World Cotton Day 2025: अक्टूबर की 7 तारीख का दिन दुनियाभर में कपास दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व कपास दिवस मनाने का खास उद्देश्य कपास उत्पादन से जुड़ी चुनौतियों को सामने लाना, प्रोडक्शन की नई तकनीकों को डेवलप करना और इसे बढ़ावा देना है। भारत में तो ज्यादातर लोग कपास से बनाए जाने वाले कपड़े ही पहनते हैं। जो आरामदायक होने के साथ ही सांस लेने योग्य और टिकाऊ भी होते है। आज के समय में बहुत ही बड़े लेवल पर कॉटन का उत्पादन होता है, क्योंकि कॉटन फाइबर का इस्तेमाल कपड़ों में ही नहीं, बल्कि और भी कई जगह पर होता है।
सनातन सभ्यता जितनी पुरानी, सूत की कहानी
सूती कपड़ा मानव सभ्यता के सबसे पुराने वस्त्रों में से एक है। प्राचीन काल में भारत विश्व का प्रमुख कपास उत्पादक देश था। सिंधु घाटी सभ्यता में भी सूती वस्त्रों के प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं। उस समय सूत कातने और बुनाई का कार्य हाथ से किया जाता था, जिससे कपड़ा मुलायम और टिकाऊ बनता था। ढाका की मलमल और बनारसी कपास पूरे विश्व में प्रसिद्ध थीं। भारत के कपास उद्योग का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है, जो सिंधु घाटी सभ्यता तक जाता है, और मोहनजोदड़ोऔर मेहरगढ़ में कपास के उपयोग के प्रमाण मिले हैं। दुनिया के सबसे बड़े कपास उत्पादकों में से एक होने के नाते, भारत वैश्विक कपड़ा और परिधान उद्योग में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। हालांकि इस प्रमुखता के बावजूद भारत को उत्पादकता, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के मामले में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह विरोधाभास तकनीकी अपनाने, नीतिगत निर्णयों और ऐतिहासिक प्रभावों के जटिल अंतर्संबंध को दर्शाता है जिसने भारतीय कपास क्षेत्र को आकार दिया है।
भारत में कपास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय सूती वस्त्र अपनी गुणवत्ता और शिल्प कौशल के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध थे। फलते-फूलते हथकरघा क्षेत्र ने कपास को एक प्रमुख निर्यात वस्तु बना दिया, जिसके प्रमुख उत्पादन केंद्र गुजरात और तमिलनाडु जैसे क्षेत्र थे। ब्रिटिश नीतियों ने भारत के कपास उद्योग को ब्रिटिश मिलों के लिए कच्चे माल का आपूर्तिकर्ता बनाकर व्यवस्थित रूप से विऔद्योगीकरण कर दिया। इससे स्वदेशी कपड़ा उद्योग का पतन हुआ और स्थानीय कारीगरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। भारत ने राज्य के हस्तक्षेप के माध्यम से कपास उत्पादन को पुनर्जीवित करके, औद्योगीकरण और किसान समर्थन पर ध्यान केंद्रित करके आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी। भारत ने आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित किया, भारतीय कपास निगम की स्थापना की ( 1970 ) और पैदावार बढ़ाने के लिए संकर (एच-4, 1970) और बीटी कपास को अपनाया ( 2002 ), हालांकि कीट प्रतिरोध और नीतिगत ठहराव जैसी चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं।
भारत में कॉटन इंडस्ट्री अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ
