पश्चिम बंगाल में युवा उद्यमी गौरव आनंद की पहल से जुड़ी आजीविका, घटी जल-प्रदूषण की चुनौती, बढ़ा टिकाऊ फैशन का मार्ग! पश्चिम बंगाल के कई जिलों में नदियों-तालाबों की सतह पर छाई रहने वाली जलकुंभी (Water Hyacinth) वर्षों से एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती रही है। यह तेजी से फैलने वाला पौधा पानी की सतह को ढककर जलचर जीवों की सांसें रोक देता है, स्थानीय जलस्तर को प्रभावित करता है और गांवों में नाव चलाने, मछली पकड़ने तथा सिंचाई के काम में बड़ी बाधा पैदा करता है। लेकिन इसी ‘समस्या’ को एक अवसर में बदलते हुए युवा सामाजिक उद्यमी गौरव आनंद ने एक अनोखी दिशा दिखाई है- जलकुंभी से इको-फ्रेंडली साड़ियां और फैशन उत्पाद तैयार कर उन्हें बनाया जीविका का माध्यम!
जलकुंभी से ‘हरित क्रांति’- गौरव आनंद की कहानी, जिसने समस्या को बनाया फैशन समाधान
पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के कई जलस्रोतों में वर्षों से एक ही समस्या छाई रही है- ‘जलकुंभी’! यह पौधा पानी को ढक देता है, ऑक्सीजन कम कर देता है और मछलियों से लेकर नाविकों तक, सबके लिए परेशानी बन जाता है। लेकिन एक युवा इंजीनियर ने इसी ‘मुसीबत’ में एक नई संभावना खोजी और वही संभावना आज भारतीय सस्टेनेबल फैशन उद्योग का एक अनोखा मॉडल बन चुकी है। ये कहानी है गौरव आनंद की, जो कॉर्पोरेट दुनिया से निकलकर एक ऐसे रास्ते पर चल पड़े, जहां पर्यावरण संरक्षण, महिलाओं की आजीविका और फैशन तीनों एक साथ जुड़ते हैं।
जलकुंभी का आइडिया कैसे आया?
फाउंडेशन के शुरुआती दिनों में गौरव विभिन्न जलाशयों की सफाई करते थे। इन्हीं अभियानों में बार-बार दिखाई देने वाला एक पौधा था, जलकुंभी ! धीरे-धीरे उन्होंने देखा कि यह सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि पानी का ‘आक्रामक दुश्मन’ है। सफाई के दौरान वे इसके तनों की बनावट को ध्यान से देखने लगे। कई बार यह उनके हाथों में टूटता नहीं था, बल्कि रेशे छोड़ता था। यहीं से एक विचार जागा- क्या इस फाइबर को उपयोगी उत्पादों में बदला जा सकता है?
कौन हैं गौरव आनंद?
गौरव आनंद मूलतः पर्यावरण अभियंता (Environmental Engineer) हैं। पहले उन्होंने करीब 16 साल तक एक स्थिर कॉर्पोरेट नौकरी की, जिसमें उनका काम कचरा प्रबंधन (Waste Management) से जुड़ा था। वर्ष 2019 में उन्होंने ‘स्वच्छता पुकारे फाउंडेशन’ की स्थापना की ताकि वे पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक कार्यों को एक साथ कर सकें। गौरव आनंद लगातार नदी एवं जल निकायों की सफाई-कार्य करते रहे। इसी दौरान उन्हें देखा कि कई तालाब-नदियों में जलकुंभी (Water Hyacinth) बहुत तेजी से फैल चुकी थी जो जलजीवन और पानी की गुणवत्ता दोनों के लिए खतरनाक है।
हैंडीक्राफ्ट से साड़ी तक
हल्की-फुल्की Handicrafts (जैसे नोटबुक, चटाई, लैंपशेड) बनाने के दौरान उन्होंने जाना कि जलकुंभी के तनों में सेलूलोज़ (Cellulose) पाया जाता है जिसे धागे में बदला जा सकता है, ठीक जूट या कॉटन की तरह! उन्होंने विचार किया- अगर यही धागा निकाला जाए और उसे बुनकरों (Weavers) के साथ मिलकर साड़ी बनाई जाए तो न सिर्फ जलकुंभी की समस्या हल हो सकती है, बल्कि एक स्थायी, इको-फ्रेंडली फैशन और ग्रामीण आजीविका का रास्ता भी बन सकता है। कुछ प्रारंभिक प्रयासों के बाद, 2022 में उन्होंने पहली फ्यूजन साड़ी (Water-Hyacinth + कॉटन/अन्य फाइबर) बनाई।
‘स्वच्छता पुकारे फाउंडेशन’- उद्देश्य व कार्यप्रणाली
स्वच्छता पुकारे फाउंडेशन का उद्देश्य है पर्यावरण संरक्षण + सामाजिक उत्थान! फाउंडेशन जलकुंभी को जल निकायों से निकालता है, उसे सुखाता है, उसके तनों से धागा निकालता है, फिर बुनकरों के सहयोग से हाथ से साड़ी तथा अन्य उत्पाद बनाता है। इसके अलावा फाउंडेशन ने चटाई, कागज, नोटबुक, बैग, होम-डेकोर जैसे अन्य इको-फ्रेंडली उत्पाद भी बनाये हैं।
महिलाओं को रोजगार और सामाजिक असर
इस परियोजना में ग्रामीण और सीमांत-वर्ग की लगभग 450-500 महिलाएं जुड़ी हुई हैं जो जलकुंभी निकालने, उसे तैयार करने, धागा बनाने, साड़ी बुनने आदि कार्यों में शामिल है। महिलाओं को इस काम से माह-वार 5,000 से 12,000 रुपये तक की आय मिली है, जो उनके लिए स्थिर आजीविका का एक स्रोत बन चुकी है।
नदी से निकला पौधा, बन गया साड़ी का धागा
जलकुंभी के तनों को पानी से निकालकर धूप में सुखाया जाता है, फिर उबाला और प्रोसेस किया जाता है। इससे धागे जैसी स्ट्रिप मिलती है जिसे स्थानीय बुनकर करघे पर कपड़े में बुनते हैं। कॉटन या लिनन के साथ मिलकर बनने वाली यह फ्यूज़न साड़ी हल्की, टिकाऊ और पूरी तरह पर्यावरण-अनुकूल होती है। सबसे बड़ी बात- इसमें किसी तरह की रासायनिक प्रोसेसिंग या सिंथेटिक तत्व नहीं होते।
सैकड़ों महिलाओं को मिला रोज़गार
गौरव की इस पहल ने ग्रामीण महिलाओं को नया जीवन दिया है। जलकुंभी निकालने से लेकर उसे प्रोसेस करने और बुनाई के काम तक, आज कई गांवों की महिलाओं को नियमित आय का स्रोत मिला है। कई महिलाएं बताती हैं कि पहले जलकुंभी उनके तालाबों की सबसे बड़ी समस्या थी, लेकिन आज वही उनके घरों का आर्थिक सहारा बन चुकी है।
फैशन की दुनिया में अलग पहचान
जलकुंभी से बनी साड़ियों को शहरी बाजारों में खूब सराहना मिल रही है। प्राकृतिक टेक्सचर, मिट्टी-सी खुशबू और हस्तनिर्मित बुनाई का आकर्षण इन साड़ियों को खास बनाता है। सस्टेनेबल फैशन को पसंद करने वाली नई पीढ़ी इन्हें तेजी से अपना रही है और यही मांग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही है।
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