एक समय था जब सुबह की नींद गौरैया की चहचहाहट से ही खुलती थी। घर की मुंडेरों पर, रसोई की खिड़की में, छत के कोनों में, यहां तक कि पुराने मीटर बॉक्सों के अंदर भी अपना घोंसला बनाकर रहती थी। वह सिर्फ़ एक पक्षी नहीं थी, बल्कि परिवार का हिस्सा थी। बच्चों की दोस्त, खेतों की साथी, वातावरण की सफाईकर्मी और जैव-विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा! पर आज, वही गौरैया धीरे-धीरे हमारी आंखों के सामने गायब होती जा रही है। कई शहरों और कस्बों में गौरैया दिखना अब किसी सुखद संयोग जैसा हो गया है। यह सिर्फ़ एक पक्षी का गायब होना नहीं है, यह हमारे पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन का संकेत है।
हमारे बचपन की चहचहाहट कहां खो गई?
कभी भारत के हर घर, आंगन और खेतों में चहचहाने वाली गौरैया अब गंभीर संकट में है। देश के कई हिस्सों में इनकी संख्या में तेज़ गिरावट दर्ज की जा रही है। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि तेज़ी से फैलता शहरीकरण, मोबाइल टावरों का इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन, भोजन और घोंसलों की कमी तथा कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग इस गिरावट के मुख्य कारण हैं। शहरों में कंक्रीट की इमारतों के बढ़ने से गौरैया को घोंसला बनाने के लिए उपयुक्त जगह नहीं मिल पा रही है। पहले पुराने घरों, लकड़ी-टाइल की छतों और खुली खिड़कियों में गौरैया आसानी से घर बना लेती थी, लेकिन आधुनिक वास्तुकला में यह स्थान लगभग खत्म हो गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार मोबाइल टावरों से निकलने वाला रेडिएशन उनकी दिशा पहचानने की क्षमता और अंडों की हैचिंग प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है।
गौरैया संकट में: वैज्ञानिकों ने जताई गहरी चिंता, शहरीकरण और तकनीकी बदलाव बने बड़ा कारण
इसके अलावा, खेतों में अत्यधिक रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग ने गौरैया के पारंपरिक भोजन, छोटे कीटों की उपलब्धता घटा दी है। कई अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि कीटनाशक लगे कीट खाने से चूजों की मृत्यु बढ़ रही है। बढ़ते प्रदूषण, अनावश्यक रात की रोशनी और प्राकृतिक शिकारी (जैसे बिल्ली व कौवे) भी गौरैया के अस्तित्व पर असर डाल रहे हैं। पर्यावरणविदों के अनुसार गौरैया का गायब होना केवल एक पक्षी की कमी नहीं, बल्कि मानव बस्तियों के पर्यावरणीय असंतुलन का संकेत है। गौरैया छोटे कीटों को नियंत्रित कर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
गौरैया का परिचय- एक साधारण पर असाधारण पक्षी
गौरैया (House Sparrow) का वैज्ञानिक नाम Passer Domesticus है। यह मानव बस्तियों के साथ रहने वाला अत्यंत सामाजिक पक्षी है। दुनिया के कई देशों में यह पाई जाती है, लेकिन दक्षिण एशिया, खासकर भारत, में इसकी संख्या बहुत अधिक थी। गौरैया की मुख्य विशेषताएं-
आकार: लगभग 14–16 सेंटीमीटर,
वजन: लगभग 24–40 ग्राम,
आहार: अनाज, छोटे कीट, भोजन के छोटे कण,
घोंसला: घरों की दीवारों की दरारों, छतों के कोनों, दुकानों और पुराने भवनों में,
सामाजिकता: झुंड में रहना पसंद करती है। गौरैया आस-पास के वातावरण के बदलाव की सबसे संवेदनशीलसंकेतक है जहां मानव जीवन कठिन होता है, वहां गौरैया की मौजूदगी भी कम हो जाती है।
गौरैया क्यों घट रही है? मुख्य वैज्ञानिक कारण
गौरैया का तेजी से कम होना कई प्राकृतिक, तकनीकी और सामाजिक कारणों का मिलाजुला परिणाम है।
शहरीकरण: कंक्रीट के जंगलों में गायब होते घर!
