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November 2, 2025

सूडान की सड़कों पर फैला सन्नाटा और खून की बू- एक त्रासदी, जिसे दुनिया कर रही अनदेखा ! 

The CSR Journal Magazine
सूडान में जारी गृहयुद्ध ने देश को मानवता के सबसे अंधेरे दौर में धकेल दिया है। एक वीडियो सामने आया है, जिसमें एक ईसाई महिला अपने परिवार सहित इस्लामिक उग्रवादियों से रहम की भीख मांगती दिखाई देती है, “कृपया हमें मत मारिए, हम निर्दोष हैं।” लेकिन उसके बाद जो हुआ, उसने पूरी दुनिया को झकझोर देना चाहिए था। रिपोर्टों के मुताबिक, उस समूह के सभी नागरिकों को वहीं गोली मार दी गई। परंतु अंतरराष्ट्रीय मंचों पर न तो इस घटना पर कोई बड़ा विरोध दिखा और न ही विश्व समुदाय ने सख्त प्रतिक्रिया दी।

सूडान की धरती पर भड़कती आग

सूडान, अप्रैल 2023 से दो सैन्य गुटों- सूडानी सशस्त्र बल (SAF) और रैपिड सपोर्ट फोर्सेस (RSF) के बीच खूनी संघर्ष की त्रासदी झेल रहा है। राजधानी खार्तूम से लेकर डार्फूर और अल-जज़ीरा तक देश के कई इलाके युद्ध क्षेत्र में बदल चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार अब तक लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं और हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं। मानवीय सहायता लगभग ठप है और भूख, प्यास व बीमारियों ने हालात को और बदतर बना दिया है।

अल्पसंख्यक ईसाइयों पर बढ़ता अत्याचार

सूडान की आबादी में ईसाई अल्पसंख्यक हैं, लेकिन युद्ध ने उन्हें असुरक्षा के गर्त में धकेल दिया है। पिछले एक वर्ष में चर्चों को जलाने, जबरन धर्म परिवर्तन कराने और ईसाई नेताओं की हत्या के कई मामले सामने आए हैं। जनवरी 2024 में अल-जज़ीरा प्रांत के मदानी शहर में एक चर्च को आग के हवाले कर दिया गया, और ईसाई उपदेशक कार्बीनो ब्ला को गोली मार दी गई। मार्च 2025 में 18 ईसाई नागरिकों को “RSF समर्थक” बताकर जेल में डाल दिया गया, बिना किसी सबूत के। डार्फूर क्षेत्र में दर्जनों परिवारों को “धर्म बदलने से इनकार” करने पर मौत के घाट उतारा गया। स्थानीय संगठनों का कहना है कि यह हिंसा धार्मिक घृणा और सत्ता के डर के संगम से उपजी है।

‘घर-घर तलाशी’ और ‘तुरंत मौत’- दरिंदगी की नई परिभाषा

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एल-फशेर शहर में “व्यवस्थित जनसंहार” जैसी स्थिति बन चुकी है। RSF के सशस्त्र गुट घरों में घुसकर लोगों को बाहर निकाल रहे हैं, पुरुषों को दीवार के सामने खड़ा कर गोली मार दी जाती है, और महिलाओं व बच्चों को या तो कैद किया जा रहा है या जबरन विस्थापित किया जा रहा है। सैटेलाइट तस्वीरों से सामूहिक कब्रों का सबूत भी मिला है।

वीडियो, जिसने सबको स्तब्ध किया

सोशल मीडिया पर प्रसारित हुए एक हालिया वीडियो में एक महिला दिखती है, अपने बच्चों को अपनी गोद में दबाए,दिखता है, और वह कहती है, “हम प्रार्थना करते हैं, हमें छोड़ दीजिए।” लेकिन उग्रवादियों ने बिना दया दिखाए गोलीबारी कर दी। चश्मदीदों के अनुसार, उस समूह के हर व्यक्ति को मौके पर ही मौत के घाट उतार दिया गया। यह दृश्य केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे सूडान की हकीकत बन चुका है, जहां निर्दोषों की जान किसी विचारधारा की कीमत पर ली जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र और विश्व समुदाय मौन क्यों?

