app-store-logo
play-store-logo
November 22, 2025

ज्वालामुखी चट्टान पर बसी आस्था: मुंबई के भायखला का प्राचीन श्री घोड़पदेव मंदिर

The CSR Journal Magazine

 

Ghodapdev Temple, Byculla – इतिहास, आस्था, भू-विज्ञान और सांस्कृतिक विरासत का अनोखा संगम ! श्री घोड़पदेव मंदिर भायखला के घोड़पदेव इलाके में स्थित एक शांत, छोटा लेकिन ऐतिहासिक मंदिर है। इसकी खासियत यह है कि यहां पूजा की जाने वाली शिला ठंडी हुई ज्वालामुखीय लावा रॉक मानी जाती है जो इसे धार्मिक स्थान के साथ-साथ भूवैज्ञानिक दृष्टि से भी अनोखा बनाती है। यह मंदिर हनुमान के एक स्थानीय स्वरूप की तरह माना जाता है, जहां सिंदूर चढ़ी प्राकृतिक चट्टान ही प्रमुख देवता हैं।

घोड़पदेव मंदिर- मुंबई की तेज रफ्तार के बीच छिपी एक प्राचीन शांत विरासत

मुंबई शहर अपनी गति, ग्लैमर, भीड़, और व्यापारिक गतिविधियों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन इसी महानगर की भीड़भाड़ वाली सड़कों, फ्लाईओवरों और इमारतों के बीच कुछ ऐसे धार्मिक-सांस्कृतिक स्थान भी छिपे हुए हैं जो न केवल आस्था का केंद्र हैं, बल्कि मुंबई के भू-वैज्ञानिक और सामाजिक इतिहास को भी अपने भीतर सुरक्षित रखते हैं। इन्हीं अनूठे स्थानों में से एक है भायखला स्थित श्री घोड़पदेव मंदिर, जिसे कुछ लोग ज्वालामुखी शिला मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर जितना धार्मिक आस्था का केंद्र है, उतना ही वैज्ञानिक व सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां पूजी जाने वाली शिला वास्तव में ठंडी हुई ज्वालामुखीय लावामानी जाती है जो प्राचीन समय में मुंबई के ज्वालामुखीय उद्गारों का प्रमाण हो सकती है। मुंबई की धरती के नीचे ज्वालामुखीय चट्टानों का विशाल संसार है, और उसी का एक सजीव अवशेष इस मंदिर में देखने को मिलता है।

घोड़पदेव मंदिर का परिचय

बायकुला-रे रोड क्षेत्र में स्थित यह मंदिर बाहर से साधारण दिखाई देता है, लेकिन भीतर प्रवेश करते ही इसका वातावरण आध्यात्मिकता से भर उठता है। मंदिर में मुख्य रूप से एक विशेष काला-सी लाल चट्टान का बड़ा टुकड़ा है, जिसे स्थानीय लोग सिंदूर चढ़ाकर भगवान घोड़पदेव के रूप में पूजते हैं। कई पीढ़ियों से यहां पूजा होती आ रही है, और स्थानीय बोरकर परिवार ने इस मंदिर के प्रबंधन की परंपरा को संभाले रखा है। यह मंदिर न तो अत्यधिक भव्य है, न किसी बड़े पर्यटन-स्थल की तरह प्रचारित, लेकिन इसकी अनोखी पहचान इसे मुंबई के सबसे विशिष्ट मंदिरों में शामिल कर देती है।

नाम की उत्पत्ति- कौन हैं घोड़पदेव ?

