केंद्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण Swachh Survekshan 2025 के नतीजों में दक्षिण-पश्चिम व देश के कई बड़े शहरों ने खराब रैंकिंग हासिल की है। सर्वेक्षण में मदुरै को देश का सबसे कम स्कोर (अर्थात् “सबसे अस्वच्छ”) शहर घोषित किया गया है। सर्वेक्षण के शीर्ष पांच शहर इस प्रकार हैं – 1. मदुरै (स्कोर 4,823), 2. लुधियाना (5,272), 3. चेन्नई (6,822), 4. रांची (6,835), 5. बेंगलुरु (6,842)। बड़े महानगरों की स्वच्छता व्यवस्था पर गंभीर सवाल
धार्मिक नगरी मदुरै सबसे अस्वच्छ, IT Hub बेंगलुरु भी टॉप 5 में शामिल
केंद्र सरकार की वार्षिक स्वच्छता रैंकिंग स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 जारी हो गई है, जिसमें देश के सबसे अस्वच्छ (कम स्कोर वाले) शहरों की सूची ने प्रशासनिक व्यवस्थाओं और नगर निकायों की कार्यशैली पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बार मदुरै को पूरे देश में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहर का स्थान मिला है, जबकि लुधियाना, चेन्नई, रांची और बेंगलुरु जैसी बड़े महानगर भी शीर्ष पांच में शामिल हैं।
स्वच्छ सर्वेक्षण में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, कचरा-जमा-कुर्क, स्रोत-पर-पृथक्करण, सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता व स्वच्छता, नागरिक-संतुष्टि (ग्रामीण/शहरी शिकायत-प्रतिक्रिया), तथा नवाचार व तकनीकी उपायों जैसी कई मानदंडों के आधार पर शहरों का मूल्यांकन किया जाता है। जिन शहरों के स्कोर कम होते हैं, उन्हें सर्वेक्षण की उन सूचियों में ऊपर रखा जाता है जो “बेहतर करने की आवश्यकता” दर्शाती हैं।
भारत के शीर्ष 10 “सबसे अस्वच्छ” शहर (स्वच्छ सर्वेक्षण 2025)
रैंक |
शहर |
स्कोर |
1 |
मदुरै |
4,823 |
2 |
लुधियाना |
5,272 |
3 |
चेन्नई |
6,822 |
4 |
रांची |
6,835 |
5 |
बेंगलुरु |
6,842 |
6 |
धनबाद |
7,196 |
7 |
फरीदाबाद |
7,329 |
8 |
ग्रेटर मुंबई |
7,419 |
9 |
श्रीनगर |
7,488 |
10 |
दिल्ली |
7,920 |
धार्मिक नगरी को मिली सबसे नीचे की रैंक लुधियाना, चेन्नई, रांची बेंगलुरु महानगरों के लिए चेतावनी
1. मदुरै- देश का सबसे अस्वच्छ घोषित शहर, स्कोर: 4,823
दक्षिण भारत की धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर का केंद्र माने जाने वाला मदुरै इस वर्ष स्वच्छता सर्वेक्षण में सबसे निचले स्थान पर रहा। शहर की संकरी गलियां, घनी आबादी और बाजार क्षेत्रों में कचरा फैलाव इसकी प्रमुख कमियां हैं। नगर निगम द्वारा कचरा संग्रहण की नियमित व्यवस्था नहीं होने से सड़क किनारों पर कचरा ढेर बनते हैं। कई क्षेत्रों में सार्वजनिक शौचालय बेहद खराब अवस्था में पाए गए। रिपोर्ट जारी होने के बाद निगम अधिकारियों ने कुछ आंकड़ों पर सवाल भी उठाए, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सफाई व्यवस्था में सुधार के लिए “जमीनी स्तर पर गंभीर कार्रवाई” अनिवार्य है।
2. लुधियाना- औद्योगिक शहर में कचरा प्रबंधन की बड़ी चुनौती- स्कोर: 5,272
