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आईये स्वतंत्र भारत की स्वतंत्र आवाज बनें

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आज विश्व पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मेरे सभी पत्रकार मित्रों, इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और डिजिटल मीडिया से जुड़े सभी दोस्तों को बधाई। हम सभी इस बात से भली भांति परिचित हैं कि वर्तमान समय में पत्रकारिता या मीडिया हमारे समाज और हमारे विकास के लिए एक अति आवश्यक आधार स्तंभ है। हमारी सामाजिक संरचना का संपूर्ण ढांचा इस स्तंभ पर टिका है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मीडिया आज सरकार और जनता के बीच की एक ऐसी कड़ी है जिसके आधार पर जनता अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था का तानाबाना बुनती है। एक तरह से पत्रकारिता और मीडिया संपूर्ण विश्व में हमारी सामाजिक छवि का निर्धारण करता है।
देश में जब भी कोई आपदा आई या कोई आपातकालीन स्थिति हुई है, मीडिया और पत्रकारों ने हमेशा एक अहम किरदार निभाया है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने हमेशा मजबूती से हर विपत्ति में देश को सहारा दिया है। एक निर्भीक पत्रकार हर स्थिति में अपने कर्म क्षेत्र पर अडिग रहकर समाज को हर परिस्थिति से वाकिफ रखने का दायित्व निभाता है। किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में सेना और न्याय व्यवस्था संबंधित सेवा के बाद एक मात्र मीडिया ही है जो अपनी चिंता छोड़ समाज के लिए सोता और जागता है। यदि हमारे जवान सीमा पर रहकर, हर कठिनाई से लड़कर देश की सुरक्षा करते हैं, तो पत्रकार हमारे सामाजिक प्रहरी है यह कहना काफी हद तक इन्हें सम्मानित करने जैसा है। वर्तमान समय में चाहे सारा संसार, सारा देश लॉक डाउन की स्थिति में है, लेकिन एक मीडियाकर्मी और पत्रकार इन सभी नियमों से परे हर वक्त हम तक देश के हालात की सही छवि पेश करने के लिए सजग है। जब हम सभी अपनी सुरक्षा के लिए घरों में बंद हैं, ये किसी भी प्रकार की असुरक्षा को दरकिनार कर विपत्ति का सही आंकलन कर हम तक खबर पहुंचाने को सजग है।  धर्म जाति का जो विष समाज में फैलाया जा रहा है, उसकी सच्चाई की तह तक जाकर हमें गुमराह होने से रोकने के लिए ये अपनी जान की परवाह तक नहीं करते। सलाम है मेरे देश के इन अवर्णित प्रहरियों को।

भारत में पत्रकारिता की शुरुआत करीब 200 साल पहले हुई थी। तब केवल अखबार ही था और अखबार का मुख्य उद्देश्य सरकार की नीतियों, नियमों और कार्यों को जनता तक पहुंचाना था। समय के साथ, आजादी के बाद अखबार स्वतंत्र विचारों के वाहक बनें। इसका मुख्य कार्य सरकार और जनता के बीच एक ऐसे सेतु का निर्माण करना था, जो लोकतंत्र की स्थापना में सहायक बन सके। यह पत्रकारिता का वह दौर था, जब पत्रकार अपने सामाजिक दायित्व से जुड़े हुए थे। जनता तक सही खबर पहुंचाना इनका कर्तव्य था। सवेरे का अखबार लोगों के लिए दिन की शुरुआत का एक अभिन्न अंग हुआ करता था। फिर पत्रकारिता जगत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उद्गम हुआ और इसी के साथ मीडिया या पत्रकारिता ने एक नए युग में कदम रखा। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हर घर में अपना स्थान बना लिया। लेकिन इसी के साथ मीडिया जगत में प्रतिस्पर्धा ने भी प्रवेश किया। मीडिया की बढ़ती साख ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी। सत्ता धारियों ने इसे जनमानस के मानसिक विचारधारा को प्रभावित करने का हथियार बना लिया। इसी के साथ पत्रकारिता का चारित्रिक पतन भी शुरू हो गया।

आज सरकार और जनता के बीच की एकमात्र कड़ी मीडिया ही है। मीडिया की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि एक आम व्यक्ति की सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत धारणा मीडिया से अत्याधिक प्रभावित होती है। परंतु आज हमारा मीडिया अपने स्वतंत्र विचारों की बजाय राजनीतिक शक्तियों की चाल चलने लगा है। बदलते राजनीतिक परिवेश में अखबार या फिर इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया निष्पक्षता से कोसों दूर हो गए है। टीआरपी की बढ़ती होड़ में पत्रकारिता अति नाटकीय हो गई है। हमारी दिनचर्या और हमारी विचारधारा के एक मुख्य स्तोत्र अखबार, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया हर बदलते सरकार के साथ अपना स्वरूप और अपने विचार बदलने लगे हैं। एक लोकतांत्रिक देश में मीडिया बिल्कुल भी स्वतंत्र नहीं है। मीडिया जगत में अपनी साख कायम रखने के लिए न्यूज़ चैनलों में किसी भी विषय को युद्ध स्तर पर ले जाने में कोई कमी दिखाई नहीं देती।