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सूडान में हो रहे सामूहिक निष्पादनों और भूख संकट की निंदा तो की है, लेकिन व्यावहारिक हस्तक्षेप अब तक सीमित है। यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ ने “गहरी चिंता” जताई, पर न तो अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की कार्रवाई तेज हुई और न ही मानवीय गलियारों को पूरी तरह खोलने की अनुमति मिली। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस-यूक्रेन और मध्य पूर्व के संकटों के बीच सूडान का दर्द वैश्विक सुर्खियों से ओझल हो गया है।

देश की आम जनता का हाल

देश के भीतर अब 80 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। खार्तूम, अल-फशेर और कोर्डोफान क्षेत्रों में खाद्य संकट इतना गहरा है कि लोग पशु-चारा और पेड़ की छाल तक खाने को मजबूर हैं। वहीं, अस्पतालों में बिजली और दवाओं की भारी कमी है। डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को RSF और SAF दोनों गुटों द्वारा निशाना बनाए जाने की रिपोर्टें सामने आ चुकी हैं। जब किसी धार्मिक अल्पसंख्यक पर अत्याचार होता है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उम्मीद होती है कि वह आवाज उठाएगा। पर सूडान के ईसाइयों के मामले में यह आवाज लगभग गुम है। मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं, “यह केवल ईसाइयों की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की हत्या है।”

युद्ध नहीं, इंसानियत जीते

सूडान आज उस दोराहे पर खड़ा है जहां धर्म, सत्ता और राजनीति के बीच सबसे बड़ी कीमत आम नागरिक चुका रहे हैं। जब एक निर्दोष महिला रहम की भीख मांगते हुए मर जाती है और दुनिया चुप रहती है, तो सवाल उठता है, क्या हमारे युग में मानवता की संवेदना खत्म हो चुकी है? अब वक्त है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय न केवल बयान जारी करे, बल्कि निर्णायक कदम उठाए। मानवीय सहायता, निष्पादन पर रोक, और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कार्रवाई करे।

खार्तूम की राख में दबे आस्था के स्वर

सूडान में भले ही संघर्ष की वजह राजनीतिक सत्ता की लड़ाई बताई जा रही हो, लेकिन इस युद्ध ने अब धार्मिक अत्याचार का भयानक रूप ले लिया है। चर्चों में प्रार्थना करना, बाइबिल पढ़ना या ईसाई पहचान जाहिर करना यहां जानलेवा साबित हो रहा है।
डर इतना गहरा है कि कई लोग अब खुलेआम अपने धर्म का उल्लेख तक नहीं करते। गांवों में चर्च भवन तोड़ दिए गए हैं, धार्मिक सभा पर पाबंदी है और जबरन धर्म परिवर्तन का सिलसिला जारी है।

“धर्म बदलो या मर जाओ”

स्थानीय संगठनों के अनुसार, कई इलाकों में Rapid Support Forces (RSF) और चरमपंथी गुटों ने ईसाई समुदाय पर “इस्लाम अपनाने” का दबाव डाला है। अल-जज़ीरा और डार्फूर प्रांतों से खबरें हैं कि लोगों से जबरन शहादा पढ़वाई गई, और जिन्होंने इनकार किया, उन्हें मार डाला गया। जनवरी 2024 में मदानी शहर में एक चर्च को जला दिया गया और उसके पादरी कार्बीनो ब्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मार्च 2025 में 18 ईसाई नागरिकों को “RSF समर्थक” बताकर गिरफ्तार किया गया, जबकि उनके खिलाफ कोई प्रमाण नहीं था।अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन Open Doors ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि “सूडान अब ईसाइयों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक बन चुका है।”

