महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के तलसांडे स्थित शामराव पाटील कॉलेज के हॉस्टल से एक भयावह वीडियो सामने आने के बाद जिले और राज्य में सनसनी फ़ैल गई है। वीडियो में कुछ सीनियर छात्र जूनियर छात्रों को बेल्ट, बैट और लात-घूंसों से बेरहमी से पीटते दिखाई दे रहे हैं। घटना के उजागर होते ही पूरे जिले में हड़कंप मच गया है।
वायरल वीडियो में दिखा बर्बरता का नजारा
सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो में 16 वर्षीय छात्र सिद्धिविनायक मोहिते को गंभीर रूप से पीटा जा रहा है। पीड़ित छात्र दर्द से कराहता दिखाई देता है, जबकि आरोपी छात्र लगातार बेल्ट और बैट से वार करते नजर आते हैं। घटना के बाद घायल छात्र को सीपीआर हॉस्पिटल, कोल्हापुर में भर्ती कराया गया है। वीडियो सामने आने के बाद वडगांव पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया है। प्रारंभिक जांच के अनुसार, यह घटना कॉलेज के हॉस्टल परिसर में घटी थी। पुलिस ने बताया कि इस मामले में दो हॉस्टल रेक्टरों, सुहेल शेते और अभिषेक मणे को भी आरोपी बनाया गया है। दोनों पर छात्रों को शारीरिक दंड देने और अनुशासन के नाम पर अत्याचार करने का आरोप है। पुलिस ने इनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 118(1) और बाल न्याय अधिनियम की धाराएं 75 व 82 के तहत मामला दर्ज किया है। जांच के दौरान दोनों को निलंबित कर दिया गया है।
If Pune has Road Rage, Kolhapur has ragging in Middle School.
Children from 7th standard beating up juniors with belts and bats for not cooperating in their mischief.
What’s happening in Maharashtra? Is our youth losing their minds? pic.twitter.com/LjI2mylO3N
— पाकीट तज्ञ (@paakittadnya) October 12, 2025
रैगिंग या उत्पीड़न
हालांकि सोशल मीडिया पर इसे रैगिंग का मामला बताया जा रहा है, परंतु पुलिस का कहना है कि शुरुआती जांच में इसे अनुशासन के नाम पर की गई मारपीट माना गया है। पुलिस के अनुसार, पीड़ित और आरोपी दोनों ही नाबालिग हैं, इसलिए मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की निगरानी में आगे बढ़ाया जाएगा। वीडियो के वायरल होते ही अभिभावकों और समाजसेवियों ने कॉलेज प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए हैं। स्थानीय लोगों ने कॉलेज के बाहर प्रदर्शन कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। शिक्षा विभाग ने भी इस घटना पर संज्ञान लिया है और मामले की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं।
सवालों के घेरे में हॉस्टल सुरक्षा
यह घटना एक बार फिर कॉलेज हॉस्टलों में छात्रों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि ऐसी घटनाएं युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षण वातावरण को प्रभावित करती हैं। शिक्षा विभाग से यह भी मांग की जा रही है कि सभी हॉस्टलों में सीसीटीवी निगरानी और रैगिंग-रोधी समितियां सक्रिय की जाएं। यह मामला फिलहाल जांच के अधीन है । पुलिस नेअभिभावकों से अपील की है कि वे अपने बच्चों की स्थि ति की जानकारी प्रशासन के साथ सा झा करें औरअफवाहों से बचें।
घटना ने लिया गंभीर रूप
तलसांडे स्थित शामराव पाटील कॉलेज हॉस्टल से वायरल हुए हिंसक वीडियो के बाद मामले ने नया मोड़ ले लिया है। घटना की तूल पकड़ने के बाद प्रशासन, पुलिस तथा शिक्षा विभाग द्वारा कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। पुलिस और शिक्षा विभाग की संयुक्त Fact-Finding टीम ने हॉस्टल का दौरा किया। आरोप है कि सिर्फ छात्रों ने ही नहीं, बल्कि दो हॉस्टल रेक्टरों, सुहेल शेते व अभिषेक मणे ने भी छात्रों को डंडों और रॉड से मारा और उनके साथ मारपीट की। पीड़ित छात्रों ने बताया कि लगभग 16 छात्रों ने विभिन्न अनुशासनात्मक कारण बताकर उन्हें हॉस्टल परिसर में डंडे, पाइप व रॉड से मारा।पुलिस ने स्पष्ट किया है कि इस मामले को रैगिंग के रूप में नहीं लिया गया है। घटनाक्रम अप्रैल महीने का बताया जा रहा है, न कि हाल का। आरंभिक शिकायतों और टीम की रिपोर्ट के आधार पर, उक्त दो रेक्टरों को निलंबित कर दिया गया है और उन पर BNS धारा 118(1) तथा बाल न्याय अधिनियम की धाराएं 75 व 82 लागू कर मामला दर्ज किया गया है। Kolhapur ज़िला शिक्षा विभाग के अधिकारी और Secondary Education विभाग की टीम भी इस मामले की रिपोर्ट तैयार कर रही है।
