घटता विकास दर, गिरती जीडीपी, महंगाई, बेरोजगारी ये तमाम मुद्दे है जिनसे सरकार और देश की जनता जूझ रही है, भले ही विपक्ष के सवाल सरकार को कोस रहे हो लेकिन इन तमाम मुद्दों से सीधा सरोकार हमसे और आपसे है, मंदी को दूर करने के लिए सरकार के कदम नाकाफी साबित हो रहे है, इस बीच एक और सीएसआर को लेकर बुरी ख़बर है, सामाजिक विकास की रफ्तार में कॉरपोरेट का हिस्सा घट रहा है, और कारण है सीएसआर। कंपनियों की घटती कमाई का असर पूरे देश में खर्च होने वाले सीएसआर फंड में भी दिखना शुरू हो गया है।
संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दी गई जानकारी के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में खर्च किए गए सीएसआर की रकम 700 करोड़ रुपये से ज्यादा घट गई है। जानकारों का मानना है कि इस घटोत्तरी के पीछे कई कारण है, पूरे देश में मंदी की वजह से कॉरपोरेट कंपनियां भी अछूती नही है लिहाजा जो मध्यम और छोटी कंपनियां है उन्होंने अपने सीएसआर के बजट में कटौती की है। वही दूसरी ओर सीएसआर को लेकर रणनीति न बन पाने की वजह से सीएसआर फंड सही तरीके से खर्च नहीं हो पाता है।
सीएसआर के बहीखाते पर एक नज़र डालें तो –
– देश भर में 21,397 कंपनियां इसके दायरे में आती हैं।
– इनमें से 12,460 कंपनियां अलग अलग वजहों से सीएसआर नहीं दे पाई हैं।
– 4,228 कंपनियों ने तय सीमा से ज्यादा
– 3,453 कंपनियों ने तय सीमा से कम और
– 1,256 कंपनियों ने सीएसआर सीमा के अनुपात में योगदान दिया है।
किन कंपनियों ने कितना खर्च किया सीएसआर –
– सीएसआर के जरिए सबसे ज्यादा रकम खर्च करने वाली शीर्ष तीन कंपनियां रिलायंस, ओएनजीसी और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज हैं।
– वित्त वर्ष 2017-18 में कुल 13,624 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।
– 81 फीसदी योगदान निजी कंपनियों की तरफ से किया गया है
– 19 फीसदी हिस्सा सरकारी कंपनियों ने खर्च किया है।
– कुल रकम में से शिक्षा, दिव्यांगों की जरूरतों पर 5769 करोड़ रुपये का खर्च हुआ है।
बहरहाल सीएसआर पर जारी संसद के जवाब से एक बात तो स्पष्ट है कि कंपनियों ने अपने फंड में कटौती की है, निजी कंपनियों के मुकाबले सरकारी पीएसयू फिसड्डी साबित हुई है, कंपनियों का ये रवैया सामाजिक उत्थान में अड़चन पैदा करेंगी जिससे समाज का विकास बाधित होगा।