संसद की एक समिति ने डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन की परियोजनाओं के लिये राज्यों को 15,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि बांटे जाने का जिक्र करते हुए सरकार को खनन क्षेत्रों में कंपनियों के सीएसआर खर्च की समीक्षा करने को कहा है। संसदीय समिति ने ये फैसले इसलिए लिया ताकि एक ही क्षेत्र में कार्ययोजनाओं का दोहराव न हो। डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन का गठन खनन अधिनियम के तहत खनन के पट्टों से मिली राशि का एक भाग समाज कल्याण योजनाओं पर खर्च करने के लिये किया गया है। इसके साथ ही सरकारी कंपनियों के लिये 80 प्रतिशत सीएसआर खर्च खनन क्षेत्रों में करना जरूरी है।
कोयला और इस्पात की संसद की स्थायी समिति की माने तो प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना के तहत कई सामाजिक कल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये अगस्त 2018 तक 15,547.83 करोड़ रुपये जमा किये गये और राज्यों को दिये गये हैं। समिति का मानना है कि जिन जिलों में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन राशि का वितरण हुआ है वहां एक ही उद्देश्य के लिये सीएसआर राशि के खर्च की भी समीक्षा की जानी चाहिये ताकि राशि को अन्य क्षेत्रों में उचित इस्तेमाल में लाया जा सके। इससे सीएसआर का पैसा एक ही जगह दो दो बार नही लगेगा।
इस संसदीय समिति के अध्यक्ष चिंतामणि मालवीय की माने तो समिति चाहती है कि अनावश्यक दोहरे खर्च को रोकने के लिये सरकार उन जगहों पर अनिवार्य 80 प्रतिशत सीएसआर खर्च की समीक्षा करे जहां डीएमएफ राशि भी खर्च की जा रही है। समिति ने कहा कि यह समीक्षा कम से कम उन कंपनियों की जरूर की जानी चाहिये जो खनन कार्यों में शामिल हैं। सीएसआर के तहत अगस्त 2018 तक 21,235 करोड़ रुपये आये लेकिन महज 4,888 करोड़ रुपये की परियोजनाएं पूरी की जा सकी हैं। ऐसे में संसदीय समिति ने खनन मंत्रालय को सीएसआर को लेकर निगरानी की व्यवस्था बनाने को कहा है।