प्रशासन और जनसमूह की प्रतिक्रिया
डिप्टी डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन को ज्ञापन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई और हॉस्टल-सुरक्षा प्रोटोकॉल को पुनर्सुदृढ़ करने की मांग की गई है। अभिभावकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्र संघों ने जोर देकर कहा है कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसकी ज़िम्मेदारी सरकार ले। हॉस्टल व्यवस्थाओं में पारदर्शिता, निरंतर निगरानी और आवश्यक सुधार किए जाने चाहिए। स्थानीय मीडिया एवं सोशल मीडिया पर दबाव ने प्रशासन को तेजी से कदम उठाने के लिए बाध्य किया।
कानूनी प्रक्रिया जारी
चूंकि पीड़ित और आरोपी दोनों नाबालिग हैं, इस मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की निगरानी में आगे ले जाया जाएगा। पुलिस अभी वीडियो, सीसीटीवी फुटेज, गवाहों के बयानों और हॉस्टल रिकॉर्ड्स को खंगाल रही है। दोष सिद्ध होने पर, संलिप्त छात्रों और रेक्टरों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। शिक्षा विभाग की रिपोर्ट और पुलिस की जांच रिपोर्ट कोर्ट को प्रस्तुत की जाएगी, जिससे दोषियों की जवाबदेही तय होगी।
भारत में रैगिंग की कुछ चर्चित घटनाएं
रैगिंग, यानी सीनियर छात्रों द्वारा जूनियरों पर मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न देश के कई कॉलेजों में गंभीर समस्या बनी हुई है। नीचे पिछले कुछ वर्षों की प्रमुख घटनाओं में-
आनंदन यादव मामला, अमृतसर (2024)– अमृतसर के एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्र आनंदन यादव ने हॉस्टल में सीनियरों द्वारा लगातार मानसिक उत्पीड़न और मारपीट से तंग आकर आत्महत्या कर ली। इस मामले में 6 छात्रों पर रैगिंग और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप लगे।
आयुष राजदेव केस, भोपाल (2023)– मध्य प्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज में MBBS छात्र आयुष राजदेव ने कथित रूप से रैगिंग और अपमानजनक व्यवहार के कारण फांसी लगाकर जान दे दी। कॉलेज प्रशासन ने घटना के बाद 5 छात्रों को निलंबित किया। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा।
तिरुपति इंजीनियरिंग कॉलेज घटना (2022)- आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले में सीनियर छात्रों ने जूनियरों को कपड़े उतरवाकर वीडियो रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर डाला। पुलिस ने IT Act और रैगिंग निरोधक कानून के तहत 9 छात्रों को गिरफ्तार किया।
असम का दिब्रूगढ़ केस (2022)– दिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय में बीकॉम छात्र आनंद शर्मा ने हॉस्टल की चौथी मंज़िल से कूदकर आत्महत्या का प्रयास किया। कारण- सीनियरों द्वारा लगातार रैगिंग और अपमान! इस घटना के बाद असम सरकार ने सभी कॉलेजों में एंटी-रैगिंग सेल को अनिवार्य रूप से सक्रिय करने का आदेश दिया।
वेल्लोर (तमिलनाडु) घटना (2019)- वेल्लोर के एक निजी कॉलेज में जूनियर छात्रों को ज़बरदस्ती शराब पिलाई गई और नाचने को मजबूर किया गया। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने 10 छात्रों को गिरफ्तार किया और कॉलेज प्रशासन ने स्थायी निष्कासनकी कार्रवाई की।
हिमाचल प्रदेश, बिलासपुर घटना (2018)- गवर्नमेंट पॉलीटेक्निक कॉलेज में नए छात्रों को रातभर नग्न अवस्था में खड़ा रखा गया। पुलिस ने 7 छात्रों को गिरफ्तार किया और कॉलेज को UGC से नोटिस मिला।
तेलंगाना, वारंगल केस (2016)– एनआईटी वारंगल में रैगिंग के कारण एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। इस घटना ने पूरे देश में एंटी-रैगिंग कानून के कड़े पालन की बहस को जन्म दिया।
भारत में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए UGC (Prevention of Ragging) Regulations, 2009 लागू