आज के शहर तेजी से बदल रहे हैं। पुराने घर टूट रहे हैं, खिड़कियां छोटी हो रही हैं, दीवारें चिकनी और सील्ड हो रही हैं, भवनों की डिज़ाइन में पक्षियों के लिए जगह ही नहीं बची। पहले घरों में लकड़ी की छतें, टाइलों वाली छप्पर, खुले बालकनी, दीवारों की दरारें गौरैया के लिए स्वर्ग जैसी थीं। अब कंक्रीट और शीशे की इमारतें घोंसले बनाने के अवसर समाप्त कर रही हैं। नतीजा, गौरैया के पास रहने की जगह नहीं, घोंसला बनाने की जगह नहीं! इसलिए उनकी संख्या घट रही है।
मोबाइल टावर और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (EMR)
मोबाइल नेटवर्क बढ़ा है, तो रेडिएशन भी बेहद बढ़ा है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि गौरैया EMR की वजह से अपने बच्चों को खोज नहीं पाती। अंडों की हैचिंग क्षमता घट जाती है। रेडिएशन उनके नेविगेशन सिस्टम को प्रभावित करता है। छोटे कीट, जिन पर गौरैया निर्भर रहती है, EMR से मर रहे हैं। यह समस्या शहरों में ज्यादा और ग्रामीण क्षेत्रों में कम देखी गई है।
कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग
खेतों में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक कीटनाशक गौरैया के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं। गौरैया अपने बच्चों के लिए छोटे-छोटे कीट लाती है। कीटनाशक लगे कीट खाने से चूजों की मृत्यु बढ़ गई है। कई चिड़ियों में प्रजनन क्षमता कम होती पाई गई। खेतों में कीट खत्म हो जाने से गौरैया को भोजन नहीं मिलता। विशेष रूप से नीओनिकोटिनॉयड (Neonicotinoids) जैसे कीटनाशक गौरैया और अन्य पक्षियों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं।
पारंपरिक भोजन का समाप्त होना
पहले घरों में अनाज साफ़ होता था। आटा चक्की का था। रसोई की खिड़कियां खुली रहती थीं। इनसे भोजन के छोटे कण सहज उपलब्ध होते थे। अब पैक्ड फूड, बंद रसोई, स्टील और ग्लास का किचन और अनाज की हवादार भंडारण सुविधा, इन सबने गौरैया का भोजन लगभग समाप्त कर दिया है।
एयर पॉल्यूशन और डस्ट स्मॉग
बढ़ता प्रदूषण गौरैया के लिए ‘धीमी मौत’ जैसा है। हवा में धूल और धुआं, कार्बन और नाइट्रोजन के कण, ध्वनि प्रदूषण और वाहन का शोर, इनसे गौरैया की श्वसन प्रणाली प्रभावित होती है, जीवनकाल कम होता है और चूजों में रोग बढ़ जाते हैं।
कृत्रिम लाइट और रात में बढ़ती रोशनी
रात में कृत्रिम रोशनी उनकी नींद के पैटर्न को तोड़ती है, भोजन खोजने और प्रजनन चक्र को प्रभावित करती है। यह भी गौरैया की संख्या घटाने का एक महत्वपूर्ण कारण है। गौरैया के कम होने का असर सिर्फ एक पक्षी तक सीमित नहीं है। यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की चेतावनी है।
गौरैया घटेंगी, कीटों की आबादी बढ़ेगी
गौरैया कीटों को नियंत्रित करती है। अगर गौरैया नहीं, तो मच्छर, दीमक, अन्य कीट तेजी से बढ़ सकते हैं।
पर्यावरण असंतुलन
गौरैया खाद्य-श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके गायब होने से कई पक्षियों का भोजन खत्म हो जाएगा। पौधों का परागण प्रभावित होगा और जैव-विविधता में गिरावट हो सकती है।
स्वास्थ्य खतरे– गौरैया कीट खाती है, जिससे कई रोगों का प्रसार नियंत्रित रहता है। उनकी कमी से ऐसे रोगों में वृद्धि का जोखिम है।
बचाने के प्रयास और पहल
कई लोग, संगठन और सरकारें गौरैया बचाने की दिशा में काम कर रहे हैं। लेकिन यह काम उतना सफल तभी होगा जब आम लोग भी इसमें योगदान दें।
