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June 30, 2025

स्विट्ज़रलैंड में सोलर पैनल से दौड़ेगी रेल, भारत ने भी शुरू किया पायलट प्रोजेक्ट 

 Ecosystem के क्षेत्र में स्विट्जरलैंड की ने एक नई पहल शुरू की है। स्विट्जरलैंड में, एक स्टार्टअप Sun-Ways रेलवे पटरियों के बीच खाली जगह का उपयोग करके सौर पैनल स्थापित कर रहा है, जिससे सौर ऊर्जा उत्पन्न की जा सके। इस पायलट प्रोजेक्ट में, 100 मीटर रेलवे ट्रैक पर 48 सौर पैनल लगाए गए हैं। ये पैनल डिटैचेबल हैं, जिससे ट्रैक के रखरखाव में आसानी होती है।

सोलर पॉवर प्लांट में बदले रेलवे ट्रैक्स

स्विट्ज़रलैंड की सोलर टेक्नोलॉजी स्टार्टअप Sun-Ways ने रेलवे पटरियों पर सौर पैनल लगाने की एक अनोखी पहल की है। इस पहल का लक्ष्य रेलवे पटरियों के बीच की खाली जगह का उपयोग करके सौर ऊर्जा उत्पन्न करना है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत करीब 6.04 करोड़ रुपये (5.85 लाख स्विस फ्रैंक) ‘Buttes’ नामक एक छोटे गांव में 100 मीटर लंबे रेलवे ट्रैक पर 48 सौर पैनल लगाए गए हैं। Sun-Ways ने एक विशेष मशीन का उपयोग करके सौर पैनलों को स्थापित करने और हटाने के लिए एक प्रणाली विकसित की है, जिससे ट्रैक के रखरखाव में आसानी होती है।

स्टेशन पर बैठ ट्रेन का इंतज़ार करते-करते आया आइडिया

Sun-Ways के संस्थापक जोसेफ स्कुडेरी को यह आइडिया 2020 में एक ट्रेन का इंतज़ार करते समय आया था। उन्होंने इस तकनीक को विकसित किया और Federal Office of Transport (FOT) की मंज़ूरी के बाद इसे ट्रायल के तौर पर transN रेलवे लाइन पर लगाया। शुरुआत में FOT ने 2023 में सुरक्षा कारणों से यह प्रस्ताव खारिज कर दिया था। चिंता थी कि पैनल से ट्रेनों और ट्रैक्स के रखरखाव पर असर पड़ेगा। लेकिन बाद में Sun-Ways ने विशेषज्ञों की मदद से एक स्टडी कराई, जिसमें साबित किया गया कि ये खास तरह के सोलर पैनल ट्रैक के संचालन में कोई बाधा नहीं डाल सकते क्यूंकि इन पैनलों को स्थायी रूप से ट्रैक पर नहीं जोड़ा गया है। Sun-Ways ने एक ऐसी तकनीक बनाई है जिससे ये पैनल ज़रूरत पड़ने पर आसानी से हटाए जा सकते हैं। ट्रैक की देखरेख करने वाली कंपनी Scheuchzer कुछ ही घंटों में लगभग 1000 स्क्वायर मीटर सोलर पैनल लगाकर या हटाकर काम कर सकती है।

सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कैसे होगा

कंपनी के अनुसार, सौर पैनलों से बनी फोटोवोल्टिक ऊर्जा का इस्तेमाल तीन तरीकों से किया जा सकता है। पहला- रेलवे के सिग्नल, स्विच और स्टेशन जैसी संरचनाओं को बिजली देने के लिए।
दूसरा- नजदीकी बिजली वितरण नेटवर्क (GRD) में भेजने के लिए।
और सबसे अच्छा विकल्प- ट्रेनों को खींचने वाले ट्रैक्शन एनर्जी सिस्टम में बिजली डालना।
Sun-Ways का कहना है कि अगर पूरे स्विस रेल नेटवर्क (करीब 5,320 किलोमीटर) पर ये तकनीक लागू की जाए, तो हर साल 1 अरब यूनिट (kWh) सौर ऊर्जा पैदा हो सकती है। यह लगभग 3 लाख घरों की सालाना बिजली जरूरत पूरी करने के लिए काफी है। Sun-Ways का यह मॉडल अब सिर्फ स्विट्ज़रलैंड तक सीमित नहीं है। कंपनी को चीन और अमेरिका जैसे देशों से दिलचस्पी मिल रही है और वह दक्षिण कोरिया, स्पेन और रोमानिया में ऐसे ही प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है।
रेलवे ट्रैक पर सोलर पैनल बिछाने से ट्रांसपोर्ट सेक्टर की ऊर्जा क्षमता में सुधार होगा। इससे ना केवल रेलवे के लिए सौर ऊर्जा पैदा होगी, बल्कि इससे ट्रेनों की संचालित लागत को भी कम किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ को इससे यात्री किराए में भी संभावित कमी आ सकती है, जिससे अधिक लोग रेलवे यात्रा को प्राथमिकता दे पाएंगे।

भारत में ट्रेनों के रूफ पर पैनल लगाने की योजना

स्विट्जरलैंड में जहां रेलवे ट्रैक पर सोलर पैनल बिछाने की बात हो रही है, वहीं, भारत में रेलवे के कोच के ऊपर सोलर पैनल लगाने की बात हो रही है। उत्तर रेलवे तो इसका ट्रायल भी कर चुका है। दरअसल, रेलवे की योजना है कि कोच के अंदर जो पंखे और बल्ब लगे हैं उनके लिए बिजली की व्यवस्था इन्हीं सोलर पैनलों से की जाए। उत्तर रेलवे के अलावा अन्य जोन भी इस पर काम कर रहे हैं।

भारतीय रेलवे की पायलट परियोजनाएं

भारतीय रेलवे ने ट्रेनों में सौर ऊर्जा का उपयोग करने की व्यवहार्यता का परीक्षण करने के लिए सराय रोहिला और फारुख नगर के बीच चलने वाली सौर ऊर्जा संचालित डीईएमयू ट्रेन जैसी पायलट परियोजनाओं को पहले ही लागू कर दिया है। ट्रेनों में सोलर पैनलों के उपयोग से डीज़ल की खपत कम होने, कार्बन उत्सर्जन कम होने और संभावित रूप से रेलवे को ईंधन की लागत पर एक महत्वपूर्ण बचत  की उम्मीद है।

सोलर प्लांट को लेकर भविष्य की योजनाएं 

रेलवे के पास सोलर ऊर्जा के उपयोग का विस्तार करने की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं, जिसमें अधिक ट्रेन कोच, रेलवे स्टेशन और अन्य इमारतों पर सोलर पैनल स्थापित करना शामिल है।
भारतीय रेलवे अपनी Gravitational Force की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करने की संभावना की भी तलाश कर रहा है, जो ट्रेन संचालन में क्रांति ला सकता है और उन्हें और भी अधिक टिकाऊ बना सकता है। यह पहल भारतीय रेलवे के 2030 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन प्रणाली को बढ़ावा देने के व्यापक लक्ष्य के साथ एक नई उड़ान भरने की दिशा में अग्रसर है।

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