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September 10, 2025

World Suicide Prevention Day- पहचाने संकेत और यूं करें मदद क्यूंकी, सस्ती नहीं है ज़िंदगी

The CSR Journal Magazine
दुनिया भर में क़रीब आठ लाख लोग हर साल आत्महत्या की वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं, हर चालीस सेकंड में एक व्यक्ति की मौत! विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के आंकड़ों के अनुसार 15 से 29 वर्ष की उम्र के युवाओं में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है आत्महत्या!

परिस्थितियों का नतीजा है आत्महत्या

आत्महत्या जिंदगी का सबसे प्राणघातक फैसला है। जीवन में कई स्थितियां ऐसी बनती हैं जब इंसान उनसे लड़ नहीं पाता। जब उसे समस्या का निदान नहीं दिखता तो उसके पास एक मात्र विकल्प आत्महत्या होती है। आत्महत्या कोई भी आदमी कर सकता है। उच्च शिक्षाविंद्, वैज्ञानिक, अभिनेता, राजनेता, महिलाएं, युवा या फिर आम आदमी! आत्महत्या के संबंध में यह तर्क मनगढ़ंत हैं कि पढ़े-लिखे लोग आत्महत्या कम करते हैं या नहीं करते। भारत में कई उदाहारण हैं जहां सफल व्यक्ति अपनी जिंदगी से पस्त होकर ऐसा कदम उठाता है। जिसके बारे में आम आदमी सोच भी नहीं सकता है कि संबंधित व्यक्ति इस तरह का भी फैसला ले सकता है। देश में कई IAS, IPS, राजनेता, फिल्मी हस्तियां आत्महत्या कर चुके हैं। दक्षिण भारत में Coffee King के नाम से मशहूर हस्ती इसका उदाहरण हैं, जिन्होंने भारी आर्थिक नुकसान की वजह से ऐसा कदम उठाया। आत्महत्या को हम समय रहते रोक सकते हैं लेकिन इसके लिए आत्महत्या करने से पहले व्यक्ति में दिखने वाले लक्षण और परिवर्तन पर हम ध्यान नहीं देते। आधुनिक जीवन शैली बेहद प्रतिस्पर्धात्मक हो चली है। व्यक्ति हर बात को अपनी सफलता और असफलता से जोड़ देता है जिसकी वजह से इस तरह की घटनाएं होती हैं। पूरी दुनिया में हर साल 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। विश्व में होने वाली कुल आत्महत्याओं का 21 फीसदी भारत में होता है। लोगों को आत्महत्या से बचाने के लिए 2003 से पूरी दुनिया में 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या निवारण दिवस मनाया जाता है।

भारत में युवाओं में आत्महत्या का प्रतिशत सबसे अधिक

दुनिया भर में जिंदगी की बढ़ती व्यस्तताओं और कार्य के मानसिक दबाव के साथ जिंदगी का मूल्याकंन अर्थ से जुड़ गया है, जिसकी वजह से युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। विदेशों में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक बुजुर्ग हैं लेकिन भारत में यह स्थिति उलट है। यहां युवा और महिलाएं अधिक संख्या में आत्महत्या करते हैं। भारत में प्रति एक लाख व्यक्ति में 11 व्यक्ति आत्महत्या करते हैं जबकि जापान में यह आंकड़ा 20 व्यक्ति का है। भारत में आत्महत्याओं के मामले में महाराष्ट पहले नंबर पर है। इसके बाद की पायदान पर तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और मध्यप्रदेश शामिल हैं। भारत में कुल आत्महत्याओं में 51 फीसदी की हिस्सेदारी इन्हीं पांच राज्यों की है। पुडुचेरी में आत्महत्या की दर सबसे अधिक हैं। यहां प्रति 10 लाख में 432 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि सिक्किम में यह दर 375 की है। एक शोध से पता चला है कि भारत में पुरुषों से चार गुना अधिक महिलाएं आत्महत्या करती हैं। दक्षिण भारत में दूसरे राज्यों की अपेक्षा शिक्षा दर और लिंगभेद बेहद कम होने के बाद भी यहां महिलाओं की आत्महत्या दर अधिक है। पूरी दुनिया में मौत के कारणों में दसवां कारण आत्महत्या यानी सेल्फ मर्डर का है।

