सहायता से फसल ऋण के लिए ब्याज दर घटाकर 4 प्रतिशत सरल की जाए।
खाद्य सुरक्षा के लिए कमेटी की सिफारिश
सभी के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ाया जा सके, इसी लक्ष्य से कुछ सुधारों पर जोर दिया गया। कम्युनिटी फूड व वाटर बैंक बनाने और भोजन गारंटी कानून बनाने की सिफारिश भी इस रिपोर्ट में की गई। भुखमरी को खत्म करने के लिए ये सिफारिश काफी अहम थी। गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को इससे काफी फायदा पहुंचता। इसमें कुपोषण को दूर करने के लिए भी प्रयासों का जिक्र किया गया था। ‘सामुदायिक खाना और पानी बैंक’ स्थापित करने का सुझाव दिया गया था, जो महिला स्वयंसेवी ग्रुप की मदद से किया जाता। इसके लक्ष्य था कि अधिक से अधिक लोगों को खाना मिल सके।