भारत में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री देश की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख सेक्टर है, जो मुख्य रूप से कॉटन यार्न, फैब्रिक और तैयार कपड़ों का उत्पादन करती है। इसमें कच्चे माल के रूप में घरेलू कॉटन का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए यह एग्रीकल्चर सेक्टर के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। इस इंडस्ट्री में बड़े इंटीग्रेटेड मिलों से लेकर छोटे पैमाने पर संचालित होने वाले कई तरह के उद्यम शामिल हैं, जो भारत के निर्यात सेक्टर में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और लाखों लोगों को रोज़गार भी देते हैं। भारत की कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री, राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है, जो प्रौद्योगिकी में होने वाली प्रगति और वैश्विक मांग के चलते फल-फूल रही है। सिंथेटिक फाइबर से मिलने वाली प्रतिस्पर्धा और आधुनिकीकरण की ज़रूरतों से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद व्यापारी, व्यापक बिज़नेस प्लान बनाने, मशीनों को अपग्रेड करने और बिज़नेस का विस्तार करने के लिए बिज़नेस लोन का लाभ ले रहे हैं। ये फाइनेंशियल टूल, मार्केट के अवसरों का लाभ लेते हुए प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाते हैं और संचालन से संबंधित बाधाओं को दूर करते हैं।
कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के उदाहरण
भारत की कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के उदाहरणों में Arvind Mills, Bombay Dyeing और Raymond जैसे प्रमुख इंटीग्रेटेड प्लांट शामिल हैं, जो कताई से लेकर कपड़े के निर्माण तक पूरी प्रक्रिया को संभालते हैं। इसके अलावा कई छोटी कंपनियां और हैंडलूम ऑपरेटर पारंपरिक, क्षेत्रीय और हाथों से बने विशेष कपड़ों का उत्पादन करते हैं, जो इस इंडस्ट्री की विविधता को दर्शाते हैं। ये यूनिट साथ मिलकर स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एक अहम हिस्सा रखती हैं।
भारत में कॉटन इंडस्ट्री की वृद्धि और विकास
भारत में कॉटन इंडस्ट्री में बढ़ती घरेलू मांग और निर्यात के अवसरों के कारण काफी वृद्धि देखी गई है। विभिन्न तरह की सब्सिडी और प्रोत्साहनों के माध्यम से आधुनिकीकरण के प्रयासों और सरकार से मिलने वाली सहायता से उत्पादन की दक्षता में सुधार करने में मदद मिली है। आनुवंशिक रूप से संशोधित किए गए कपास के बीजों की वजह से उपज में काफी वृद्धि हुई है। इस वजह से इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने में मदद मिली है और भारत, कॉटन टेक्सटाइल में विश्व के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से एक बन गया है।
कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री का बैकग्राउंड
भारत में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री एक प्राचीन विरासत है, जिसके उत्पादन और निर्यात का इतिहास सदियों पुराना है। पारंपरिक रूप से इस इंडस्ट्री में मुख्य रूप से कारीगर ही काम करते थे और कई क्षेत्रों में फाइन कॉटन फैब्रिक को हाथ से बुना जाता था। औद्योगिक क्रांति के बाद 19वीं शताब्दी में मशीनों के माध्यम से निर्माण की शुरुआत हुई थी, जिसकी वजह से आधुनिक कॉटन टेक्सटाइल सेक्टर, भारतीय औद्योगिकीकरण की आधारशिला बना।
भारत में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री की मौजूदा स्थिति
