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हिंसा, नक्सली और आतंकी गतिविधियों में पीड़ित बच्चों को नई जिंदगी देती है ये संस्था

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क्या आपने कभी ये सोचा है कि आतंकी गतिविधियों में जान गंवाने वाले माता-पिता के बाद बच्चों की परवरिश कैसे होती होगी? क्या आपने ये कभी सोचा है कि सांप्रदायिक, और जातीय हिंसा में जान गंवाने के बाद अनाथ या निराश्रित बच्चों का लालन पालन कैसे होता होगा। तो आज हम आपको बता दें कि ऐसे बच्चों की मदद, उनकी देखभाल और शिक्षा के लिए गृह मंत्रालय के अधीन एक सरकारी संस्था है जिसका नाम है National Foundation For Communal Harmony. इस संस्था के सचिव मनोज पंत के साथ The CSR Journal ने ख़ास बातचीत की।

क्या है ये National Foundation For Communal Harmony ऑर्गेनाइजेशन, कैसे काम करती है?

राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान यानी नेशनल फाउंडेशन फॉर कम्युनल हार्मनी एक ऑटोनॉमस ऑर्गेनाइजेशन है जो गृह मंत्रालय भारत सरकार के अधीन आती है। NFCH की स्थापना 1992 में की गई थी। इसे एक सोसाइटी की तरह रजिस्टर्ड किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि जो बच्चे जातीय हिंसा, सांप्रदायिक हिंसा या फिर आतंकवादी घटनाओं या नक्सल घटनाओं में अपने माता-पिता को खो देते हैं या फिर घर के मेन ब्रेड अर्नर को खो देते हैं उन बच्चों को हम आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। उनके रिहैबिलिटेशन के लिए और उनकी शिक्षा के लिए। जब तक की वह 25 साल के नहीं हो जाते। NFCH का यह मुख्य उद्देश्य है। इसके अतिरिक्त संस्थान गवर्नमेंट के साथ मिलकर चाहे वो केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, एनजीओ, पीएससी, एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन इन तमाम लोगों के साथ मिलकर हम कई तरह के सांस्कृतिक, शैक्षणिक प्रोग्राम का आयोजन करते हैं ताकि पूरे देश में राष्ट्रीय एकता, सद्भावना और शांति का संदेश देश के कोने-कोने में फैलाया जा सकें।

National Foundation For Communal Harmony इस आर्गेनाइजेशन में CSR का रोल बहुत अहम है, ये कैसे है, मैं चाहूंगा कि आप हमारे दर्शकों को बताएं।

हमें सरकार से कोई सहायता नहीं मिलती है। हमारे रेवेन्यू के 3 मेन सोर्सेस हैं। पहला है, हम लोगों से डोनेशन कलेक्ट करते हैं। दूसरा हमारा सोर्स ऑफ रेवेन्यू है कॉरपस फंड वह हमने बैंक में फिक्स डिपॉजिट कर रखा है। आज वह फंड बढ़कर काफी ज्यादा हो गया है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण सोर्स ऑफ इनकम है वह पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग यानी पीएसयू। PSU हमें बड़े पैमाने पर सीएसआर के तहत सपोर्ट करती हैं। हमें आज यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि हम जो बच्चों को सहायता प्रदान करते हैं उसकी लागत करीब साढ़े 5 करोड़ है, उसमें से करीब साढ़े 4 करोड़ रुपए हमें पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग की सपोर्ट से मिल जाता है। मुख्य रूप से मैं यहां पर नाम लेना चाहूंगा इन पीएसयू का। पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया जो पिछले 5 सालों से हमें सपोर्ट कर रहे हैं। इसके अलावा हमें गेल सपोर्ट कर रहा है। पिछले साल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने हमें 2 करोड़ रुपए दिए। उसके बाद हमें भारत पेट्रोलियम ने सपोर्ट किया। तो कई ऐसी संस्थाएं हैं, पीएसयू है जो अपने सीएसआर के तहत कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत हमें मदद करती हैं, ताकि इन बच्चों को हम रिलीफ समय पर दे पाएं।

अब तक कितने बच्चों को आप लोगों ने आर्थिक सहायता दी है?

