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July 26, 2025

राजस्थान में स्कूल बिल्डिंग गिरी, 7 बच्चों की मौत, स्कूली इमारतों की जर्जर हालत पर उठे सवाल

The CSR Journal Magazine
राजस्थान के झालावाड़ में एक स्कूल की इमारत ढहने से सात बच्चों की मौत हो गई और 17 घायल हो गए। शिकायत के बावजूद सरकार जर्जर स्कूल बिल्डिंगों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है।

स्कूली बच्चों को निगल गई क्लास की छत

शुक्रवार सुबह राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक दिल दहला देने वाली घटना में पिपलोदी गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल की छत ढह गई, जिसमें कम से कम सात बच्चों की मौत हो गई और 17 अन्य घायल हो गए। इस हादसे में कई बच्चों के मलबे में फंसे होने की आशंका है। स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने तत्काल बचाव कार्य शुरू कर दिया है।
यह घटना सुबह करीब 8:30 बजे उस समय हुई, जब स्कूल में बच्चे सुबह की प्रार्थना के लिए इकट्ठा हो रहे थे। पुलिस के अनुसार, मलबे में फंसे अधिकांश बच्चों को निकाल लिया गया है, लेकिन बचाव कार्य अभी भी जारी है। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, भारी बारिश के कारण स्कूल भवन की कमजोर संरचना इस हादसे का कारण बनी। स्थानीय ग्रामीणों और स्कूल कर्मचारियों ने तुरंत मलबे से बच्चों को निकालने में मदद की।

JCB मशीने जुटीं राहत कार्य में

घायल बच्चों को तुरंत मनोहरथाना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) ले जाया गया, जहां पांच बच्चों को मृत घोषित कर दिया गया। आठ बच्चों की हालत गंभीर बताई जा रही है, जिन्हें झालावाड़ जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने बताया, “पांच बच्चों की मौत (बाद में दो और घायलों की भी मौत) हो चुकी है और 17 अन्य घायल हैं। दस बच्चों को झालावाड़ रेफर किया गया है, जिनमें से तीन से चार की हालत नाजुक है।”
जिला प्रशासन, पुलिस और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे और राहत कार्यों में जुट गए। बचाव कार्य में जेसीबी मशीनों का उपयोग किया जा रहा है, और स्थानीय लोग भी बच्चों को बचाने में सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।

CM भजनलाल ने दिए जांच के आदेश

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “झालावाड़ के पिपलोदी में स्कूल की छत गिरने से हुआ हादसा अत्यंत दुखद और हृदय विदारक है। संबंधित अधिकारियों को घायल बच्चों के उचित इलाज के लिए निर्देश दिए गए हैं।”

राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने इस घटना पर खेद जताया और कहा कि इसकी उच्च स्तरीय जांच की जाएगी। उन्होंने कहा, “यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। मैंने जिला कलेक्टर और शिक्षा अधिकारी को घायल बच्चों के इलाज की सभी व्यवस्थाएं करने के निर्देश दिए हैं। इस हादसे के कारणों की जांच के लिए आदेश जारी किए गए हैं।”
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस घटना पर दुख जताया और X पर लिखा, “मनोहरथाना, झालावाड़ में सरकारी स्कूल भवन ढहने की खबरें आ रही हैं, जिसमें कई बच्चे और शिक्षक घायल हुए हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि हानि कम से कम हो और घायल जल्द स्वस्थ हों।”

जर्जर स्कूली इमारतों पर उठे सवाल

स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि स्कूल भवन लंबे समय से जर्जर हालत में था और बार-बार शिकायतों के बावजूद इसकी मरम्मत या पुनर्निर्माण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। इस घटना ने राजस्थान में सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति और बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्कूल भवन पुराने और कमजोर हैं, जिन्हें तत्काल मरम्मत या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है।

प्रशासन ने स्कूल परिसर में अन्य भवनों की संरचनात्मक गुणवत्ता की जांच शुरू कर दी है। साथ ही, इस हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करने की बात कही गई है। स्थानीय लोग इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए जिम्मेदारी तय करने और ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।

जर्जर इमारतों में जान की कीमत पर पढ़ाई करने को मजबूर बच्चे

राजस्थान के कई स्कूल भवनों की हालत जर्जर है, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। कई स्कूलों में छतें टपकती हैं, दीवारों में दरारें हैं, और बुनियादी सुविधाओं जैसे शौचालय, पीने के पानी और बिजली का अभाव है। इससे बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षा पर बुरा असर पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है, जहां स्कूल भवन इतने कमजोर हैं कि वे कभी भी ढह सकते हैं। शिक्षकों और अभिभावकों ने कई बार शिकायत की, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। सरकार को चाहिए कि वह स्कूलों की मरम्मत और बुनियादी सुविधाओं के लिए तुरंत बजट आबंटित करे, ताकि बच्चों को सुरक्षित और बेहतर पढ़ाई का माहौल मिल सके। शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रहना चाहिए।

