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उत्तर प्रदेश में श्रमिकों के पुनर्वसन का क्या है मास्टर प्लान?

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वो मजदूर ही होता है जो किसी भी राज्य के विकास की नींव रखता है। वो मजदूर ही होता है जो देश की रीढ़ की हड्डी कहलाता है। कोरोना काल में मजदूरों का क्या हाल रहा ये हम सब बहुत अच्छी तरह जानते है। बड़े पैमाने पर देश के कोने कोने से श्रमिकों का पलायन हुआ, चाहे वो महाराष्ट्र हो या दिल्ली, उत्तर प्रदेश के श्रमिक अपने राज्य पहुंचे। लेकिन उत्तर प्रदेश पहुंचने के बाद राज्य में उनका पुनर्वसन कैसे किया जाएगा, किस तरह से श्रमिकों को रोजगार दिया जाएगा, कितने श्रमिक यूपी आये। क्योंकि यूपी ही एक मात्र राज्य रहा जो श्रमिक मजदूरों को खुले दिल से स्वीकार किया और पुनर्वसन के लिए बाकायदा श्रमिक आयोग का गठन किया। इन तमाम मुद्दों पर बात करने के लिए हमारे साथ है उत्तर प्रदेश के श्रम आयुक्त (लेबर कमिश्नर) डॉ सुधीर बोबड़े जी। सुधीर सर, The CSR Journal में आपका बहुत बहुत स्वागत है।

मेरा पहला सवाल है कि उत्तर प्रदेश में जितने भी श्रमिक आये हुए है, उनका पुनर्वसन आप लोग किस तरह से कर रहें है ?

सबसे पहले मैं The CSR Journal का धन्यवाद देता हूं कि आपने मुझे आमंत्रित किया, रही बात आपके सवाल की तो कोरोना काल के दरमियान उत्तर प्रदेश में महाराष्ट्र हो, गुजरात हो या फिर अन्य राज्य जैसे दिल्ली हो, एनसीआर हो, चंडीगढ़ हो, पंजाब हो यहां से जितने भी प्रवासी श्रमिक थे वह अधिक से अधिक श्रमिक हमारे उत्तर प्रदेश में आए हैं। इसके बाद राज्य सरकार के तीन विभागों ने इन श्रमिक मजदूरों का डेटाबेस तैयार करने का जिम्मा उठाया है। ये विभाग है राजस्व, सेवायोजन निदेशालय, श्रम आयुक्त संगठन। माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स गठित किया था, राज्य सरकार प्रवासी मजदूरों पर लगातार मंथन करती आयी है, इन प्रवासी मजदूरों का किस तरह से पुनर्वासन किया जा सकता है इसके लिए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर की मई महीने के पहले सप्ताह में बैठक होने के बाद यह फैसला हुआ कि एक आयोग का गठन होना चाहिए और उसी के क्रम में मंत्री मंडल ने बहुत बड़ा निर्णय लिया है। मेरे ख्याल से राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश एकमात्र राज्य बन गया है जहां रोजगार एवं सेवायोजन आयोग का गठन किया है।  इसके पीछे की मंशा यही है कि जो प्रवासी श्रमिक है उनका डेटाबेस हमने बनाया है। रोजगार एवं सेवायोजन आयोग लेबर और जो इंडस्ट्री की डिमांड है,उस डिमांड और सप्लाई को मैच करने का काम यह रोजगार एवं सेवायोजन आयोग करेगा।

श्रमिकों के पुनर्वसन को लेकर आपने बड़े ही सिलसिलेवार तरीके से सारी चीजें बतायीं, यह सारी चीजें फाइलों में दर्ज है। इसकी एक प्रक्रिया है। लेकिन इस बीच सबसे बेसिक सवाल यह है कि लॉकडाउन के दरमियान बहुत ही कठिन परिश्रम करके श्रमिक मजदूर दूसरे राज्यों से उत्तर प्रदेश आया है। उनकी जेब में पैसा कब जाएगा, इन मजदूरों को रोजगार कब से मिलना शुरू हो जाएगा ?

