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November 11, 2025

छत्तीसगढ़ की स्मारिका चंद्राकर बनी मिसाल- स्मार्ट खेती, मार्केटिंग और हौसले से बदली खेती की तस्वीर

The CSR Journal Magazine
MBA ग्रेजुएट स्मारिका चंद्राकर ने कॉर्पोरेट सेक्टर को अलविदा कह मिट्टी से जोड़ा नाता ! कॉरपोरेट नौकरी छोड़ सब्ज़ी उगाना शुरू किया, आज बना ली करोड़ों की खेती वाली कंपनी ‘Green Gold Agro Farms’ !

स्मारिका चंद्राकर- MBA किसान

जहां अधिकांश युवा MBA करने के बाद बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों में ऊंचे पद और मोटी सैलरी की तलाश करते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ की स्मारिका चंद्राकर ने एक बिल्कुल अलग रास्ता चुना। उन्होंने आरामदायक नौकरी को अलविदा कहकर खेती को अपनाया और आज उनकी यह “ग्रीन क्रांति” करोड़ों का कारोबार कर रही है। स्मारिका ने साबित कर दिया कि अगर सोच नई हो और मेहनत सच्ची, तो खेत भी एक बड़ा उद्यम (Enterprise) बन सकता है।

शुरुआत: कॉरपोरेट से खेत की ओर

स्मारिका चंद्राकर का जन्म छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के पास एक छोटे से गांव में हुआ। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली स्मारिका ने MBA (मार्केटिंग) की डिग्री हासिल की और एक नामी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी पाई। कई साल तक कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि यह जीवन उनके मन का नहीं है। वह कहती हैं, “मेरे अंदर हमेशा से कुछ अपना करने की चाह थी, और मैं चाहती थी कि मेरा काम सीधे समाज से जुड़ा हो, जमीन से जुड़ा हो।” इसी सोच ने उन्हें खेती की ओर लौटने का फैसला लेने को प्रेरित किया।

शुरुआती संघर्ष: मिट्टी से रिश्ता, चुनौतियों से जंग

जब स्मारिका ने यह फैसला लिया, तो परिवार और दोस्तों को यह एक “पागलपन भरा कदम” लगा। लोगों ने कहा, “MBA करके खेती? यह नुकसान का सौदा है।” लेकिन स्मारिका ने हार नहीं मानी। उन्होंने गांव लौटकर 5 एकड़ जमीन पर जैविक सब्ज़ियों की खेती शुरू की। शुरुआत में कई असफलताएं मिलीं ! मिट्टी की गुणवत्ता, पानी की कमी, और मौसम की अनिश्चितता, पर उन्होंने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर खेती को वैज्ञानिक रूप दिया।

नवाचार: खेती में लगाई मैनेजमेंट की समझ

स्मारिका ने खेती को केवल पारंपरिक दृष्टिकोण से नहीं देखा। उन्होंने अपने MBA ज्ञान को खेती में उतारा-
सप्लाई चेन मैनेजमेंट को अपनाया,
डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर मॉडल बनाया,
ऑनलाइन ब्रांडिंग शुरू की।
उन्होंने अपनी कंपनी का नाम रखा- “Green Gold Agro Farms” !  यह कंपनी अब जैविक सब्ज़ियां, हाइड्रोपोनिक ग्रीन्स, और फूड प्रोसेस्ड उत्पाद तैयार करती है। उनके उत्पाद रायपुर, दुर्ग, भिलाई से लेकर नागपुर और भोपाल तक के सुपरमार्केट्स में बिकते हैं।

आज का कारोबार: करोड़ों की सफलता की कहानी

आज स्मारिका की कंपनी का वार्षिक टर्नओवर 4.5 करोड़ रुपये से अधिक है। उनके फार्म पर अब 40 से ज्यादा स्थायी कर्मचारी और 100 से अधिक ग्रामीण महिलाएं काम कर रही हैं। उन्होंने स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षण देकर सेल्फ-हेल्प ग्रुप (SHG) से जोड़ा है। ये महिलाएं बीज तैयार करने, पैकेजिंग और बिक्री के काम में शामिल हैं। स्मारिका का कहना है, “मेरी सफलता तभी पूरी होगी जब गांव की हर महिला आत्मनिर्भर बने और अपने बच्चों को पढ़ा सके।”

Smart Farming और Sustainability 

स्मारिका चंद्राकर के फार्म में ड्रिप इरिगेशन, सोलर पंप, और हाइड्रोपोनिक ग्रीनहाउस जैसी तकनीकों का प्रयोग होता है। सारी खेती केमिकल-फ्री और ऑर्गेनिक है। उत्पादों को QR कोड के साथ पैक किया जाता है जिससे उपभोक्ता खेती की पारदर्शिता देख सके। स्मारिका कहती हैं, “खेती को आधुनिक तकनीक और मार्केटिंग के साथ जोड़ना ही असली ‘ग्रीन रेवोल्यूशन 2.0’ है।”