पूरी दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्याएं भारत में

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों के अनुसार 2022 में 1.71 लाख लोगों ने भारत में आत्महत्या की। प्रति एक लाख में इसे 12.4 कहा जा सकता है। अभी तक के रिकॉर्ड में यह सबसे ज्यादा है। यह आंकड़ा भी पूरा सही नहीं है, क्योंकि मृत्यु का पर्याप्त पंजीकरण नहीं हो पाता, मृत्यु का सही प्रमाण पत्र नहीं मिल पाता है। आत्महत्या करने वालों में से 41 प्रतिशत की उम्र 30 वर्ष से कम होती है। भारतीय महिलाएं अपेक्षाकृत अधिक आत्महत्या करती हैं।प्रत्येक आठ मिनट में भारत में होने वाली आत्महत्या से परिवार, समाज, अर्थव्यवस्था और देश के भविष्य को बहुत हानि होती है।

कारण क्या हैं

हाल की एक समीक्षा से पता चलता है कि किशोरों में आत्महत्या का कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 54 प्रतिशत, नकारात्मक या दर्दनाक पारिवारिक मुद्दे 36 प्रतिशत, शैक्षणिक तनाव 23 प्रतिशत, सामाजिक और जीवनशैली कारक 20 फीसदी, हिंसा 22 फीसदी, आर्थिक संकट 9.1 फीसदी और भावनात्मक संबंध 9 फीसदी है। शारीरिक और यौन शोषण, कम उम्र में विवाह, कम उम्र में मां बनना, घरेलू हिंसा, लैंगिक भेदभाव कुछ ऐसे कारण हैं, जिनके चलते युवा लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली में अंकों पर जोर दिया जाता है। इसमें माता-पिता का दबाव, स्वयं से तथा शैक्षणिक संस्थाओं से की जाने वाली अपेक्षांए अंततः आत्महत्या का कारण बनती हैं। भारत के 19 राज्यों में विश्लेषण से पता चला है कि लगभग 20 प्रतिशत कॉलेज विद्यार्थी नेट के आदी हैं। एक तिहाई युवा साइबर ठगी का शिकार होते हैं। इस समूह में से एक तिहाई आत्महत्या करते हैं।

असफलता और निराशावादी सोच करती है प्रभावित

इंसान के भीतर जीवन की असफलताओं की वजह से नकारात्मक विचार पैदा होने लगते हैं। कार्यक्षेत्र में विफल होने की वजह से वह अपना मूल्याकंन कम कर आंकता है, जिसकी वजह से वह ऐसे कदम उठाता है। आत्महत्या के मुख्य कारणों में जीवन के प्रति निराशावादी सोच जिंदगी खत्म करने के लिए प्रेरित करती है, जैसे समस्या का समाधान न दिखाई देना, अचानक व्यवहार में परिवर्तन, एकांतवास करना और मित्रों व परिवार से दूर रहना। नशीली वस्तुओं और दवाओं का सेवन करना, अत्यधिक जोखिम भरे कार्य करना, जिंदगी के प्रति उदासीन नजरिया रखना जैसे मुख्य कारक हैं।

बेरोज़गारी के चलते आत्महत्या

क़रीब पांच साल पहले प्रयागराज में सिविल सेवा की तैयारी कर रहे एक युवक ने आत्महत्या कर ली थी। उस युवक का परिवार अब भी सदमे से उबरा नहीं है। उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले के रहने वाले युवक के छोटे भाई मनोज चौधरी के मुताबिक़, ‘मेरा बड़ा भाई प्रयागराज में रहकर 2011 से यूपी पीसीएस की तैयारी कर रहा था। परीक्षा पास नहीं करने की वजह से निराश था। परेशान होकर उसने आत्महत्या कर ली। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।’
कुछ ऐसी की कहानी राजस्थान के धौलपुर में रह रहे युवक की है। युवक आयुर्वेद कंपाउंडर भर्ती की तैयारी कर रहा था। युवक के भाई मदन मीणा ने बताया, ‘हम पांच भाई हैं। वो सबसे बड़े थे। परीक्षा में चयन न होने के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली। उन्होंने सुसाइड नोट में लिखा था कि राज्य सरकार ने भर्ती नहीं निकाली और वो बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या कर रहे हैं।’ आत्महत्या की ऐसी कहानियां बेरोज़गारी की बढ़ती समस्या का इशारा दे रही हैं। बुधवार को राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि बेरोज़गारी की वजह से 2018 से 2020 तक 9,140 लोगों ने आत्महत्या की है। साल 2018 में 2,741, 2019 में 2,851 और 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2020 में बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

आर्थिक संकट के कारण आत्महत्या

साल 2018 से 2020 तक बेरोज़गारी से अलग दिवालियापन और कर्ज़ की वजह से आत्महत्या करने वालों में भी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे मामलों में इन तीन सालों में कुल 16,091 लोगों ने आत्महत्या की है। साल 2019 में दिवालियापन और कर्ज़ के चलते आत्महत्या करने वाली की संख्या 5,908 है. जो तीन सालों में सबसे ज़्यादा है।

