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November 13, 2025

‘अमेरिकी कर्मचारियों को ट्रेन करो और वापस जाओ’- अमेरिका ने H-1B वीजा नीति में किया बड़ा बदलाव !

The CSR Journal Magazine

 

भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिकी झटका, अब स्थायी नौकरी के बजाय ‘Train and Return’ मॉडल लागू करने की तैयारी! अमेरिका के ट्रेज़री सेक्रेटरी Scott Bessent ने दिया H1B वीज़ा को लेकर बड़ा बयान!

‘ट्रैनिंग दो और लौट जाओ’

अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट (Scott Bessent) ने कहा है कि अमेरिका अब विदेशी कुशल कर्मचारियों को केवल अस्थायी तौर पर अपने देश में काम करने देगा। उनका कहना है, “Train the US workers, then go home.” यानि ‘पहले अमेरिकी कर्मचारियों को प्रशिक्षण दो, फिर अपने देश लौट जाओ।’ यह बयान सीधे तौर पर अमेरिका के H-1B वीजा कार्यक्रम से जुड़ा है, जिसे लेकर ट्रंप प्रशासन नई नीति लागू करने की दिशा में है।

क्या कहा बेसेंट ने

बेसेंट ने कहा कि अमेरिका को अभी भी शिपबिल्डिंग, सेमीकंडक्टर और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में विदेशी कौशल की जरूरत है, लेकिन यह स्थायी नहीं होगी। “हम चाहते हैं कि भारत जैसे देशों के कुशल इंजीनियर और तकनीशियन यहां आएं, अमेरिकी कामगारों को ट्रेन करें, और 3 से 7 साल में वापस लौट जाएं।” उन्होंने इसे “Knowledge Transfer Program” कहा, यानी विदेशी विशेषज्ञ यहां केवल ज्ञान और अनुभव साझा करने के लिए रहेंगे, न कि स्थायी तौर पर बसने के लिए।

H-1B वीजा क्या है

H-1B एक ग़ैर-प्रवासी (Non-Immigrant) कार्य वीज़ा है, जो अमेरिका 1990 में लाया था। इसके ज़रिए अमेरिकी कंपनियां विदेशी उच्च-कौशल वाले पेशेवरों को सीमित समय के लिए नियुक्त कर सकती हैं। हर साल लगभग 85,000 H-1B वीज़ा जारी किए जाते हैं, जिनमें 65,000 सामान्य आवेदनों और 20,000 अमेरिकी मास्टर डिग्री धारकों के लिए होते हैं। 70 प्रतिशत से अधिक वीज़ा भारतीयों को मिलते हैं। Infosys, TCS, Wipro, HCL और Tech Mahindra जैसी भारतीय कंपनियां पिछले दो दशकों से अपने हज़ारों इंजीनियरों को इसी वीज़ा पर अमेरिका भेजती रही हैं।

शुरुआत से कैसे बदलीं H1B वीज़ा नीतियां

कालखंड
मुख्य नीति रुख
1990–2008
आईटी बूम के दौर में वीज़ा सीमा 65 हज़ार से बढ़ाकर 195 हज़ार तक हुई।
2009–2016 (ओबामाकाल)
इनोवेशन को बढ़ावा, STEM छात्रों को प्राथमिकता; पर आउटसोर्सिंग पर निगरानी।
2017–2021 (ट्रंप काल)
America First नीति — वीज़ा जांचें सख्त, H-4 स्पाउस पर रोक, स्थायी निवास कठिन।
2021–2024 (बाइडेनकाल)
प्रवासियों के लिए राहत, H-4 पर काम की अनुमति, STEM OPT विस्तार।
2025 (नया ट्रंप प्रशासन)
Train and Return नीति — अस्थायी प्रवास, अमेरिकी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना और फिरलौटना।

नए H1B वीज़ा नियमों के संकेत

1: विदेशी कर्मचारियों की भूमिका अब सीमित अवधि (3–7 साल) तक होगी।
2: स्थायी नियुक्ति और ग्रीन कार्ड की संभावना घटेगी।
3: कंपनियों को प्रत्येक H-1B आवेदन पर भारी शुल्क (करीब $100,000) चुकाना पड़ सकता है।
4: सरकार का कहना है इससे घरेलू नौकरियों की रक्षा और अमेरिकी युवाओं को प्रशिक्षण में मदद मिलेगी।

नई वीजा नीति का भारत पर असर

भारत अमेरिका को सर्वाधिक तकनीकी श्रमिक प्रदान करने वाला देश है, इसलिए इस नीति बदलाव का सबसे बड़ा प्रभाव भारतीयों पर पड़ेगा। अमेरिका में लंबी अवधि की नौकरी और निवास की राह कठिन हो जाएगी। भारतीय IT कंपनियों को अब “Onsite Training Model” अपनाना होगा, यानी इंजीनियरों को अस्थायी तौर पर भेजना, स्थायी नहीं। जो भारतीय पेशेवर पहले से अमेरिका में हैं, उनके लिए ग्रीन कार्ड प्रक्रिया और भी लंबी हो सकती है।

