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सफलता अंग्रेजी की मोहताज नहीं, हिंदी ने भी लहराया है परचम

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वर्ल्ड हिंदी डे – हिंदी मीडियम से पढ़ाई करनेवाले भी संभाल सकते है देश, ये हैं नज़ीर

अंग्रेजी भाषा का गुमान करनेवाले ये मत भूले कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों में महज भाषा मात्र का फर्क होता है। हिंदी मीडियम (Hindi Medium) के युवाओं की परवरिश कुछ ऐसी हुई होती है कि उन्हें हमेशा ऐसा लगता रहता है कि अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले लोग बेहतर होते हैं। इससे उनके अंदर एक तरह की हीन भावना भर जाती है। आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है। लेकिन यही सच्चाई है कि कोई हिंदी में निपूर्ण होता है तो कोई इंग्लिश में। कोई फर्राटेदार अंग्रेजी बोल लेता है, तो कोई धारा प्रवाह की तरह हिंदी। परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। हम अपने आस पास देखें तो कुछ साल पहले की तुलना में हमें काफी कुछ बदला नजर आता है। फिर चाहे वो समाज के सोचने का नज़रिया हो या फिर खाने और पहनने से जुड़ी आदतें। बदलते वक्त के साथ जीने का अंदाज़ भी बदली है। और बोलचाल की बात करें तो आज का युवा हिंदी का ज्यादा इस्तेमाल करता है।
एक समय था जब इंग्लिश का बोलबाला था। लेकिन अब हिंदी युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। जो लोग ये सोचते हैं कि इंग्लिश मीडियम में पढ़ने से अच्छा रूतबा, अच्छा करियर, अच्छा ओहदा, पैसा, नौकरी मिलती है तो आज वर्ल्ड हिंदी डे के ख़ास मौके पर हम आपका भ्रम तोड़ने वालों से रूबरू करवाते हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने भाषा को अहमियत ना देते हुए कड़ी मेहनत से अपने नसीब को बदल दिया और शोहरत के उस मकाम को हासिल किया जिसे पढ़कर आप यकीन करने पर मजबूर हो जायेंगे कि इंसान के भीतर काबिलियत होनी चाहिए, इंसान के अंदर ज्ञान का भंडार होना चाहिए, वो किसी भी भाषा में ही क्यों न हो। विश्व हिंदी दिवस के ख़ास मौके पर आईये मिलते है उन लोगों से जो हिंदी मीडियम में पढ़ाई कर भी शीर्ष पदों पर विराजमान हैं।
अगर हम उत्तर भारत के राजनेताओं की बात करें तो ऐसा कोई राजनेता नहीं है जो हिंदी मीडियम से पढ़ाई नहीं किया है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी हो या बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हो या फिर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, ये सभी राजनेता नज़ीर है, उदाहरण है जो हिंदी मीडियम से भी पढ़कर आज पूरे देश और प्रदेश की ज़िम्मेदारी संभाली। इन सभी नेताओं ने हिंदी शिखर पर लेकर गए और हमेशा हिंदी भाषा को सर्वोपरि रखा। हमेशा लेखनी हो या बोलचाल सभी नेताओं ने हिंदी को ही तर्जी दी। यहां तक ही अंग्रेजी के धुरंधर भी जब इनके सामने आये वो भी हिंदी में ही बातचीत शुरू की। हमेशा अंग्रेजी बोलने वाले पत्रकार हो या ब्यूरोक्रैट जब भी योगी हो या नितीश इनके सामने आये, भाषा हिंदी ही रहती है।

जब यूनाइटेड नेशंस में पहली बार गूंजी थी हिंदी, पूरी दुनिया में छा गए स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी

अगर आप इंग्लिश बोलने में कच्चे हैं और दूसरों के सामने हिंदी बोलने में शर्म आती है तो आपको पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी से बड़ी सीख ले लेनी चाहिए। उनकी मातृ भाषा हिंदी थी और शुरवाती पढ़ाई लिखाई भी हिंदी में ही की थी। हिंदी बोलने में अटल जी कोई झिझक नहीं थी। आज भी सारे देश को इस बात पर गर्व है कि जब वह विदेशमंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने पहुंचे तो उन्होंने अपना भाषण हिन्दी में दिया था। वैसे, यह भाषण पहले अंग्रेजी में लिखा गया था, लेकिन, अटल ने बड़े गर्व के साथ उसका हिंदी अनुवाद पढ़ा था। उनके भाषण के बाद यूएन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। यह 4 अक्टूबर 1977 की बात है और हिन्दी की वजह से ही उनका यह भाषण ऐतिहासिक हो गया।

अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी हिंदी के कायल

पंकज त्रिपाठी जानें मानें और बेहतरीन कलाकार हैं। जिन्होंने अपने शानदार अभिनय से बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई है। इस मुकाम के लिए उन्होंने काफी कड़ी मेहनत के साथ साथ संघर्ष भी बहुत किया है। बिहार के एक छोटे से गांव के रहने वाले पंकज को बचपन से ही एक्टिंग का शौक था। जिसकी वजह से वह बिहार से मुंबई आ गए थे। उन्होंने काफी फिल्मों में और टीवी सीरियलों, वेब सीरिज़ में एक्टिंग की है और यह बात साबित कर दी है कि वह एक बहुत ही अच्छे कलाकार हैं। उनका फिल्मों में होने का मतलब ही, फिल्म हिट होना है।
पंकज त्रिपाठी ने भी अपनी शुरवाती पढ़ाई हिन्दी मीडियम से शुरू की। पंकज त्रिपाठी का जन्म बिहार के एक छोटे से गांव गोपालगंज में हुआ था। इनके माता-पिता किसान हैं। इनके पिता खेती-बाड़ी के अलावा अपने गांव के पुजारी भी हैं। पंकज त्रिपाठी ने अपने स्कूल की पढ़ाई गोपालगंज बिहार के डीपीएच स्कूल से की थी। बाद में उनके पिता ने उनको अच्छी पढ़ाई करने के लिए पटना भेज दिया था। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग में ग्रेजुएशन किया है। उन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से बॉलीवुड में अपनी एक पहचान बनाई। पंकज त्रिपाठी ज्यादातर हिंदी में ही बातचीत करते हैं।
आईपीएस मनोज शर्मा

इंटरव्यू में लिया ट्रांसलेटर का सहारा और आज है टॉप आईएएस अधिकारी

महाराष्ट्र कैडर से आईपीएस मनोज शर्मा (IPS Manoj Sharma) की कहानी इस देश के हर युवा के लिए मिसाल है। बारहवीं फेल मनोज शर्मा की जिंदगी से हर युवा को सीखने की जरूरत है। अक्सर लोग असफल होने के बाद यह मान लेते हैं कि आगे के सारे रास्ते बंद हैं। लेकिन मनोज शर्मा की कहानी इससे पूरी तरह से विपरीत है। मनोज शर्मा की परिस्थिति ऐसी थी कि पढ़ाई को जारी रखने के लिए ऑटो चलाया, अमीरों के घर कुत्ते टहलाने की नौकरी की। भिखारियों के साथ सोया। लेकिन गर्लफ्रेंड से मिले हौसले ने मनोज शर्मा की जिंदगी ही बदल दिया। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के रहने वाले मनोज शर्मा 2005 बैच के महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी है।
मनोज शर्मा ने The CSR Journal से बातचीत करते हुए बताया कि गांव में शुरुआती पढ़ाई लिखाई हिंदी मीडियम से थी। जिसकी वजह से अंग्रेजी बहुत कमजोर थी। Hindi Medium से पढ़ने वाले मनोज शर्मा यूपीएससी के इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि आपको अंग्रेजी नहीं आती तो फिर शासन कैसे चलाएंगे। मनोज को इंटरव्यू के दौरान एक ट्रांसलेटर भी दिया गया। मनोज ने बताया कि शुरुआत में मेरी अंग्रेजी काफी कमजोर थी। लेकिन आज वह महाराष्ट्र के सफल और तेज़तर्रार आईपीएस अधिकारियों में से एक है और उनको भी हिंदी भाषा पर गर्व है।