वर्ल्ड स्पैरो डे, 20 मार्च– दुनिया भर में 20 मार्च को “विश्व गौरैया दिवस” मनाया जाता है। इस दिन लोगों को जागरूक किया जाता है कि गौरैया पर्यावरण के लिए कितनी जरूरी है।
घरों और स्कूलों में नेस्ट बॉक्स लगाना– घरों और स्कूलों में लकड़ी के नेस्ट बॉक्स लगाने से गौरैया की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है। इन बॉक्सों में पक्षियों को सुरक्षित जगह, अंडे देने का स्थान और शिकारी से बचाव मिलता है।
पानी और दाना देना- बड़े शहरों में पानी और भोजन दोनों ही गौरैया के लिए दुर्लभ हो गए हैं। मिट्टी की कटोरी में दाना, एक सादा पानी का बर्तन, गर्मियों में ताज़ा पानी हमारे जीवन में गौरैया वापस लौटाने में बहुत मदद कर सकते हैं।
छतों, बालकनियों में पौधे लगाना– हरी-भरी जगहों की कमी गौरैया की कमी से सीधा जुड़ी है। अगर घरों में तुलसी, मोगरा, बौने पेड़ या झाड़ियां लगाई जाएं तो गौरैया को भोजन और आश्रय दोनों मिलेंगे।
कीटनाशकों का सीमित प्रयोग- कई किसान अब जैविक खेती की ओर लौट रहे हैं। इससे खेतों में फिर कीट बढ़े हैं और गौरैया के जीवित रहने की संभावना बढ़ी है।
पुराने भवनों को बचाना– पुरानी दीवारें, टाइलों वाली छतें, खिड़कियों की जुड़ी-जाली- ये सभी गौरैया के प्राकृतिक घर थे। इनका संरक्षण भी जरूरी है।
गौरैया को वापस लाने के व्यावहारिक उपाय- हम क्या कर सकते हैं?
गौरैया बचाना किसी सरकार या NGO का काम भर नहीं है। हर नागरिक का योगदान महत्वपूर्ण है। आप घर में यह 10 चीजें जरूर करें-
खिड़कियों के पास दाना रखें,
छत पर एक छोटा पानी का कटोरा रखें,
बालकनी में हरे पौधे लगाएं,
नेस्ट बॉक्स लगाएं,
दीवारों की छोटी दरारें तुरन्त न भरें,
तेज़ कीटनाशकों का उपयोग बंद करें,
छत पर छोटे गमले रखें जिसमें गौरैया बैठ सके,
त्यौहारों में पटाखों का उपयोग कम करें,
रात की अनावश्यक रोशनी कम करें,
बच्चों को गौरैया के महत्व के बारे में बताएं
सांस्कृतिक महत्व
भारत में गौरैया केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान है। कई लोकगीतों में गौरैया का वर्णन किया गया है। बच्चों की कविताओं में उल्लेख मिलता है। गौरैया के घर आने को शुभ माना जाता था। ग्रामीण घरों में ये सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती थी। गौरैया का लौटना सिर्फ प्रकृति की बहाली नहीं, हमारी संस्कृति की वापसी भी है।
अगर हम नहीं जागे तो अगली पीढ़ी गौरैया को किताबों में देखेगी
गौरैया का कम होना सिर्फ एक पक्षी का गायब होना नहीं है। यह हमारे पर्यावरण के कमजोर होने का चेतावनी संकेत है। यदि अभी कदम नहीं उठाए गए तो शहरी पारिस्थितिकी टूट जाएगी, पक्षियों का संतुलन बिगड़ जाएगा और भविष्य की पीढ़ियां गौरैया को सिर्फ तस्वीरों में देखेंगी। लेकिन अच्छी बात यह है कि गौरैया उन पक्षियों में से है जिन्हें बचाया जा सकता है। बस हमें थोड़ा सहयोग, थोड़ी संवेदनशीलता और थोड़ी जागरूकता दिखानी होगी।अगर हर घर, हर आंगन में थोड़ा दाना-पानी रखा जाए, अगर हर छत पर एक नेस्ट बॉक्स लगाया जाए, अगर हम प्रकृति के प्रति थोड़ा जिम्मेदार बनें, तो एक दिन फिर सुबह उठते ही हमें वही प्यारी चहचहाहट सुनाई देगी- गौरैया की चहक, जो जीवन में खुशियां भर देती है।
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