इस कोरोना काल में जब पूरी दुनिया टीबी की जागरूकता के लिए 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाएगी तब मुंबई का एक डॉक्टर अस्पताल में टीबी के मरीजों की सेवा खत्म करने के बाद, सड़कों पर टीबी के खिलाफ जान जागरूकता अभियान चलाएगा। अगर आपको मुंबई की सड़कों पर टीबी के बारें जानकारियां देते हुए कोई दिख जाए तो आप ये समझ जाईयेगा कि वो कोई और शख्स नहीं बल्कि डॉक्टर ललित आनंदे है। टीबी के मामलों में एक्सपर्ट डॉक्टर ललित आनंदे पिछले कई सालों से मुंबई के शिवड़ी टीबी अस्पताल में रहे।
डॉ ललित आनंदे इलाज के साथ साथ फैलते है टीबी (TB – Tuberculosis) के प्रति जागरूकता
शिवड़ी टीबी अस्पताल में मरीजों की सेवा करने के बाद जब भी ललित आनंदे को वक़्त मिलता वो मुंबई के भीड़ भाड़ इलाकों में चले जाते और वहां लोगों को इक्कठा कर टीबी की जानकारी देना शुरू कर देते। लोगों में टीबी बीमारी के बारें में जागरूकता फैलाते। The CSR Journal से ख़ास बातचीत करते हुए डॉ ललित आनंदे ने बताया कि टीबी के कारण मरने वाले किसी भी मरीज की मौत आसान नहीं होती। डॉ आनंदे कहते हैं कि “मेरी देखरेख में मरने वाला हर मरीज मुझे बहुत दर्द दे जाता। लगता कि जैसे उसने मेरे गालों पर एक तेज तमाचा लगाया हो ! इसी आंतरिक पीड़ा ने मुझे अस्पताल से बाहर सक्रिय होने के लिए मजबूर कर दिया”।
मरीजों को ठीक करने के साथ-साथ ललित आनंदे ने तय कर लिया कि वो मरीजों की संख्या भी नहीं बढ़ने देंगे। इसलिए पिछले कई वर्षों से डॉ ललित हर उस सार्वजनिक जगह पर जाते है जहां भीड़ भाड़ होता है। स्कूलों, धार्मिक आयोजनों के आलावा लोकल ट्रेन में सफर करते हुए वो सामान्य लोगों से मिलकर उन्हें स्वस्थ रहने के उपाय बताते है। डॉ के पास अपना माइक और स्पीकर होता है।
टीबी के प्रति जानकारी टीबी की लड़ाई में पहला कदम
डॉ ललित आनंदे बताते है कि टीबी के प्रति जानकारी टीबी की लड़ाई में पहला कदम है। टीबी ना हो इसके लिए शरीर की इम्युनिटी बहुत महतवपूर्ण है। डॉ ललित जब भी लोगों के बीच जाते है वो लोगों को इम्युनिटी कैसे बढ़ाया जाय इसपर भी बातें करते है। डॉ ललित बताते है कि कोरोना काल टीबी मरीजों के लिए बहुत कठिन रहा। क्योंकि लॉक डाउन की वजह से टीबी के मरीज डॉक्टर्स के कंसल्टिंग नहीं कर पा रहे थे लेकिन अच्छी बात ये है कि कोरोना काल में टीबी की बीमारी में कमी आयी है।
कोरोना और टीबी में काफी समानता
कोरोना और टीबी दोनों ही बीमारी में काफी हद तक समांतर है। कोरोना जैसे एयर बोर्न डिजीज है वैसे ही टीबी है। कोरोना और टीबी बीमारी के लक्षणों में भी बहुत हद तक समानताएं है। शरीर की इम्यूनिटी स्ट्रांग हो तो कोरोना और टीबी को हराया जा सकता है। कोरोना ने जहां भारत को अनजानी महामारी की चपेट में पहुंचा दिया है। वहीं दूसरी तरफ टीबी के संक्रमण का खतरा भी कम हुआ है। टीबी के मामले कम हुए है। लोग कोरोना से बचने के लिए मास्क लगा रहे है, इम्यूनिटी पर ध्यान दे, लॉकडाउन की वजह से टीबी मरीजों का खुले में घूमना फिरना बंद हो गया है। इसलिए टीबी के केसेस में गिरावट दर्ज की गयी है।
24 मार्च को हर साल मनाया जाता है वर्ल्ड टीबी डे (World TB Day)
टीबी का नाम सुनते ही अधिकतर लोग डर जाते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि टीबी (TB) एक संक्रामक (Infectious) बीमारी है लेकिन लाइलाज नहीं है। हालांकि कुछ मामलों में यह गंभीर हो सकती है। हवा में मौजूद बैक्टीरिया से दूषित ड्रॉपलेट को जब कोई स्वस्थ व्यक्ति सांस के जरिए शरीर के अंदर लेता है तो उसे टीबी की बीमारी हो जाती है। टीबी, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) नाम के बैक्टीरिया की वजह से होती है। 24 मार्च को हर साल वर्ल्ड टीबी डे (World TB Day) मनाया जाता है ताकि लोगों के बीच इस बीमारी को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके।
भारत में टीबी के सबसे ज्यादा मामले
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनियाभर के टीबी मरीजों में से 24% टीबी के पेशंट्स भारत में ही हैं। साल 2018 में करीब 1 करोड़ लोगों को पूरी दुनिया में टीबी हुआ था जिसमें से 15 लाख लोगों की मौत हो गई थी। यही कारण है समय रहते लक्षणों की पहचान करके बीमारी का पता लगाना जरूरी है ताकि लोगों की जान बचायी जा सके। वैसे तो टीबी की बीमारी का सबसे अधिक प्रभाव फेफड़ों (Lungs) पर ही पड़ता है लेकिन फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूट्रस, मुंह, लीवर, किडनी, गले यानी शरीर के किसी भी अंग में टीबी की बीमारी हो सकती है। हालांकि ज्यादातर लोगों को फेफड़ों में होने वाली टीबी ही है।
टीबी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है इसलिए समय पर बीमारी की पहचान करके उचित एंटीबायोटिक्स की खुराक शुरू हो जाए तो टीबी का इलाज हो सकता है। किसके लिए कौन सी एंटीबायोटिक सही है और इलाज कितने समय तक चलेगा, यह इन बातों पर निर्भर करता है। व्यक्ति की उम्र क्या है और उसकी सेहत कैसी है। मरीज को एक्टिव टीबी हुई है या लैटेंट यानी अप्रत्यक्ष टीबी जिसमें लक्षण नहीं दिखते। टीबी का इंफेक्शन शरीर के किस हिस्से में हुआ है। टीबी का इलाज आमतौर पर 3 महीने से लेकर 9 महीने तक चलता है। लक्षण चले जाने के बाद भी बेहद जरूरी है कि आप दवा का कोर्स पूरा करें वरना बीमारी के दोबारा उभरने की आशंका रहती है। सबसे महत्वपूर्ण कि भारत में टीबी का इलाज बिलकुल मुफ्त है।