पूरे देश भर में अभी तक हम लोगों ने 14000 से ज्यादा बच्चों को आर्थिक सहायता प्रदान की है। 164 जिले और 24 राज्यों के 14000 से ज्यादा बच्चों को हम सपोर्ट कर चुके हैं। इन 14000 बच्चों में से करीब 7000 ऐसे बच्चे हैं जो अपनी शिक्षा पूरी करके समाज में अपना स्थान बना चुके हैं। वह व्यवस्थित हो चुके हैं और करीब 6000 बच्चे हमारे साथ जुड़े हुए हैं। मुख्य तौर पर यह बच्चे जम्मू कश्मीर से हैं, मणिपुर से हैं, असम से हैं, छत्तीसगढ़ से हैं, गुजरात के बच्चे थे पहले और अब कम हो गए हैं। कई अन्य राज्यों के बच्चे भी हम से जुड़े हुए हैं। तो आज के डेट में करीब 6000 ऐसे बच्चे हैं जिनको हम सहायता प्रदान कर रहे हैं।

पैमाना क्या होता है इन बच्चों की मदद का?

इसमें दो मुख्य पैमाने होते हैं। इनमें से एक कि बच्चे के कोई भी ब्रेड अर्नर या फिर माता-पिता या फिर लीगल गार्डियन में कोई भी आतंकवादी, कम्युनल, नक्सली घटनाओं में उनकी मृत्यु हुई हो या फिर वह परमानेंटली इनकैपेबल हो गया हो पहला क्राइटेरिया यह है। इन्हीं बच्चों को हम कवर करते हैं। बाकी अन्य दूसरे बच्चों को हम कवर नहीं करते और दूसरा जिस परिवार से यह बच्चे आते हैं उनका सालाना आमदनी ₹2 लाख से कम होना चाहिए सिर्फ यह दो महत्वपूर्ण क्राइटेरिया है।

क्या दूसरे जरूरतमंद बच्चों की भी National Foundation For Communal Harmony मदद करता है?

दूसरे बच्चों की मदद जो इस दायरे से बाहर आते हैं सरकार के अन्य कई स्कीम है उनसे मदद मिलती है। जैसे विभिन्न जातियों के बच्चों को सोशल वेलफेयर की स्कॉलरशिप स्कीम से मदद मिलती है। मेधावी छात्रों को मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन की स्कीम से मदद मिलती है। राज्य सरकारों की भी अपनी-अपनी स्कीम है। उन बच्चों को जो दूसरी कैटेगरी के हैं, जो गरीब है, जो पिछड़े वर्ग के हैं, उनके लिए भारत सरकार के अलग-अलग स्कीम है जो इस पर काम कर रही है। National Foundation For Communal Harmony की स्कीम सिर्फ इन्हीं बच्चों के लिए मदद करती है जो इस तरह के हिंसा के शिकार परिवारों से हैं।

पीड़ित बच्चे के Education के लिए National Foundation For Communal Harmony कैसे मदद करता है।

इस स्कीम के तहत हम बच्चों को रिहैबिलिटेशन और एजुकेशन के लिए हम मदद करते हैं। रिहैबिलिटेशन का मतलब यह है कि अगर कोई बच्चा 5 साल से कम उम्र का है तो उसको हम रिहैबिलिटेट करते हैं और अगर जो 5 साल के ऊपर हो गया और जब स्कूल जाने लगा तो उसके स्टूडेंट लाइफ में हम पूरी उसकी मदद करते हैं। या फिर जब तक वह एजुकेशन कंप्लीट है ना कर ले या फिर जब तक वह 25 साल का ना हो जाए, जो भी जल्दी हो जाए। इसमें हमारा सिर्फ एक क्राइटेरिया रहता है कि एक बार जब बच्चा रजिस्टर हो जाता है तो उसे उसके परिवार को अपना इनकम सर्टिफिकेट देना होता है और स्टडी कंटिन्यूएशन सर्टिफिकेट देना होता है रिस्पेक्टिव डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर के थ्रू। हम उसके लिए फंड रिलीज करते रहते हैं। रिलीफ का जो मेग्नीट्यूड है वह ₹15000 हर साल। ₹15000 12वीं क्लास तक। ₹18000 ग्रेजुएशन तक और ₹21000 अगर बच्चा कोई प्रोफेशनल कोर्स करता है तो उसके लिए।

नेशनल फाउंडेशन फॉर कम्युनल हार्मनी की तरफ से क्या बच्चों के हेल्थ या खेलकूद में भी मदद की जाती है?