उत्तरी भारत का बड़ा औद्योगिक केंद्र लुधियाना वर्षों से वायु प्रदूषण और कचरा प्रबंधन की समस्याओं से जूझ रहा है। इस बार भी शहर स्वच्छता रैंकिंग के खतरनाक ऊपरी हिस्से में रहा। मुख्य समस्या फैक्ट्रियों, खेतों और आवासीय इलाकों से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट है, जिसका निस्तारण समय पर नहीं हो पाता। कई अवैध डंपिंग साइट्स शहर के भीतर और बाहरी हिस्सों में दिखाई देती हैं। नागरिकों और पर्यावरण समूहों का कहना है कि औद्योगिक कचरे की निगरानी और रीसाइक्लिंग व्यवस्था को पूरी तरह नया रूप देने की आवश्यकता है।
3. चेन्नई- बड़े महानगर की जटिल सफाई व्यवस्था फिर विफल, स्कोर: 6,822
भारत के प्रमुख महानगरों में शामिल चेन्नई को इस वर्ष भी कचरा प्रबंधन संबंधी समस्याओं ने नीचे की रैंक पर ला दिया। मानसून के समय शहर में नालों का उफान और कचरा बहने से स्थिति और बिगड़ जाती है। अपशिष्ट पृथक्करण (segregation) को लागू करने में अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। शहर के उत्तरी और मध्य हिस्सों में सड़क किनारे कचरे के बड़े ढेर आम दृश्य बने रहते हैं। प्रशासन ने 2025 के अंत तक 100 प्रतिशत स्रोत-पृथक्करण लागू करने का लक्ष्य रखा है, पर वास्तविकता अभी इससे काफी दूर है।
4. रांची राजधानी, फिर भी पीछे- स्कोर: 6,835
रांची, एक तेजी से बढ़ते शहरी केंद्र होने के बावजूद, स्वच्छता के मामले में लगातार संघर्ष कर रहा है। कचरा संग्रहण वाहनों की कमी, श्रमिकों की अनियमित उपलब्धता और कॉलोनियों में डस्टबिन की कमी इसकी मुख्य कमजोरियां हैं। कई प्रमुख बाजार, जैसे अल्बर्ट एक्का चौक और मेन रोड शाम होते-होते कचरे से भर जाते हैं। स्थानीय संगठनों ने सुझाव दिया है कि नगर निगम को वार्ड-स्तरीय स्वच्छता समितियां बनाकर निगरानी बढ़ानी चाहिए।
5. बेंगलुरु- IT राजधानी पर कचरे का दबाव- स्कोर: 6,842
टेक हब बेंगलुरु के लिए यह रैंकिंग झटका मानी जा रही है। विशाल आबादी, बढ़ते प्रवासी समुदाय और रोज़ाना 6,000 टन से अधिक उत्पन्न कचरा शहर की क्षमता से ज्यादा है। डोर-टू-डोर कचरा संग्रह व्यवस्था कई वार्डों में असंगत है, जिसके कारण सड़क किनारे कचरा जम जाता है। ड्रेनेज और स्टॉर्म-वाटर सिस्टम में वर्षों से सुधार नहीं हुआ है, जिससे बारिश में गंदगी फैलती है। BBMP ने सफाईकर्मियों की संख्या बढ़ाने और कचरा पृथक्करण को अनिवार्य बनाने की नई योजना की घोषणा की है।
6. धनबाद- कोयला नगरी की सफाई पर फिर सवाल- स्कोर: 7,196
कोल कैपिटल कहलाने वाला धनबाद औद्योगिक गतिविधियों और धूल-कचरे के चलते लगातार गंदगी की समस्या से जूझ रहा है। बसे हुए क्षेत्रों में कचरा समय पर नहीं उठता, जिससे स्वास्थ्य जोखिम बढ़ते हैं। खनन क्षेत्रों के आस-पास प्रदूषण इतना अधिक है कि नियमित सफाई अभियानों का असर नगण्य रहता है।
7. फरीदाबाद- NCR का बड़ा शहर लेकिन सफाई व्यवस्था कमजोर- स्कोर: 7,329
दिल्ली NCR का अहम हिस्सा होने के बावजूद फरीदाबाद स्वच्छता मानकों में बहुत पीछे है। सड़क किनारे खुले में कचरा फेंकने की आदत, अनियमित डोर-टू-डोर कलेक्शन और ड्रेनेज चोकिंग सबसे बड़े मुद्दे हैं। शहर के औद्योगिक क्षेत्रों में कचरे का वैज्ञानिक निस्तारण न होने से समस्या और बढ़ जाती है।
