अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और 2024 के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर H-1B वीज़ा नीति को लेकर बड़ा बयान दिया है। ट्रंप ने कहा है कि “संयुक्त राज्य अमेरिका को दुनिया भर से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को अपने देश में लाना होगा, ताकि हम तकनीकी, औद्योगिक और वैज्ञानिक क्षेत्र में अग्रणी बने रहें।” उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका में कुशल विदेशी कर्मचारियों, विशेषकर भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए वीज़ा नीतियों पर बहस चल रही है।
ट्रंप का बदला सुर- अमेरिका को अब वैश्विक प्रतिभा की अहमियत समझ में आ रही है
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हालिया बयान, “अमेरिका को दुनिया भर से प्रति भा लानी होगी”केवल एक सामान्य राजनीतिक टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह उनके पिछले कार्यकाल की नीति से एक नाटकीय परिवर्तन का संकेत देता है। वह नेता, जिसने “America First” के नारे के तहत H-1B वीज़ा को सीमित किया था, आज उसी वैश्विक प्रतिभा की सराहना कर रहे हैं जिसे पहले “अमेरिकी नौकरियों के लिए खतरा” बताया जाता था। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल (2017–2021) में H-1B वीज़ा पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे। उन्होंने उस समय कहा था कि “अमेरिकियों की नौकरियां पहले अमेरिकियों के लिए” होनी चाहिए। उनके शासनकाल में वीज़ा की संख्या सीमित की गई थी और समीक्षा प्रक्रिया को कड़ा किया गया था। लेकिन अब, 2025 के चुनावी माहौल में ट्रंप का बयान उनके रुख में नरमी का संकेत देता है। उन्होंने कहा कि “हमें वैश्विक प्रतिभाओं का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि वही अमेरिका को आगे ले जाती हैं।”
टेक्नोलॉजी सेक्टर के लिए राहत भरा संदेश
अमेरिका का टेक उद्योग लंबे समय से H-1B वीज़ा प्रणाली पर निर्भर है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, अमेज़न जैसी कंपनियों में हजारों भारतीय इंजीनियर और आईटी प्रोफेशनल काम करते हैं। ट्रंप का यह बयान इन कंपनियों और विदेशी पेशेवरों के लिए राहत की खबर के रूप में देखा जा रहा है। सिलिकॉन वैली के कई उद्योगपति लंबे समय से यह मांग कर रहे थे कि विदेशी कुशल कर्मचारियों के वीज़ा पर लगाम ढीली की जाए। लेकिन ट्रंप के हालिया बयान को लेकर दुविधा में हैं विश्लेषक! राजनीतिक रणनीति या वास्तविक परिवर्तन?विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह रुख केवल व्यावहारिक मजबूरी भी हो सकता है। 2024 के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है, और टेक सेक्टर में प्रतिभा की भारी कमी महसूस की जा रही है। इसके अलावा, एशियाई-अमेरिकी मतदाताओं, विशेषकर भारतीय समुदाय का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में ट्रंप का यह बयान राजनीतिक संतुलन साधने का प्रयास भी माना जा सकता है, जहां वे उद्योग जगत और एशियाई प्रवासी समुदाय दोनों को सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं।
भारतीयों के लिए अहम संदेश
H-1B वीज़ा का सबसे बड़ा लाभार्थी भारत है। अमेरिकी सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (USCIS) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल जारी होने वाले H-1B वीज़ा का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा भारतीय पेशेवरों को मिलता है। अगर ट्रंप के बयान के अनुरूप नीति में बदलाव होता है, तो भारतीय आईटी और इंजीनियरिंग प्रतिभाओं के लिए अमेरिका में अवसरों के नए द्वार खुल सकते हैं।
ट्रंप ने कहा- “बुद्धिमान लोगों को बाहर नहीं निकालेंगे”
ट्रंप ने कहा, “हम उन लोगों को अमेरिका से बाहर नहीं निकालेंगे जो यहां शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और अद्भुत काम कर रहे हैं। हम उन्हें रोकेंगे, क्योंकि वे हमारे देश के लिए मूल्यवान हैं।” उन्होंने संकेत दिया कि यदि वे दोबारा सत्ता में आते हैं, तो विदेशी छात्रों और प्रोफेशनल्स के लिए ग्रीन कार्ड या दीर्घकालिक वर्क परमिट की प्रक्रिया आसान की जा सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ट्रंप के इस बयान का उद्देश्य अमेरिकी टेक कंपनियों और एशियाई-अमेरिकी समुदाय को साधना है। पिछले कार्यकाल की तुलना में उनका यह नया रवैया व्यावहारिक नजर आ रहा है। अगर रिपब्लिकन प्रशासन दोबारा सत्ता में आता है, तो H-1B वीज़ा पर कुछ सुधार किए जा सकते हैं, जैसे कि-
प्रतिभा आधारित चयन प्रणाली,
लंबे समय तक वर्क परमिट का विकल्प,
और अमेरिकी विश्वविद्यालयों से स्नातक छात्रों को सीधी इमिग्रेशन सुविधा।