अधिकांश पत्रकार और चैनल या तो सत्ताधारियों के अधीन हैं या फिर उनके दबाव में कार्य करने को मजबूर है। जो इनसे आगे आकर स्वतंत्र होकर अपना दायित्व निभाने की कोशिश करते हैं, ऐसे कई पत्रकार आज या तो कानूनी पचड़े में फंसाये जा रहे हैं या फिर अदालतों के चक्कर काटने को मजबूर हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता के पक्षधर पत्रकारों को आज के समय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शायद इसी कारण अब सच भी सामने आने से कतराने लगा है। सामने है केवल झूठ और आक्रमक समाचारों से लैस मीडिया। जो जनता और सरकार के बीच सेतु बनाने के बजाय ऐसी दीवार खड़ी कर रहा है जो अटूट है। उदाहरण के लिए वर्तमान परिस्थितियों को देखिए। पूरा विश्व कोरोना महामारी से युद्ध लड़ रहा है। संपूर्ण अर्थव्यवस्था एक लंबे समय के लिए छिन्न-भिन्न हो गई है। पिछले 100 वर्षों में ऐसी आपातकालीन स्थिति का सामना किसी ने नहीं किया था। विश्व के हर एक देश अपनी अपनी क्षमता के अनुसार स्थिति का सामना कर रहे हैं।

लेकिन हमारे देश में एक अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस महामारी से लड़ते-लड़ते हम रणभूमि छोड़ एक दूसरा युद्ध लड़ने लगे हैं, जाति और धर्म का युद्ध। एक धर्म विशेष के खिलाफ अचानक नफरत का वृक्ष पल्लवित हो गया है। समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर कई पुराने और झूठे वीडियोज फैलाए जा रहे हैं। महामारी के डर से पीड़ित लोगों के मन पर इसका विपरीत असर हो रहा है। ऐसे में हमारे मीडिया ने इस पर लगाम लगाने की बजाय इसे एक वाद विवाद का रूप देकर चैनलों पर हलचल मचा दी है। न्यूज़ एंकरों या समाचार उद्घोषकों ने इन झूठी खबरों को बढ़ा चढ़ाकर घरों में टीवी के माध्यम से एक युद्ध का रूप दे दिया है। इन जाति धर्म विभाजक खबरों को मीडिया ने इतना अधिक महत्व दिया कि महामारी को लेकर जनता में फैली गलतफ़हमियों को मिटाने की अपनी जिम्मेदारी ही भूल गए।

आपातकाल जैसी स्थिति में हमारी मीडिया का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार एक लोकतांत्रिक देश के लिए कितना घातक सिद्ध हो सकता है, इसकी कल्पना भी भयावह है। पुलवामा हमला हो, कोरोना वायरस या चुनाव का माहौल हो, सरकार के नियमों या संविधान में बदलाव का फैसला हो, एक स्वतंत्र और निर्भीक मीडिया या पत्रकारिता की कमी जरूर खलती है। वह वक्त भी था जब स्वतंत्र विचारों और समाचारों को जनता तक पहुंचाना पत्रकार अपना कर्तव्य और जिम्मेदारी समझते थे। परंतु आज ऐसे पत्रकारों की गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। पत्रकारिता एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जनता अपनी सरकार से जुड़ती है या फिर रूबरू होती है। लेकिन मीडिया आज पूर्ण रूप से राजनीतिक ताकतों के हाथ का खिलौना मात्र बनकर रह गया है जो उनकी उंगलियों के इशारों पर चलता है।

सरकार जो चाहती है वही बात जनता तक पहुंचती है। अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और हितों के चलते पत्रकार भी चाटुकारिता की पत्रकारिता करने लगे हैं। अखबार सत्ताधारियों का गुणगान करते दिख रहे हैं और घरों में युद्ध स्तर पर खबरों की सनसनी फैलाने की कोशिश हो रही है। यह एक सभ्य समाज का स्वरूप नहीं है। एक स्वस्थ समाज में निर्भीक और स्वतंत्र पत्रकारिता उतनी ही आवश्यक है जितना जीवन के लिए सांस लेना। परंतु आज हमारी पत्रकारिता श्वास नलियों में बाधक बन रही है। आवश्यकता और समय की मांग यही है कि पत्रकारिता को उसके पुराने स्वरूप में लाना होगा। पत्रकारिता हमारे सभ्य समाज का एक अभिन्न अंग है, लोकतंत्र की आधारशिला है। इसका निष्पक्ष और निर्भीक होना उतना ही जरूरी है जितना सरकार के लिए जनता और जनता के लिए सरकार। कुछ मौकापरस्त लोगों के कारण “बिकाऊ मीडिया” का जो तमगा पत्रकारिता जगत पर लगा हुआ है, उसे हटाकर आधार स्तंभ की पुरानी प्रतिष्ठा को लौटाना ही होगा। अपने सभी पत्रकार बंधुओं को मेरा आवाहन है कि आपदा और विपदा के समय में अपनी कर्तव्य निष्ठा और निष्पक्षता का प्रण लेकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें। समाज के इस अभिन्न अंग को भंग ना करके अपनी निर्भीक पत्रकारिता से इसे और मजबूत बनाएं, जनता का संबल और वाणी बनें, सरकार की धूमिल छवि का आईना नहीं।