इस कोरोना काल में बिल्डिंग एंड अदर वर्क्स वेलफेयर बोर्ड में जितने भी रजिस्टर्ड लेबर हैं। उनके खाते में हम सीधे तौर पर ₹1000 प्रतिमाह दे रहे हैं। वह भी पिछले 3 महीनों से। मैं यहां पर बताना चाहूंगा कि बिल्डिंग एंड अदर वर्क्स वेलफेयर बोर्ड के अंतर्गत जितने भी लेबरों का नया रजिस्ट्रेशन हुआ है उन्हें भी 1 हज़ार रुपये मिल रहें है और ऐसे लगभग 20 लाख से ऊपर लोग हैं जोकि इसमें रजिस्टर्ड है। तो श्रमिक मजदूरों को पैसे मिलने का काम शुरू है। रोजगार देने को लेकर राज्य सरकार का कहना है कि इंडस्ट्रीज जितना हो सके अपने सामर्थ्य के अनुसार लोगों को रोजगार दें। रोजगार को लेकर कोई दिक्कत ना हो। साथ ही कोरोना काल में श्रमिकों का शोषण ना हो इसलिए हम लगातार कोशिश करते रहे है। श्रमिकों की कोई शिकायत बहुत ज्यादा नही आयी कि हमें भुगतान नही किया गया, और अगर शिकायत आयी तो हमनें दोनों की तरफ से तालमेल बिठाने का काम किया है। श्रमिकों का और उद्यमियों का ताकि श्रमिकों का भुगतान भी हो जाये और बिजनेसमैन पर अधिक भार ना आये।

जब से कोरोना काल की शुरुआत हुई मजदूरों का पलायन शुरू हुआ, बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिकों की राज्य वापसी हुई, उसके बाद से क्या उत्तर प्रदेश में मजदूरों को नौकरियां मिल रही है, उन्हें रोजगार मिल रहा है क्या ?

श्रमिकों को नौकरी मिलने के काम की शुरुआत हुई है, मैंने कानपुर में उद्योगों के प्रतिनिधियों से एक बैठक की। कानपुर इसलिए क्योंकि मैं कानपुर का मंडलायुक्त भी हूं, लेबर विभाग के अधिकारी, इंडस्ट्रीज विभाग के अधिकारियों और इसके अलावा बिजनेसमैनों से मुलाकात की। मैं यहां पर उदाहरण देना चाहूंगा कि यहां पर इंडस्ट्रीज में वेल्डर की डिमांड आई थी, वेल्डर की डिमांड आने के बाद उन्हें श्रमिकों की लिस्ट उपलब्ध करा दी गई है। उनकी स्किल, उनकी क्षमता के अनुसार इंडस्ट्रीज ने उनको हायर करना शुरू कर दिया है। श्रमिकों को रोजगार मिलना शुरू हो चुका है। और धीरे-धीरे रोजगारों की जो कैपेसिटी है वह और बढ़ती जाएगी। इस बीच मैं यहां पर कहना चाहूंगा कि जितने भी संस्थान है, इंस्टिट्यूट है, इंडस्ट्रीज़ है, वह लोग कम कैपेसिटी पर काम कर रही हैं। इंडस्ट्रीज़ 20 से लेकर 40 फ़ीसदी की क्षमता पर चल रही है, जैसे-जैसे इंडस्ट्रीज़ फुल फ्लेज कैपेसिटी पर आती जाएगी वैसे वैसे लेबर की डिमांड बढ़ती जाएगी और स्किल मैपिंग के माध्यम से इंडस्ट्रीज की जो मांग है उसे हम पूरा कर देंगे।

हमेशा से ही उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी रही है। उत्तर प्रदेश के श्रमिक दूसरे राज्यों में, चाहे महाराष्ट्र, गुजरात हो, दिल्ली हो, तमाम जगहों पर जाते रहे हैं। रोजगार की तलाश में। लॉकडाउन के दरमियान जितने भी प्रवासी मजदूर थे, वह वापस आ रहे हैं, पहले से ही उत्तर प्रदेश बेरोजगारी की मार झेल रहा है ऊपर से प्रवासी मजदूर भी रिटर्न आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कुछ ज्यादा ही भार पड़ने लगा है। इसको किस तरह से आप लोग टैकल कर रहे हैं?

हम परंपराओं को देखें तो उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य रहा है जहां पर लेबर सरप्लस रहे हैं। उत्तर प्रदेश से हमेशा से ही लोग बाहर काम करने के लिए जाते रहे हैं। जब यह मजदूर वापस उत्तर प्रदेश में आए हैं तो जाहिर सी बात है थोड़ा सा दबाव जरूर बनेगा। इसका राज्य पर प्रभाव जरूर पड़ेगा और यह हम उम्मीद लगा कर बैठे ही थे। और दूसरी बात यह भी है कि प्रवासी श्रमिकों के लौटने के बाद हम यह भी उम्मीद लगा कर बैठे थे कि प्रदेश में जमीनी विवाद बढ़ सकता है और हमने देखा कि इस दरमियान जमीनी विवाद थोड़े बढे भी हैं। इसके लिए हमने राजस्व विभाग और पुलिस प्रशासन को पहले से ही सतर्क करके रखा था। जैसे कोई जमीनी विवाद बढ़ता है तो उसका निस्तारण जल्द हो। उदहारण के तौर पर मान लीजिए कि किसी घर में 5 भाई हैं। जिनमें सिर्फ तीन भाई बाहर काम कर रहे थे, वह लौटकर आ गए। दो भाई यहां पर जमीन की देखभाल कर रहे थे, खेती का काम कर रहे थे।  जो लौटकर आये वो भी जमीन की डिमांड करने लगे, फिर विवाद बढ़ा। लेकिन इन विवादों को पुलिस और रेवन्यू डिपार्टमेंट की सतर्कता की वजह से निष्क्रिय किया जा सका। जैसे जैसे ऐसे विवादित मामला आता गया, हम समाधान करते गए।

जमीनी विवाद का समाधान तो आप लोग कर रहें है लेकिन बेरोजगारी का समाधान कैसे होगा?