आप को यह बात ध्यान में रखनी होगी कि यह बच्चे इस तरह के बैकग्राउंड से आते हैं जो बहुत ज्यादा इमोशनली डिस्टर्ब होते हैं। कई बच्चे हमारे ऐसे हैं जो अपने माता-पिता को अपनी आंखों के सामने खोया है। इन बच्चों का स्कूल जाना बहुत जरूरी है। अगर ये स्कूल नहीं जाएंगे तो ये समाज में कहां जाएंगे इसका अंदाजा हम सब लगा सकते हैं। तो हमारा यह मुख्य उद्देश्य रहता है कि इनकी जिंदगी एक नॉर्मल्सी की तरफ जाए और यह एक आम बच्चों की तरह जिंदगी जिए ताकि दुखद घटनाएं जो इनके साथ घटी है वह उसे भुला सकें।

आप समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं, इतने बड़े पैमाने पर नेशनल फाउंडेशन फॉर कम्युनल हार्मनी काम कर रहा है तो सक्सेस स्टोरीज भी बहुत सारी होंगी?

हमारी एक बच्ची है, असम से है, उसके साथ भी इसी तरह से दुखद हादसा हुआ था। लेकिन वह पढ़ी, उसको हमने सपोर्ट किया। असम पुलिस में आज हो अच्छे पदवी पर है। हमारे दो बच्चे असम से पढ़ कर मेडिकल कॉलेज में जाकर दोनों डॉक्टर बन गए हैं। एक बच्चा एमडी कर रहा है। एक बच्चा हमारा है पॉल जो जी टीवी का एक प्रोग्राम आता था। 2005 में अगर आपको याद होगा इंडियाज गॉट टैलेंट टाइप का एक कार्यक्रम आता था। पॉल उसमें जाकर विनर बना। हमारे बहुत सारे बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील है। शायद कोई पत्रकार भी हो। ऐसे बच्चों को देखकर बहुत ज्यादा खुशी होती है।

कंप्लायंस की बात करें तो आप ये कैसे सुनिश्चित करते हैं कि जिस बच्चों की पढ़ाई में आप मदद कर रहे है वो वाकई में पढ़ाई कर रहे है?

देखिए इसके कई तरीके हैं, एक तो ये तरीका है कि हम बीच-बीच में जाकर बच्चों से मिलते हैं। दूसरा जो पीएसयू हमें जो सपोर्ट करती हैं अपना उनका एक अलग मैकेनिज्म होता है चेक एंड बैलेंस का। वह लोग खुद अपने इस पहल का रिपोर्ट लेते हैं कि कितनी इफेक्टिव है यह स्कीम। हर साल इन बच्चों को एक स्टडी कंटिन्यूएशन सर्टिफिकेट देना होता है, उसके बगैर हम असिस्टेंट रिलीज नहीं करते। जब स्टडी कंटिन्यूएशन सर्टिफिकेट आता है तभी हम उनको फंड रिलीज करते हैं। हर 3 साल में बच्चों के अभिभावक को इनकम सर्टिफिकेट देना पड़ता है कि मेरी फैमिली का इनकम दो लाख से ज्यादा नहीं है। ऐसे ही हम कंप्लायंस करते है।

जिस तरह से अपने जिक्र किया कि हमारे बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर बनते हैं, क्या आपके सक्षम बच्चें भी आपको आर्थिक मदद करते हैं?

हमने कभी मांगा नहीं है। इमानदारी से कहे तो हम किसी से नहीं मांगते। जो आपकी इच्छा हो वह दीजिए। कई बच्चे ऐसे हैं जो हमारी मदद कर सकते हैं। आपने बहुत अच्छा आईडिया दिया है। उनको भी हम अप्रोच करेंगे। देखिये यह एक सेवा भाव वाला मामला है। हम चाहते हैं जो आदमी हमें पैसा दे वह इच्छा से दे और अच्छे कार्य के लिए दें।

The CSR Journal से बात करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।