इस नाम को लेकर स्थानीय स्तर पर दो प्रमुख मान्यताएं हैं। पहली मान्यता कहती है कि मंदिर के पास स्थित एक बड़ी चट्टान का आकार दूर से देखने पर घोड़े के चेहरे जैसा प्रतीत होता था। इस वजह से लोग इस क्षेत्र को “घोड़ाप” और देवता को “घोड़पदेव” कहने लगे। दूसरी मान्यता में कहा गया है कि यह शब्द असल में “खड़क-देव” यानी “पत्थर के देव” का अपभ्रंश है, क्योंकि पूजा की जाने वाली चट्टान एक विशाल कठोर ज्वालामुखीय शिला है। समय के साथ बोलचाल में “खड़क-देव” धीरे-धीरे “घोड़पदेव” बन गया। ऐसे नाम परिवर्तन मुंबई और कोंकण क्षेत्र में बेहद सामान्य हैं, जहां कई स्थानों के नाम मराठी, कोंकणी, पुर्तगाली और अंग्रेज़ी उच्चारणों में मिलकर विकसित हुए हैं।

देवता की पहचान : क्या यह हनुमान का स्वरूप है?

स्थानीय समुदाय इस देवता को हनुमान का अद्वितीय स्वरूप मानता है। इसका कारण है चट्टान पर लगाए जाने वाला सिंदूर, जो हनुमान मंदिरों जैसा है। कुछ स्थानों पर इसे “शिला-हनुमान” भी कहा जाता है। मंदिर के आसपास हनुमान जयंति पर विशेष आयोजन किए जाते हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि इस देवता की पारंपरिक मूर्ति नहीं है बल्कि एक प्राकृतिक शिला ही देवता है। यह भारतीय परंपरा के उन प्राचीन रूपों में से एक है जहां प्रकृति स्वयं देवता का रूप अख्तियार करती है।

ज्वालामुखीय लावा की पूजा- एक वैज्ञानिक अद्भुतता

यह मंदिर केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि भू-विज्ञान (Geology) की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुंबई का अधिकांश भाग बेसाल्टिक लावा पर बसा हुआ है, जो लाखों वर्ष पहले ज्वालामुखी विस्फोटों से बना था। मंदिर में स्थापित शिला को ठंडी हुई लावा रॉक (Igneous Rock) माना जाता है। इसके कण, धारियां और संरचना सामान्य पत्थरों से अलग हैं। यह चट्टान धरती के भीतर से बहकर आई थी और ठंडी होकर आज की संरचना में बदल गई। भारतीय संस्कृति में चट्टानों और शिलाओं में देवत्व देखने की परंपरा बहुत पुरानी है। लेकिन इस मंदिर की खासियत है कि यहां पूजी जाने वाली चट्टान विज्ञान और आस्था का संगम है।

बोरकर परिवार से जुड़ी मंदिर की लोक-कथा

घोड़पदेव मंदिर का इतिहास किसी शाही आदेश या राजकीय दस्तावेज़ से नहीं, बल्कि लोक-परंपरा और परिवार की स्मृतियों से जुड़ा है। बोरकर परिवार की मान्यता है कि उनके एक पूर्वज को स्वप्न में देवता ने दर्शन दिए और उसी स्थान पर मंदिर स्थापित करने के लिए कहा। उस समय यह इलाका समुद्र के बेहद करीब था। इतना कि हाई-टाइड में पानी मंदिर परिसर तक पहुंच जाता था। अब ज़मीन पुनः प्राप्त करने (Land Reclamation) के बाद समुद्र दूर हो गया है, पर आज भी मंदिर के आधार में ऐसे संरचनात्मक संकेत मिलते हैं जो बताते हैं कि कभी यहां समुद्री जल आता था। इस परिवार ने पिछले छह पीढ़ियों से इस मंदिर को संभाला है, जो इसे मुंबई की उन दुर्लभ परंपराओं में शामिल करता है जो परिवारों द्वारा टिकाई गईं।

मंदिर का स्थापत्य और संरचना

श्री घोड़पदेव मंदिर बेहद भव्य नहीं, बल्कि साधारण और पारंपरिक है। मंदिर की खास विशेषताएं हैं। मंदिर में छोटा लेकिन शांत गर्भगृह है। सिंदूर से आच्छादित ज्वालामुखीय शिला के आसपास धीरे-धीरे ऊपर उठती पत्थर की सतह है। मंदिर में लकड़ी और पत्थर का संयुक्त निर्माण किया गया है। कुछ हिस्सों में पुराने जमाने की समुद्री जल-निकासी संरचनाएं भी मौजूद हैं। मंदिर आधुनिक नहीं है, लेकिन इसका रहस्य और सरलता ही इसे आकर्षक बनाती है।