8. ग्रेटर मुंबई- वित्तीय राजधानी भी पिछली पंक्ति में, स्कोर: 7,419
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का इस सूची में शामिल होना प्रशासन के लिए गंभीर संकेत है। सर्वाधिक आबादी, संकरी गलियां, झुग्गी बस्तियां और सीमित स्थान कचरा प्रबंधन को बेहद कठिन बनाते हैं। कई वार्डों में गीला-सूखा कचरा पृथक्करण अभी भी पर्याप्त रूप से लागू नहीं हुआ है। BMC ने 2026 तक बड़े पैमाने पर कचरा प्रसंस्करण सुविधाएं विकसित करने की योजना पेश की है।
9. श्रीनगर- पर्यटन नगरी में सफाई व्यवस्था कमजोर- स्कोर: 7,488
श्रीनगर जैसे पर्यटन-केंद्रित शहर में गंदगी की बढ़ती शिकायतें प्रशासन के लिए चुनौती बन चुकी हैं। डल झील और आस-पास के क्षेत्रों में पर्यटक भी कचरा फैलाने में योगदान देते हैं। शहर में कई इलाकों में डस्टबिन उपलब्ध नहीं हैं और कचरा उठाने का समय तय नहीं है।
10. दिल्ली- राजधानी भी सूची में, चिंताजनक संकेत- स्कोर: 7,920
भारत की राजधानी दिल्ली का शीर्ष 10 सबसे अस्वच्छ शहरों में शामिल होना आश्चर्य और चिंता दोनों का विषय है। खुले डंपिंग पॉइंट, अनियमित कचरा संग्रहण और यमुना किनारे अनसाइंटिफिक निस्तारण के कारण स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। तीनों नगर निगमों (पूर्व, उत्तर, दक्षिण MCD) के एकीकरण के बाद भी सुधार अपेक्षित गति से नहीं हुआ है।
बेंगलुरु: IT Hub की छवि पर दाग
भारत की टेक राजधानी बेंगलुरु पांचवे स्थान पर रही। यह रैंकिंग शहर की छवि के विपरीत है और बताती है कि विशाल संसाधनों के बावजूद कचरा प्रबंधन में गंभीर कमियां मौजूद हैं।
बेंगलुरु की प्रमुख समस्याएं (वार्ड-स्तर पर):
सड़क किनारे और बाजारों में फैला कचरा
डोर-टू-डोर कलेक्शन का असंगत संचालन
मानसून के समय नालियों में भारी जाम
स्रोत-पर कचरा पृथक्करण का कमजोर पालन
नागरिक जागरूकता में भारी कमी
नगर निगम (BBMP) ने रैंकिंग के बाद त्वरित सफाई अभियान, कचरा प्रबंधन अनुबंधों की समीक्षा और वार्ड-स्तरीय निगरानी को मजबूत करने की घोषणा की है।
विशेषज्ञों का विश्लेषण- समस्या सिर्फ सफाई कर्मियों की नहीं, नागरिक व्यवहार भी जिम्मेदार
स्वच्छता विशेषज्ञों का कहना है कि शहर चाहे छोटा हो या मेगासिटी, जब तक स्रोत-पर पृथक्करण, नियमित उठान, और नागरिक सहयोग नहीं होगा, तब तक सुधार संभव नहीं। बड़े शहरों में ठोस अपशिष्ट की मात्रा तेजी से बढ़ रही है, लेकिन प्रोसेसिंग प्लांट, जैविक कचरा प्रबंधन और रीसाइक्लिंग क्षमता उतनी नहीं बढ़ पाई। महानगरों में अतिक्रमण, खुले डंपिंग स्पॉट और कचरा फेंकने की गलत आदतें भी समस्या को बढ़ाती हैं। स्वच्छता सुधार केवल धन देना ही नहीं है, नागरिक-आचरण (कचरा फेंकने की आदत), रिक्त स्थानों पर कचरा डंप करना, और ठोस अपशिष्ट के पुनर्चक्रण (Recycling) में कमी बड़ी रुकावटें हैं। छोटे-बड़े दोनों स्तरों पर जीविका-निर्भर लोगों (कचरा श्रमिकों) के लिए सुरक्षित कार्यप्रणाली और वैकल्पिक रोज़गार के विकल्प भी जरूरी हैं ताकि कचरा प्रबंधन मानवीय और टिकाऊ बन सके।
