Home हिन्दी फ़ोरम थैलेसीमिया के इलाज के लिए सीएसआर से मिलेंगे 10 लाख

थैलेसीमिया के इलाज के लिए सीएसआर से मिलेंगे 10 लाख

681
0
SHARE
 
तस्वीर में दिख रही ये नन्ही बच्ची नंदिनी है। छोटी सी उम्र में ये ऐसी बीमारी से जूझ रही है कि अगर इसका स्थायी इलाज नहीं किया गया तो ताउम्र नंदिनी को खून चढाने पड़ेंगे। नंदिनी थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित है। नंदिनी को थैलेसीमिया मेजर है और जैसे-जैसे इसकी उम्र बढ़ती जाएगी इसे ब्लड की ज्यादा जरूरत पड़ती जाएगी। थैलेसीमिया का एक ही स्थायी इलाज है वो है बोन मेरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplant for Thalassemia)। नंदिनी का भी अगर बोन मेरो ट्रांसप्लांट हो गया तो ये बच्ची अन्य दूसरे बच्चों की तरह ठीक हो जाएगी और फिर इसे कभी ब्लड चढ़ाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। लेकिन नंदिनी के माता पिता बोन मेरो ट्रांसप्लांट का खर्च नहीं उठा सकते। जैसे ही ये बात केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को पता चली वैसे ही नंदिनी के इलाज के लिए 10 लाख का इंतज़ाम हो गया। यह मदद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के प्रयासों से संभव हो पाई है।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मदद से नंदिनी को थैलेसीमिया के इलाज के लिए मिलेंगे 10 लाख का सीएसआर

दरअसल नंदिनी के इलाज के लिए कोल इंडिया लिमिटेड सामने आया है। कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) अपने सीएसआर फंड (CSR Funds) के माध्यम से थैलेसीमिया से पीड़ित नंदिनी के इलाज के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के लिए 10 लाख रुपये देने की घोषणा की है। नंदिनी महाराष्ट्र के नागपुर में रहती है और नागपुर की नंदिनी इस योजना के तहत बोन मेरो ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के लिए पहली लाभार्थी बनीं है। नंदिनी के माता पिता और थैलेसीमिया और सिकल सेल सोसायटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. विंकी रघवानी ने Nitin Gadkari से मुलाकात कर इस मदद के लिए आभार जताया।

डॉ. विंकी रूघवानी करते है थैलेसीमिया का फ्री इलाज

डॉ. विंकी रूघवानी से जब The CSR Journal ने बात की तो उन्होंने बताया कि थैलेसीमिया के रोगियों के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट की लागत बहुत अधिक होती है, इसलिए परिजन इसे वहन नहीं कर सकते। ऐसे मरीजों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय है। डॉ. विंकी रूघवानी कई सालों से थैलेसीमिया पेशेंट्स के लिए काम करते आये है। Thalassemia Society of Central India के अध्यक्ष डॉ. विंकी रूघवानी चाइल्ड केयर सेंटर एंड हॉस्पिटल में 200 थैलेसीमिया के मरीजों का फ्री में इलाज और  Blood transfusion करते है। नंदिनी का भी इलाज यही कर रहें है।
डॉ. विंकी रूघवानी ने इलाज के लिए नितिन गडकरी से गुजारिश की और फिर नितिन गडकरी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister Office) और स्वास्थ्य मंत्रालय से इस प्रक्रिया की लागत को सीएसआर फंड से वहन करने की सिफारिश करने का अनुरोध किया। गडकरी के प्रयासों के कारण कोल इंडिया ने कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल मुंबई को सीएसआर के तहत चुना। इस अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। यहां बोन मैरो प्रक्रिया से गुजर रहे मरीजों को सीएसआर से 10 लाख रुपये दिए जाएंगे। नागपुर की नंदिनी लड़की इस योजना के तहत बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के लिए पहली लाभार्थी बन गई है। इस पहल से थैलेसीमिया के मरीजों को जीवनदान मिलेगा।

क्या होता है थैलेसीमिया

थैलेसीमिया रोग एक तरह का खून से संबंधित बीमारी है। इसमें बच्चे के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन सही तरीके से नहीं हो पाता है और इन कोशिकाओं की आयु भी बहुत कम हो जाती है। इस कारण इन बच्चों को हर 21 दिन बाद कम से कम एक यूनिट खून की जरूरत होती है। जो इन्हें चढ़ाया जाता है। लेकिन फिर भी ये बच्चे बहुत लंबी आयु नहीं जी पाते हैं। अगर कुछ लोग सर्वाइव कर भी जाते हैं तो अक्सर किसी न किसी बीमारी से पीड़ित रहते हैं और जीवन का आनंद नहीं ले पाते हैं। इन बीमारियों का स्थायी इलाज स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में है, जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा, यह पाया जाता है कि यदि बीएमटी कम उम्र में किया जाए तो उपचार अधिक सफल होता है।

थैलेसीमिया के इलाज के लिए कोल इंडिया सीएसआर के तहत 10 लाख की मिलती है आर्थिक सहायता (Financial Help to treat Thalassemia)

इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, कोल इंडिया लिमिटेड, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में इन बीमारियों से प्रभावित बच्चों के इलाज में सहायता के लिए अनूठी सीएसआर पहल लेकर आई है। Coal India Limited थैलेसीमिया के उपचार के लिए 2017 में सीएसआर परियोजना शुरू करने वाला पहला सार्वजनिक उपक्रम है। देश भर में फैले आठ प्रमुख अस्पतालों में बीएमटी के लिए पात्र रोगियों को 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। अब तक थैलेसीमिया के मरीजों का 158 से अधिक सफल प्रत्यारोपण किया जा चुका है। 2021 से अप्लास्टिक एनीमिया के मरीज भी इस योजना के दायरे में आते हैं।