कोरोना महामारी के कारण देश की अर्थ-व्यवस्था और जीवन निर्वाह के संकट से गरीबी बढ़ी है। गरीबी पहले भी अभिशाप थी लेकिन कोरोना महामारी की वजह से यह संकट और गहरा गया है। अर्थ-व्यवस्था चौपट है, बेरोज़गारी है, ग़रीबी है और यही सच्चाई है। भले कोई बड़े बड़े सपने दिखाए, 5 ट्रिलियन इकॉनमी की बात करें लेकिन यही हक़ीक़त है कि आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी हम गरीब है, हमारे देश की जनता गरीब है। इस कोरोना महामारी में राहत देने के लिए सरकार ने 20 लाख करोड़ के पॅकेज की घोषणा की, लेकिन किन लोगो को राहत मिली ये हम सब बखूबी जानते है।
यह सोचकर भी हैरानी होती है कि हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां की 40 करोड़ आबादी आज भी जानवरों जैसी बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर है। उसके पास न तो आय के पर्याप्त साधन हैं और न ही सरकार से ऐसी कोई सार्थक मदद मिल रही है कि वह अपनी मुलभुत रोटी, कपडा, मकान, रोजगार, अच्छी सेहत, अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी जरूरतों को पूरा कर सकें। गरीबों और जरूरतमंदों के उत्थान के लिए सरकारों के पास तो हज़ारों योजनाएं है लेकिन ये योजनाएं इन तक पहुंचती ही नहीं। इसका सबसे बड़ा कारण इन योजनाओं की जानकारी का अभाव और लालफीताशाही है। गरीबों और जरूरतमंदों तक सरकार और सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) की योजनाओं को समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है सतीश सातपुते ने।
सीएसआर योजनाओं को आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाने वाले समाजसेवी है सतीश सातपुते
गरीबों के हक़ के लिए लड़ने वाले सतीश सातपुते की यही कोशिश होती है कि इन योजनाओं का लाभ समाज के हर तबके तक पहुंचे। इसके लिए सतीश ने बाकायदा एक गैर सरकारी संगठन यानी एनजीओ भी बनायीं है। सतीश की एनजीओ आपले घर लगातार सरकारी योजनाओं को समाज के उन आखिरी व्यक्ति पर पहुंचाने का काम करती है जिसे ज्यादा जरुरत हो। सतीश चाहते है कि सरकारी योजनाओं के लिए सरकार का साथ तो मिल रहा है लेकिन अगर कॉरपोरेट की भी मदद मिले तो ये दायरा और भी बढ़ाया जा सकता है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी सरकार और कॉरपोरेट दोनों अगर मिलकर सोशल अपलिफ्टमेंट के लिए काम करें तो भारत में हर किसी के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। अर्थव्यवस्था की इस विषमता को दूर करने के लिये सतीश सातपुते चाहते है कि सीएसआर फंड्स का भी इस्तेमाल व्यापक तरीके से हो।
सरकार और सीएसआर की मदद से सतीश सातपुते लगातार लोगों की जिंदगियों में ला रहे हैं सकारात्मक बदलाव
सरकार और सीएसआर की मदद से सतीश लगातार लोगों की जिंदगियों में सकारात्मक बदलाव ला रहें है। सतीश सातपुते महाराष्ट्र सरकार के तमाम मंत्रालयों के विकास की योजनाओं को समाज के अंतिम जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंचाने का काम करते है। जहां सरकारी फंड की कमी महसूस होती है वो कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड की मदद लेते हैं। सतीश की पहलों से जरूरतमंदों की जिंदगी बदल रही है। सतीश की पहल से किसी जरूरतमंद को आवास मिल रहा है तो ऐसे भी मामले देखने को मिले कि आज़ादी के बाद पहली बार किसी गांव में घर के भीतर स्वच्छ पीने का पानी मिल सका। सतीश की ही पहल का नतीजा है कि बच्चों को खेलने का मैदान मिला और तो और जो गांव डेवलपमेंट से कनेक्टेड ही नहीं था वहां रोड लाकर विकास के प्रोजेक्ट्स को सरपट दौड़ाया।
सतीश की पहल से अड़ने गांव में आज़ादी के बाद पहली बार पहुंचा घर तक पानी