मानसिक तनाव के चलते उठते हैं आत्मघाती कदम

एक शोध के अनुसार मानसिक अवसाद के कारण आत्महत्या की सोच अधिक बढ़ती है, जिसकी वजह से 8.6 फीसदी लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। मनोविकार की स्थिति से 50 फीसदी लोग ऐसा प्राणघातक कदम उठाते हैं। ऐसे लोगों में यह खतरा 20 गुना अधिक रहता है। सिजोफ्रेनिया से और व्यक्तित्व विकार से ग्रसित 14 फीसदी लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। एक आंकड़े के अनुसार जो लोग ऐसा प्रसास कर चुके होते हैं उनमें 20 फीसदी दूसरी बार भी ऐसा करते हैं। जबकि इस 20 फीसदी में एक फीसदी लोग साल भर में इसी प्रयास की वजह से मौत को गले लगाते हैं। जबकि पांच फीसदी लोग 10 साल बाद दोबारा आत्महत्या का प्रसास करते हैं। जुए की लट के शिकार 24 फीसदी लोग कभी न कभी आत्हत्या का प्रसास करते हैं।

आत्महत्या के कुछ चेतावनी संकेत

यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता कि कोई व्यक्ति आत्महत्या के विचारों से जूझ रहा है, लेकिन कई लोग आत्महत्या का प्रयास करने से पहले किसी न किसी तरह की चेतावनी ज़रूर देते हैं।
निराशाजनक या बेकार महसूस करना– आत्महत्या का विचार मन में लाने वाला व्यक्ति ख़ुद को बेकार मानने लगता है। उसे महसूस होता है कि किसी को उसकी ज़रूरत नहीं है, उसके बिना भी ज़िन्दगी यूंही चलती रहेगी। यह सोच कर वह ज़िंदगी जीने की इच्छा छोड़ने लगता है।
वे चीजें करना बंद कर देते हैं जिनका उन्हें आमतौर पर आनंद आता है- आत्महत्या करने से पहले व्यक्ति अपनी रुचियों से भिन्न होने लगता है। जिन चीज़ों को करने से पहले उसे आनंद आता था, मज़ा आता था, उन सभी चीज़ों से उसे अब कोफ़्त होने लगती है।
लोगों से दूरी बनाना– लोगों के संदेशों, कॉल या ईमेल का जवाब न देकर सबसे दूर हो जाता है। लोगों से मिलना- जुलना बंद कर देता है। ख़ुद को आइसोलेट कर लेता है।
चिड़चिड़ापन या भावनात्मक रूप से उग्र हो जाना– आत्महत्या से पहले व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। हर बात पर गुस्सा आना उसका स्वभाव बन जाता है क्यूंकि हर बात उसे अपने खिलाफ लगने लगती है। ज़िंदगी उसके साथ न्याय नहीं कर रही, ये सोच उसपर हावी हो जाती है।
दोस्तों, परिवार या नियमित गतिविधियों से दूर रहना– आत्महत्या करने वाला व्यक्ति हर बीतते दिन के साथ ख़ुद को दोस्तों से, परिवार से अलग करता जाता है। अचानक उसे लोगों से मिलने, बात करने से अरुचि होने लगती है। व्यवहार में अचानक बहुत ज़्यादा बदलाव आता है।
डिप्रेशन में रहने लगना– सुसाइड जैसा फैसला कोई व्यक्ति तभी लेता है, जब वह अपनी जिंदगी में सब तरफ से हारा हुआ महसूस करता है। डिप्रेशन से ग्रसित इंसान के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आने लगता है। उसकी पर्सनैलिटी वैसी हो जाती है, जैसा वो पहले कभी था ही नहीं। व्यवहार में बदलाव, नींद में बदलाव, बोलने में बदलाव, चलने में बदलाव जैसी चीजें नोटिस की जा सकती हैं। ऐसे व्यक्तित्व से चिंता बढ़ना लाजिमी है। जब कोई व्यक्ति डिप्रेशन में हो और किसी गहरे सदमे या दुख में हो, ज्यादातर मामलों में व्यक्ति तभी ऐसा फैसला लेता है।
कभी-कभी आत्महत्या के कोई चेतावनी संकेत भी नहीं होते। अगर आप किसी के बारे में चिंतित हैं, तो पूछें कि क्या वे ठीक हैं, उनसे बात करें और दूसरों से पेशेवर सलाह लें।

