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May 29, 2025

समुद्र की गहराई में दफ़न दुनिया के पांच रहस्यमयी शहर, जो रहस्य ही रह गए 

आज से कई सौ साल पहले दुनिया में ऐसे-ऐसे शहर हुआ करते थे, जो अब इतिहास का हिस्सा बन गए हैं। ये शहर अब समुद्र की गहराइयों में विलीन हो गए हैं। पुरानी ज्ञात सभ्यताओं में हम केवल हड़प्पा-मोहेनजोदारो की ही बात करते हैं। लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे ही शहरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो रहस्यमय तो हैं ही, साथ ही वो समुद्र की अनंत गहराइयों में डूब गए थे।

खंभात का खोया हुआ शहर-Lost City Of Khambhat-Gujrat

Lost City Of Khambhat-Gujrat: इसे खंभात का खोया हुआ शहर कहते हैं, जो 17 साल पहले खंभात की खाड़ी (भारत) में मिला था। बताया जाता है कि यह शहर करीब 9500 साल पहले समुद्र में डूब गया था। साल 2002 में विशेषज्ञों ने इसे खोज निकाला। हालांकि यह अभी भी रहस्य ही है कि यह आखिर कैसे डूबा?
यह विशाल शहर खंभात की खाड़ी के नीचे पांच मील लंबाई में छिपा हुआ है। 120 फीट गहरे पानी के नीचे यह प्राचीन खोज सभ्यता की जड़ों के बारे में हमारी समझ को फिर से परिभाषित कर सकती है। इस खोज में मिट्टी के बर्तन, मोती और मानव हड्डियां मिलीं। कार्बन डेटिंग के हिसाब से इनमें से कुछ हड्डियां लगभग 9,500 वर्ष पुरानी थीं। पानी के अंदर अच्छी तरह से संरक्षित ये सामान संभवतः ज्ञात इतिहास से भी पुरानी दुनिया की झलक पेश करता है। 20 से अधिक सालों के बाद, पुरातत्वविद् अभी भी जलमग्न शहर की उत्पत्ति पर बहस कर रहे हैं, इस दावे के साथ कि यह सिंधु घाटी से भी पहले का हो सकता है। इस प्राचीन खोज ने विशेषज्ञों और उत्सुक इतिहासकारों को विभाजित कर दिया है। खंभात की खाड़ी (Gulf Of Khambhat) गुजरात में अरब सागर के तट पर स्थित है। यह खाड़ी, मुंबई और दीव द्वीप के ठीक उत्तर में है। खंभात की खाड़ी को कैम्बे की खाड़ी के नाम से भी जाना जाता है।

हेरास्लोइन शहर-City Of Heracleion

ये है मिस्र का प्राचीन शहर हेरास्लोइन, जो करीब 1200 साल पहले समुद्र में समा गया था। कुछ साल पहले इसकी खोज की गई। इतिहासकार हेरोटोडस के मुताबिक, यह शहर बेशुमार दौलत के लिए मशहूर था। गोताखोरों को यहां से खजाना भी मिल चुका है। ये शहर आज भी समुद्र में डूबा है और कहा जा रहा है कि जिसमें बेशुमार खजाना है। इस शहर का नाम Thonis-Heracleion रखा गया है। समुद्र में दफ्न हो चुके इस शहर को एलेग्जेंडर ने 331 BC में बसाया था, जिसे यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर अंडरवाटर आर्कियोलॉजी (IEASM) की टीम ने खोजा है। कहा जा रहा है कि यह अपने दौर का समृद्ध शहर था, जो समुद्र का जलस्तर बढ़ जाने के कारण पानी में डूब गया होगा या नील नदी में भूकंप के बाद उठे ऊंचे ज्वार में समा गया होगा। टीम को समुद्र की गहराई से ये फ्रूट बकेट भी मिली है।

अलेक्जेंड्रिया-Alexandria Egypt

Alexandria-City Of Sikandar-ये है सिकंदर का शहर अलेक्जेंड्रिया (मिस्र), जो करीब 1500 साल पहले भयानक भूकंप के कारण समुद्र में डूब गया था। अलेक्जेंड्रिया प्राचीन काल के सबसे बड़े और सबसे शानदार शहरों में से एक था। 331 ईसा पूर्व में सिकंदर महान द्वारा स्थापित, इसकी वास्तुकला और संस्कृति रोम शहर की वास्तुकला और संस्कृति से भी आगे थी। महल और मंदिर क्षितिज पर छाए हुए थे। अलेक्जेंड्रिया की स्थापना के कुछ समय बाद ही जनसंख्या 100,000 के आंकड़े को पार कर गई थी। शहर का 130 मीटर ऊंचा फ़ारोस लाइटहाउस प्राचीन दुनिया के सात अजूबों में से एक का प्रतिनिधित्व करता था। अलेक्जेंड्रिया अपने विशाल पुस्तकालय के लिए भी प्रसिद्ध था जिसमें लगभग पांच लाख प्रतिलिपियां थीं। शहर के शाही क्वार्टर के कुछ हिस्से, जिसमें मंदिर, महल, शाही उद्यान और बंदरगाह की संरचनाएं शामिल थीं, पूर्वी बंदरगाह में स्थित थे, जिसे पोर्टस मैग्नस कहा जाता था, जहां एंटिरहोडोस द्वीप और पोसिडियम प्रायद्वीप पर जूलियस सीज़र, मार्क एंटनी और प्रसिद्ध क्लियोपेट्रा रहा करते थे। भूकंप और ज्वार की लहरों की लगातार मार के कारण पोर्टस मैग्नस और शहर के प्राचीन तट के कुछ हिस्से समुद्र के नीचे डूब गए। 1,200 से अधिक वर्षों तक मंदिर, इमारतें, महल, मूर्तियां, चीनी मिट्टी के बर्तन, सिक्के, आभूषण और रोजमर्रा की वस्तुएं रेत और तलछट की मोटी परतों से ढके समुद्र तल पर अछूती पड़ी रहीं। पानी में इसके खंडहर आज भी मौजूद हैं, जो इस शहर की विरासत को बयां करते हैं।