बिहार की रिचा ने हिंदी मीडियम से पास की यूपीएससी (UPSC) परीक्षा

बिहार की रिचा के लिए यूपीएससी की परीक्षा बाकी कैंडिडेट्स की तुलना में इसलिए भी मुश्किल रही क्योंकि उन्होंने परीक्षा का माध्यम हिन्दी चुना था। हिंदी में स्तरीय स्टडी मैटीरियल आसानी से नहीं मिलता और उन लोगों को इंग्लिश मीडियम वालों से कही ज्यादा संघर्ष इस मामले में करना पड़ता है। रिचा को भी इस परेशानी का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने हिंदी मीडियम से परीक्षा देने का चुनाव किया था। चार प्रयासों में असफल रहने वाली रिचा ने आखिर कैसे पांचवें प्रयास में सफलता पाई।
Gulistaan Anjum

हिंदी मीडियम स्कूलों से परहेज करने वालों को गुलिस्तां अंजुम ने दिखाया आईना देहरादून की पीसीएस-जे में पाई सफलता

आजकल अंग्रेजी मीडियम में बच्चों को पढ़ाना स्टेटस सिंबल बन गया है। हालात यह हैं कि गरीब से गरीब परिवार भी अपनी आर्थिक ताकत से बाहर जाकर अपने बच्चों के भविष्य के लिए उनका दाखिला निजी स्कूलों में करा रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड के देहरादून भुड्डी गांव के एक परिवार की बेटी गुलिस्तां अंजुम ने सरकारी व हिन्दी मीडियम स्कूलों से परहेज करने वाले तमाम लोगों को आईना दिखाया है। उन्होंने उत्तराखंड न्यायिक सेवा (सिविल जज) परीक्षा में सफलता हासिल की है। गुलिस्तां के पिता हाजी हुसैन अहमद काश्तकार हैं। गुलिस्तां ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जीआइसी मलहान से की। इसके बाद डीएवी पीजी कॉलेज से स्नातक व एलएलबी की। उन्होंने 2017 में भी पीसीएस-जे की परीक्षा दी थी, पर कुछ अंकों से रह गई। लेकिन दूसरे एटेम्पट में पूरी शिद्दत के साथ परीक्षा की तैयारी की और सफल भी हुईं।

सफलता अंग्रेजी की मोहताज नहीं

तो आपने पढ़ा, जाना कि सफलता पाने के लिए भाषाओं की बाधाएं नहीं है, ये उदाहरण साबित करते हैं कि सफलता अंग्रेजी की मोहताज नहीं, हिंदी मीडियम ने भी लहराया जा सकता है परचम। हिन्दी की बात चली है तो ये भी बताना जरुरी है कि 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Day) होता है। हर साल मनाए जाने वाले विश्व हिंदी दिवस का असल मकसद दुनियाभर में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अनुकूल वातावरण बनाना और हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है।

डिजिटल दुनिया में Hindi सबसे बड़ी भाषा है

अगर हम आकड़ों में हिंदी की बात करें तो 260 से ज्यादा विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। 64 करोड़ लोगों की हिंदी मातृभाषा है। 24 करोड़ लेगों की दूसरी भाषा है। 42 करोड़ लोगों की तीसरी और चौथी भाषा है हिंदी । इस धरती पर 1 अरब 30 करोड़ लोग हिंदी बोलने और समझने में सक्षम है। 2030 तक दुनिया का हर पांचवा व्यक्ति हिंदी बोलेगा। सबसे बड़ी बात कि जो तीन साल पहले अंग्रेजी इंटरनेट की सबसे बड़ी भाषा थी अब हिंदी ने उसे बहुत ही पीछे पछाड़ दिया है। गूगल सर्वेक्षण बताता है कि इंटरनेट पर डिजिटल दुनिया में हिंदी सबसे बड़ी भाषा है।