कानून में सुधार, लेकिन जमीनी हालात और बदतर

2020 में सूडान की अंतरिम सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता की दिशा में कुछ सुधार किए थे। ‘धर्म त्याग कानून’ (Apostasy Law) को रद्द कर दिया गया था। लेकिन चार साल बाद स्थिति और बिगड़ गई है। RSF और SAF के बीच सत्ता संघर्ष ने कानून-व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है। आज भी कई स्थानों पर “ईसाई पहचान” को अपराध माना जा रहा है। जो लोग इस्लाम में धर्मांतरित नहीं होते, उन्हें सरकारी मदद, राशन या शरण से वंचित किया जा रहा है। कई विस्थापित शिविरों में ईसाई परिवारों को खाने-पीने की वस्तुएं नहीं दी जातीं, क्योंकि वे “बहुसंख्यक धर्म” से नहीं हैं।

डर के साए में आस्था

खार्तूम के नॉर्थ इलाके की 34 वर्षीय लूसी थॉमस कहती हैं, “हमारे चर्च को बंद कर दिया गया। अगर हम प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते हैं, तो हमें जासूस समझकर उठा ले जाते हैं। अब मैं घर में ही चुपचाप प्रार्थना करती हूं।” ऐसी गवाही अब आम हो गई है। International Christian Concern की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में अब तक दर्जनों ईसाइयों को सिर्फ ‘धार्मिक सभा’ में शामिल होने के कारण कैद किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय न्याय की उम्मीद और चुनौतियां

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने डार्फूर क्षेत्र में 2002 के बाद के युद्ध अपराधों की जांच शुरू कर रखी है। कई वरिष्ठ सुडानी नेताओं के खिलाफ वारंट जारी किए गए हैं। परंतु मौजूदा स्थिति में न्याय का पहिया बेहद धीमी गति से चल रहा है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की विशेष प्रतिनिधि वोल्कर तुर्क ने हालिया बयान में कहा, “सूडान में धार्मिक आधार पर हत्याएं, उत्पीड़न और जबरन धर्म परिवर्तन गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन हैं। परंतु न्यायिक प्रणाली तक पहुंच वर्तमान संघर्ष में लगभग असंभव हो चुकी है।” ICC के अधिकारियों के अनुसार, साक्ष्य इकट्ठा करना, गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और अभियुक्तों को पकड़ना सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।

न्याय और संवेदना, दोनों की दरकार

सूडान का यह संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं है, यह मानवता की परीक्षा है। जब किसी के लिए “ईश्वर में विश्वास” करना अपराध बन जाए, तो समाज की आत्मा मरने लगती है। जरूरत है अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने की, ICC को साक्ष्य और सहायता देने की, और सबसे जरूरी, उन आवाज़ों को सुनने की जो खामोशी में गुम हो रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया का ध्यान यूक्रेन और गाजा पर केंद्रित होने से सूडान का संकट मीडिया और राजनयिक प्राथमिकताओं से गायब हो गया है।

सूडान का मानव-संकट- भूख, विस्थापन और बच्चों का अंधेरा भविष्य

United Nations Children’s Fund (UNICEF) की रिपोर्ट के अनुसार, Sudan में अब तक 80 लाख लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं। विशेष रूप से बच्चों का हाल बेहद चिंताजनक है। 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 5.8 लाख बच्चे विस्थापन का शिकार हो चुके हैं, और 5 वर्ष से कम उम्र के 2 लाख से अधिक छोटे बच्चे सुरक्षित आश्रय, स्वच्छ पानी और पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। विस्थापन के चलते शिक्षा-संस्थान, स्वास्थ्य क्लिनिक, सामाजिक सुरक्षा तंत्र सब बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

भूख और पोषण संकट- खतरे में भविष्य

भूख-प्यास का दंश भी उतना ही खतरनाक है जितना कि गोली-बारूद ! World Food Programme (WFP) तथा अन्य एजेंसियों ने यह बताया है कि सूडान में “खाद्य असुरक्षा” अब इतनी गहरी हो चुकी है कि पूरे परिवार बुरी तरह प्रभावित हैं। UN की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में लगभग 3.5 लाख बच्चे गंभीर पोषण-घटनाओं (Severe Acute Malnutrition) के जोखिम में हैं। चिकित्सा सुविधाओं का बोझ बढ़ चुका है, और स्वास्थ्य-सेवाएं युद्ध-प्रभावित इलाकों में लगभग ठप हो चली हैं। खाना नहीं, दवाइयां नहीं, अस्पतालों की कमी ! ऐसे हालात में बच्चों का जीवन खतरे में है।