गर्मी के अलावा बरसात में भी मजबूरन छुट्टियां

जर्जर स्कूल भवनों का सबसे ज्यादा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। असुरक्षित और असुविधाजनक माहौल में पढ़ाई करना मुश्किल होता है, जिसके कारण बच्चों का ध्यान पढ़ाई से हटकर अन्य समस्याओं पर चला जाता है। लड़कियों के लिए शौचालयों की कमी एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं। इसके अलावा, शिक्षकों को भी ऐसी परिस्थितियों में पढ़ाने में कठिनाई होती है। कई शिक्षक अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। बारिश या गर्मी के मौसम में स्कूलों में पढ़ाई लगभग ठप हो जाती है, जिससे बच्चों का शैक्षणिक नुकसान होता है।
राजस्थान के झालावाड़ जिले में सरकारी स्कूल की छत गिरने की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इस हादसे में सात बच्चों की मौत हो गई और लगभग 15 बच्‍चे घायल हो गए। 41 बच्‍चों के मलबे में दबे होने की आशंका है। यह घटना हमें उन तमाम स्कूल हादसों की याद दिलाती है, जो पहले भी देश के अलग अलग हिस्‍सों में हो चुके हैं और जिन्होंने स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं। आइए जानते हैं कि भारत में कब-कब और कहां-कहां बड़े स्कूल हादसे हुए और झालावाड़ की ताजा घटना से सरकारों को क्या सबक लेना चाहिए।

कहां कहां हुए ऐसे हादसे

भारत में स्कूलों में होने वाले हादसे चाहे इमारत ढहने से हों, आगजनी हो या सड़क दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा, हमेशा से चिंता के विषय रहे हैं। आइए डालते हैं कुछ ऐसी ही घटनाओं पर एक नज़र!

हरियाणा डबवाली स्कूल अग्निकांड-248 बच्चों की झुलसकर मौत

23 दिसंबर, 1995 को हरियाणा के डबवाली अग्निकांड को भला कोई कैसे भूल सकता है! हरियाणा के सिरसा जिले के डबवाली के DAV School में वार्षिक महोत्सव के दौरान आग लगने से 248 बच्चों की मौत हो गई और 150 महिलाएं समेत कुल 442 लोग जिंदा जल गए। चारों तरफ मातम पसर गया। शवों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट भी छोटा पड़ गया। 23 दिसंबर के उस काले दिन को डबवाली के लोग आज भी भुला नहीं पाते।

Kumbakonam school fire: 94 बच्‍चों की हुई मौत

2004 के तमिलनाडु में कुम्भकोणम स्कूल हादसे को यादकर अब भी कलेजा कांप जाता है। इस हादसे में 94 बच्चों की मौत हो गई थी। यह घटना तमिलनाडु केकुम्भकोणम में कृष्णा इंग्लिश मीडियम स्कूल में हुई, जब दोपहर के भोजन की तैयारी के दौरान घास से बनी छत में आग लग गई। आग तेजी से फैलकर क्लासरूमतक पहुंच गई, जिससे ज्यादातर प्राइमरी सेक्शन के छात्र फंस गए और उनकी जान चली गई। यह हादसा 16 जुलाई 2004 को हुआ था। आग की वजह स्कूल किचन में दोपहर के भोजन के लिए जल रही आग से निकली चिंगारी थी, जो घास की छत तक पहुंच गई और फिर क्लासरूम तक फैल गई। इस हादसे में 94 बच्चे अपनी जान गंवा बैठे। इसके बाद देशभर में जनता में गुस्सा फूट पड़ा और एक जांच आयोग का गठन किया गया, ताकि आग लगने की वजह की पड़ताल हो सके। आयोग ने हादसे में इतनी बड़ी संख्या में मौतों के लिए स्कूल प्रबंधन को ज़िम्मेदार ठहराया था।

पानी में फंस गई स्‍कूली वैन

हाल ही में 18 जुलाई 2025 को राजसमंद के केलवाड़ा इलाके में सैलाब में एक स्कूली वैन फंस गई। तेज बहाव के कारण वैन पानी में बहने लगी, लेकिन ड्राइवर की सूझबूझ और स्थानीय लोगों की मदद से बच्चों को सुरक्षित निकाल लिया गया। सौभाग्य से इस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन यह स्कूल वाहनों की सुरक्षा पर सवाल उठाता है।