स्मारिका चंद्राकर की प्रेरणा और सम्मान

स्मारिका को उनकी उपलब्धियों के लिए कई सम्मान मिले-
प्रधानमंत्री कृषि नवाचार पुरस्कार (2023)
फिक्की विमेन आंत्रप्रेन्योर अवॉर्ड (2024)
फोर्ब्स इंडिया 30 अंडर 30” में जगह। वह अब देशभर के युवा किसानों को ट्रेनिंग दे रही हैं और कॉलेजों में गेस्ट लेक्चर भी देती हैं। स्मारिका का सपना है कि आने वाले पांच वर्षों में वह 100 एकड़ में ऑर्गेनिक खेतीशुरू करें और ग्रामीण युवाओं के लिए एग्रो-स्टार्टअप हब खोलें। वह चाहती हैं कि खेती को भी “लाभ का व्यवसाय” माना जाए, न कि “आखिरी विकल्प”।

युवा और खेती का नया युग: स्मारिका की कहानी बदल रही सोच की दिशा

कभी खेती को गांवों तक सीमित और ‘कम आय वाला पेशा’ माना जाता था। आज वही खेती, शिक्षित युवाओं की नई सोच और आधुनिक तकनीक के साथ, लाभदायक उद्योग में बदल रही है। इस परिवर्तन का जीवंत उदाहरण हैं स्मारिका चंद्राकर, जिन्होंने MBA जैसी उच्च शिक्षा लेकर कॉरपोरेट दुनिया को छोड़ मिट्टी से रिश्ता जोड़ा, और साबित किया कि कृषि भी करोड़ों का व्यापार बन सकती है।

खेती में लौटते शिक्षित युवा

स्मारिका जैसी युवाओं की पीढ़ी अब समझ रही है कि असली स्थिरता और आत्मनिर्भरता भूमि से जुड़ने में है। वे केवल हल चलाने नहीं लौट रहे, बल्कि टेक्नोलॉजी, मार्केटिंग और मैनेजमेंट के ज्ञान के साथ खेती को नया रूप दे रहे हैं। ड्रोन, सेंसर, स्मार्ट सिंचाई, और ई-कॉमर्स, इन सबने खेतों को भी “स्टार्टअप” में बदल दिया है।खेती अब पिछड़ापन नहीं, प्रबंधन का उदाहरण है। कभी खेती को “पिछड़ेपन” का प्रतीक कहा जाता था, लेकिन आज यह “एग्रो-आंत्रप्रेन्योरशिप” बन चुकी है। स्मारिका ने जो किया, वह दिखाता है कि खेती में बिजनेस मॉडल, ब्रांडिंग, और सप्लाई चेन का प्रयोग कितनी दूर तक जा सकता है। उन्होंने “ग्रीन गोल्ड एग्रो फार्म्स” को केवल एक कंपनी नहीं, बल्कि ग्रामीण आर्थिक सशक्तिकरण का केंद्र बना दिया।

महिला सशक्तिकरण की मिसाल

स्मारिका का योगदान केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक भी है। उन्होंने सैकड़ों ग्रामीण महिलाओं को रोजगार दिया, उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता का रास्ता दिखाया। यह पहल उस सोच को तोड़ती है जिसमें खेती को केवल पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता था। आज महिलाएं खेती, उत्पादन, पैकेजिंग और विपणन, हर स्तर पर आगे हैं।

भविष्य की राह: शिक्षा और मिट्टी का संगम

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, खेती का भविष्य तभी सुरक्षित है जब शिक्षा और अनुभव का संगम हो। स्मारिका जैसी कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि “अगर युवा किसान बने, तो गांव भी विकसित होंगे और देश भी आत्मनिर्भर।” स्मारिका चंद्राकर की यात्रा हमें यह सिखाती है कि सफलता केवल शहरों की चमक में नहीं, खेतों की हरियाली में भी पाई जा सकती है। स्मारिका चंद्राकर की कहानी केवल खेती की नहीं, बल्कि सोच की क्रांति की कहानी है।
उन्होंने दिखाया कि सफलता केवल बड़े शहरों या कॉरपोरेट दफ्तरों से नहीं आती, सफलता मिट्टी की खुशबू में भी बसती है। उनकी यात्रा उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो यह मानते हैं कि “अलग सोचो, सही करो, तो धरती भी सोना उगाती है।” यह “युवा और खेती का नया युग” है, जहां डिग्री और धरती साथ मिलकर हरियाली को अर्थव्यवस्था में बदल रहे हैं।
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