शिक्षा का दरवाजा बंद, पढ़ाई नहीं, भागना ज़रूरी

UNICEF रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 9 लाख स्कूल-उम्र के बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए हैं।  विस्थापन-शिविरों, युद्ध-क्षेत्रों में बच्चों को समय-समय पर स्कूल के बजाय आश्रय-कक्ष में जाना पड़ रहा है, या फिर पूरी तरह शिक्षा का अवसर खो चुके हैं। भविष्य के लिए योजनाएं जो थी, डॉक्टर- इंजीनियर बनने की, अब सिर्फ सपना-सदृश रह गयी हैं।

कहां हैं राहत-सेवाएं? युद्ध ने मदद को रोका

राहत-सहायता की दरकार जब सबसे ज़्यादा थी, तब नियमों, सुरक्षा ख़तरे और लॉक-डाउन जैसी चुनौतियों ने उसे और सीमित कर दिया। UNICEF ने आख़िरकार कहा कि “हमारा समय बहुत कम है”। मानवाधिकार-संगठनों ने चेताया है कि अगर युद्ध रोका नहीं गया, तो मरने वालों की संख्या युद्ध-मैदान से कहीं अधिक होगी। सूडान में मानवीय जवाबदेही और राहत अभियान बड़े पैमाने पर चल रहे हैं, पर सुरक्षा-बाधाएं, धन की कमी और पहुंच-रोक जैसे कारणों से मदद ज़रूरतमंदों तक समय पर और पूरी मात्रा में नहीं पहुंच पा रही। संयुक्त राष्ट्र की 2025 योजना में देश के लिए कुल मिलाकर अरबों डॉलर की आवश्यक्ता बताई गई है और वर्ष में लागू मानवीय कार्यक्रम (Humanitarian Response Plan) का बड़ा हिस्सा अब भी बिना फंडिंग के पड़ा है।

कौन-कौन सी एजेंसियां काम कर रही हैं

UN/OCHA (United Nations Office for the Coordination of Humanitarian Affairs)- समन्वय, आवश्यकता-मूल्यांकन और फंडिंग अपील का नेतृत्व।
WFP (World Food Programme)– खाद्य सहायता, नगदी सहायता और पोषण कार्यक्रम।
UNICEF- बच्चों के लिए पोषण, पानी-स्वच्छता (WASH), शिक्षा-अनुबंध और स्वास्थ्य सेवाएं।
UNHCR / IOM- विस्थापितों और शरणार्थियों का रजिस्ट्रेशन, कैम्प-प्रबंधन और शरण सहायता।  ICRC (Red Cross/Red Crescent) – प्राथमिक चिकित्सा, परिवारों का मिलान, रक्त आपूर्ति और जेलों में मानवीय पहुंच।
MSF (Médecins Sans Frontières / Doctors Without Borders), Save the Children, NRC (Norwegian Refugee Council), CARE तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय-स्थानीय NGO – क्लिनिक्स, पोषण-केन्द्र, शिक्षा-इंटरवेंशन और संरक्षण सेवाएं ।

फंडिंग और स्कोप- कितनी मदद की योजना है, कितनी मिली?