शी चेंग- Shicheng China

Shicheng- China: चीन के झेजियांग में शी चेंग नाम का एक शहर हुआ करता था, जो करीब 1300 साल पुराना था, लेकिन साल 1959 में यह शहर गहरी झील में डूब गया। इसे ‘Lion City’ के नाम से जाना जाता है। हैरानी की बात ये है कि इस शहर के खंडहर आज भी पानी के अंदर बिल्कुल सही स्थिति में हैं। इस शहर में देश के शाही अतीत के अवशेष मौजूद हैं। नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार, झेजियांग प्रांत के शिचेंग शहर में 1959 में शिनान हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम (Xin’an Hydroelectric Dam) के लिए रास्ता बनाने के लिए जानबूझकर बाढ़ लाई गई थी। इस बाढ़ के बाद इस घटना के बारे में लोग दशकों तक भूले रहे। यह कियानदाओ झील की सतह से 40 मीटर नीचे स्थित है। अब यह एक पानी के अंदर जमी हुई एक अलग दुनिया है।

योनगुनी शहर, Yonaguni-Japan

Yonaguni-Japan: मिस्र में तो आपने कई पिरामिड देखें होंगे, लेकिन क्या कभी समुद्र के अंदर पिरामिड देखा है? दरअसल, जापान में कुछ साल पहले एक टूरिस्ट गाइड ने समुद्र के अंदर मौजूद इन पिरामिडों को खोज निकाला था। इसे Yonaguni City के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यह शहर कभी पौराणिक महाद्वीप का हिस्सा था। जापान के योनागुनी स्मारक की खोज दशकों पहले हो गई थी, लेकिन पानी के अंदर डूबे इस शहर के राज अभी तक नहीं खुल पाए हैं जिस वजह से शोधकर्ताओं की टीम इस पर लगातार रिसर्च कर रही। ये स्मारक समुद्र के अंदर डूबी अटलांटिस सभ्यता की तरह बहुत ज्यादा दिलचस्प है, साथ ही इसके अंदर कई राज भी छिपे हुए हैं, जिस पर से पर्दा हटना बाकी है। स्थानीय खोताखोरों की टीम ने इस स्मारक की खोज 1986 में की थी। उस दौरान गोताखोरों ने सतह से 25 मीटर नीचे सीधे किनारों के साथ एक नक्काशीदार सीढ़ियां देखीं जो आयताकार और पिरामिड जैसी थी। माना जाता है कि पानी के अंदर बने ये पिरामिड 10 हजार साल से ज्यादा पुराने हैं, लेकिन वो वहां कैसे पहुंचे, ये किसी को नहीं पता।
Okinawa विश्वविद्यालय की समुद्री भूविज्ञानी Masaaki Kimura दो दशकों से इस अंडर वॉटर शहर की जांच कर रही हैं। उनकी टीम ने इन संरचनाओं की स्टडी करने और उनके मानचित्रण के लिए कई बार गोते लगाए, जिससे ये साफ हुआ कि ये किसी खोए हुए शहर के अवशेष हैं। उनको इस शहर में छोटे शिविर, मिट्टी के बर्तन, पत्थर के औजार और फायरप्लेस भी मिले हैं। Kimura ने कहा कि सबसे बड़ी संरचना एक जटिल, अखंड, सीढ़ीदार पिरामिड की तरह दिखती है, जो 25 मीटर अंदर है। इससे जुड़े बहुत से राज अभी खुलने बाकी है। वहीं दूसरी ओर कुछ सिद्धांतकरों का मानना है कि ये अंडरवॉटर सिटी एलियंस द्वारा निर्मित हैं। हालांकि इसके बारे में भी कोई ठोस सबूत नहीं है। किमुरा ने दावा किया है कि उन्होंने एक महल के खंडहर, मेहराबदार प्रवेश द्वार, पांच मंदिर, कम से कम एक बड़े स्टेडियम और संकरे मार्ग की पहचान की है। स्मारक का कोई भी हिस्सा चट्टान के अलग-अलग ब्लॉकों से निर्मित नहीं है। इसके अंदर के बलुआ पत्थर प्राकृतिक लहर और ज्वारीय प्रक्रिया की वजह से हट गए, जबकि छत जैसी संरचनाएं बनी रहीं।

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