मनोवैज्ञानिक मदद, काउंसिलिंग और सामाजिक जागरूकता

आत्महत्या के मनोवैज्ञानिक कारण हैं जिसकी वजह से लोग ऐसा घातक कदम उठाते हैं। लोगों को मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग कर बचाया भी जा सकता है। इसके लिए सामाजिक जागरुकता पहली आवश्यकता है। अवसाद से ग्रसित व्यक्ति के साथ परिवार और दोस्तों का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। भारत में सबसे खतरे की बात यह है कि युवाओं में सूइसाइड की सोच तेजी से पैदा हो रही है। यह सबसे घातक है। जिसकी वजह बेरोज़गारी, प्रेम में असलता, नशे की लत और दूसरे प्रमुख कारण हैं। इस पर नियंत्रण लगाने के लिए सरकारी स्तर पर एक राष्टीय नीति बननी चाहिए। जिस पर ऐसे लोगों के प्रति संवेदना रखी जाए और उनकी काउंसलिंग कराई जाए। लोगों की समय-समय पर जांच कराई जाए। मनोचिकित्सक के जरिए परामर्श दिया जाए। आत्महत्या के आसानी से सुलभ होने वाले संसाधन जैसे कीटनाशक, अस्त्र-सस्त्र, जहरीली वस्तुएं और दूसरे संसाधनों की आसानी से उपलब्धता पर रोक लगायी जाए। ऐसी स्थिति में पहुंचे लोगों में जीवन के सकारात्मक पहलू को दोबारा स्थापित किया जाए। इस तरह के उपायों से हम ऐसी समस्या से हद तक निजात पा सकते हैं लेकिन इसके लिए सोच पैदा करनी होगी।

संवाद ना करना सबसे बड़ी गलती

आत्महत्या के बारे में ढेर सारे मिथक और अफवाहें हमारे समाज में मौजूद हैं। इन्हीं भ्रमों में से एक ये भी है कि किसी भी सूइसाइड की इच्छा रखने वाले शख्स से अगर इस बारे में बात की जाए तो ये उसकी इच्छा को बढ़ा देता है। अगर आपका ही कोई करीबी दोस्त या परिवार का सदस्य आत्महत्या की इच्छा जाहिर करता है, तो यकीन मानिए उससे बातचीत करना बहुत जरूरी है। समझदारी भरा फैसला ये भी है कि उससे बात करने के लिए ठोस बातों के आधार पर चर्चा की जाए। इसके अलावा थैरेपिस्ट या सुसाइड रोकने वाली हॉटलाइन से भी बात की जाए। बातचीत को खत्म भी इस संकल्प के साथ किया जाए कि भविष्य में भी इस संबंध में वह संपर्क करते रहेंगे।

इन नंबरों पर लें सहायता

लाइफलाइन (24 घंटे संकट सहायता) को 13 11 14 पर कॉल करें या ऑनलाइन चैट करें।
आत्महत्या कॉल बैक सेवा (फोन और ऑनलाइन परामर्श) से संपर्क करें-1300659467
किड्स हेल्पलाइन 5 से 25 वर्ष की आयु के युवाओं को ऑनलाइन और फोन परामर्श प्रदान करती है-1800551800 पर कॉल करें या ऑनलाइन चैट करें।
Beyond Blue’ मानसिक स्वास्थ्य के लिए जानकारी, परामर्श और सहायता प्रदान करता है-1300224636 पर कॉल करें या ऑनलाइन चैट करें।
‘Beyond Now’ एक फोन ऐप है जो आत्महत्या के विचार आने पर व्यक्ति को सुरक्षित रहने में मदद करता है।
Men’sLine Australia ऑस्ट्रेलियाई पुरुषों के लिए 24/7 निःशुल्क टेलीफोन और ऑनलाइन परामर्श प्रदान करता है।

राज्य और क्षेत्र-आधारित सेवाएं

ACT मानसिक स्वास्थ्य ट्राईऐज़ संकट और मूल्यांकन टीम- 1800 629 354 
NSW मानसिक स्वास्थ्य लाइन- 1800 011 511
NT-उत्तरी क्षेत्र मानसिक स्वास्थ्य लाइन-1800 682 288
Queensland- 13 स्वास्थ्य 13 43 25 84
SA- मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन और संकट हस्तक्षेप सेवा-13 14 65 
TAS- मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन- 1800 332 388
VIC- रॉयल मेलबर्न हॉस्पिटल मानसिक स्वास्थ्य सेवा-(03) 9342 7000
WA-मानसिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया लाइन-1300 555 788 
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