रैगिंग करने वाले छात्र को कॉलेज से निष्कासित किया जा सकता है।
उसे 3 साल तक की सज़ा और जुर्माना हो सकता है।
कॉलेज पर भी कार्रवाई संभव है, यदि वह घटना को छिपाने की कोशिश करे।
सख्त कानूनों के बावजूद क्यों नहीं रुकती रैगिंग
भारत में शिक्षा संस्थानों को “ज्ञान का मंदिर” कहा जाता है, परंतु समय-समय पर रैगिंग की घटनाएं इन मंदिरों को कलंकित कर देती हैं। सख्त कानूनों, एंटी-रैगिंग समितियों और अभियानों के बावजूद यह अमानवीय प्रथा अभी भी खत्म नहीं हो सकी है। सवाल उठता है, क्यों? कई वरिष्ठ छात्र अब भी रैगिंग को “मस्ती” या “इंट्रोडक्शन” का माध्यम मानते हैं। दरअसल, कॉलेज संस्कृति में वर्षों से यह सोच जमी हुई है कि नए छात्रों को “गुजरना” पड़ता है सीनियरों की कसौटी से। यही सोच धीरे-धीरे मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न में बदल जाती है। जब तक समाज और शैक्षणिक संस्थान इसे अपराध के रूप में नहीं लेंगे, तब तक यह परंपरा के नाम पर चलती रहेगी।
छात्रों और अभिभावकों में भय और चुप्पी
रैगिंग के शिकार अधिकांश छात्र शिकायत करने से डरते हैं। डर, कि सीनियर उन्हें पढ़ाई या परीक्षा में परेशान करेंगे। डर, कि प्रशासन कार्रवाई करने के बजाय “बात दबा देगा।” डर, कि माता-पिता को चिंता होगी या कॉलेज की बदनामी होगी। यह “चुप्पी की संस्कृति” रैगिंग करने वालों को और साहसी बना देती है। कई कॉलेज केवल औपचारिकता के तौर पर “एंटी-रैगिंग सेल” और “पोस्टर कैंपेन” चलाते हैं। UGC के नियमों के अनुसार हर कॉलेज में हेल्पलाइन नंबर, शिकायत पेटी, नोडल अधिकारी तथा स्थानीय पुलिस से समन्वय होना चाहिए। लेकिन हकीकत में ये प्रावधान सिर्फ कागज़ों पर मौजूद रहते हैं। कई बार कॉलेज प्रशासन “संस्थान की साख” बचाने के लिए रैगिंग की शिकायतें दबा देता है।
कमजोर कानूनी कार्यवाही
2009 में लागू UGC Anti-Ragging Regulation के तहत रैगिंग को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है, लेकिन अधिकतर मामले कॉलेज स्तर पर ही सुलझा लिए जा ते हैं जहां कभी पीड़ित छात्र को डराकर या अभिभावकों पर दबाव बनाकर मामला रफा-दफ़ा कर दिया जाता है। अक्सर FIR दर्ज करने में देरी की जाती है और कई बार गवाह मुकर जाते हैं। नतीजा यह कि अधिकांश आरोपी छात्र बच निकलते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य और शक्ति-प्रदर्शन
रैगिंग का एक मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है। जो छात्र पहले खुद रैगिंग झेल चुके होते हैं, वे अगले साल दूसरों पर वही दोहराते हैं। एक “साइकल ऑफ एब्यूज़” (Cycle of Abuse) बन जाता है। यह शक्ति-प्रदर्शन और पहचान स्थापित करने का तरीका बन जाता है। ऐसे में जब तक कॉलेजों में मानसिक परामर्श (Counselling) और संवेदनशीलता बढ़ाने वाले कार्यक्रम नहीं होंगे, यह मानसिकता नहीं बदलेगी। अक्सर माता-पिता इस विषय पर खुलकर बात नहीं करते। वे मानते हैं कि “कॉलेज में थोड़ी बहुत रैगिंग सामान्य है।” यही लापरवाही कभी-कभी बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ती है। समाज को यह स्वीकार करना होगा कि रैगिंग कोई परंपरा नहीं, अपराध है।
विशेषज्ञों और शिक्षा आयोगों ने रैगिंग रोकने के दिए सुझाव
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हर हॉस्टल में CCTV निगरानी और 24 घंटे सुरक्षाकर्मी।
2.नए छात्रों के लिए काउंसलिंग सत्र और सीनियर-जूनियर परिचय कार्यक्रम नियंत्रित वातावरण में।
3.एंटी-रैगिंग मोबाइल ऐप्स और हेल्पलाइन को अनिवार्य रूप से प्रचारित करना।
4. रैगिंग करने वालों के खिलाफ तेज और पारदर्शी कार्रवाई, ताकि उदाहरण बने।
5. कॉलेजों में “ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी” लागू करना।
रैगिंग सिर्फ एक अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि यह मानव अधिकारों का उल्लंघन है। जब तक इसे “मस्ती” या “परंपरा” की आड़ में स्वीकार किया जाता रहेगा, तब तक नए छात्र डर और अपमान झेलते रहेंगे। जरूरत है, शिक्षा संस्थानों में संवेदनशीलता, सख्ती और पारदर्शिता की, तभी रैगिंग-मुक्त भारत का सपना साकार हो सकेगा।
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