आज के समय में, भारत की कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री वैश्विक स्तर पर कड़ी टक्कर दे रही है, जिसमें मुख्य रूप से USA, यूरोपियन यूनियन और अन्य क्षेत्रों में काफी मटेरियल निर्यात किया जाता है। वैश्विक आर्थिक स्थिति में होने वाले उतार-चढ़ाव के बावजूद, इस इंडस्ट्री ने अपनी व्यापक वैल्यू चेन (कॉटन के उत्पादन से लेकर फैब्रिक के निर्माण और कपड़े बनाने तक) के कारण एक मजबूत स्थिति बनाए रखी है। यह इंटीग्रेशन से मार्केट के उतार-चढ़ाव का सामना करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केट में महत्वपूर्ण शेयर बनाए रखने में मदद मिलती है।
कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारक
कपास (कॉटन) उगाने वाले क्षेत्रों से निकटता: कच्चे माल के स्रोतों के निकट होने से परिवहन की लागत कम हो जाती है
आसानी से लेबर मिलना: बिज़नेस को चलाने के लिए कुशल कारीगर आसानी से मिल जाते हैं
मार्केट तक आसान पहुंच: स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय मार्केट के नज़दीक होने से लॉजिस्टिक के खर्चों को कम करने में मदद मिलती है
इन्फ्रास्ट्रक्चर: बिज़नेस को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए सड़क, पोर्ट और बिजली की आपूर्ति जैसे अच्छे इन्फ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत होती है
भारत का कपास वस्त्र उद्योग, जो कभी देश की कुटीर अर्थव्यवस्था की रीढ़ था, आज तकनीक, वैश्विक मांग और फैशन के नए दौर में प्रवेश कर चुका है।
कॉटन उद्योग का गौरवपूर्ण इतिहास
सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मुग़ल काल तक भारत का कपास विश्वभर में प्रसिद्ध रहा। ढाका की मलमल और वाराणसी की बुनाई यूरोप तक निर्यात होती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान हालांकि भारत का कपास उद्योग कच्चे माल तक सीमित कर दिया गया और ब्रिटेन के तैयार कपड़ों ने भारतीय बाजार पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन आज़ादी के बाद देश ने इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए बड़े पैमाने पर कपड़ा मिलें स्थापित कीं। मुंबई, अहमदाबाद, कोयंबटूर और कानपुर जैसे शहर कपास उद्योग के प्रमुख केंद्र बने। खादी और हैंडलूम आंदोलन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दी।
आधुनिक दौर में परिवर्तन
1990 के बाद के आर्थिक सुधारों और वैश्वीकरण के साथ भारत ने कपास उत्पादन में नया कीर्तिमान स्थापित किया। भारत अब विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, जबकि निर्यात में अमेरिका, यूरोप और बांग्लादेश जैसे देशों तक भारतीय धागे और वस्त्र निर्यात हो रहे हैं। ऑटोमेशन, पावरलूम्स और आधुनिक स्पिनिंग यूनिट्स ने उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाया है। “ऑर्गेनिक कॉटन” और “सस्टेनेबल फैशन” जैसे नए ट्रेंड ने भारतीय कपास को फिर से वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई है।
“Made in India” ने बदली कॉटन की कहानी
कभी भारत का कपास सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था और साधारण जीवन का हिस्सा था, पर आज “Made in India” अभियान ने उसकी कहानी ही बदल दी है। अब भारतीय कॉटन न केवल देश की शान है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय फैशन और उद्योग की पहचान भी बन चुकी है। यह बदलाव कई स्तरों पर देखने को मिला है।