2025 के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सूडान सहायता पर बड़ी अपील की। लगभग 6 ख़रब रुपए जैसी अन्तरराष्ट्रीय अपील का जिक्र रिपोर्टों में आया। यह अपील बड़े पैमाने पर जीवन-रक्षक सहायता और विस्थापितों के समर्थन हेतु थी। वर्ष 2025 के मानवीय कार्यक्रम (HRP) के अंतर्गत लगभग 4 ख़रब रूपयों की मांग की गई है, पर यह अब भी आधी या उससे कम वित्त-आवश्यकताओं पर निर्भर है। कई रिपोर्टें बताती हैं कि फंडिंग काफी कम है। इससे जीवन-रक्षक ऑपरेशन्स की निरन्तरता प्रभावित हो रही है। इसके बावजूद वर्ष 2025 में कई संस्थाओं ने मिलकर लाखों लोगों तक कुछ राहत पहुंचाई। परपल क्षेत्रों में पहुंच पर गंभीर सीमाएं रहीं और बड़ी संख्या में लोग अब भी बिना मदद के बचे हैं।

राहत पहुंचने में सबसे बड़ी बाधाएं

1) सुरक्षा और सीधी हिंसा– डार्फर के इलाकों और एल-फशेर जैसे केंद्रों में विस्थापन-शिविरों और राहत केंद्रों पर हमले (ड्रोन/आर्टिलरी/ग्राउंड रेज़) की घटनाएं दर्ज हुई हैं, जिससे कैम्प और मेडिकल-साइटों पर काम करना बेहद जोखिमभरा हो गया। हाल के हफ्तों में एल-फशेर के विस्थापित शिविरों पर हमलों में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए। इसने राहत पहुंचने की गति और संसाधनों की सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डाला है।
2) मानवतज्ञता-पहुंच के प्रतिबन्ध (Access Constraints)- लगातार लड़ाई, सड़कें अवरुद्ध होना, कस्टम/सीमांत प्रक्रियाओं में देरी और स्थानीय गुटों द्वारा किसी-किसी क्षेत्र में राहत सामग्री पर रोक की वजह से खरीफ/कन्वेयर डिलीवरी बाधित हो रही है। विश्लेषण बताते हैं कि 2024-25 में लगातार उभरती हुई हिंसा ने मानवीय पहुंच को भारी रूप से सीमित किया है।
3) फंडिंग-संकट और दाताओं की प्राथमिकताएं (Donor Fatigue)– वैश्विक राजनीतिक व आर्थिक दबाव, अन्य संघर्ष-क्षेत्रों पर ध्यान और कुछ प्रमुख दाताओं द्वारा फंडिंग कटौती के कारण UN और पार्टनर संगठनों की मांगें अधूरी रह रही हैं, जिससे आपातकालीन स्टॉक्स और लॉजिस्टिक ऑपरेशन्स प्रभावित हुए हैं। UN ने कुछ तात्कालिक फंड रिलीज़ किए पर पूरा अंतर नहीं भरा जा सका।
4) लॉजिस्टिक्स और बेसिक सुविधाओं का अभाव– हवाई मार्गों पर ही नहीं, सड़कों और पुलों पर भी बार-बार नुकसान और अवरोध आये हैं। ठंडक/बारिश या गर्मी के मौसम में सप्लाई चेन और भंडारण की क्षमता सीमित होती है। अनेक क्षेत्रों में विद्युत व पानी उपलब्ध नहीं हैं, जिससे फ्रोजन या दवाइयों के भंडारण में दिक्कतें आती हैं।
5) सुरक्षा के कारण स्टाफ-रिक्रूटमेंट घटा– आसन स्थानों पर कार्य करने वाले स्थानीय और विदेशी कर्मचारियों की संख्या कम हुई है, क्योंकि वे जोखिम के कारण निकल गए या उनके रहने-काम करने की शर्तें असुरक्षित बन गयीं। इससे कई क्लिनिक बंद हुए।

आप कैसे मदद कर सकते हैं (व्यावहारिक कदम)