इमिग्रेशन नीति विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के बयान से यह संकेत मिलता है कि अमेरिका अब विदेशी प्रतिभाओं की अहमियत को समझ रहा है। प्रोफेसर लिंडा विल्सन (हार्वर्ड यूनिवर्सिटी) ने कहा, “वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दौर में केवल घरेलू प्रतिभा पर निर्भर रहना संभव नहीं है। अमेरिका को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ दिमागों की जरूरत है, और यह ट्रंप की नई समझ को दर्शाता है।”
H-1B वीज़ा पर भारतीयों के साथ ट्रंप का दुर्व्यवहार: एक सच्चाई जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हालिया बयान, “अमेरिका को दुनिया भर से प्रतिभा लानी होगी” भले ही सॉफ्ट और स्वागतयोग्य लगे, लेकिन भारतीय पेशेवरों की यादों में उनके पिछले कार्यकाल की कड़वाहट अब भी ताज़ा है। 2017 से 2021 के बीच ट्रंप प्रशासन ने एच-1B वीज़ा प्रणाली को जिस तरह कठोर बनाया, उसने न केवल भारतीय इंजीनियरों और आईटी प्रोफेशनलों को परेशान किया, बल्कि अमेरिका में वर्षों से बसे कई परिवारों को अनिश्चितता में डाल दिया था।
भारतीयों पर सबसे ज़्यादा असर
H-1B वीज़ा का सबसे बड़ा लाभार्थी भारत रहा है। लेकिन ट्रंप के दौर में इसी समूह को सबसे अधिक नुकसान झेलना पड़ा।
वीज़ा की स्वीकृति दर अचानक घटकर 70 प्रतिशत से कम हो गई,
सैकड़ों भारतीय पेशेवरों को वीज़ा रिजेक्शन के कारण अपने परिवार समेत भारत लौटना पड़ा,
और कई कंपनियों ने भारतीय कर्मचारियों की भर्ती पर अस्थायी रोक लगा दी।
आईटी कंपनियों Infosys, TCS, Wipro और HCL को भी अपने अमेरिकी प्रोजेक्ट्स के लिए स्थानीय भर्ती बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा।
Buy American, Hire American नीति का प्रभाव
ट्रंप प्रशासन ने “Buy American, Hire American” नामक नीति के तहत H-1B वीज़ा को ‘अमेरिकियों की नौकरियों के लिए खतरा’ बताया। उन्होंने विदेशी कर्मचारियों को यह कहकर निशाने पर लिया कि वे “कम वेतन पर अमेरिकी नौकरियां छीन रहे हैं।” इस नीति का सीधा असर भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों और तकनीकी विशेषज्ञों पर पड़ा जो वर्षों से अमेरिकी कंपनियों की रीढ़ माने जाते हैं। कई भारतीय पेशेवरों ने उस समय कहा था कि वीज़ा इंटरव्यू में उन्हें अपमानजनक सवालों का सामना करना पड़ा, और कई मामलों में वीज़ा नवीनीकरण भी बिना किसी स्पष्ट कारण के ठुकरा दिया गया।
अमेरिकी सपने में आई दरार
ट्रंप शासनकाल में H-1B वीजा धारकों की स्थिति इतनी अस्थिर हो गई थी कि कई परिवार अमेरिका में घर बेचकर भारत लौट आए। कई भारतीय छात्रों ने अमेरिका में उच्च शिक्षा के बाद भी वहीं रहकर काम करने का सपना छोड़ दिया। टेक कंपनियों ने खुलेआम कहा कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों से अमेरिकी नवाचार प्रभावित हुआ, क्योंकि विदेशी प्रतिभाएं असुरक्षित महसूस कर रही थीं। एक पूर्व H-1B वीजा धारक ने कहा था, “हमने अमेरिका को अपनी मेहनत दी, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने हमें बाहरी समझा। हर साल नवीनीकरण के डर से जीना हमारी दिनचर्या बन गई थी।”
छवि सुधारने का प्रयास या चुनावी रणनीति?
अब जब ट्रंप 2024 के बाद एक बार फिर राजनीतिक मैदान में हैं, तो एच-1B पर उनकी नरमी को कई विश्लेषक छवि सुधारने की कोशिश मानते हैं। अमेरिकी टेक कंपनियां और भारतीय-अमेरिकी समुदाय रिपब्लिकन पार्टी से नाराज़ थे, और ट्रंप को यह महसूस हुआ कि अमेरिका के आर्थिक भविष्य के लिए भारतीय प्रतिभा अनिवार्य है। ट्रंप के नए बयान में वही स्वीकारोक्ति झलकती है लेकिन विश्वास अब पहले जैसा नहीं रहा। भारतीय पेशेवरों के बीच यह धारणा अब भी है कि अगर ट्रंप दोबारा सत्ता में आते हैं, तो वे फिर से “America First” के नाम पर वीज़ा पाबंदियाँ कड़ी कर सकते हैं।
मानवता और योग्यता के बीच दीवार
H-1B वीज़ा धारक केवल “कर्मचारी” नहीं होते! वे अमेरिकी समाज के सक्रिय हिस्से हैं, जो टैक्स देते हैं, रिसर्च करते हैं और स्टार्टअप्स शुरू करते हैं। ट्रंप प्रशासन ने जिस तरह उन्हें “अस्थायी बाहरी” मानकर नीतियां बनाईं, उसने यह दिखा दिया कि नीति और मानवता के बीच की दीवार कितनी कठोर हो सकती है। भारतीयों ने उस दौर में अपनी काबिलियत, संयम और मेहनत से यह साबित किया कि प्रतिभा सीमाओं में नहीं बंधती।
आज ट्रंप का सुर बदला है। लेकिन इतिहास भूलना मुश्किल है। भारत के लाखों युवाओं ने ट्रंप शासन के दौरान यह महसूस किया कि अमेरिकी सपने में भी राजनीति का रंग होता है। अगर आने वाले वर्षों में अमेरिका सच में वैश्विक प्रतिभा का स्वागत करना चाहता है, तो उसे पहले उन जख्मों को भरना होगा जो H-1B वीज़ा धारकों को ट्रंप प्रशासन के दौरान मिले थे।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean updates!