स्वदेशी से वैश्विक मंच तक: पहले भारतीय कपास का उपयोग मुख्यतः देश में ही होता था, पर “Made in India” ने इसे वैश्विक बाजार तक पहुंचाया। आज भारतीय कॉटन से बने कपड़े यूरोप, अमेरिका और एशिया के प्रमुख फैशन ब्रांड्स में शामिल हैं। गुणवत्ता और नवाचार: भारतीय टेक्सटाइल कंपनियों ने आधुनिक तकनीक, जैविक खेती (ऑर्गेनिक कॉटन) और गुणवत्ता नियंत्रण के ज़रिए दुनिया को दिखाया कि भारत का कपास किसी भी अंतरराष्ट्रीय मानक से कम नहीं है।
रोज़गार और आत्मनिर्भरता: “Make in India” और “Atmanirbhar Bharat” अभियानों ने कॉटन उद्योग को नई दिशा दी। इससे किसानों, बुनकरों और कपड़ा मिलों को प्रोत्साहन मिला, जिससे ग्रामीण से लेकर शहरी अर्थव्यवस्था तक रोज़गार के अवसर बढ़े।
डिज़ाइन और फैशन का संगम: अब भारतीय डिजाइनर “Made in India” के नाम पर पारंपरिक कॉटन को आधुनिक फैशन से जोड़ रहे हैं। रैंप पर कॉटन अब स्टाइल, संस्कृति और सस्टेनेबिलिटी का प्रतीक बन चुका है।
ऑर्गेनिक और सस्टेनेबल ब्रांडिंग: “Made in India” ने कॉटन को सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि पर्यावरण केप्रति जागरूकता और जि म्मेदारी का प्रतीक बना दिया है। भारतीय ऑर्गेनिक कॉटन को अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन (GOTS, Fair Trade) भी मिल रहा है।
मगर चुनौतियां अब भी बरकरार
जलवायु परिवर्तन, कीट प्रकोप, श्रमिक पलायन और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा अब भी इस क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियां हैं। कपास की कीमतों में अस्थिरता किसानों और मिल मालिकों दोनों को प्रभावित करती है। सरकार की “टेक्सटाइल PLI योजना” और “कॉटन मिशन” जैसी नीतियां उत्पादन व निर्यात बढ़ाने पर केंद्रित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि टिकाऊ खेती और तकनीकी निवेश पर जोर दिया गया, तो भारत आने वाले वर्षों में विश्व का अग्रणी कपास निर्यातक बन सकता है।
कॉटन का परंपरागत युग
प्राकृतिक और हाथ से बुने वस्त्र: पहले के दौर में कपास के कपड़े हाथकरघे (हैंडलूम) और चरखे से तैयार किए जाते थे।
स्थानीय पहचान: भारत के हर क्षेत्र में अपनी बुनाई शैली थी। जैसे बंगाल की मलमल, उत्तर प्रदेश की खादी, गुजरात का बंधेज और तमिलनाडु की कोयंबटूर कॉटन।
सादगी और आराम: कपास के वस्त्र हल्के, हवा पार करने वाले और भारत की गर्म जलवायु के अनुकूल होते थे।
स्वदेशी प्रतीक: स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान खादी और कपास के कपड़े देशभक्ति और आत्मनिर्भरता के प्रतीक बने।
सीमित फैशन मूल्य: उस समय कपड़ों को अधिकतर उपयोगिता और परंपरा के आधार पर चुना जाता था, फैशन या ब्रांडिंग का बहुत असर नहीं था।
आज की स्थिति- आधुनिक युग
औद्योगिक उत्पादन: आज कपास के कपड़े बड़े-बड़े कारखानों और टेक्सटाइल मिलों में आधुनिक मशीनों से बनाए जाते हैं।
फैशन और ब्रांडिंग: कपास अब केवल सादगी का नहीं, बल्कि “स्टाइल” और “सस्टेनेबल फैशन” का प्रतीक बन गया है।
मिश्रित कपड़े (Blended Fabrics): अब कपास को अन्य रेशों (जैसे पॉलिएस्टर, लिनेन या इलास्टेन) के साथ मिलाकर टिकाऊ, स्ट्रेचेबल और Wrinkle-Free वस्त्र बनाए जाते हैं।
