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July 7, 2025

श्री कृष्ण को ‘सलामी’ देकर करबला जाते हैं ताजिए, ये है असली भारत 

मध्य प्रदेश के दतिया कस्बे में मोहर्रम के जुलूस के दौरान इस बार भी हर साल की तरह एक अनोखी परंपरा देखने को मिली। ताजिया जुलूस करबला के लिए निकलने से पहले चतुर्भुज कृष्ण मंदिर के सामने रुका। ताजिया जुलूस लहराता हुआ मंदिर तक पहुंचा और फिर वहां के पुजारियों ने ‘या हुसैन’ की सदा के साथ ताजिये को आशीर्वाद दिया और ताजियेदारों ने श्रीकृष्ण भगवान को मोहर्रम की सलामी दी।

भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल

जहां एक ओर देश में सांप्रदायिक दंगों के कई किस्से सुनने को मिलते हैं, भाषा पर विवाद हो रहा है, वहीं ऐसे भी कुछ उदाहरण हैं जिन्होंने प्रेम और सौहार्द की लौ जगाए रखी है। मध्यप्रदेश के भिंडर में ताजिया का जुलूस कुछ समय के लिए ही सही, पर कृष्ण मंदिर के सामने रुकता जरूर है। इस चतुर्भुज कृष्ण मंदिर का निर्माण भी एक मुस्लिम ने ही करवाया था।
मध्य प्रदेश के दतिया जिले के भिंडर कस्बे में इस बार भी मुहर्रम के अवसर पर एक अनोखी और दिल को छू लेने वाली परंपरा निभाई गई। यहां मुस्लिम समुदाय के ताज़िए करबला की ओर जाने से पहले भगवान चतुर्भुज कृष्ण को ‘सलामी’ अर्पित करते हैं। यह कोई एक-दो साल की बात नहीं, बल्कि दो सदियों से चली आ रही आपसी प्रेम और भाईचारे की एक जीवंत मिसाल है, जो भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को दर्शाती है।

मुस्लिम परिवार ने बनवाया था कृष्ण मंदिर

भिंडर के चतुर्भुज कृष्ण मंदिर का इतिहास भी इस सांस्कृतिक सौहार्द को और गहराई से दर्शाता है। मंदिर करीब 200 साल पुराना है और इसे एक मुस्लिम परिवार हजारी परिवार ने बनवाया था। इस मंदिर की मूर्ति भी इसी परिवार को तालाब (सोंतालाई) से मिली थी। इसके बाद उन्होंने इस स्थान पर चतुर्भुज श्री कृष्ण महाराज का मंदिर बनवाया और सेवा शुरू की।

कृष्ण की सलामी के बाद आगे बढ़ते हैं ताजिए

 भिंडर करबला कमेटी के अध्यक्ष अब्दुल जब्बार बताते हैं, “इस बार हमारे पास 37 ताज़िए थे। अंतिम दिन, ताज़िए पहले मंदिर के सामने से गुजरते हैं और वहां श्री कृष्ण को ‘सलामी’ देते हैं। मंदिर के पुजारी बाहर आते हैं और ताज़ियों को आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद ही जुलूस आगे बढ़ता है।” ये अनोखा दृश्य देखकर मज़हबी नफ़रत से नफ़रत करने वालों का दिल भर आता है, और देश की एकता और संप्रभुता के सामने नतमस्तक होने का मन करता है।

मूर्ति नहीं उठती थी बिना हजारी परिवार के

इस परंपरा से जुड़ी एक लोककथा भी स्थानीय लोगों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध है। अब्दुल जब्बार बताते हैं कि जब भी मंदिर की कृष्ण मूर्तियों को ‘ग्यारस’ पर स्नान के लिए बाहर ले जाया जाता था, मूर्ति तब तक हिलती नहीं थी, जब तक हज़ारी परिवार का कोई सदस्य हाथ ना लगा दे। एक बार तो परिवार की आख़िरी बुज़ुर्ग महिला को बिस्तर से उठाकर मंदिर लाया गया, तभी जाकर मूर्ति उठाई जा सकी।

पुजारियों की पीढ़ियां करती आई हैं सेवा

चतुर्भुज श्री कृष्ण मंदिर के पुजारी रमेश पांडा, जो तीसरी पीढ़ी से यहां सेवा कर रहे हैं, बताते हैं, “मेरे नाना जी यहां पुजारी थे, फिर मेरे पिता, और अब मैं हूं। मंदिर की करीब 5 बीघा ज़मीन भी हज़ारी परिवार ने दान की थी। यह मंदिर न सिर्फ़ मुस्लिम परिवार द्वारा बनाया गया, बल्कि कई बार सांप्रदायिक तनाव के दौरान मुस्लिम समुदाय ने खुद आगे आकर इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी ली।”

जब मुसलमानों ने की मंदिर की सुरक्षा

रमेश पांडा एक घटना याद करते हुए बताते हैं, “एक बार इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था। पुलिस आई, लेकिन मुस्लिम समाज के लोगों ने प्रशासन से कहा, “ आप चिंता मत कीजिए, हम मंदिर की रखवाली करेंगे। और उस दिन के बाद कोई फोर्स तैनात नहीं की गई थी।”

मिसाल बनी भिंडर की परंपरा

आज जब देश में अक्सर धार्मिक टकराव की खबरें आती हैं, ऐसे में भिंडर जैसे कस्बे की यह अनोखी परंपरा एक उम्मीद की किरण बनकर सामने आती है। दो धर्मों के बीच यह आपसी सम्मान, विरासत और सहभागिता का प्रतीक है, जहां ताज़िए भगवान कृष्ण को ‘सलामी’ देते हैं और मंदिर के पुजारी उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह केवल रस्म नहीं, बल्कि एक साझा संस्कृति की गाथा है।
भिंडर की यह परंपरा हमें बताती है कि जब धर्म के नाम पर दीवारें खड़ी होती हैं, तब इतिहास और विरासत मिलकर पुल बनाते हैं। यहां ताज़ियों का कृष्ण मंदिर को सलामी देना सिर्फ़ एक सांस्कृतिक घटना नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है।

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