वार्षिक उत्सव- भायखला का पारंपरिक जश्न

हर साल यहां एक विशेष वार्षिक महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें पालखी यात्रा, संगीत  कार्यक्रम, भजन-कीर्तन, सामुदायिक भोजन, सांस्कृतिक नृत्य जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह उत्सव स्थानीय समुदाय को जोड़ने का माध्यम है, और कई परिवार पीढ़ियों से इसे मनाने आते हैं।

सामाजिक विरासत- मिल मजदूरों से लेकर आधुनिक मुंबई तक

घोड़पदेव मंदिर मुंबई के उस इलाके में है जो कभी मिल मजदूरों का केंद्र हुआ करता था। भायखला, रे रोड और घाटकोपर जैसे इलाके 19वीं-20वीं सदी में टेक्सटाइल उद्योग का केंद्र थे। उन मजदूर परिवारों की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जिंदगी में यह मंदिर एक मजबूत आस्था-स्तम्भ रहा है। आज भले ही मिलें बंद हो चुकी हों, लेकिन पुरानी पीढ़ियां अभी भी इस मंदिर से गहराई से जुड़ी हुई हैं।

मुंबई के भू-विज्ञान से संबंध

मुंबई की धरती ज्वालामुखीय गतिविधियों से बनी है। घोड़पदेव मंदिर की शिला इसी गाथा का जीवंत प्रमाण है। मुंबई के ज्वालामुखी अतीत की प्रमुख बातें- लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व यह क्षेत्र ज्वालामुखीय भू-भाग का हिस्सा था। इसी से डेकिन ट्रैप्स (Deccan Traps) नामक विशाल लावा परतें बनीं। घोड़पदेव की चट्टान इन्हीं परतों का एक छोटा सा हिस्सा हो सकती है। इस दृष्टि से यह स्थान वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भी अनोखा है।

घोड़पदेव मंदिर का आध्यात्मिक महत्व

आध्यात्मिक दृष्टि से यह मंदिर विशिष्ट है क्योंकि यहां पूजा मूर्ति की नहीं, शिला की होती है। यह पूजा प्रकृति द्वारा प्रदान तत्वों की है, न कि मानव निर्मित मूर्ति की। कई भक्त मानते हैं कि यह मंदिर मानसिक शांति देता है। मंदिर के वातावरण में एक अजीब-सी पवित्रता और ऊर्जा है जो शहर की भागदौड़ में मन को शांत कर देती है।

भविष्य के लिए मंदिर का संरक्षण जरूरी

हालांकि मंदिर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे कई चुनौतियां भी झेलनी पड़ती हैं। आसपास का इलाका अत्यधिक भीड़भाड़ वाला है। शहरीकरण के कारण मंदिर का प्राकृतिक स्वरूप प्रभावित हुआ है। ज्वालामुखीय चट्टान की सुरक्षा के उचित उपाय नहीं हैं। धार्मिक heritage साइट के रूप में इसका संरक्षण बेहद आवश्यक है। यदि सही संरक्षण मिले, तो यह मुंबई का एक प्रमुख Heritage Point बन सकता है।

घोड़पदेव मंदिर- आस्था, विज्ञान और इतिहास का अद्वितीय संगम

भायखला का श्री घोड़पदेव मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं है। यह मुंबई के ज्वालामुखीय अतीत की स्मृति, स्थानीय समुदाय की आस्था, एक परिवार की परंपरा और मुंबई के सांस्कृतिक इतिहास का संगम है। यह स्थान हमें याद दिलाता है कि महानगरों की चमक-दमक के बीच भी ऐसे कोने मौजूद हैं जहां इतिहास, प्रकृति और भक्ति आज भी जीवित हैं। यह मंदिर मुंबई की विविधता, संस्कृति और गहराई का एक सुंदर प्रतीक है। एक ऐसा स्थान, जो सामान्य दिखता है, पर भीतर अनगिनत कहानियां समाए हुए है।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

Latest News

Popular Videos