मुंबई से महज 100 किलोमीटर की दुरी पर है पालघर का अड़ने गांव, लेकिन अड़ने गांव में आजादी के बाद पहली बार साल 2019 में यहां घरों तक पानी पहुंचा। इसके पहले गांव वाले पानी की एक एक बूंद के लिए तरसते थे। घर की महिलाएं 4-4 किलोमीटर तक चलकर कुएं से पानी भरने जाती थी। किसी को मिलता तो कोई पानी की मूलभूत जरूरतों के लिए वंचित रह जाता। कुएं पर बर्तनों की कतार लगती, यहां तक कि पानी के लिए लड़ाईयां तक हो जाती। लेकिन अब लोगों के चेहरे पर खुशियां है, गांव में खुशहाली है। अब अड़ने गांव में हर घर में नल है, नल खोलिये और पानी आपके घर में। ये संभव हो पाया सतीश सातपुते की वजह से, सतीश की पहल से मुख्यमंत्री पेयजल योजना के अंतर्गत 1 करोड़ की परियोजना इस गांव में आयी। अब गांव के 2 हज़ार लोग पानी के लिए दर दर नहीं भटकते।
सतीश सातपुते की पहल से पुणे में 36 परिवारों को मिला आशियाना
बेबी काटकर अपने पति और चार बच्चों के साथ मालेगांव दत्ता वाड़ी में रहती है, घर की माली हालत ठीक नहीं है, किसी तरह पति के साथ खेती में मजदूरी कर गुजर बसर करती है, गनीमत इस बात का है कि पूरे परिवार के सिर पर छत है। इसके पहले बेबी और उनका पूरा परिवार मिटटी और घासफूस के बने घर में रहता है, थोड़ी सी बारिश में घर तहस नहस हो जाता। यही हाल कुछ रुक्मिना का भी है, पति का देहांत हो गया है, पूरे परिवार की जिमेदारी रुक्मिना पर है, 3 बेटियों की मां रुक्मिना का घर पहले मिटटी का था, लेकिन अब पक्का मकान बन गया है। सिर्फ बेबी और रुक्मिना की ही जिंदगी नहीं बल्कि सतीश सातपुते की पहल से पुणे के भोर तहसील में 36 परिवारों को उनके सुंदर आशियाने का सपना सच हुआ है। महाराष्ट्र सरकार कातकरी समाज के आशियाने के लिए कातकरी आवास योजना चलाती है, लेकिन कातकरी समाज के लोगों को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होने की वजह से योजनाओं से वंचित रह जाते है। ऐसे में सतीश सातपुते की पहल से 36 परिवारों के सिर पर अब छत संभव हो पाया है।
उल्हासनगर को मिला प्लेग्राउंड और गार्डन्स
हंसते खेलते ये बच्चे हमारे देश के भविष्य है, लेकिन प्ले ग्राउंड और गार्डन्स की कमी ने मानों इन्हे कैद सा कर लिया हो। आज़ाद पंखों की तरह उड़ने वाले इन बच्चों को खेल कूद के लिए मैदान की कमी ना हो इसलिए सतीश सातपुते की पहल से मुंबई से सटे उल्हासनगर में एक सुसज्जित बच्चों के लिए प्ले ग्राउंड भी बनाया गया है। इतना ही नहीं बल्कि युवाओं के लिए यहां ओपन जिम भी बनाया गया है। उल्हासनगर अपने कल कारखानों और स्लम इलाकों की वजह से जाना जाता है। साढ़े 13 किलोमीटर के क्षेत्र के उल्हासनगर में 12 लाख लोग रहते है। यहां 120 अघोषित और 48 घोषित स्लम्स इलाके है। आज भी ये स्लम्स विकास से कोसो दूर है, यहां के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है, इन स्लम्स में ना तो पीने का स्वच्छ पानी पर्याप्त मिलता है और ना ही हर घर में टॉयलेट्स है। लेकिन स्थानीय नगरसेवक प्रमोद टाले के प्रयत्नों और सतीश सातपुते की पहल से अब यहां के लोग मुलभुत सुविधाओं से वंचित नहीं है।
कहते है कि अगर किसी गांव में विकास करना है तो उसे किसी बड़े शहर से जोड़ दो, कनेक्टिविटी का सबसे बड़ा साधन होता है रोड। ये रोड विकास पथ है, ये रोड विकास की डगर है जो सतीश सातपुते की वजह से संभव हो पायी है। बहुत तेजी से इस रोड का निर्माण हो रहा है, इसी रोड के जरिये विकास की बयार महाराष्ट्र के नासिक के एक छोटे से गांव जाएगी, इसी रोड से होकर विकास की नीतियां मुंबई के मंत्रालय से एक छोटे से गांव में पहुंचेगी। आवास हो या फिर स्वच्छ पीने का पानी, स्कूल हो या इंफ्रास्ट्रक्चर या फिर हो हेल्थ, लोगों की जिंदगानी संवारने के लिए सतीश की ये पहल बहुत सराहनीय है। सरकार और सीएसआर की मदद से सतीश सातपुते जरूरतमंदों और गरीबों के अधिकारों के लिए हमेशा लड़ते आये है, ऐसे लोग समाज के लिए आईना है।