विशेषज्ञों की राय

भारत के उद्योग विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति “Brain Drain Reversal” साबित हो सकती है। यानी प्रशिक्षित भारतीय जब अपने देश लौटेंगे तो यहां की कंपनियों में अनुभव लेकर आएंगे। वहीं अमेरिकी अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह कदम “Knowledge Self-Reliance” की दिशा में है ताकि अमेरिका विदेशी तकनीकी निर्भरता से मुक्त हो सके।
H-1B वीज़ा, जो कभी भारतीय युवाओं के लिए अमेरिका में Career Gateway माना जाता था, अब “सीमित अवधि के कौशल आदान-प्रदान कार्यक्रम” में बदल रहा है। ट्रेज़री सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट के शब्दों में, “अमेरिका को अब मेहमान नहीं, मेंटर्स चाहिए।” यह बदलाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने की ओर बढ़ता कदम है, लेकिन भारत जैसे देशों के लिए यह एक बड़ा संकेत है कि आने वाले वर्षों में विदेशी अवसरों से ज़्यादा अपने देश में कौशल और नवाचार पर ध्यान देना होगा।

अमेरिका की नई H-1B नीति: अवसर या संकेत?

H1B नियम भारत के लिए आत्मनिर्भर प्रतिभा निर्माण का समय है। अमेरिका में जारी नई H-1B नीति को लेकर हालिया बयान, “Train the US workers, then go home,” ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट का यह कथन केवल शब्द नहीं, बल्कि एक नीति-परिवर्तन का साफ़ संकेत है। दशकों तक अमेरिकी उद्योगों की रीढ़ बने भारतीय आईटी और तकनीकी पेशेवरों के लिए यह बदलाव अवसरों के द्वार सीमित करता हुआ दिखाई दे रहा है।

एक नया दौर: ‘अस्थायी विशेषज्ञ, स्थायी आत्मनिर्भरता’

अमेरिका अब यह मान चुका है कि वह विदेशी कुशल श्रमिकों पर लंबे समय तक निर्भर नहीं रह सकता। इसलिए अब H-1B धारकों को अस्थायी रूप से बुलाकर अपने कामगारों को प्रशिक्षित करने का “Train-And-Return” मॉडल अपनाया जा रहा है। अर्थात अब भारतीय इंजीनियर वहां काम करने नहीं, सिखाने जाएंगे। यह बदलाव अमेरिकी उद्योगों में दीर्घकालिक प्रवास की संभावना को सीमित करता है, पर साथ ही यह एक नई वैश्विक आर्थिक सोच को जन्म देता है- कौशल का स्थानांतरण, न कि पलायन।

भारत के लिए सबक

यह नीति भारत के लिए झटका जरूर है, पर छिपा हुआ अवसर भी। पिछले दो दशकों में भारत के सर्वश्रेष्ठ दिमाग अमेरिका की सिलिकॉन वैली, सिएटल और टेक्सास में बस गए। अब जब वहां का दरवाज़ा सीमित हो रहा है, भारत को इन वापसी करने वाले पेशेवरों से अपना ज्ञान-भंडार सशक्त करने का मौका मिलेगा। भारत को अब ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो लौटे हुए प्रतिभाशाली युवाओं को रिसर्च में, स्टार्टअप इकोसिस्टम में, और उच्च शिक्षा संस्थानों में योगदान देने का अवसर दें।

सरकार और शिक्षा जगत की भूमिका

भारत को अपने तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना होगा। “Train And Return Back” मॉडल का जवाब भारत “Stay And Grow” मॉडल से दे सकता है, जहां भारतीय प्रतिभाएं अपने ही देश में विश्व-स्तरीय उत्पाद और सेवाएं तैयार करें। सरकार के ‘Make in India’ और ‘Digital India’ अभियानों के साथ यदि उच्च-कौशल प्रशिक्षण, R&D निवेश, और रोजगार सृजन को जोड़ा जाए, तो यह पलटाव भारत को “Talent Exporter” से “Talent Incubator” बना सकता है।

सच्चाई यह भी है…

अमेरिका की नई नीति में छिपा राजनीतिक पक्ष भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जैसा कि ट्रंप का हालिया बयान कहता है, “अमेरिका को दुनिया भर से प्रतिभा देश में लानी होगी, ताकि हम तकनीकी, वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्र में अग्रणी बने रहें!” स्थानीय वोटरों को लुभाने और बेरोजगारी के डर को शांत करने के लिए विदेशी कामगारों को अस्थायी बताया जा रहा है। पर वास्तविकता यह है कि अमेरिका की प्रगति की कहानी बिना प्रवासियों के अधूरी है।

दिशा का परिवर्तन, अवसर का आरंभ

H-1B वीज़ा में आया यह बदलाव किसी एक देश के खिलाफ़ नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक पुनर्संतुलन का संकेत है। जहां पहले विकास के लिए प्रतिभा विदेश जाती थी, अब समय है कि विकास अपने देश में ही प्रतिभा को थामे। भारत के युवाओं के लिए यह संदेश स्पष्ट है, “अब सफलता का रास्ता वीज़ा की कतार से नहीं, नवाचार की प्रयोगशाला से निकलेगा!”
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