1. सिद्ध और भरोसेमंद संस्थाओं को दान दें– UNICEF, WFP, ICRC, MSF, UNHCR – ये संस्थाएँ सीधे जीवन-रक्षक सेवाएं दे रही हैं। (उपयुक्त दान पेजों के लिए उपर्युक्त एजेंसियों की वेबसाइट देखें)।
2. स्थानीय/राष्ट्रीय राहत समूहों से जुड़ें- भारत या नजदीकी देशों में सक्रिय मान्यता प्राप्त बचाव/डॉक्टर/राहत नेटवर्क होते हैं। उनकी मदद से आप भी निधि, दवाइयां या सामग्री भेजने में सहयोग कर सकते हैं।
3. जन-जागरण और नीति-दबाव बनाना– अपने लोक प्रतिनिधियों/मंत्रालयों से आग्रह करें कि सूडान के लिए मानवीय सहायता और कूटनीतिक प्रयास तेज किए जाएं। मीडिया पर मामलों को उठाएं। ध्यान दिलाने से दाता-देशों का रुख बदल सकता है।
4. छोटे योगदान—बड़े प्रभाव- नियमित, छोटे दान अक्सर अधिक टिकाऊ होते हैं क्योंकि NGOs उन्हें योजना-बद्ध तरीके से उपयोग कर पाते हैं।
5. फर्जी स्कीमों से सावधान रहें– किसी भी दान से पहले संस्था की विश्वसनीयता जांचें-परखें (NGO रजिस्ट्रेशन, तीसरा-पार्टन ऑडिट, साइट रिपोर्ट)। सरकारी विदेश मंत्रालय या अंतरराष्ट्रीय NGO-राइटिंग देखें।

राहत कार्य तभी सफल होंगे जब पहुंच, सुरक्षा और फंड एक साथ हों

सूडान में जो आवश्यकता है, वह सिर्फ पैसे की नहीं, पहुंच की, सुरक्षा की और राजनीतिक इच्छाशक्ति की है। वैश्विक फंडिंग और राजनीतिक रूचि के अभाव में, राहत कार्य बहुत सीमित आधार पर चल रहे हैं और लाखों पीड़ित अभी भी सहायता से वंचित हैं। एल-फशेर जैसे हॉटस्पॉट पर हालिया हमले दिखाते हैं कि अगर संघर्ष जारी रहा तो मानवीय उपलब्धियों का बिल बहुत भारी होगा और जमाने की नैतिक जिम्मेदारी यही है कि मदद को प्राथमिकता दी जाए और उसे बचाया जाए।

यह सिर्फ युद्ध नहीं, एक पीढ़ी का नुकसान है

सूडान में चल रहे युद्ध ने सामाजिक ताना-बाना, शिक्षा, जीवन-मूल्य और बच्चों का भविष्य सब कुछ तहस-नहस कर दिया है। यहां स्कूल नहीं, आश्रय-शिविर हैं! स्वास्थ्य-क्लिनिक नहीं, सैन्य शिविर सैनिक कब्जों में हैं। बच्चों के हाथ में किताब नहीं, बाल्टियां-गमले हैं। यह सिर्फ आज की त्रासदी नहीं, यह आने वाले दशकों की खोई हुई संभावनाओं की शुरुआत है।
सूडान में अब तक जो हुआ है, वह रिपोर्ट-लाइन या आंकड़े भर नहीं हैं। यह जीवन-तंत्र की टूटन और मानवता की पुकार है। सुडान में सिर्फ “युद्ध” नहीं चल रहा, बल्कि विश्वास, पहचान, और धार्मिक स्वतंत्रता का यूद्ध चल रहा है। अल्पसंख्यक ईसाई-समुदाय न सिर्फ युद्ध के बीच फंसे हैं, बल्कि उन्हें धर्म-आधारित उत्पीड़न का सामना भी करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्याय-मानदंड मौजूद हैं, लेकिन उन्हें लागू करना अभी बड़ी चुनौती है। मीडिया, सरकारें व वैश्विक नागरिक समाज मिलकर तभी इस संकट में बदलाव ला सकते हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि हम सुनें, समझें और कार्रवाई के लिए आवाज़ उठाएं। क्योंकि जब बच्चे भूख से लड़ रहे हों, घर खो चुके हों, शिक्षा से वंचित हों, तो यह सिर्फ उनका संकट नहीं, संसार का संकट है।
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