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December 31, 2025

पुलिस कस्टडी में चूहे उड़ा गए 200 किलो गांजा ! आरोपी बरी, न्यायपालिका हैरान ! 

The CSR Journal Magazine

 

चूहों ने नष्ट किया एक करोड़ का गांजा, रांची कोर्ट में पुलिस का दावा! सबूत न होने पर NDPS केस में मुख्य आरोपी को राहत, पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल !

चूहों ने किया 1 करोड़ का नशा !

रांची की एक अदालत में सामने आया मामला न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि पुलिस व्यवस्था और सबूतों की सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। एक हाई-प्रोफाइल मादक पदार्थ तस्करी मामले में अदालत ने मुख्य आरोपी को बरी कर दिया, क्योंकि पुलिस ने कोर्ट को बताया कि जब्त किया गया करीब 200 किलोग्राम गांजा, जिसकी बाजार कीमत लगभग 1 करोड़ रुपये बताई गई, पुलिस कस्टडी में चूहों ने बर्बाद कर दिया।

क्या है पूरा मामला

यह मामला एनडीपीएस (NDPS Act) के तहत दर्ज किया गया था। पुलिस ने कुछ समय पहले भारी मात्रा में गांजा जब्त करने का दावा किया था और इसे मालखाने में सुरक्षित रखने की बात कही थी। मामला अदालत में विचाराधीन था और जब सबूत पेश करने का समय आया, तब पुलिस ने हैरान करने वाला बयान दिया। पुलिस की ओर से कोर्ट को बताया गया कि मालखाने में रखे गए गांजे को चूहों ने कुतर-कुतर कर नष्ट कर दिया, जिससे अब सबूत के तौर पर गांजा उपलब्ध नहीं है।

कोर्ट की सख्त टिप्पणी, न्यायपालिका और सिस्टम में हलचल

अदालत ने इस दलील को सुनकर गहरी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर जब्त मादक पदार्थ का इस तरह नष्ट हो जाना, पुलिस की घोर लापरवाही को दर्शाता है। चूंकि अभियोजन पक्ष  आरोपों को साबित करने के लिए ठोस सबूत पेश नहीं कर सका, इसलिए अदालत ने मुख्य आरोपी को संदेह  का लाभ देते हुए बरी कर दिया। इस फैसले के बाद न्यायिक गलियारों में भी हलचल मच गई है। सवाल उठ रहे हैं कि-
  • क्या जब्त मादक पदार्थों की सही निगरानी नहीं होती?
  • क्या मालखानों की सुरक्षा केवल कागजों तक सीमित है?
  • क्या यह लापरवाही है या इसके पीछे कोई और वजह?

पहले भी उठ चुके हैं ऐसे सवाल

यह पहला मौका नहीं है जब अदालतों में जब्त मादक पदार्थों के रख-रखाव पर सवाल उठे हों। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई बार निर्देश दे चुका है कि NDPS मामलों में जब्त सामग्री का समय पर निस्तारण और सुरक्षित भंडारण किया जाए, ताकि सबूतों से छेड़छाड़ न हो। इस मामले के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि-
  • पुलिस विभाग आंतरिक जांच शुरू कर सकता है,
  • मालखानों की स्थिति और सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा होगी,
  • जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग तेज हो सकती है।
  • ऐसे हैरान करने वाले मामले पहले भी भारत की अलग-अलग अदालतों में सामने आ चुके हैं, जहां पुलिस कस्टडी या मालखाने में रखे गए जब्त सामान के नष्ट होने, गायब होने या खराब हो जाने की दलील दी गई। इन मामलों ने समय-समय पर पुलिस व्यवस्था और सबूतों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

जब यूपी-बिहार के चूहों ने पी ली शराब और मादक पदार्थ

बिहार और उत्तर प्रदेश की अदालतों में कई मामलों में पुलिस ने यह दावा किया कि जब्त की गई देशी-विदेशी शराब और कुछ मामलों में गांजा व अफीम को मालखाने में चूहों ने कुतर दिया या नष्ट कर दिया। इन मामलों में अदालतों ने पुलिस की लापरवाही पर नाराज़गी जताई और कई बार आरोपियों को सबूतों के अभाव में राहत मिली।

मालखाने में आग लगने से सबूत राख (मध्य प्रदेश, राजस्थान)

कई राज्यों में यह तर्क भी दिया गया कि पुलिस थानों या गोदामों में आग लगने से जब्त मादक पदार्थ, हथियार या अन्य सबूत जलकर नष्ट हो गए। कुछ मामलों में अदालत ने पूछा कि, “क्या आग लगने की कोई स्वतंत्र जांच हुई?” जांच रिपोर्ट न होने पर अभियोजन कमजोर पड़ गया और आरोपी बरी!

दिल्ली- हरियाणा में जब्त वाहन, शराब और ड्रग्स ‘गायब’ 

दिल्ली और हरियाणा में ऐसे मामले सामने आए जहां जब्त किए गए ट्रक, कारें, शराब की पेटियां या ड्रग्स कोर्ट में पेश करने के समय मालखाने से गायब पाए गए। पुलिस संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई, जिसका सीधा  फायदा आरोपियों को मिला।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कई बार कह चुके हैं कि जब्त मादक पदार्थों को सालों तक मालखाने में सड़ने नहीं दिया जा सकता और NDPS मामलों में फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और सैंपल सुरक्षित करने के बाद माल का समय पर निस्तारण जरूरी है। इसके बावजूद जमीनी स्तर पर लापरवाही के मामले लगातार सामने आते रहे हैं।

इन मामलों का नतीजा क्या होता है?

अक्सर ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष सबूत पेश नहीं कर पाता। अदालत को संदेह का लाभ देना पड़ता है और गंभीर अपराधों में भी आरोपी छूट जाते हैं। यही कारण है कि ऐसे मामलों को न्यायपालिका बेहद गंभीर मानती है। रांची का मामला कोई अपवाद नहीं, बल्कि एक लंबी और चिंताजनक परंपरा का हिस्सा है। जब पुलिस कस्टडी में रखा माल ही सुरक्षित न हो, तो कानून का डर कमजोर पड़ता है और तस्करी जैसे अपराधों पर रोक लगाना मुश्किल हो जाता है। अब सवाल सिर्फ चूहों या आग का नहीं, बल्कि जवाबदेही तय करने का है।
रांची का यह मामला सिर्फ एक आरोपी की रिहाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे आपराधिक न्याय तंत्र के लिए चेतावनी है। अगर सबूत ही सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो कानून का डर कैसे बनेगा? “चूहों ने गांजा खा लिया”- यह बयान अब सिस्टम पर एक बड़ा सवाल बन चुका है।
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