वडोदरा में स्‍कूल की इमारत ढही

वडोदरा के एक निजी स्कूल में बारिश के कारण चार मंजिला इमारत का एक हिस्सा ढह गया। इस हादसे में दो बच्चों की मौत हुई और कई घायल हो गए। जांच में पता चला कि इमारत का निर्माण खराब गुणवत्ता की सामग्री से हुआ था जिसके कारण यह हादसा हुआ। इस घटना ने स्कूलों में बिल्डिंग सेफ्टी को लेकर देशभर में बहस छेड़ दी।

दिल्ली में गिर गई स्‍कूल की दीवार

दिल्ली के कन्हैया नगर में एक स्कूल की दीवार गिरने से पांच बच्चों की मौत हो गई और कई घायल हुए। यह स्कूल एक पुरानी इमारत में चल रहा था और रखरखाव की कमी के कारण यह हादसा हुआ। इस घटना के बाद दिल्ली सरकार ने स्कूलों में सुरक्षा ऑडिट को अनिवार्य करने की बात कही थी।

भूकंप में गई स्‍कूली बच्‍चों की जानें

26 जनवरी 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप के कारण कई स्‍कूलों की इमारतें धाराशायी हो गईं। भूकंप ने कई स्कूलों को नुकसान पहुंचाया। इस प्राकृतिक आपदा में कई स्कूली बच्चों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। इस हादसे ने स्कूलों में भूकंप-रोधी इमारतों की जरूरत पर जोर दिया।

स्‍कूलों में क्‍यों होते हैं ऐसे हादसे

झालावाड़ हादसे की तरह कई स्कूल पुरानी इमारतों में चल रहे हैं, जिनका समय-समय पर रखरखाव नहीं होता। वडोदरा जैसे हादसों में खराब सामग्री और गलत डिजाइन के कारण इमारतें ढह गईं। इसके अलावा स्‍कूलों में सुरक्षा नियमों की अनदेखी होती है। स्कूल बसों या वैन में ओवरलोडिंग, ड्राइवर की लापरवाही या सड़क सुरक्षा नियमों का पालन न करना भी एक कारण है। बाढ़, भूकंप या तालाब फटने के कारण भी ऐसे हादसे देखने में आए हैं। यही नहीं, स्कूलों में नियमित सुरक्षा ऑडिट और बिल्डिंग सर्टिफिकेशन की कमी भी इसके लिए जिम्‍मेदार है।

झालावाड़ हादसे ने खड़े किए बच्चों की सुरक्षा पर सवाल

झालावाड़ की ताजा घटना ने फिर से स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए हैं। इस हादसे के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। सबसे प्रमुख सवाल यह है कि स्कूल की इमारत का नियमित निरीक्षण क्यों नहीं हुआ? क्या इमारत का रखरखाव ठीक था? क्या स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त नियम लागू करने की जरूरत है? तो आपको बता दें कि CBSE और अन्य शिक्षा बोर्ड पहले ही स्कूलों में सुरक्षा मानकों को लेकर गाइडलाइंस जारी कर चुके हैं। उदाहरण के लिए CBSE के नियमों में कहा गया है कि स्कूल की इमारतें कम से कम 500 वर्ग फुट की होनी चाहिए और हर बच्चे के लिए 1 वर्ग मीटर का स्पेस होना चाहिए, लेकिन कई स्कूल खासकर ग्रामीण इलाकों में इन नियमों का पालन नहीं करते।

सरकार और स्कूलों को क्या करना चाहिए

हर स्कूल की इमारत का सालाना सेफ्टी ऑडिट होना चाहिए, जिसमें भूकंप-रोधी डिजाइन और सामग्री की गुणवत्ता की जांच हो। स्कूल बसों और वैन में ओवरलोडिंग रोकने के लिए सख्त नियम और नियमित चेकिंग होनी चाहिए। स्कूलों में फायर ड्रिल, रेस्क्यू ट्रेनिंग और आपातकालीन निकास की व्यवस्था होनी चाहिए। शिक्षकों और स्टाफ को प्राथमिक चिकित्सा और रेस्क्यू ऑपरेशन की ट्रेनिंग दी जाए।

सुरक्षा से न हो कोई समझौता

झालावाड़ का हादसा एक दुखद चेतावनी है कि बच्चों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। चाहे वह 2001 का भुज भूकंप हो, 2013 का वडोदरा हादसा या 2024 का पाली बस हादसा, बार-बार यही सवाल उठता है कि हम अपने बच्चों को स्कूलों में कितना सुरक्षित रख पा रहे हैं! सरकार, स्कूल प्रबंधन और माता-पिता को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि स्कूल न सिर्फ पढ़ाई की जगह हों, बल्कि बच्चों के लिए एक सुरक्षित आश्रय भी हो।

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