वैश्विक बाजार: भारतीय कपास की मांग यूरोप, अमेरिका और एशिया के फैशन उद्योगों में बढ़ी है। भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है और वैश्विक वस्त्र निर्यात में अग्रणी स्थान रखता है।
तकनीकी नवाचार: ऑर्गेनिक कॉटन, बायोडिग्रेडेबल फैब्रिक और स्मार्ट टेक्सटाइल जैसी नई अवधारणाएं उभरी हैं।
रोज़गार और निर्यात: यह उद्योग करोड़ों लोगों को रोज़गार देता है और भारत के वस्त्र निर्यात का बड़ा हिस्सा है।
फास्ट फैशन की चुनौती: सस्ते सिंथेटिक कपड़े बाजार में भारी प्रतिस्पर्धा पैदा कर रहे हैं, जिससे पारंपरिक कपास उद्योग को दबाव झेलना पड़ रहा है।
भारत के प्रसिद्ध कॉटन ब्रांड्स
भारत कपास उत्पादन और वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी स्थान रखता है। देश में कई ऐसे ब्रांड हैं जिन्होंने भारतीय कपास की गुणवत्ता को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।
Raymond: उच्च गुणवत्ता वाला सूती सूटिंग और शर्टिंग कपड़ा प्रदान करने वाला प्रीमियम ब्रांड।
Bombay Dyeing: भारत का सबसे पुराना कपड़ा ब्रांड, जो बेडशीट, तौलिया और कॉटन फैब्रिक के लिए प्रसिद्ध है।
Arvind Mills: भारत का बड़ा कपड़ा उत्पादक, विशेष रूप से डेनिम और कॉटन यार्न के लिए जाना जाता है।
Siyaram’s & Vimal: दैनंदिन उपयोग के सूती वस्त्रों और ऑफिस वियर के लोकप्रिय ब्रांड।
Mafatlal Industries: स्कूल यूनिफॉर्म और कॉटन फैब्रिक में अग्रणी।
फैशन और हैंडलूम आधारित ब्रांड्स
FabIndia: हैंडलूम, खादी और ऑर्गेनिक कॉटन से बने कपड़ों के लिए प्रसिद्ध।
Khadi India: स्वदेशी भावना और परंपरा का प्रतीक, जो देशभर के कारीगरों से जुड़ा है।
Biba, W, Peter England, Allen Solly: आधुनिक फैशन में कॉटन के उपयोग को लोकप्रिय बनाने वाले ब्रांड्स।
ऑर्गेनिक और सस्टेनेबल ब्रांड्स
No Nasties, Nicobar, B Label: जैविक कपास और पर्यावरण-अनुकूल फैशन को बढ़ावा देने वाले नए भारतीय ब्रांड।
क्षेत्रीय पहचान वाले ब्रांड्स
Rehwa Society (महेश्वर), Pochampally Handlooms (तेलंगाना), Banaras Textiles (वाराणसी): पारंपरिक बुनाई और हैंडलूम कला को जीवित रखने वाले प्रसिद्ध क्षेत्रीय कॉटन ब्रांड्स।
बड़े ब्रांड्स ने कॉटन को बनाया ‘प्रेस्टीज’
आज के दौर में सूती कपड़ा सिर्फ एक आम पहनावा नहीं, बल्कि स्टाइल और प्रतिष्ठा (Prestige) का प्रतीक बन गया है। पहले जहां कॉटन कपड़ा सादगी और सरलता का संकेत माना जाता था, वहीं अब बड़े फैशन ब्रांड्स ने इसे आधुनिकता और आकर्षण से जोड़ दिया है।
उच्च गुणवत्ता वाले कॉटन का उपयोग: कुछ ब्रांड्स जैसे अरविंद, रेमंड, बॉम्बे डाइंग, वेलस्पन आदि प्रीमियम क्वालिटी की कॉटन का उपयोग करते हैं। वे कपड़े को मुलायम, टिकाऊ और आरामदायक बनाने के लिए नवीन तकनीक अपनाते हैं।
फैशन डिज़ाइन और ट्रेंड: अब कॉटन केवल साधारण सफेद कपड़ा नहीं रहा। डिजाइनर ब्रांड्स कॉटन में आधुनिक कट, रंग और प्रिंट्स का प्रयोग कर इसे फैशन स्टेटमेंट बना चुके हैं।
ईको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल इमेज: वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ने से कॉटन को “सस्टेनेबल फैब्रिक” के रूप में प्रतिष्ठा मिली है। ब्रांड्स इसे “नेचुरल और अर्थ-फ्रेंडली” कहकर प्रचारित करते हैं।
सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट: कई प्रसिद्ध हस्तियां कॉटन पर आधारित कपड़े पहनकर इसके उपयोग को ग्लैमर और प्रतिष्ठा से जोड़ती हैं। इससे उपभोक्ताओं में इसे पहनने का गौरव बढ़ा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान: भारत का ऑर्गेनिक कॉटन अब अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स जैसे H&M, Levi’s, Marks & Spencer तक पहुंच चुका है। इससे कॉटन का वैश्विक सम्मान और बढ़ा है।
Fashion Shows ने कॉटन को Promote किया
आज के दौर में फैशन शो सिर्फ कपड़े दिखाने का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और स्थायित्व (Sustainability) का संदेश देने का मंच बन चुके हैं। फैशन इंडस्ट्री ने कॉटन को आधुनिक फैशन के केंद्र में लाकर उसकी प्रतिष्ठा को एक नई ऊंचाई दी है।
कॉटन को रैंप पर ग्लैमर से जोड़ा: पहले कॉटन को सिर्फ साधारण और घरेलू पहनावे का कपड़ा माना जाता था। फैशन डिजाइनरों ने रैंप पर कॉटन से बने आकर्षक, आधुनिक और ट्रेंडी परिधान दिखाकर इसे ग्लैमरस और स्टाइलिश बना दिया।
डिजाइनरों का योगदान: प्रसिद्ध भारतीय डिजाइनर जैसे सब्यसाची मुखर्जी, अनिता डोंगरे, अब्राहम एंड ठाकोर, रितु कुमार आदि ने कॉटन पर आधारित Collections प्रस्तुत किए हैं, जिनमें परंपरा और आधुनिकता का सुंदर संगम दिखता है। “सस्टेनेबल फैशन” की थीम: कई फैशन वीक जैसे लैक्मे फैशन वीक, इंडिया फैशन वीक, और सस्टेनेबल फैशन शो में “Cotton Is Cool” “ Go Natural” और “Sustainable Style” जैसी थीम के तहत कॉटन को पर्यावरण-मित्र फैब्रिक के रूप में पेश किया गया है।
किसानों और ग्रामीण उद्योगों से जुड़ाव: फैशन शो के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि कॉटन सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत और ग्रामीण उद्योगों का जीवन है। इससे उपभोक्ताओं में “स्वदेशी और प्राकृतिक उत्पादों” के प्रति सम्मान बढ़ा।
भारतीय ब्रांड्स ने बदली कॉटन की कहानी
आज के समय में बड़े ब्रांड्स ने कॉटन को केवल आराम का नहीं, बल्कि आकर्षण, पर्यावरण-जागरूकता औरप् रतिष्ठा का प्रतीक बना दिया है। यह भारतीय परंपरा और आधुनिक फैशन का सुंदर संगम बन चुका है। भारत के ये ब्रांड परंपरा और आधुनिकता का संगम हैं। जहां Raymond, Arvind और Bombay Dyeing जैसी कंपनियां औद्योगिक उत्कृष्टता का उदाहरण हैं, वहीं FabIndia और Khadi India भारतीय विरासत की पहचान हैं। आज भारतीय कॉटन ब्रांड न केवल घरेलू उपभोक्ताओं को आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि विश्व स्तर पर “Made in India” की पहचान को भी मजबूत कर रहे हैं।
शुद्ध भारतीयता की पहचान है कॉटन
कपास के कपड़े समय के साथ अपनी पहचान और उपयोग के स्वरूप में भले ही बदल गए हों, परंतु उनकी प्राकृतिक सुंदरता, आरामदायकता और पर्यावरणीय अनुकूलता आज भी बरकरार है। जहां पहले कपास सादगी और स्वदेशी भावना का प्रतीक था, वहीं आज यह सस्टेनेबल फैशन और पर्यावरण-जागरूक उपभोक्ता संस्कृति का प्रतिनिधि बन चुका है। इस प्रकार, कपास के वस्त्रों का सफर “परंपरा से तकनीक” और “ग्राम्य जीवन से वैश्विक मंच” तक का है, जो भारत की बदलती जीवनशैली और सोच दोनों का आईना है। Made In India ने कॉटन की कहानी को गांव की कताई से उठाकर Global Ramp तक पहुंचा दिया है। आज भारतीय कपास सिर्फ एक परिधान नहीं, बल्कि गौरव, नवाचार और आत्मनिर्भरता की पहचान बन चुका है।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!