जैसे मैंने बताया कि स्किल मैपिंग के बाद हमारी उद्योगों के साथ बातचीत जारी है, इसके साथ ही मनरेगा के कन्वर्जन प्रोग्राम की मदद से हम उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को रोजगार देने का काम कर रहें हैं।

यहां पहले से ही रोजगार की कमी और उद्योगों की कमी है। ऐसे में कैसे यह संभव हो पा रहा है कि जितने भी श्रमिक मजदूर आए उन सभी को रोजगार मिल जाए ?

उत्तर प्रदेश सरकार की यह नीति है कि श्रमिक मजदूरों को रोजगार मुहैया कराना। इसके साथ ही जिस तरह से देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी ने कहा है आत्मनिर्भर बनने के लिए, उस दिशा में भी हमें काम करना होगा। हमें ग्रामीण क्षेत्रों में भी उत्पादन और रोजगार के अवसर करने होगें। ताकि प्रवासी मजदूर और निवासी मजदूर दोनों को आत्मनिर्भर होते हुए काम मिल सके।

रोजगार की हम बात कर रहे हैं, मुंबई जैसे महानगर में एक श्रमिक दिन का हजार रुपए कमाता है। तो आपको लगता है कि वह उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में मनरेगा और छोटे उद्योगों में ₹200 दिहाड़ी मजदूरी करेगा। इतने कम पैसे अगर उसे यहां उत्तर प्रदेश में मिलेगा तो फिर से वो पलायन करेंगे। सीएम योगी जी ने पहले ही कहा है कि अगर कोई वापस जायेगा तो उसे रजिस्ट्रेशन करवाना होगा, ये कैसे संभव होगा?

देखिए राजनीतिक मसलों पर मैं कोई टिप्पणी नही करना चाहूंगा। लेकिन इकोनॉमिक्स के प्रिंसिपल पर निश्चित तौर पर बात करुंगा। मान लीजिये आप अगर मुंबई में रहते हैं और आपको ₹1000 मिलता है, ग्रामीण इलाकों में अगर आप रहते हैं तो आपको ₹200 मिलता है। लेकिन आपकी कॉस्ट ऑफ लिविंग मुंबई में कितनी है और यहां ग्रामीण इलाके में कितनी है। इस पर भी विचार करना चाहिए। यह हुई पहली बात, दूसरी बात यह कि अगर आप अपने परिवार से दूर रहते हैं, आप अकेले रहते हैं तो आप दुखी रहते हैं। लेकिन अगर आप अपने परिवार के साथ रहते हैं तो कितना सुख मिलता है।  इसका अंदाजा हर कोई बड़ी आसानी से लगा सकता है।

आप उत्तर प्रदेश राज्य के लेबर कमिश्नर है। आप इस दरमियान कई इंडस्ट्रियलिस्ट से बात कर रहे हैं। क्या तालमेल बिठाने की कोशिश की जा रही है।  किस तरह से आप डील कर रहे हैं, ताकि मजदूरों को इन इंडस्ट्रीज में रोजगार मिल सके? मजदूरों का शोषण ना हो सके, उन्हें मजदूरी मिल सके?

जब लॉक डाउन की शुरवात हुई तब भारत सरकार और राज्य सरकार ने भी कहा था कि एक भी श्रमिकों को नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। इस दरमियान उनको उनका मेहनताना भी मिलेगा। मार्च 25 को जब लॉकडाउन शुरू हुआ, 25 मार्च 31 तक मजदूरों का पैसा सभी इंडस्ट्रीज ने पूरा दिया।  अप्रैल महीने का जब मई में पैसा देना हुआ तो जिस इंडस्ट्रीज का जैसा सामर्थ रहा उस हिसाब से लेबर को उनके जीवनी के लिए, सर्वाइकल के लिए भुगतान देना पड़ा, ये हम सब सुनिश्चित किये कि श्रमिकों को कोई पैसे मिलने में दिक्कत ना हो। अभी आपने देखा ही होगा माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक स्पष्ट आदेश दिया है कि श्रमिकों को के भुगतान के लिए उद्योगों और श्रमिकों को आपस में तालमेल बिठाकर वेजेस दिया जाए।