नागरिकों की प्रतिक्रिया
नागरिकों ने सोशल-मीडिया और स्थानीय मंचों पर सर्वेक्षण के परिणामों पर चिंता व्यक्त की है। स्वच्छता विशेषज्ञों का कहना है कि नीति-निर्धारक और नगर निगमों को न केवल कचरा संग्रह-स्तर बढ़ाना होगा, बल्कि स्रोत-पर पृथक्करण, झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में विशेष ध्यान, और सीजनों (जैसे मानसून) के हिसाब से आपात सफाई योजना अपनानी होगी। कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि बड़े-शहरों में बुनियादी ढांचे (ड्रेनेज, सड़कें, पब्लिक टॉयलेट) तुरंत सुधारने की ज़रूरत है ताकि जायज़ और दीर्घकालीन असर दिखे।
प्रशासनिक कदम और आगे की रणनीतियां
कई नगर निगमों ने रिपोर्ट जारी होने के बाद तात्कालिक निर्मोचन-कार्य (Clean Up Drives), संविदा व्यवस्था का पुनरीक्षण, कचरा-प्रसंस्करण संयंत्रों (Processing Plants) की क्षमता बढ़ाने और नागरिक भागीदारी के कार्यक्रमों पर जोर देने की घोषणाएं की हैं। साथ ही कुछ शहरों ने स्वच्छता से जुड़े मोबाइल-ऐप्स और शिकायत मॉनिटरिंग प्रणाली को सक्रिय कर दिया है ताकि वास्तविक-समय शिकायतों का निस्तारण हो सके।
जरूरी बदलाव- त्वरित और दीर्घकालिक समाधान
त्वरित कदम- वार्ड-स्तर पर “कचरा संग्रह + स्रोत-पर पृथक्करण” का सख्त पालन,
बारिश से पहले नालों की विशेष सफाई,
कचरा से संबंधित शिकायतों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र,
दीर्घकालिक सुधार- अधिक कचरा-प्रसंस्करण संयंत्र,
स्कूलों/ऑफिसों में स्वच्छता-जागरूकता अभियान,
नगर निगम की जवाबदेही और डिजिटल मॉनिटरिंग,
कचरा-डंपिंग पर कड़ी पेनल्टी,
स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट महानगरों के लिए चेतावनी
स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 के परिणाम यह स्पष्ट करते हैं कि बड़े-शहरों का विकास सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय और स्वच्छता-आधारित मानकों पर भी संतुलित होना चाहिए। मदुरै जैसे ऐतिहासिक-धार्मिक केंद्रों की रैंकिंग लोगों के लिए चिंता का विषय है, पर यह चेतावनी भी है कि प्रशासन, नागरिक और संस्थागत भागीदार मिलकर योजनाबद्ध रूप से कार्य करें तो सुधार संभव है। अगली रिपोर्ट तक इन शहरों के लिए मुख्य चुनौतियां कचरा-प्रबंधन, ड्रेनेज सुधार, और नागरिक भागीदारी प्राथमिकता बनी रहेंगी।
स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 की रिपोर्ट केवल रैंकिंग नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि प्रगतिशील और विकसित शहर भी सफाई व कचरा-प्रबंधन में पिछड़ सकते हैं। मदुरै से लेकर दिल्ली और मुंबई तक, यह सूची बताती है कि शहरी भारत को अभी बहुत लंबा सफर तय करना बाकी है। यदि शहर, प्रशासन और नागरिक मिलकर तुरंत कार्रवाई करें, तो अगली रैंकिंग में ये शहर आसानी से सुधार ला सकते हैं, पर इसके लिए सतत प्रयास अनिवार्य है।
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